Oswal 61 Sample Question Papers ICSE Class 10 Hindi Solutions

Section-A

(i)

कम्प्यूटर-आज की आवश्यकता

Answer 1.

आधुनिक युग विज्ञान का युग है। इसमेें सन्देह नहीं कि विज्ञान ने हमेें चमत्कारी वस्तुएँ प्रदान की हैैं। आज सर्वत्र कम्प्यूटर का बोल-बाला है। यदि भारत मेें औद्योगिक क्रान्ति लानी है, तो उसके लिए कम्प्यूटर की बहुत आवश्यकता है।

वर्तमान अर्थ वाणिज्य एवं व्यापार के क्षेत्र मेें अति तीव्र गति से परिवर्तन होता जा रहा है जिसमेें विज्ञान एवं तकनीकी के कारण विश्व के सभी देशों मेें प्रतिद्वन्द्विता आ गई है। कोई भी देश इस दौड़ मेें पीछे नहीं रहना चाहता। यदि भारत को भी इस श्रेणी मेें आना है, तो यहाँ पर कम्प्यूटर क्रान्ति लानी ही पड़ेगी।

निःसन्देह कम्प्यूटरों ने उद्योगों मेें क्रान्तिकारी मोड़ ला दिया है। यहाँ तक कि कारखानों मेें निर्मित सामग्री की संख्या और उनके स्तर का  निर्धारण भी कम्प्यूटर द्वारा ही होता है। हानि-लाभ के आँकड़ों की गणना कम्प्यूटर स्वयं करता है। उद्योगों मेें रोबोट (यन्त्र मानव) का उपयोग कम्प्यूटर की ही देन है।

बैंकों कम्प्यूटर का योगदान अभूतपूर्व हैं। विदेशों मेें तो कम्प्यूटर बैैंक मेें प्रत्येक ग्राहक के लिए एक गुप्त ‘पिन’ रखता है जिसके द्वारा ग्राहक बैैंकों से भुगतान स्वतः प्राप्त कर सकता है। अब तो बड़े-बड़े खातों के रख-रखाव और पैसे के लेन -देन की माथापच्ची से बैैंक कर्मचारियों को भी  फुर्सत मिली है। इसमेें कोई हेरा-फेरी नहीं हो सकती। आजकल प्रायः सभी संस्थानों, प्रतिष्ठानों मेें बिल भी कम्प्यूटर द्वारा ही तैयार किये जाते हैैं। रिजर्व  बैैंक तथा व्यापारिक बैैंकों मेें कम्प्यूटरों का प्रयोग अधिकाधिक होने लगा है, किन्तु अभी जिस अनुपात मेें कम्प्यूटरों की अपेक्षा है, वह भारतीय बैैंकों के लिए  पर्याप्त नहीं है। जीवन बीमा निगम के जटिल कार्ययों से निबटने मेें भी कम्प्यूटर की अहम् भूमिका है।

हमारी अन्तरिक्ष यात्राएँ कम्प्यूटर पर ही आश्रित हैैं। कम्प्यूटर की सहायता के बिना रॉकेट या उपग्रह अन्तरिक्ष मेें प्रक्षेपित नहीं किये जा सकते, न उनका निरीक्षण हो सकता है। परिवहन और दूर-संचार मेें भी कम्प्यूटरों का विशेष योगदान है। रेलयात्रा या वायुयात्रा मेें आरक्षण का कार्य कम्प्यूटर के द्वारा ही आसान हुआ है। सभी राष्ट्रों के शिक्षण कार्य कम्प्यूटर की अधिकाधिक मदद ली जा रही है। जटिल से जटिल समस्याओं का निराकरण कम्प्यूटर द्वारा छात्र पलक झपकते ही कर सकते हैैं।

अपराध निवारण मेें भी कम्प्यूटर बहुत उपयोगी है। पश्चिम के कई देशों मेें सभी अधिकृत वाहन मालिकों और चालकों का  रिकॉर्ड पुलिस के एक विशाल कम्प्यूटर मेें होता है और कम्प्यूटर क्षण मात्र मेें सूचना देता है कि वास्तविक मालिक कौन है? कम्प्यूटर शोध कार्ययों मेें भी बहुत सहायक है। सोवियत रूस मेें ‘कीव’ स्थित कृषि विज्ञान प्रयोगशाला मेें एक ऐसा कम्प्यूटर विकसित किया गया है, जो जंगलों के घटने की दर का विश्लेषण प्रस्तुत करेगा। इस प्रकार के कम्प्यूटर से किसानों को फसलों को बोने का ज्ञान प्राप्त हो सकता है।

कम्प्यूटर विवाह कराने, जन्मपत्री बनाने एवं जन्मपत्री मिलाने के लिए भी आजकल उपयोगी सिद्ध हो रहा है। अमरीका, जापान और रूस मेें ऐसे कम्प्यूटर  का आविष्कार हुआ है जो होम कम्प्यूटर है।घर बैठे बाजार में उपलब्ध चीजों और उनके मूल्य का पता लगाया जा सकता है।

निःसन्देह कम्प्यूटर आधुनिक युग की पहचान है। उसकी  कार्यक्षमता की बराबरी नहीं की जा सकती, भविष्य मेें उसके बढ़ने की ही सम्भावना है। इससे भारत को एक खतरा अवश्य है, वह यह है कि इसके आधिक्य से भारत मेें बेरोजगारी की समस्या बढ़ेगी। भारत के पास ‘मैन पावर’ है परन्तु कम्प्यूटरीकरण से अनेक के स्थान पर एक व्यक्ति काफी है। इसके अतिरिक्त यह महँगा कार्य है। उत्तम कोटि के कम्प्यूटर भारत को विदेशों से आयात करने पड़ते हैैं इससे हमारी अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। इसके अतिरिक्त इनके रख-रखाव के लिए विशेषज्ञ भी विदेशों से ही  बुलाने  पड़ेेंगे। ये ऑपरेटर भी काफी धनराशि लेकर ही काम करेेंगे। इसलिए यह कार्य श्रम प्रमुख न होकर  पूँजी प्रमुख अधिक है । इसलिए हमेें एक सन्तुलन बनाकर चलना चाहिए ताकि हमारी प्रगति मेें भी बाधा न आये और बेरोजगारी मेें भी बढ़ोत्तरी न हो। अतः हमेें कम्प्यूटर का प्रयोग वहाँ करना चाहिए जहाँ इसके बिना काम न चले और अन्य जगहों पर हमेें अपनी ‘मैन पावर’ का प्रयोग करना चाहिए ताकि देश मेें बेरोजगारी भी न बढ़े।

