Oswal 36 Sample Question Papers CBSE Class 10 Hindi B Solutions
खण्ड - 'अ'
(वस्तुपरक प्रश्न)
1.
(1) (घ) उपरोक्त सभी
(2) (ग) कथन (A) सही है लेकिन कारण (R) उसकी गलत व्याख्या करता है।
(3) (ग) परमपिता परमेश्वर से
(4) (ग) पापी से घृणा न करो, पाप से करो
(5) (ख) अंग्रेजों का वि रोधी न होने के कारण
2.
(1) (क) कत्तर्व्य की प्रेप्रेरणा
(2) (ख) वि लक्षण
(3) (घ) उपर्यु्युक्त सभी
(4) (ग) वे अपना कत्तर्व्य समझते थे
(5) (घ) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
3.
(1) (घ) क् क्रिया पदबंध
(2) (ख) सबकी सहायता करने वाला व्यक्ति
(3) (ग) क् क्रिया पदबंध
(4) (ख) वि वि शेषण पदबंध
(5) (घ) क् क्रिया पदबंध
4.
(1) (क) एक छोटा-सा गाँव था जिसके चारों ओर नदी थी।
(2) (ख) सूर्योदय हुआ और चारों ओर उजाला फैल गया।
(3) (ख) 1-iii, 2-i, 3-ii
(4) (ख) मेघा ने अपनी ऐसी कथा सुनाई कि आशा रो पड़ी
(5) (ख) ईमानदार व्यक्ति सफल होंगे।
5.
(1) (ग) प्रत्युत्तर
(2) (घ) अव्यय ीभाव समास
(3) (ग) (ii) और (iv)
(4) (ख) एक ही है जो/द्विगु समास
(5) (ग) नीला है जो उत्पल (कमल)
6.
(1) (ग) नौ-दो ग्यारह होना–भाग जाना
(2) (घ) साहसिक कार्य करना
(3) (ग) गायब होना
(4) (घ) हाथ मलना
(5) (ग) राई का पहाड़
(6) (ग) बहुत आसान काम
7.
(1) (घ) देशवासियों के लिए
(2) (ख) देशवासियों के
(3) (क) शत्रु से लोहा लेने के लिए
(4) (ख) देश का
(5) (ग) (i), (ii) और (iv)
8.
(1) (घ) झरने के स्वर को सुनकर दर्शकों की नस-नस में उत्तेजना व मस्ती भर जाती है।
(2) (ग) अत्याचारी का अंत निश्चित होता है।
9.
(1) (घ) वज़ीर अली का आदमी
(2) (क) (i) सही है
(3) (ग) कथन (A) सही है लेकिन कारण (R) उसकी गलत व्याख्या करता है।
(4) (घ) कर्नल से
(5) (ग) धूल
10.
(1) (घ) (iii) और (iv) दोनों सही हैं।
(2) (क) अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की लोक कथा पर
खण्ड - 'ब'
(वर्णनात्मक प्रश्न)
11.
(1) हमारी फिल्मों में सबसे बड़ी कमज़ोरी होती है लोकतत्व का अभाव। वे जिंदगी से दूर होती हैं। यदि त्रासद स्थितियों का चित्रांकन होता है तो उन्हें भी ग्लोरीफाइड किया जाता है। ‘तीसरी कसम’ फिल्म की खास बात थी कि वह दुख को भी सहज स्थिति में जीवन सापेक्ष प्रस्तुत करती है। शैलेंद्र को लेखक ने कवि कहा है क्योंकि जो बात उनकी जिंदगी में थी वही उनके गीतों में भी थी। उनके गीतों में सिर्फ करूणा नहीं जूझने का संकेत भी
मिलता है शैलेंद्र की पहली और आखिरी फिल्म ‘तीसरी कसम’ थी। उन्होंने यश और धन की इच्छा से फिल्म नहीं बनाई थी। यह फिल्म शैलेंद्र की महान रचना थी। फिल्म ‘श्री 420’ के गीत ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जय-किशन ने आपत्ति जताईं उनका मानना था कि दर्शक दस दिशाएँ नहीं समझ सकते वे तो मात्र चार दिशाएँ ही समझ सकते हैं। इसलिए उनका मानना था कि शैलेंद्र को अपनी गीत की उस पंक्ति में दस दिशाओं को बदलकर चार दिशाएँ रखना चाहिए। वे चाहते थे कि फिल्म जनता को वही दिखाए जिससे वे अवगत हैं। परंतु शैलेंद्र ने इसे नहीं बदला क्योंकि उनका मानना था कि एक सच्चे कलाकार का यह कर्तव्य है कि वह जनता की रुचियों और ज्ञान का परिष्कार करे। इस प्रकार शैलेंद्र ने अपने स्वार्थ से अधिक महत्व जीवन के आदर्शों को दिया।
