NCERT Solutions for Class 9 Hindi - A: Sparsh Chapter - 1 Dukh aur Adhikaar

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    प्रश्‍न. किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमेें क्या पता चलता है ?

    उत्तर— किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमेें उसकी सामाजिक स्थिति एवं अधिकारों के विषय मेें पता चलता है।

    प्रश्‍न. खरबूजे बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूजे क्यों नहीं खरीद रहा था ?

    उत्तर— खरबूजे बेचने वाली स्त्री से कोई खरबजे नही खरीद रहा था  क्यों कि वह मुँह छिपाये फफक-फफक कर रो ही थी, जिसे देखकर उससे कोई खरबजे नहीं खरीद रहा था।

    प्रश्‍न. उस स्त्री को देखकर लेखक को केसा लगा ?

    उत्तर— उस स्त्री को देखकर लेखक के मन मेें उसके प्रति सहानुभूति जागृत हुई। वह उसके दुख के कारण को जानना चाहते थे।

    प्रश्‍न. उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था ?

    उत्तर— उस स्त्री के जवान बेटे को साँप ने डस लिया था। जिससे उसकी मृत्यु हो गई थी।

    प्रश्‍न. बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार  नहीं देता ?

    उत्तर— बुढ़िया को कोई भी उधार नही देता क्योंकि उसका कमाऊ बेठा मर चुका था। उससे पैसे वापस मिलने की कोई आशा नहीं थी।

    निम्नलिखित प्रश्‍नों के उत्तर (25-30) शब्दों मेें लिखिए–

    प्रश्‍न. किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर क्या पता चलता है ?

    अथवा

    मनुष्य के जीवन मेें पोशाक का क्या महत्व है?

    उत्तर— किसी भी व्यक्ति की पोशाक देखकर हमेें उसके सामाजिक स्तर और अधिकारो का पता चलता है। मनुष्य के जीवन मेें पोशाक का विशेष महत्व है। पोशाक समाज मेें उसका स्तर व दर्जा बतलाती है कि वह समाज के किस ‘पायदान’ का है। पोशाक मनुष्य के बन्द दरवाजे खोल देती है और कभी-कभी यह पोशाक ही नीचे झुककर निचली श्रेणियों की अनुभूति को समझने मेें बाधक बन जाती है।

    प्रश्‍न. पोशाक हमारे लिए कब बन्धन और अड़चन बन जाती है ?

    अथवा

    ‘दुख का अधिकार’ पाठ के आधार पर बताइए कि पोशाक हमारे लिए कब बन्धन और अड़चन बन जाती है ?

    उत्तर— पोशाक हमारे लिए बन्धन और अड़चन तब बन जाती है जब हम जरा नीचे झुककर निचली श्रेणियो की अनुभूतियो को जानने, समझने, बातचीत करने, उनसे उनकी संवेदनाओ, सुख -  दुःख मेें उनके साथ बैठकर संवेदना जताने का प्रयास करते हैैं। उस समय हमारी चुस्त व लम्बी पोशाक हमारे लिए बाधा उत्पन्न करने लगती है।

    प्रश्‍न. लेखक उस स्त्री के रोने का कारण  क्यों नहीं जान पाया?

    उत्तर— उस अधेड़ उम्र की स्त्री को रोते हुए देखकर लेखक के मन मेें एक व्यथा-सी उठी, परन्तुवे उसके रोने का कारण नही जान पाये क्वयों कि  वह स्त्री फुटपाथ पर बैठी रोये चली जा रही थी  और लेखक की पोशाक तथा स्थिति ऐसी थी कि उसके साथ बाजार मेें बैठकर उसका हाल-चाल जानना कठिन था। इससे उसे भी संकोच होता तथा लोग भी व्यंग्य करते।

    प्रश्‍न. भगवाना अपने परिवार का निवाह कैसे करता था ?

    उत्तर— भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा जमीन पर कछियारी करके अपने परिवार का गुजर-बसर करता था। वह वहाँ खरबूजे, तरकारियाँ आदि उगाता था और उन्हें फुटपाथ पर बेचा करता था जिससे उसके परिवार की आजीविका चलती थी।

    प्रश्‍न. लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी ?