(ii)

स्वस्थ जीवन के लिए मनोरंजन

स्वस्थ जीवन के लिए मनोरंजन अपरिहार्य है। प्राचीनकाल से ही मनुष्य ने मनोरंजन की आवश्यकता अनुभव की है। मनुष्य अपने प्राप्त साधनों से मनोरंजन करता आया है, लेकिन उन साधनों के मनोरंजन से उसे सन्तोष नहीं हुआ। अतः वह मनोरंजन के साधनों मेें निरन्तर विकास करता आया है। प्राचीनकाल मेें मनोरंजन के साधन सीमित थे। जैसे-नाटक, स्वांग , महफिल, नट, रीछ व बन्दर का तमाशा,सर्कस , नृत्य और खेलकूद आदि। इसके अतिरिक्त कठपुतली का खेल, शतरंज, ताश के खेल, चौपड़, चित्रकला, गाना, बजाना आदि भी मनोरंजन के प्रमुख साधन थे जो आज भी प्रचलित हैैं।

मनोरंजन के आधुनिक साधनों मेें विज्ञान ने अधिक सहायता पहुुँचाई है। मानव की मनोरंजन की समस्या का प्रमुख समाधान विज्ञान ने बड़ी आसानी से कर दिया है। विज्ञान ने मानव को रेडियो, सिनेमा, टेलीविजन आदि साधन प्रदान किये। मनोरंजन के आधुनिक साधनों मेें सिनेमा सबसे अधिक लोकप्रिय है। आज हम देखते हैैं कि कस्बों से लेकर शहरों तक मेें सिनेमा का प्रचलन हो गया है। सिनेमा नाटक का ही विज्ञान के द्वारा परिष्कृत रूप है। प्राचीन या आधुनिक नाटकों मेें जिन घटनाओं को असम्भव मानकर नहीं दिखाया जाता था,  उन्हीं घटनाओं को सिनेमा मेें सफलतापूर्वक दिखाया जाता है। सिनेमा मेें नाटक की तरह कोई अभिनेता सामने नहीं आता अपितु उसका बोलता और चलता-फिरता चित्र दिखाई देता है। वे घटनाएँ वास्तविक-सी प्रतीत होती हैैं। सिनेमा अत्यन्त सस्ता, सरल और सुलभ साधन है। सिनेमा के माध्यम से अपने ही शहर मेें उच्चकोटि के अभिनेताओं, संगीतकारों और कलाकारों की कला का दर्शन सुलभ हो जाता है। आज सिनेमा बालक से लेकर वृद्ध तक सभी मेें लोकप्रिय है।

दूसरा साधन है रेडियो जो सामूहिक मनोरंजन का साधन न होकर पारिवारिक मनोरंजन का साधन है। इसके द्वारा अपने घर पर ही बैठकर देश- विदेश के समाचार सुने जा सकते हैैं और गीत-संगीत के द्वारा अपना भरपूर मनोरंजन कर सकते हैैं। इसके गीत  कर्णप्रिय होते हैैं और संगीत
भी सुनने मेें सरस होता है। संसार मेें अनेक रेडियो-स्टेशन हैैं जो भाँति-भाँति के प्रोग्राम प्रसारित कर श्रोताओं का मनोरंजन करते हैैं। आज तो मोबाइल मेें भी संगीत और गाने सुनाई देते हैैं। जब भी समय हो तो गानों के द्वारा अपना मनोरंजन कर सकते हैैं।

आधुनिक समय मेें टेलीविजन मनोरंजन का प्रमुख साधन है। टेलीविजन पर सिनेमा की तरह फिल्म, धारावाहिक, हास्य-व्यंग्य, कविता आदि के सुनने और देखने का आनन्द प्राप्त होता है। आज हर घर मेें टेलीविजन है। प्रत्येक अमीर-गरीब के लिए टेलीविजन मान लो विज्ञान का वरदान है। टेलीविजन ने अन्य साधनों को जैसे असफल बना दिया है। बाहर से थका-हारा मनुष्य टेलीविजन देखकर फिर से तरोताजा हो जाता है अर्थात  उसकी थकान मिट जाती है। वह घर बैठकर विश्व के सभी समाचारों की जानकारी कर सकता है। इस प्रकार मनोरंजन के साथ-साथ यह ज्ञान भी प्रदान करता है। आजकल तो टेलीविजन पर प्रत्येक समय कुछ न कुछ आता रहता है। हर दिन कई फिल्में दिखाई जाती हैैं। टेलीविजन के प्रचलन ने सिनेमा को भी पीछे कर दिया है।

मनोरंजन के साधन यद्यपि अधिक हैैं, पर मनुष्य को चिन्ता अधिक देते हैैं। टेलीविजन पर अधिक क्रूर और भद्दे धारावाहिक दिखाए जाते हैैं जो भावी पीढ़ी के लिए अत्यन्त हानिकारक हैैं। छात्रों के लिए टेलीविजन अत्यन्त हानिकारक साबित हो रहा है। इससे पढ़ाई मेें हानि होती है और गलत मार्ग -दर्शन  भी होता है। किसी हद तक टेलीविजन देखना मनोरंजन के लिए अच्छा है, पर अधिक देखना हानिकारक है। टेलीविजन मनुष्य को समाज से दूर कर देता है। अति हर चीज की बुरी होती है अतः इन साधनों को सीमित समय तक ही उपयोग करना चाहिये।

(iii) अपने से बड़े लोगों के प्रति हमारे कुछ  कर्त्तव्य  होते हैैं। हम उन कर्त्तव्यो का पालन करते हैैं। इसी प्रकार हमारे अधिकार भी होते हैैं। इन अधिकारों का हम उपयेाग करते हैैं। प्रत्येक व्यक्ति का जीवन कर्त्तव्यो और अधिकारों से युक्त होता है। हमारे गुरुजन, माता-पिता, भाई-बहन जिस प्रकार वे हमसे आशा रखते हैैं उसी प्रकार हम भी उनसे आशाएँ रखते हैैं।

हमारे बड़ों मेें माता-पिता, बड़े भाई-बहन, अन्य बड़े रिश्तेदार, गुरु-अध्यापक,नेता लोग सम्मिलित हैैं। हमेें विचार करना है कि हमको इनसे क्या आशाएँ रखनी चाहिए।