(2) भगवान ने इस धरती को सबके लिए बनाया हुआ है। इसमें हर प्राणी का समान अधिकार है। कोई एक इसे अपनी जागीर नहीं समझ सकता है। अतः कोई एक इस पर अपना अधिकार दिखाने का प्रयास करे, यह उचित नहीं है। अपनी शक्ति के कारण मनुष्य धरती पर अपना अधिकार स्थापित कर जीव-जंतुओं का अधिकार छीनने लगा है। बढ़ती हुई आबादी से बस्तियों का विस्तार हुआ है। इससे प्रकृति से छेड़छाड़ हुई जिससे उसमें असंतुलन आ गया है। इससे भूकंप, बाढ़, तूफान, सूखा आदि होने लगे हैं। पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों की प्रजातियाँ समाप्त होने लगी हैं। इन आपदाओं के कारण तरह-तरह के रोग पनपने लगे हैं। इस असंतुलन का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। मनुष्य के निरंतर पेड़ों को काटने से, सागर को बाँधने से, फैलते प्रदूषण व बारूद की विनाशलीलाओं ने प्रकृति के संतुलन को असंतुलित कर दिया है। इन्हीं का परिणाम है कि आज गर्मी में ज्यादा गर्मी, बेवक्त की बरसातें, भूकंप, बाढ़, तूफान नित नए-नए रोग बढ़ते जा रहे हैं। मानव जीवन के लिए खतरा खड़ा हो गया है। प्रकृति में आए असंतुलन का कारण निरंतर पेड़ों का कटना, समुद्र को बाँधना, प्रदूषण और बारूद की विनाश लीला है। जिसके कारण भूकंप, अधिक गर्मी, वक्त-बेवक्त की बारिश, अतिवृष्टि, साइक्लोन आदि और अनेक बीमारियाँ प्रकृति में आए असंतुलन का परिणाम है।
(3) लेखक की माता करुणामयी एवं संवेदनशील महिला थीं। वे प्रकृति प्रेमी थीं। वनस्पति और जीव-जगत् के लिए उनमें विशेष संवेदनशीलता थी। वे हमेशा ही लेखक से कहती थी कि सायंकाल में पेड़-पौधों को नहीं छूना चाहिए। दीया-बत्ती के समय फूल नहीें तोड़ने चाहिए वरना वे बद् दुआ देते हैं। नदी या दरिया को सलाम करना चाहिए। कबूतर जैसे पशु-पक्षियों को सताना नहीं चाहिए। वे हज़रत मुहम्मद साहब के प्रिय होते हैं।
12.
(1) कबीर ने पोथी पढ़कर बड़ी-बड़ी डिग्री लेने वाले को पंडित नहीं माना है। कवि के अनुसार वास्तविक पंडित वही है जो ‘पीव’ अर्थात् प्रेम के एक अक्षर का ज्ञान प्राप्त कर लेता है। यहाँ प्रेम ईश्वर का पर्याय है अर्थात् जो ईश्वर को जान जाता है वही पंडित होता है। किताबी ज्ञान से कोई ज्ञानी नहीं बन सकता है।
(2) कवि की कल्पना अद्वितीय है। कवि ने अपनी नवीन कल्पना शक्ति का परिचय देते हुए लिखा है कि पर्वतीय प्रदेश में बादल इधर-उधर उड़ते फिर रहे है| इन बादलो से वर्षा होनस तालाब में धँधु उठन लगी है| पर्वत, वक्षृ और झरनै अदृश्य होने लगे हैं। शाल के पेड़ अस्पष्ट से दिखने लगे। इन सारे परिवर्तनों का कारण बादल है। कवि ने इन बादलों को इन्द्रयान के रूप में कल्पना कर मानव के रूप में प्रतिबिंबित करना चाहा है। कवि को इस जीवंत वर्णन में सफलता भी मिली है।
(3) तोप के लिए ‘धर रखी गई है’ वाक्यांश यह बताता है कि आततायी शक्ति चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, पर उसका अंत अवश्य होकर रहता है। कंपनी बाग में धरी हुई इस तोप ने हमारे जाँबाजों को मौत के घाट उतारा था। पर एक दिन ऐसा आया कि लोगों ने ब्रिटिश सत्ता को ही उखाड़ फें का। यह तोप उसी सत्ता का प्रतीक है।
13.