    उत्तर— लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबजे बेचने के लिए इसलिए चली पड़ी क्यों कि उसकी बहू को तेज बुखार था एवं पोते भूख से बिलबिला रहे थे। घर मेें कु छ नहीं था, और जो चूनी-भूसी पड़ी थी, वह भगवाना की अन्त्येष्टि/संस्कार मेें चली गई। विवश बुरिया के सामने खरबूजे बेचने के अलावा कोई और दूसरा चारा नहीं था।

    प्रश्‍न. बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोसी की सम्भात महिला की याद क्यों आई ? 

    उत्तर— लेखक बुढ़िया के दुख को देखकर सोचने लगा कि इस गरीब स्त्री के पास रोने-धोने और पुत्र की मृत्यु का शोक मनाने का भी अधिकार नही था, वही उनके पड़ोस की सम्भात महिला थी  जो कि अपने पुत्र विलाप मेें ढाई महीने से पलंग पर से उठ भी नही पा रही थी। दोनो का दर्द समान था, परन्तु दोनो के दुःख -सुख दर्द जताने के साधन एवं अधिकारों मेें भिन्नता थी। सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति की भिन्नता के कारण, उस बेबस व लाचार बुढ़िया को दख करने का भी अधिकार नहीं था।

    निम्नलिखित प्रश्‍नोंके उत्तर (50-60) शब्दों मेें लिखिए–

    प्रश्‍न. बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे मेें क्या-क्या कह रहे थे ?

    उत्तर— बाजार के लोग खरबूज बेचने वाली स्त्री के बारे मेें अपशब्द कह रहे थे। आस-पड़ोस के दुकानदार उसे घृणा की दृष्टि से देख रहे थे। एक व्यक्ति ने तो घृणा से थूकते हुए उसे बेहया कहा, तो दूसरे ने उसकी नीयत ही खराब बताई। सामने फुटपाथ पर खड़े लोग उसे गाली देते हुए कह रहे थे कि इसके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, ईमान- धर्म सब ही ‘रोटी’ व ‘रुपया’ है। परचून की दुकान पर बैठे लाला जी ने तो उसे दूसरो पर अपना सतूक चढ़ाने वाली कहा। उनका मानना था इससे खरबूजा खरीदने वाले को सूतक का पाप लगेगा एवं उसका धर्म भष्ट होगा।

    प्रश्‍न. पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला ?

    उत्तर— पास-पड़ोस की दकानो से पूछने पर लेखक को पता चला कि बुढ़िया का तेईस वर्षीय पुत्र एक दिन पहले साँप के काटने से गुजर गया था। वह शहर के पास डेढ़ बीघे जमीन पर कछियारी करके परिवार का निर्वाह करता था। मुँह - अधेरे पके खरबूजे  चुनते हुए उसका पाँव साँप पर पड़ गया और साँप के डँसने से उसकी मृत्यु हो गई। उसके मरने के बाद घर का गुजारा चलाने के लिए बुढ़िया को मजबूर  होकर खरबूजे बेचने के लिए बाजार मेें बैठना पड़ा।

    प्रश्‍न. लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किये ?

    उत्तर— बढ़ी माँ ने लड़के को बचाने के लिय हर सम्भव प्रयास किया। जैसे ही उसे पता चला कि भगवाना साँप के काटने से बेहोश हो गया है, वह तुरन्त साँप का जहर उतारने के लिए ओझा को बुला लाई। ओझा ने झाड़-फूँ क की पर जहर नहीं उतरा। उसने नाग देवता की भी पूजा की, दान मेें आटा, अनाज भी दिया पर अपने पुत्र को बचा नही पाई। सर्प के विष से उसका सारा शरीर काला पड़ गया था।

    प्रश्‍न. लेखक ने बुढ़िया के दुख का अनदाजा कैसे लगाया ?

    उत्तर— लेखक ने बुढ़िया के दुख का अनदाजा लगाने के लिए अपने पड़ोस की सम्भभ्ररांत महिला को याद किया जो अपने पुत्र की मृत्यु के बाद ढाई मास तक पलंग से नहीं उठी। उन्हें पन्द्रह- पन्द्रह मिनट मेें पुत्र-वियोग के कारण मूर्च्छा न आने की अवस्था मेें आँसू नहीं रुकते थे। दो-दो डॉक्टर उनके सिरहाने हमेशा बैठे रहते थे। सिर पर बर्फ रखी जाती थी। पूरा शहर उनके पुत्र-शोक व उनकी हालत से द्रवित था। दूसरी तरफ गरीब महिला का कमाऊ जवान बेठा मरा था, किन्तु उसे घर बैठने व शोक मेें डूबे रहने का अधिकार नहीं था ना ही सहूलियत।