माता-पिता से हम आशा करते हैैं कि हमारा अच्छी तरह पालन-पोषण करेें। हमारी लिखाई-पढ़ाई का प्रबन्ध करेें। हमारी हर सुविधा का ध्यान रखेें। अपने बड़े भाई या बहन से हमेें आशा है कि वे हमारे साथ सहानुभूति रखेें, हमेें प्रेम करेें। हमारे सुख-दुःख मेें हमको सहारा देें। हमारे गुरुजनों अथवा अध्यापकों से हमारी बड़ी आशाएँ होती हैैं। वास्तव मेें गुरु ही हमारे जीवन को बनाने वाले होते हैैं। उनको हम आदर्श मानकर चलते हैैं। उनकी प्रत्येक गतिविधि, उनका प्रत्येक व्यवहार अनुकरणीय हो ऐसी हमको उनसे आशा है। जब हम अपने किसी अध्यापक मेें कोई दोष पाते हैैं तो हमेें दुःख होता है। मन कहता है कि वे हमारे अध्यापक होने योग्य नहीं हैैं। अध्यापकों को तो हम अपना आदर्श समझते हैैं। हम चाहते हैैं कि हमारे अध्यापक कक्षा मेें हमेें इतनी अच्छी तरह से पढ़ायेें कि हमको कक्षा मेें ही सारी बातेें याद हो जायेें। घर पर याद करने की आवश्यकता न रहे। खेल के मैदान मेें जब हम जाते हैैं हम चाहते हैैं कि हमारे क्रीड़ाध्यापक हमेें खेल खिलाते रहेें जिससे हमारा मनोरंजन होता रहे। स्कूल हमारे लिए आदर्श स्थल बना रहे। इसलिए हम अपने प्रधानाध्यापक से आशा रखते हैैं कि वे हर तरह से हमारी उन्नति का प्रबन्ध करेें। राजनेताओं से हमेें बड़ी-बड़ी आशाएँ होती हैैं। हम चाहते हैैं कि वे देश को ऊँचा उठायेें। हमारी समस्याओं का समाधान करेें। ऐसे नियम बनायेें जिससे नागरिक जीवन अच्छा बने।

अधिकारियों से हमेें आशा है कि वे अपने-अपने कार्य को मुस्तैदी से करेें। उदाहरण के लिए पुलिस कर्मचारी यदि सावधानी से कार्य करेें तो देश मेें शान्ति रह सकती है। दिन-दहाड़े लूट होती है, गुण्डे-बदमाश साधारण लोगों के जीवन को दूभर बना देते हैैं। पुलिस कर्मचारियों का  कर्तव्य है कि वे जनता की सुरक्षा का प्रबन्ध करेें। इसी प्रकार न्यायालयों से हमेें आशा है कि वे जनता को न्याय देें। न्यायाधीश यदि मुस्तैदी से कार्य करेें तो कचहरियों मेें होने वाली भीड़-भाड़ बहुत कम हो सकती है। अस्पतालों मेें यदि डॉक्टर लोग मरीजों की देखभाल करेें तो अस्पताल स्वर्ग बन सकते हैैं। कार्यालयों मेें यदि सारे कार्य तेजी से हों तो जन-जीवन सुखी हो सकता है। इस प्रकार, हमेें अपने से बड़े लोगों से अनेक आशाएँ होती हैैं। परंतु आशाएँ रखना तभी हितकारी और न्यायपूर्ण है जब हम अपने कर्तव्यों का भी भलीभाँति पालन करेें।

(iv) मूर्ख  मित्र से समझदार शत्रु अच्छा होता है। हमेें शत्रु के मुकाबले मूर्ख  मित्र से अधिक सावधान रहना चाहिए। समझदार शत्रु कभी भी धोखे से अहित नहीं करेगा। वह आमने-सामने ही लड़ेगा, पीछे से या धोखे से हमला नहीं करेगा। यह तो शत्रु की बात हो रही है जो समझदार व नीतिवान है। जो शत्रु समझदार नहीं है और अनीति पर चल रहा है, वह तो कभी भी धोखा कर सकता है इसलिए उससे तो विशेष सावधान रहना चाहिए। अब आती है बात मित्र की। मित्र को सुहृदय भी कहते हैैं। मित्र मुसीबत मेें सहायता करता है और सपने मेें भी अहित की बात नहीं सोच सकता। मित्र पर बड़ा भरोसा होता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है–

“जो न मित्र दुःख होई दुखारी। तिनहिं बिलोकत पातक भारी॥”

मित्र के तो बड़े-बड़े गुण हैैं। यहाँ बात सच्चे मित्र की है, मूर्ख  मित्र की नहीं। मूर्ख  मित्र से तो विशेष सावधानी की आवश्यकता है। जिसमेें समझ नहीं है, वह न जाने कब अहित कर दे, कुछ कह नहीं सकते। इसी प्रकार एक कहानी है एक मूर्ख  सेवक की।

एक राज्य मेें बड़े प्रतापी राजा उदयभानु सिंह राज्य करते थे। वे बड़े दयावान, न्यायी और प्रजा के हित-रक्षक थे। उनकी प्रशंसा आसपास के राज्यों मेें फैली हुई थी। लोग उनके न्याय की मिसाल देते थे उनके राज्य की प्रजा सुखी थी। वे विद्वानों का आदर करते थे। एक दिन उनके दरबार मेें एक बन्दर का तमाशा दिखाने वाला आया। उसने राजा और दरबारी लोगों को बन्दर का तमाशा दिखाया। उस बन्दर को मदारी ने काफी काम सिखा दिये थे। सिवाय बोलने के वह सब काम कर देता और आदमियों की बातेें समझ लेता। राजा ने प्रसन्न होकर उस बन्दर को मदारी से अच्छा मूल्य देकर खरीद लिया और महल मेें रख लिया। राजा जो कार्य करने को कहता, वह उस कार्य को कर देता। थोड़े ही दिनों मेें उसने राजा का दिल जीत लिया। अतः राजा ने उसे अपनी सेवा मेें रख लिया। जब राजा शयन करता वह बन्दर राजा को पंखे से हवा करता। इस प्रकार उसने अपने काम को समझ लिया था। राजा शीतल हवा के  स्पर्श से सुख का अनुभव करता था। हर दिन राजा उस बन्दर की प्रशंसा करता था और उसे अपने साथ दरबार मेें भी ले जाता था। सभी लोग उसे देखकर अपना मनोरंजन करते। कभी वह दरबारियों से जाकर हाथ भी मिला लेता था।