(1) हरिहर काका अनपढ़ भले ही थे पर उन्हें दुनिया की बेहतर समझ थी। उन्होंने पहली पत्नी की मृत्यु के बाद पारिवारिक सुखों की खातिर दूसरी शादी की परन्तु दूसरी पत्नी की भी मृत्यु हो गई फिर उन्होंने शादी नहीं की। उनके हिस्से पन्द्रह बीघे जमीन थी। वे भाइयों के साथ रहते थे। भाइयों की नज़र उनकी ज़मीन पर थी। भाइयों और महन्त के ज़ोर जबरदस्ती करने पर भी उन्होंने ज़मीन उनके नाम नहीं की क्योंकि उन्हें पता था कि इससे उनका भविष्य खतरे में पड़ जाएगा और उनकी दुर्दशा हो जाएगी। जायदाद नाम कराने के बाद उन्हें कोई पूछेगा भी नहीं। ये सब घटनाएँ दुनियादारी के प्रति उनकी जागरूकता का बोध कराती है। महंत तथा भाइयों द्वारा किए गए विश्वासघात के कारण उनका मन आहत अवश्य हुआ परन्तु फिर भी उन्होंने किसी की चाल कामयाब नहीं होने दी। यह घटना उनकी सूझ-बूझ तथा दूरदर्शी स्वभाव को दर्शाती है।
(2) टोपी को अक्सर अपने परिवार वालों तथा मित्रों की उपेक्षा सहन करनी पड़ती थी। इसके कारण उसे अपने घरवालों का प्यार नहीं मिल सका। वह प्यार जो उसे अपने घर से न मिल सका वह प्यार उसे इफ़्फ़न और उसकी दादी से मिला। अपनी दादी से तो वह नफ़रत करता था। टोपी नवीं कक्षा में तीसरी बार परीक्षा देने पर उत्तीर्ण होता है। एक ही कक्षा में दो बार फेल होने से टोपी अपना आत्मविश्वास पूरी तरह से खो चुका था। पूरे घर में ऐसा कोई नहीं था जो उसे समझ सके। विद्यालय में भी उसे अपना आत्मसम्मान खोना ही पड़ता था। विद्यार्थी उसका मज़ाक उड़ाते और शिक्षकों के व्यंग्य से उसे सभी के समक्ष शvरिंमदा होना पड़ता था। टोपी कहीं-न-कहीं अंदर से हिम्मत हार चुका था। विद्यार्थियों तथा शिक्षकों का इस प्रकार किसी की परिस्थितियों को जाने बिना किसी को असफल मानकर उसका मज़ाक उड़ाना सर्वथा अनुचित है। यह केवल उस व्यक्ति विशेष के लिए ही नहीं बल्कि सामाजिक स्तर पर भी हानिकारक है।
(3) ‘हरिहर काका’ पाठ के आधार पर ’ठाकुरबाड़ी’ नामक संस्था साधु के वेश में ठगों की संस्था थी। किसी भी संस्था का कार्य होता है समाज में व्याप्त स्वार्थ की भावना दूर कर जन-जन में परोपकार का भाव जगाए। परंतु ’ठाकुरबाड़ी’ में धर्म के ऐसे ठेकेदार महंत थे जो धनलोलुप एवं अवसरवादी थे। हरिहर काका के साथ जो व्यवहार इन्होंने किया था वह अनैतिक था। ’ठाकुरबाड़ी’ नाम से ईश्वरीय सत्ता का बोधा होता है परंतु यहाँ इसका
विपरीत ही था।
(14).
