निम्नलिखित प्रशनो के उत्तर दीजिए—
प्रशन. कवि ने ‘अग्निपथ’ किसके प्रतीक स्वरूप प्रयोग किया है ?
उत्तर— कवि ने ‘अग्निपथ’ शब्द का प्रयोग जीवन मेें आने वाली परेशानियो, दुखो , कंठिन परिस्थितियो आंदि से घिरे हुए पथ के रूप मेें माना है। ऐसी कठिन परिस्थितियाँ मनुष्य को परेशान कर देती हैैं, ऐसे रास्ते उसे अंगारो जैसे प्रतीत होते हैैं। ऐसी विषम परिस्थितियों पर चलने वाला मनुष्य ही वास्तविक मनुष्य बनता है।
प्रशन . ‘माँग मत’, ‘कर शपथ’, ‘लथपथ’–इन शब्दों का बार-बार प्रयोग कर कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर— प्रस्तुत ‘अग्पनिथ’ कविता मेें कवि ने ‘माँग मत’, ‘कर शपथ’, ‘लथपथ’ जैसे शब्दों का प्रयोग काफी आत्मविश्वास से किया है। कवि ने बताया है कि जीवन की परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हो , आंपकी सहायता करने वाले कतार मेें भी खड़े क्यों न हो फिर भी कभी पीछे न देखते हुए भी आगे बढ़ते रहना चाहिए। हमेें किसी की भी आशा नही करनी चाहिए। कोई भी व्यक्ति किसी की सहायता निःस्वाथ भाव से नही करता है। इन शब्दों का बार-बार प्रयोग हमारे दृढ़ संकल्प की भावना को मजबूत करता है।
प्रशन . ‘एक पत्र-छाँह भी माँग मत’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— प्रस्तुत स्तु पंक्ति मेें कवि यह कहना चाहते हैैं कि परिस्थिति कितनी भी विषम क्यों न हो, जीवन मेें कितने अधिक दुःख क्यों न हो, दुखो का अन्त भी क्यों ना दिखाई दे एवं निराशा, वेदना, हताशा कितनी क्यों न बढ़ जाये येें पर हमेें किसी छायादार वृक्ष की छाँव के आसरे या किसी की सहानुभूति की इच्छा नही करनी चाहिए। कवि का कहने का अर्थ यह है कि किसी के संयोग से किसी का दुख कम नही हो सकता बल्कि और बढ़ सकता है।
प्रशन . निम्नलिखित पंक्तियो का आशय स्पष्ट कीजिए–
(क) तू न थमेगा कभी
तू न मुड़ेगा कभी
उत्तर—प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा रचित कविता ‘अग्नि पथ’ से ली गई हैैं। इन पंक्तियों मेें कवि मनुष्य को प्रेरणा देते हुए संघषमय जीवन मेें आगे बढ़ने को कह रहे हैैं। वे कह रहे हैैं कि जीवन की परेशानियाँ चाहे कितना भी विकराल रूप धारण क्यों न कर लेें, कभी भी हमेें इस जीवन पथ पर थमना नही है और कभी पीछे मुड़कर देखना नही है। जिस प्रकार ‘समय’ किसी के लिए रुकता नही है और बीता हुआ समय दोबारा वापस भी नही आता। उसी प्रकार, मनुष्य को भी अपने ‘अग्नि पथ’ रूपी मार्ग निभय होकर आगे बढ़ते रहना चाहिए।
काव्य - सोंदर्य— (i) प्रस्तुत पंक्तियाँ खड़ी बोली हिन्दी मेें छोटे- छोटे भावमय शब्दों मेें लिखी गई हैैं। इन पंक्तियों मेें कवि ने संघषमय जीवन के वास्तविक सत्य का उदघाटन
किया है।
(ii) इन पंक्तियोंमेें कवि ने प्रतीकात्मक शब्दों का प्रयोग करते हुए तू जैसे सर्वनाम शब्दों का यथा उचित प्रयोग किया है।
(iii) ‘कर शपथ’ एवं ‘अग्नि पथ’ जैसे शब्दों की पुनरावृत्ति काव्य की शोभा बढ़ाती है।
(ख) चल रहा मनुष्य है
अश्रुस्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ
उत्तर—प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा रचित कविता ‘अग्नि पथ’ से ली गई हैैं। प्रस्तुत पंक्तियोंमेें कवि कह रहे हैैं कि जीवन रूपी ‘अग्नि पथ’ पर चलना ही अपने आप मेें
महान है। हमेशा से मनुष्य अपने इसी ‘अग्नि पथ’ पर तमाम परेशानियो को झेलते हुए आगे बढ़ता जा रहा है। इस पथ पर चलते हुए कभी उसे आँसुओ से, कभी पसीने से तो कभी रक्त से सराबोर भी होना पड़ता है, परन्तु वह अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ता जाता है। कवि यहाँ इन पंक्तियोंमेें यह स्पष्ट करना चाहते हैैं कि जीवन किसी के लिए भी आनन्द की सेज नही है। सभी को जीवन मेें आने वाली परेशानियो को झेलना पड़ता है। बिना श्रम के व्यक्ति को आनन्दरूपी मोती नहीं मिल सकता, इसके लिए हमेें अपने कार्य मेें डूबकर और लथपथ होकर ही सुख प्राप्त करना होता है।
प्रस्तुत पंक्तियाँ खड़ी बोली हिन्दी मेें छोटे-छोटे भावमय शब्दों मेें लिखी गई हैैं। इन पंक्तियों मेें कवि ने संघषमय जीवन के वास्तविक सत्य का उदघाटन् किया है।
इन पंक्तियोंमेें कवि ने प्रतीकात्मक शब्दों का प्रयोग करते हुए ‘तू’ जैसे सर्वनाम शब्दों का यथा उचित प्रयोग किया है।
‘लथपथ’ और ‘अग्निपथ’ जैसे शब्दों की पुनरावति काव्य की शोभा बढ़ाती है।