एक दिन दरबार मेें आकर खाना खाकर राजा अपने शयन कक्ष मेें चला गया। राजा विश्राम करने लगा और बन्दर ने पंखा लेकर हवा करना शुरू कर दिया। थोड़ी देर मेें ही शीतल पवन के स्पर्श से राजा को गहरी नींद आ गई। कुछ देर बाद एक मक्खी आकर राजा की नाक पर बैठ गई। बन्दर ने उसे पंखे से उड़ा दिया। वह मक्खी पुनः वहीं पर आ रही थी। बन्दर राजा को बहुत चाहता था। मक्खी की हरकत से उसे बहुत क्रोध आया। उसने इधर-उधर देखा तो पाया कि एक कोने मेें राजा की खुली तलवार रखी थी। बन्दर उठा और दोनों हाथों से तलवार को उठा लाया और बड़े जोर से उसे राजा की नाक पर बैठी हुई मक्खी पर दे मारा। मक्खी तो उड़ गई, लेकिन तलवार के वार ने राजा को बुरी तरह घायल कर दिया और राजा तड़पने लगा। वह मूर्ख बन्दर भी आश्चर्य मेें राजा को देखकर दुःखी हुआ, लेकिन अब क्या हो सकता था, थोड़ी देर मेें राजा मृत्यु को प्राप्त हुआ। जब लोगों ने मरे हुए राजा को देखा तो बोले–‘‘मूर्ख मित्र से समझदार शत्रु अच्छा होता है।’’

इस कहानी से हमेें यह शिक्षा मिलती है कि मूर्ख मित्र (सेवक) कभी भी हमारा अहित कर सकता है। अतः मूर्ख मित्र (सेवक) अपने पास नहीं रखना चाहिए।

(v) यह चित्र किसी विद्यालय के मैदान का है। इसमेें फुटबाल के खेल की प्रतियोगिता चल रही है। खिलाड़ी पूरे ध्यान और शक्ति के साथ इस प्रतियोगिता को जीतने का प्रयास कर रहे हैैं। पीछे बैठे लोग और विद्यालय के छात्र इन खेलते हए बच्चों को प्रोत्साहित कर रहे हैैं। उनके नाम लेकर बेहतर प्रदर्शन के लिए उत्साहित कर रहे हैैं। फुटबाल खेलने के लिए शरीर मेें शक्ति, स्फूर्ति और खेल के प्रति लगन एवं रुचि आवश्यक है। इन बच्चों के खेलने के ढंग से पता चलता है कि वे इस खेल मेें प्रशिक्षित हैैं। यद्यपि इनकी आयु अधिक नहीं है फिर भी इनमेें जोश की कमी नहीं है। इस खेल मेें दोनों टीमों की यूनिफार्म अलग-अलग होती है ताकि अपनी टीम की पहचान रहे। लगता है कि विद्यालय की फुटबाल टीम इस खेल का अभ्यास आपस मेें ही कर रही है। ये ही बच्चे बड़े होकर इस खेल से देश के लिए कीर्तिमान स्थापित करेेंगे।

पिछले कुछ वर्षो से हमारे देश मेें खेल-कूद के क्षेत्र मेें काफी काम हुआ है। ओलम्पिक प्रतियोगिताएँ, एशियन क्रीड़ाएँ आदि  अंतर्राष्ट्रीय  स्तर की प्रतियोगिताओं मेें भारत के खिलाड़ियों ने कई ‘मैडल्स’ और ‘कप’ जीते हैैं और भारत का सम्मान बढ़ाया है।

इस क्षेत्र मेें एक बड़ी विशेषता है–मिहलाओं का आगे आना। आज भारत मेें क्रिकेट, हॉकी, टेनिस, बैडमिण्टन, टेबि लटेनिस, बॉली-बाल, बास्केटबाल आदि खेलों की महिला टीमेें बनी हैैं। हाई जम्प, डिस्कथ्रो, दौड़ जैसे खेलों मेें भी महिलाएँ विजयी हुई हैैं।

कुछ वर्ष  पूर्व हमारे देश के अनेक खिलाड़ियों ने विश्व-स्तर पर कीर्तिमान स्थापित किया है। हमारे लिए यह गर्व' की बात है।

हमारे विद्यालयों मेें भी खेलकूद पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है।

खेलों से  बच्चों  मेें खेल भावना के साथ-साथ आपस मेें प्रेम, कष्ट सहने की क्षमता, अनुशासन आदि गुण विकसित होते हैैं। हमारे विद्यालयों मेें भी खेल-कूद पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है। खेलों से स्वस्थ स्पर्धा विकसित होती है।

Answer 2.

(i) छात्रावास,

दयालबाग शिक्षण संस्थान।

दिनांक : 12-7-20XX

प्रिय पिंकी,

सस्नेह  आशीर्वाद|

तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ।सर्वप्रथम  तुम्हें बहुत-बहुत बधाई, तुम्हें विदेश जाने का अवसर प्राप्त हुआ है। तुम्हें परेशान या दुःखी होने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम अपने लक्ष्य के पथ पर आगे बढ़ रही हो। केवल दो वर्ष के लिए ही तो परिवार से दूर जा रही हो। कुछ बनने के लिए थोड़ा त्याग तो करना ही पड़ता है। मुझे भी पढ़ाई पूरी कर कुछ बनने के लिए छात्रावास मेें रहना पड़ रहा है।

हमेें अपने माँ-बाप का नाम रोशन करने के लिए कुछ दिन का उनसे अलगाव सहना ही पड़ेगा।

तुम खुशी-खुशी जाओ और अपनी शिक्षा पूर्ण कर नाम कमाओ तथा हम सबका नाम रोशन करो। हम सबकी खुशी इसी मेें है कि तुम अपने लक्ष्य तक पहुुँचो।