(1) युवा वर्ग में नशाखोरी की प्रवृत्ति
आज का युवा वर्ग ’नशे’ की बढ़ती प्रवृत्ति का शिकार हो रहा है। युवाओं को नई वस्तुओं को जानने व उसका स्वाद लेने की जिज्ञासा होती है, इसी जिज्ञासा को शांत करने के लिए ये वर्ग ’नशे’ की ओर जा रहा है।
ऐसा माना जाता है| कि नशा युवा वर्ग को नई सौदं र्य भावना, बौद्धिक आनंद एवं सृजनशील विचारो का बोध कराता है ऐसी धारणा है कि इन मादक द्रव्यों व पदार्थों से आनंद की प्राप्ति होती है, इसी की प्राप्ति के लिए ये वर्ग नशे का जोखिम उठाता है। कुछ युवा मानते हैं कि इन मादक चीजों का प्रयोग करने से अधिक कार्य-क्षमता बढ़ती है एवं निराशा व चिंता से छुटकारा मिलता है। वे स्वयं सामाजिक दबाव से मुक्त महसूस करते हैं। कहीं-कहीं सार्वजनिक अवसरों पर भी मद्य सेवन की प्रथा पाई जाती है। माता-पिता व परिवार के अन्य सदस्यों के नशा करने की प्रवृत्ति का भी प्रभाव युवाओं पर पड़ता है। शिक्षक व अभिभावकों का कर्त्तव्य है कि वे युवाओं को मैत्रीभाव द्वारा इसके दुष्परिणाम स्पष्ट करें। उन्हें नशे के खतरनाक परिणामों से अवगत कराते हुए उन्हें समझाना चाहिए। शासन व्यवस्था को और सुदृढ़ होना़ होगा जिससे नशे की दवाइयाँ, गोलियाँ एवं इस प्रकार की वस्तुओं को बेचना अपराध घोषित हो जाए। युवकों पर भी राष्ट्र के उत्थान का भार है। अतः उन्हें सही राह दिखाना सभी का कर्त्तव्य होना चाहिए।
(2) मेरे जीवन का लक्ष्य
लक्ष्यहीन जीवन एक ऐसा सफर है जिसका कोई गन्तव्य नहीं होता। जीवन सोद्देश्य होना चाहिए। जीवन का ’लक्ष्य’ एक ऐसा उद्देश्य है जिसे पाने के लिए व्यक्ति कर्म कर अपने जीवन को सार्थक बनाता है। प्रत्येक व्यक्ति का जीवन में अपना-अपना लक्ष्य होता है। मेरा लक्ष्य है प्राणीमात्र की सेवा करना अर्थात् मेरा लक्ष्य है ’चिकित्सक’ या ’डॉक्टर’ बनना। मेरा मानना है कि इस पेशे में मैं जनता के साथ जुड़कर उनकी सेवा कर सकता हूँं। आज का युग परेशानिय ों का युग है। आज एक छोटे बालक से वृद् ध व्यक्ति तक सभी का जीवन परेशानियो व संघर्षों से भरा पड़ा है। शारीरिक कष्टों का तो शीघ्र उपचार किया जा सकता है पर मानसिक रोगों में केवल मनोचिकित्सक ही सहायता कर सकता है। अतः मैं चाहता हूँ कि मैं लोगों के मानसिक रोगों का इलाज कर सकूँ। ऐसे रोगियों को विशेष प्रकार की सहानुभूति की आवश्यकता होती है। मानसिक रोगियों को उनके स्तर के
अनुसार समझकर ही कोई उनकी परेशानियों को दूर कर सकता है। यही कारण है कि मैंने मनोचिकित्सक बनने का निर्णय लिया है और दसवीं कक्षा से ही लोगों की परेशानियों को समझने की चेष्टा कर रहा हूँ। कक्षा दसवीं उत्तीर्ण करके मैं विज्ञान का अध्ययन करूँगा और एम.बी.बी.एस. करने के पश्चात् मनोचिकित्सा में एम. डी. करूँगा, ताकि मैं मानसिक रोगियों का इलाज कर सकूँ। यही मेरा लक्ष्य और अभिलाषा है।
(3) सब दिन जात न एक समान
जिस प्रकार हमारी प्रकृति परिवर्तनशील है। यहाँ विभिन्न ऋतु आती-जाती हैं, उसी प्रकार व्यक्ति का जीवन भी एक समान नहीं चलता। ‘सब दिन जात न एक समान’ अर्थात सब दि न एक जसै नही होते, दि न के बाद रात और रात के बाद दि न आता है समय का चक्र हमेशा चलता है और किसी दिन सुख व किसी दिन दुःख का अनुभव सभी को करना ही पड़ता है। दुःख के समय धैर्य व आशा रखनी चाहिए क्योंकि इसके पश्चात् ही सुख की बेला आती है। बचपन में हमने विभिन्न कहानियाँ सुनी हैं कि राजा हो या रंक सभी के दिन फिरते हैं। कई बार राजा अपना सब कुछ खो देता है, या एक गरीब आदमी अपनी मेहनत द् वारा अपने भाग्य से बहुत अमीर
बन जाता है। अतः जीवन भी मौसम की तरह बदलता है। अतः हमें सुख और दुःख दोनों में समान भाव रखने चाहिए। सुख के समय घमंडी नहीं बनना चाहिए या बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए। दुःख के समय निराश नहीं होना चाहिए बल्कि अपना हौसला बनाए रखना चाहिए।
15. (1)
सेवा में,
जिला अधिकारी,
नई दिल्ली,
विषयः सराहनीय कार्य हेतु पुरस्कृ त करने का अनुरोध।
माननीय महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं नीरज वैद्य, कक्षा दसवीं, आदर्श पब्लिक स्कू ल, विकासपुरी का छात्र हूँ। मेरे विद्यालय में ’सेवादल’ नामक संगठन है,
जिसने अपने ग्रीष्मकालीन अवकाश में अपने क्षेत्र के गरीब बच्चों के उत्थान व शिक्षा के लिए शिविर लगाया। उन्होंने अन्य छात्रों की तरह अपने
अवकाश को घूमने-फिरने में नहीं अपितु कल्याण कार्यों में लगाया है। उन्होंने छोटे बच्चों के लिए पाठशाला एवं विभिन्न वर्कशॉप का आयोजन
किया। इस संगठन का प्रमुख ’बृजमोहन सकूजा’ था, जिसने विद्यालय के सभी छात्रों को एकजुट कर इस परोपकार भरे कार्य को करने की प्रेरणा
दी। वह छोटी कक्षाओं से ही ऐसे सराहनीय कार्य करता रहा है। विद्यालय में भी उसके कार्यों को हमेशा से सराहा जा रहा है। अतः आप से निवेदन
है कि ’बृजमोहन सकूजा’ को जिला स्तर पर उसके किए गये कार्यों की प्रशंसा करते हुए आने वाले स्वतंत्रता दिवस में पुरस्कृ त किया जाए। आशा
है आप मेरा अनुरोध पर विचार करेंगे।
धन्यवाद
भवदीय
नीरज वैद्य
कक्षा- दसवीं
आदर्श पब्लिक स्कू ल,
विकासपुरी, नई दिल्ली
दिनांक 28 जुलाई 20XX
अथवा
(2)
सेवा में,
सम्पादक महोदय,
दैनिक जागरण,
नई दिल्ली
विषयः योग शिविर के कार्यक्र मों की जानकारी देने हेतु पत्र।
माननीय महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं इंदिरा आइडियल स्कू ल, जनकपुरी का कक्षा दसवीं का छात्र हूँ। गत सप्ताह योग-दिवस के अवसर पर हमारे विद्यालय
में योग-शिविर का आयोजन किया गया था। यहाँ विद्यालय के छात्रों, शिक्षकों एवं आस-पास के लोगों ने भाग लिया। विभिन्न योग गुरुओं का
आगमन हुआ और योग व प्राणायाम के महत्व के विषय में हमें जागरूक किया गया, विभिन्न योगासनों का भी अभ्यास कराया गया। यह शिविर 19 जून से 21 जून (तीन दिन) तक चला। योग के साथ-साथ स्वस्थ दिनचर्या के विषय में जानकारी दी गई एवं पौष्टिक आहारों की प्रदर्शनी का
भी आयोजन किया गया। यहाँ स्वास्थ्यवर्धक शाकाहारी भोजन का भी प्रबंध किया गया। इस शिविर द्वारा लोगों की योग के प्रति जिज्ञासाएँ शांत
की गईं। मैं इस जानकारी के साथ में योग-शिविर के दौरान कुछ खींची गई फोटो भी भेज रहा हूँ।
अतः आप से अनुरोध है कि मेरी दी गई जानकारी व फोटो अपने समाचार पत्र में जरूर छापें।
धन्यवाद
भवदीय
अश्मित
जनकपुरी,
नई दिल्ली।
16.