माताजी व पिताजी को मेरा चरण- स्पर्श कहना।

तुम्हारा अग्रज,

अजय

(ii) सेवा मेें,

श्रीमान प्रसार प्रबन्धक जी,

‘इण्डिया टुडे’ कार्यालय,

नई दिल्ली।

विषय–पत्रिका का नियमित ग्राहक बनने हेतु पत्र।

महोदय,

मैंने आपकी पत्रिका ‘इण्डिया टुडे’ अपने कॉलेज के पुस्तकालय मेें पढ़ी। जब मैैं कोई रोचक पत्रिका तलाश कर रहा था तो मेरी दृष्टि इस पत्रिका के  आकर्षक रंगीन कवर पर पड़ी। मैैंने पत्रिका को लेकर पढ़ा। यह पत्रिका मुझे बड़ी रोचक और ज्ञानवर्धक लगी। इसमेें प्रधान लेख, राजनीति सम्बन्धी सामग्री, रंगीन  चिंत्रो संयोजन, फिल्मी लेख एवं नेतागणों की समालोचना बड़े उत्तम ढंग से पढ़ने को मिलती है। पठनीय सामग्री सुरुचिपूर्ण है। मुझे यह बहुत पसन्द आई। विद्यार्थियों को भी इस प्रकार की पत्रिकाएँ पढ़नी चाहिए। इसमेें प्रकाशित लेखों को पढ़कर उन्हें राजनीति व अन्य विषय सम्बन्धी जानकारी होती है। यह जानकारी आगे चलकर उनके काम आयेगी। मैैंने तो पत्रिका को पढ़कर मन बना लिया था कि इसका नियमित ग्राहक बन जाऊँ ताकि यह पत्रिका मेरे घर पर उपलब्ध रहे और मेरे साथ-साथ घर के अन्य सदस्य भी इसे पढ़कर ज्ञानवनार्र्कजन करेें। राजनीति की स्पष्ट आलोचना मुझे बहुत पसन्द आई। कुछ लेख समयानुसार बदलती हुई राजनीति के सम्बन्ध मेें होते हैैं। युवकों के लिए भी सुरुचिपूर्ण लेख, खेलों के बारे मेें और फिल्मो के बारे मेें सामग्री होती है। छवि चिंत्रो का संयोजन उत्तम स्तर का होता है। छपाई और कागज की दृष्टि से भी यह पत्रिका उच्च कोटि की है।

कृपया इस पत्रिका का वार्षिक मूल्य लिखकर भेज देें ताकि हम उसी हिसाब से धनादेश के द्वारा इसका मूल्य भेज देें। पत्र का उत्तर शीघ्र देने का कष्ट करेें और कोई विशेष जानकारी या सूचना  देनी  हो तो कृपया अपने पत्र मेें लिख देें।

धन्यवाद सहित!

भवदीय,

रवि प्रकाश

111-बी, गाँधी नगर,

आगरा-282005.

दिना ंकः 11-2-20XX

Answer 3.

(i) ग्रामों मेें नगरों की तरह न बिजली के पंखे हैैं, न नल का पानी, न मोटर व रेल के पथ, ना फलों, मेवों की मंडियाँ व मिठाइयों की दुकान।

(ii) ग्राम मेें समय धूप और चाँदनी से ही जाना जाता है। तारे भी उसमेें सहायता करते हैैं।

(iii) ग्रामीणों के मुख पर तेज का कारण वहाँ का प्राकृतिक वातावरण, कुओं से निकले ताजा शुद्ध पानी से स्नान, नीम की दातुन, शुद्ध घी व शुद्ध दूध हैैं। नगरवासियों के चेहरे नीरस इसलिए होते हैैं,क्योंकि  नगर मेें न शुद्ध वायु है और न शुद्ध भोजन। चारों तरफ गंदगी ही गंदगी होती है।

(iv) ग्रामवासियों का भोजन गाय का शुद्ध घी; शुद्ध दूध और दही, छाछ आदि होता है। नगरवासियों का भोजन दुकानों पर बने हुए पकवान होते हैैं।

(v) गाँववासी शाम को खेतों से घर लौटते हैैं। गाय की सेवा करना, बैलों को चारा डालना, चौपाल पर लोगों से बातचीत करना, जो मिला सो खा लेना , समय रहा तो रामायण आदि पढ़ना। बच््चोों से बातेें करना और सो जाना। प्रातः काल फिर से उठ वही कार्य दोहराना। 

ग्रामीण की दिनचर्या  प्राकृतिक वातावरण से प्रारम्भ हो, गाय की सेवा, बैलों को चारा आदि से पूर्ण होती है।

Answer 4.

(i) (a) बहिरंग

(ii) (d) नेह-प्रेम

(iii) (b) उड़ान

(iv) (c) आर्थिक

(v) (a) रामायण

(vi) (b) बहुत प्रिय होना

(vii) (a) मुसाफिरों ने धर्मशाला  मेें विश्राम किया

(viii) (c) मितभाषी

Section-B

Answer 5.

(i) लेखक रेल से हरिद्वार जा रहा था  क्योकिं उसे वहाँ अपने मित्र श्यामलाकांत की बड़ी पुत्री के विवाह मेें भाग लेना था। श्यामलाकांत लेखक के घनिष्ठ मित्र थे।

(ii) लेखक ने अपने मित्र का प्रारम्भिक परिचय देते हुए बताया है कि हरिद्वार निवासी उनके यह मित्र सीधे-सादे, परिश्रमी, ईमानदार, किन्तु व्यक्तिगत जीवन मेें लापरवाह थे। वे उम्र मेें लेखक से छोटे थे, किन्तु उनका सात बच्चो का बड़ा परिवार था।

(iii) स्टेशन पर लेखक का रेल मेें आरक्षण न हो सका,  क्योंकि वहाँ पहले से बहुत अधिक व्यक्तियों की लम्बी लाइन थी।

(iv) यात्रा के दिन स्टेशन पर यात्रियों की भीड़ देखकर लेखक घबरा गया। कुली की सहायता से किसी प्रकार खिड़की के मार्ग से डिब्बे मेें पहुुँचा। ‘लक्सर’ स्टेशन पर भी वह किसी प्रकार गाड़ी के बाहर आया। गाड़ी के अन्दर, बाहर और डिब्बे के ऊपर यात्रियों की भीड़ देखकर वह परेशान हो गया। किसी प्रकार परेशानी सहकर वह हरिद्वार पहुुँचा।

Answer 6.

(i) यहाँ पर यह कथन चित्रा अपनी सहेली अरुणा से कह रही है। चित्रा पेेंटिंग बनाती है तो अरुणा उसमेें कुछ न कुछ कमी निकालती रहती है। वह कहती है कि दुनिया मेें कितनी भी बड़ी घटना घट जाये पर यदि उसमेें चित्रा के चित्र के लिए आइडिया नहीं तो उसके लिए वह घटना कोई महत्व नहीं रखती।

(ii) चित्रा अपनी पढ़ाई का कोर्स  समाप्त करके विदेश जाना चाहती है। उसके पिताजी ने भी उसे पत्र लिखकर जाने की आज्ञा दे दी है।

(iii) तीन दिन से मूसलाधार वर्षा हो रही थी। रोज अखबारों मेें बाढ़ की खबरेें आ रही थीं। अरुणा बाढ़ पीड़ितों के लिए चन्दा इकट्ठा करने मेें जुट गई और फिर वह बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए चली गई और पन्द्रह दिन बाद लौटकर आई।

(iv) चित्रा के विदेश जाने की बात सुनकर अरुणा भावुक हो उठी। उसने कहा कि छह साल से साथ-साथ रहते हुए वह यह तो भूल ही गई थी कि अलग भी होना पड़ सकता है। दोनों मेें इतना स्नेह था कि हॉस्टल वाले उनकी मित्रता देखकर ईर्ष्या करते थे।

Answer 7.