दिनांक: 1 अगस्त, 20XX सूचना जनता ग्रुप, जनकपुरी, नई दिल्ली जनकपुरी के समस्त निवासियों को सूचित किया जाता है कि 8 अगस्त को सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक, 8 घंटे पानी की आपूर्ति निलंबित रहेगी। यह पानी की टंकी को साफ करने हेतु किया जा रहा है। अतः कठिनाई को कम करने के लिए पानी की आवश्यक मात्रा को पहले ही स्टोर कर लें। यथासंभव कोशिश रहेगी कि पानी की आपूर्ति जल्द से जल्द सुचारु कर दी जाये। असुविधा के लिए खेद है। सचिव नीरज कुमार
अथवा
दिनांक: 20 जुलाई, 20XX सूचना
क० ख० ग० विद्यालय
समस्त विद्यार्थियों को सूचित किया जा रहा है कि हमारा विद्यालय अपनी वार्षिक पत्रिका का प्रकाशन जल्द से जल्द करने जा रहा है। वे विद्यार्थी जो अपने लेख वार्षिक पत्रिका में सम्मिलित कराना चाहते हैं; वे अपने-अपने लेख, कविताएँ, कहानियाँ आदि की प्रविष्टियों को अपनी-अपनी कक्षा-अध्यापिका को दिनांक 15 अगस्त से पहले जमा करवा दें।
अश्मिता
विद् यार्थी परिषद्
17.
’लापता’
मेरा पालतू कुत्ता जो कि जर्मन शेफर्ड नस्ल का है, पिछले चार दिनों से लापता है। कुत्ते की उम्र केवल एक वर्ष, रंग सफेद व भूरा एवं लम्बाई लगभग 3 फुट है। गले में चमड़े का पट् टा है जिस पर टफी लिखा है एवं शाकाहारी है। उसे ऐंटी-रैबीज की सुइयाँ भी लगी हैं। पहुँचाने वाले को उचित इनाम दिया जाएगा।
संपर्क करें: श्री महेंद्र सिंह, 38/5, अशोक नगर, नई दिल्ली
फोन नं.- 9832XXXXXX
अथवा
18. (1)
राजा की भेंट एक संत से हुई। संत एक खुरदरी घास की चटाई पर बैठा धूप सेंक रहा था। राजा उसके सामने खड़ा हो गया और सोचने लगा कि संत उसे प्रणाम करेगा, पर उसने ऐसा नहीं किया। इसके बदले संत ने उसे कहा–कृपया एक ओर खड़े हो जाओ, धूप को मुझ तक आने दो। राजा गुस्से में आ गया और कहने लगा कि ‘‘जानते हो मैं कौन हूँ? संत ने कहा–राजा तुम राजा नहीं हो। राजा आवेशवश बोला-मैं विश्वविजयी हूँ। राजा
की अहंकार भरी बातें सुनकर भी संत ने कुछ नहीं कहा। थोड़ी देर बाद संत ने कहा–राजा, तुम्हारी तरह बेचैन होकर नहीं घूमा करते। जाओ, लोगों के दिलों पर प्यार से विजय पाओ। यह सुनकर राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह चुपचाप वहाँ से चला गया।
अथवा
(2)
To : [email protected]
Subject: खाता संख्या 13457398 के साथ आधार कार्ड जोड़ने के संबंध में
महोदय,
मैं सोनिया गर्ग, बचत खाता संख्या 13457398 की धारक हूँ। मेरा आधार कार्ड बैंक अकाउंट से जुड़ा हुआ नही हैं जिस कारण मुझे कई सरकारी
कार्यों व वित्तीय लेनदेन में समस्या आ रही है। मैं आपसे आग्रह करती हूँ कि मेरे आधार कार्ड, संख्या- 631345678915 को मेरे बचत खाते के
साथ जोड़ दीजिए। इस पत्र के साथ मेरे आधार कार्ड की प्रतिलिपि संलग्न है।
धन्यवाद
भवदीया
सोनिया गर्ग
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