(i) उपर्युक्त अवतरण मेें ‘भेड़ियों’ शब्द का प्रयोग शोषक  वर्ग , साधन-सम्पन्न व्यक्तियों और सत्ताधारी लोगों के लिए किया गया है, जो जनता का शोषण करते हैैं। ये लोग लोकतन्त्र की धज्जियाँ उड़ाकर अपना उल्लू सीधा करते हैैं। भोली-भाली जनता उनके बहकावे मेें आ जाती है और शोषित बनी रहती है।

(ii) भेड़िये, भेड़ेें और सियार क्रमशः  शेषक वर्ग, भोली-भाली जनता तथा अवसरवादी, स्वार्थी और चापलूस व्यक्तियों के प्रतीक हैैं। यह हास्य- व्यंग्य प्रधान रचना है। लेखक ने बड़े रोचक ढंग से शासक वर्ग  पर करारा व्यंग्य किया है।

(iii) चुनाव मेें भेड़िये का प्रचारक सियार वर्ग था। तीन सियारों ने उनका नेतृत्व किया। भेड़िये को सन्त का रूप दे दिया और उसका झूठा प्रचार किया कि भेड़िये ने माँस खाना छोड़ दिया है और वह सन्त हो गया है। भेड़िये को सब प्रकार से भेड़ों का रक्षक और हितैषी बताया।

(iv) सियार अवसरवादी और स्वार्थी लोगों के प्रतीक हैैं। उनका अस्तित्व शोषक वर्ग की कृपा पर ही निर्भर  है। उनका सुख- सुविधापूर्ण जीवन भी उन्ही की कृपा से चलता है। इसलिए ऐसे लोग शोषक वर्ग  की चापलूसी और उनके लिए कार्य  करने मेें लगे रहते हैैं। बिना शोषक वर्ग  की कृपा के उनका जीवन मुश्किल से चलेगा।

साहित्य सागर (पद्य)

Answer 8.

(i) कृष्ण को सोता हुआ जानकर यशोदा जी चुप हो जाती हैैं और इशारों से बात करने लगती हैैं। इसी बीच कृष्ण अकुलाकर उठ बैठे तो यशोदा जी मधुर गीत गाकर उन्हें फिर से सुलाने लगती हैैं।

(ii) यशोदा बालकृष्ण को पालने मेें झुलाकर सुलाने का प्रयत्न कर रही हैैं। वे उसे हिलाती हैैं, प्यार करती हैैं और मल्हार जैसा गीत गाने लगती हैैं। कभी कुछ और गाने लगती हैैं ताकि कृष्ण सो जाये।

(iii) जब कृष्ण सो नहीं रहे हैैं तो यशोदा नींद से कहती हैैं कि हे नींद! तुझे कान्हा बार-बार बुला रहा है तू क्युकि नहीं आती? जब तू आयेगी तभी कृष्ण सो पायेगा। तू शीघ्रता से आ ताकि कृष्ण चैन से सो सके।

(iv) यशोदा ऐसा सुख प्राप्त कर रही हैैं, जो सुख देवताओं और ऋषि-मुनियों को भी दुर्लभ  है अर्थात  साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन  का और उनके साथ क्रीड़ा करने का सुख वे सहज रूप मेें ही प्राप्त कर रही हैैं। भगवान के दर्शन देव ताओं और निरन्तर जप करने वाले मुनियों को भी दुर्लभ हैैं।

Answer 9.

(i) तुलसीदास जी का मत है कि जो राम से नाता रखता है  अर्थात  प्रभु श्रीराम की भक्ति करता है वही व्यक्ति हमारा प्रिय और सुहृदय होना चाहिए। उस अंजन (आँखों पर लगाने वाला मरहम) का क्या फायदा जो आँख ही फोड़ दे।

(ii) जो हमेें राम के चरणों मेें स्थान दिलाये, जो हमेें राम की शरण मेें ले जाये तथा जो उनकी भक्ति हमारे हृदय मेें जगाये वही हमेें परम पूज्य और प्राण से भी प्यारा होना चाहिए। उसी की संगति हमारा हित है।

(iii) भरत की माता कैकेई ने अपने पति अयोध्या के राजा दशरथ से दो वरदान माँगे थे–एक तो मेरे पुत्र भरत को राजगद्दी और दूसरा राम को चौदह वर्ष का वनवास। भरत और शत्रुघ्न अपनी ननिहाल मेें थे। सीता, राम और लक्ष्मण वन को चले गये। राम की या द मेें दशरथ ने प्राण त्याग दिये। जब भरत अपने भाई के साथ वापस अयोध्या आये तब पता चला कि उनकी माता ने राम जी को वनवास दिलवाया है तो उन्होने अपनी माता का त्याग कर दिया।

(iv) लंका के राजा रावण को छोड़कर विभीषण राम की शरण मेें आ गया। रामजी शरणागत को सहर्ष अपना लेते हैैं। उन्होने  यह जाना कि राक्षसों के बीच मेें रहकर भी मेरी भक्ति इसके अन्दर है। उन्होने  समुद्र का जल मँगाकर विभीषण का राजतिलक कर दिया मानो वही लंका का होने वाला राजा है। रावण शिवजी का भक्त था और शिवजी उसके आराध्य हैैं इसलिए उन्हहें विभीषण को रावण का राज्य देने मेें संकोच हुआ।

Answer 10.

(i) ईश्वर ने हमारे लिए धरती पर सभी सुख-सुविधाएँ प्रदान की हैैं। अन्न, जल, धन, वायु सभी को प्राप्त हो ऐसी व्यवस्था प्रभु ने कर दी है। कोई अपने परिश्रम से अधिक धन प्राप्त कर लेता है, कोई कम परिश्रम से कम धन प्राप्त कर पाता है। ईश्वर ने इसमेें कोई भेदभाव नहीं किया है। मनुष्य को भाग्यवादी न बनकर कर्मवादी बनना चाहिए। जल और वायु सभी को बराबर-बराबर हिस्से मेें मिलती है।

(ii) मनुष्य को सुख-शान्ति तभी मिलेगी जब उसको समान अधिकार, समान सुख-भोग और परस्पर सहयोग मिले। मनुष्य अपने अधिकार के साथ कर्तत्तव्य का भी ध्यान रखे। परस्पर सहयोग से मनुष्य विकास की राह पर चल सकता है।

(iii) मनुष्य सभी के कल्याण के लिए दया, प्रेम, सहयोग, सहिष्णुता और दयाभाव अपने अन्दर सँजोकर रखेें। विकास पथ पर बढ़ते हुए परस्पर सहयोग करेें और स्वार्थ से दूर रहेें। जो लोग असहाय और असमर्थ  हैैं उनकी सहायता करेें। देश-प्रेम की भावना सबके अन्दर होनी चाहिए।

(iv) कवि कहता है कि ईश्वर ने हमारे जीवन के लिए सभी सुख-सुविधाएँ धरती पर दी हैैं। मनुष्य के भोगने के लिए धरती पर अनेक चीजेें दी हैैं जो सभी मनुष्यों को सन्तुष्ट कर सकती हैैं। पृथ्वी पर जितने भी नर-नारियाँ हैैं उन सबके लिए अमित वस्तुएँ पृथ्वी मेें छिपी पड़ी हैैं। मनुष्य कर्म  करके उन्हें प्राप्त करे।

नया रास्ता (सुषमा अग्रवाल)

Answer 11.

(i) मीनू अपने कॉलेज के हॉस्टल मेें थी तो उसके पास एक टेलीग्राम आया जिसमेें लिखा था कि पिता बीमार हैैं जल्दी आओ। यह खबर पढ़कर वह बेचैन हो गई और मीरापुर जाने के लिए तैयार होने लगी। उसे लग रहा था कि कैसे जल्दी-से-जल्दी अपने घर पहुुँचकर अपने पिताजी को देख ले। इस समय रात हो चुकी थी और रात मेें जाना ठीक नहीं था, इसलिए उसे कल सुबह का इन्तजार करना पड़ा। रात बड़ी बेचैनी से कटी। अगले दिन वह सुबह ही चल दी और कुछ समय मेें घर पहुुँच गई।

(ii) पिताजी के पास बारी-बारी से घर का कोई-न-कोई व्यक्ति बैठा ही रहता। अगले दिन पिताजी को देखने बुआजी और फूफाजी आये। वे सीधे पिताजी के कमरे मेें ही गये। पहले बुआजी ने कुशलक्षेम पूछी और फिर इधर-उधर की बातेें शुरू कर दीं। पास बैठी मीनू को लगा कि पिताजी से इतनी बातेें करना उचित नहीं  क्योकि उनके साथ पिताजी को भी बोलना पड़ रहा था।

(iii) पिताजी को दिल का दौरा पड़ा था और डॉक्टरों ने  पूर्ण -आराम की सलाह दी थी। इसलिए मीनू नहीं चाहती थी कि बुआजी पिताजी से अधिक बात करेें। उनके बात करने पर पिताजी को बोलना पड़ता था। मीनू ने बआु जी को अधिक थकान का बहाना  ढूढ़ कर वहाँ से हटाया। बुआजी मान गईं और वहाँ से उठ गईं।

(iv) जाते समय बुआजी ने पिताजी को सलाह दी कि उसकी दो-दो जवान बेटियाँ हैैं। उन्हहें पढ़ाने के चक्कर मेें न पड़कर उनकी शादी कर दे। फिर रह गया रोहित तो उसकी कोई बात नहीं वह तो लड़का है। शादी के बाद उनकी जिम्मेदारी कम हो जाएगी। फिर उनकी तबियत भी तो ऐसी ही रहती है।

Answer 12.

(i) उन दिनों हॉस्टल का वातावरण कुछ शान्त-सा हो गया था। चहल-कदमी करती हुई लड़कियों के झुण्ड अब बाहर नहीं दिखाई दे रहे थे। सब अपने-अपने कमरों मेें बैठी अपनी पढ़ाई मेें व्यस्त थीं। उसकी परीक्षा शुरू होने मेें सिर्फ पन्द्रह दिन शेष रह गये थे।

(ii) मीनू बचपन से ही पढ़ाई मेें विशेष रुचि रखती थी। परीक्षा के दिनों मेें तो उसे खाने की भी सुधि नहीं रहती थी। वह आजकल कॉलेज मेें नहीं जा रही थी। परीक्षा के पूर्व अवकाश चल रहा था। वह हर समय अपने कमरे मेें अपनी पुस्तकों के साथ रहती थी। जब पढ़ते-पढ़ते थक जाती थी तो अपनी सहेली माया के साथ बैठकर पाँच मिनट बातेें कर लेती।

(iii) माया जब मीनू के लिए दवाई लेने गई तो मीनू अतीत की स्मृति यों मेें खो गई। एक बार जब वह आठवीं कक्षा मेें पढ़ती थी तो उसे तेज ज्वर हुआ था। उसकी हालत देखकर माँ की आँखों मेें आँसू आ गये थे। माँ सारी रात उसके सिर पर बर्फ  की पटि्टयाँ रखती रही थी। माँ ने उसका बहुत ध्यान रखा था।

(iv) माया मीनू की सहेली थी। मीनू का बुखार देखकर वह बाजार गई और दवा लेकर आई। जैसे ही मीनू ने करवट लेने की कोशिश की वैसे ही माया ने कमरे मेें प्रवेश किया। वह डॉक्टर से मीनू के लिए दवाई लेकर आई थी। उसके लिए एक कप चाय बनाकर माया ने उसे दवाई दी और उसके बाद सिर दबाने बैठ गई। मीनू को माया के व्यवहार मेें अपनापन देखकर बड़ा अच्छा लग रहा था। मीनू का मन माया के प्रति स्नेह से भर गया।

Answer 13.

(i) मीनू हॉस्टल से अपने घर इसलिए आई है,  क्योंकि उसकी घनिष्ठ सहेली नीलिमा की शादी है और उसमेें जाना आवश्यक था। नीलिमा तो उसे शादी से पहले ही आने के लिए बुला रही थी।

(ii) हॉस्टल मेें और घर मेें यह फर्क है कि वहाँ तो चाय भी अपने आप बनानी पड़ती है और घर मेें सुबह होते ही माँ उसे चाय लाकर बिस्तर पर ही दे देती है तथा नाश्ता भी अपनी पसन्द का मिल जाता है। घर तो घर है इसमेें अपनापन होता है।

(iii) आज मीनू के हृदय मेें विशेष उत्साह इसलिए था  क्योंकि आज उसकी सहेली नीलिमा की बारात आनी थी। परन्तु साथ ही उसके हृदय मेें एक पीड़ा-सी अनुभव हुई कि काश वह भी नीलिमा जैसी सुन्दर होती। तभी किसी ने उसे पुकारा कि नीलिमा ने उसे बुलाया है। नीलिमा का भाई अशोक उसे लेने आया था।

(iv) माँ ने उसे साड़ी पहनने को कहा तो उसने माँ से कह दिया कि रात तक साड़ी सँभालना मुश्किल होगा, बरात आने से पहले वह साड़ी पहन लेगी। शीशे के सामने खड़े होकर मीनू ने सुन्दर ढंग से अपने केश सँभाले। इससे रूप और सलोना हो उठा। गेहुुँआ रंग होने पर भी उसके तीखे नाक- नक्शे उसकी सुन्दरता मेें चार-चाँद लगा रहे थे। परन्तु मीनू के हृदय मेें हीन-भावना घर कर गई थी, जिसके कारण वह अपने को सुन्दर नहीं समझती थी। फिर उसने दर्पण  के सामने खड़े होकर अपने को गौर से देखा। उसे आभास हुआ कि वह बदसूरत तो नहीं है।

एकांकी संचय

Answer 14.

(i) माँ अपने बड़े बेटे अविनाश से नाराज थी, क्योंकि उसने एक विजातीय लड़की से शादी कर ली थी। माँ को यह स्वीकार नहीं था इसलिए अविनाश उनसे अलग रहता था। माँ को पता चला था कि अविनाश बीमार हो गया था और उसकी पत्नी ने लगन और मेहनत से उसे बचा लिया था। अब अविनाश की पत्नी बीमार पड़ी है और अविनाश उसे बचा नहीं पाएगा। यह बात जानकर माँ का हृदय परिवर्तन हुआ और उसका मातृत्व तड़प उठा अपने बड़े बेटे और बहू के लिए और कहने लगी कि वह अविनाश की पत्नी को अपने घर ले आएगी और उसे बचा लेगी।

(ii) अतुल ने अपने बड़े भाई के पास चलने से पहले अपनी माँ से कहा कि यदि वह उस नीच कुल की विजातीय भाभी को इस घर मेें नहीं ला सकी तो वहाँ जाने से कोई लाभ नहीं होगा। माँ के स्वीकारात्मक संकेत से अतुल को प्रसन्नता हुई और उसने तुरन्त ताँगा लाने को रामसिंह से कहा।

(iii) माँ द्वारा मन से अविनाश को और उसकी बहू को अपनाने की बात जानकर अतुल प्रसन्न हो गया। अतुल और उसकी पत्नी उमा तो पहले से ही चाहते थे कि अविनाश और माँ के बिगड़े हुए सम्बन्ध फिर से ठीक हो जायेें और माँ अविनाश को अपने घर मेें बुलाकर और मनमुटाव भुलाकर अपना लेें।

(iv) इस समय वातावरण मेें शान्ति और स्निग्धता है। सहसा उमा को पुस्तक के वाक्य याद आते हैैं और धीरे-धीरे फुसफुसाती है “जिन बातों का हम प्राण देकर भी विरोध करने को तैयार रहते हैैं एक समय आता है, जब चाहे किसी कारण से भी हो, हम  उन्हीं  बातों को स्वीकार कर लेते हैैं।”

Answer 15.

(i) इस कथन की वक्ता मँझली बहू है। वह छोटी बहू के बारे मेें बात कर रही है। वह ऊपर कुछ सामान रखने गई तब उसने छोटी बहू बेला को अंग्रेजी मेें कुछ गिटपिट करते हुए सुना। समझ मेें आया कुछ नहीं, लेकिन इतना समझा कि छोटी बहू बेला का पारा चढ़ा हुआ था।

(ii) वक्ता मँझली बहू ने बताया कि बहू रानी ने सारा फर्नीचर बाहर निकालकर रख दिया है। वह उन टूटी-फूटी कुर्सियों को और सड़े-गले फर्नीचर को अपने कमरे मेें न रहने देगी। परेश ने कहा कि ये तो  बुजुर्गो की निशानी है तो उसने तपाक से जवाब दिया कि हमारे बुजुर्ग तो जंगलों मेें नंगे-बुच्चे घूमा करते थे तो क्या हम भी ऐसा ही करेें।

(iii) इस बात के जवाब मेें परेश ने कहा कि इस फर्नीचर पर उसके दादा बैठते थे, पिता बैठते थे। उन लोगों को कभी शर्म  नहीं आई, उन्होने कभी फर्नीचर के सड़े-गले होने की शिकायत नहीं की। अब यदि वह इसे रखने पर आपत्ति करेगा तो दादाजी कहेेंगे कि तहसीलदार होते ही लड़के का सिर फिर गया है।

(iv) परेश की बात सुनकर उसकी बहू ने जवाब दिया कि वह (बेला) तो इस गले-सड़े सामान को कमरे के पास तक न फटकने देगी। इस बेडौल फर्नीचर से तो नीचे धरती पर चटाई बिछाकर बैठे रहना अच्छा है।

उसके बाद उसने अपने मायके के बड़े-बड़े कमरों और बहुमूल्य फर्नीचर का बखान किया और परेश की एक न चलने दी।

Answer 16.

(i) जब पन्ना धाय ने कुँवर  को यह कहा कि उन्हें तो नाच देखना अच्छा नही नहीं लगता, तब कुँवर ने कहा कि  क्यों  अच्छा नही लगता। वह तो बड़ी देर तक नाच  देखते  रहे| वे लड़कियाँ भी उसे बड़ी देर तक मुझे देखती रही धाय माँ!  मैं कितना अच्छा हूूँ, धाय माँ| यह  सुनकर ही धाय माँ ने यह कथन कहा।

(ii) जब धाय माँ ने उदयसिंह को कुलदीपक कहा तो उदयसिंह ने कहा कि वह कुलदीपक है तो कहीं उसे दान न कर देना , वे नाचने वाली लड़कियाँ तुलजा भवानी की पूजा मेें दीपदान करके ही नाच रही हैैं।

(iii) बनवीर ने नगर भर मेें आज नाच-गाने का त्योहार मनवाया, जिससे नगर-निवासियों का ध्यान नाच-रंग मेें ही रहे। मौका देखकर वह राजमहल जाकर महाराणा की हत्या कर दे और बाद मेें कुँवर उदयसिहं की हत्या कर दे। यह उसका षड्यन्त्र था।

(iv) दीपदान के उत्सव मेें धाय माँ नही गई न ही उसने कुँवर उदयसिहं को जाने दिया। कुसमय नाच-रंग की बात सुनकर पन्ना धाय को बनवीर पर शक हो गया कि बनवीर कोई कुचक्र रच सकता हैैं| इसलिए उसने कुँवर को वहाँ  नही जाने दिया, सम्भव था कि कुँवर वहा जाते और बनवीर अपने सहायकों से कोई षड्यन्त्र रच देता।

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