    प्रश्‍न. इस पाठ का शीर्षक ‘दुःख का अधिकार’ कहाँ तक सार्थक है ? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर— यशपाल जी द्वारा कृत ‘दुख का अधिकार’ शीषक पूर्ण रूप से सार्थक शीषक है क्यों कि इस पाठ मेें माताओ का चित्रण किया है। एक माता हमारे समाज के सम्भभ्ररांत परिवार की है एवं दूसरी माता समाज के उस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करती है जो आर्थिक स्तर पर पूर्ण रूप से निम्न है। दोनो माताओ  का दुख एक है ‘पुत्र-वियोग’। लेखक इस शीषक द्वारा स्पष्ट कर रहे हैैं  कि दुख जताने का अधिकार सभी को समान रूप से प्राप्त नहीं है। लेखक के पड़ोस के सभात परिवार की महिला पुत्र-शोक से ढाई महीने से पलंग पर ही है, वह उठ नही पाती। उसके पास धन, नौकर व समाज की सहानुभूति सभी है। समय-समय पर लोग उसके दुख से दवित होकर उसके दुःख मेें दुःखी भीु हो जाते हैैं वहीं दूसरी ओर भगवाना की माता का दुख केवल आँसुओं मेें बह रहा है, परन्तु उसने अपना क्रम पथ नही छोड़ा, उसके पता है शोक मनाने से भूख नही मरती। इसान का पेट जीवित रहने के लिए भोजन माँगता है जिस कारण वह लोगो की जली -  कटी बातेें सुनते हुए भी बाजार मेें खरबूजे बेचने के लिए जाती है। उसके दुख से  इस समाज के लोग दुवित नहीं होते बल्कि उसे अपशब्द ही कहते हैैं। निर्धन, असहाय एवं पारिवारिक उत्तरदायित्वो बोझ तले दबी भगवाना की माँ को तो समाज ने दुख मनाने की सहूलियत भी नही दी और न  ही अधिकार। दुख मनाने का अधिकार तो वर्ग विशेष के अनुसार बाँटा गया है।

    प्रश्‍न 33. निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए–

    (क) ‘जैसे वायु की लहरेें कटी पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिरने देती, उसी तरह खास परिस्थितियों मेें हमारी पोशाक हमेें झुक सकने से रोके रहती है’–स्पष्ट करेें।

    उत्तर— प्रस्तुत पंक्ति मेें लेखक स्पष्ट कर रहे हैैं कि हमारी पोशाक हमेें नीचे झुकने से उसी प्रकार रोके रहती है, जिस प्रकार हवा की तरंगेें किसी पतंग को सहसा ही आसमान से धरती पर नीचे नहीं गिरने देती।  हवा की लहरेें पतंग को बहुत दूर तक बहाती हुई उसे धीरे-धीरे नीचे आने की इजाजत देती हैैं। ठीक उसी प्रकार हमारी पोशाक भी हमेें निम्न श्रेणी के लोगो से एकदम  मिलने-जुलने से रोक देती है। पोशाक के कारण ही निम्न श्रेणी के व्यक्तियो के साथ मिलने - जुलने मेें संकोच और दूरी बनी रहती है।

    (ख) ‘इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है ?’–स्पष्ट करेें।

    उत्तर— इस पंक्ति द्वारा लेखक गरीब बुढ़िया और सभात महिला द्वारा पुत्र शोक मनाने के ढंग को देखकर सोचता है कि दुख  प्रकट करने के लिए भी मनुष्य के पास सुविधा होनी चाहिए। उसके पास इतनी धन-सम्पदा और इतने साधन होने चाहिए। कि दुख केु दिनों मेें उसे किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े। घर-परिवार की जिम्मेदारिया भी नहीं होनी चाहिए, तभी व्यक्ति अपना दुख-दर्द व्यक्त कर सकता है। गरीबो के पास साधन और धन न होने के कारण हर परिस्थिति मेें उन्हें मजबूत होकर काम पर जाना पड़ता है। गरीब के पास गम मनाने की सहूलियत नहीं होती और समाज उन्हें दुख और शोकु मनाने का अधिकार भी नही देता। 

    (ग) ‘शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए’ और ‘दुखी होने का भी एक अधिकार होता है।

    उत्तर— इस पंक्ति से लेखक का अभिप्राय है कि जिन लोगो के पास साधन, सुविधाएँ और धन-सम्पदा है, वही शोक मनाने का अधिकार रखते हैैं। गरीबो को शोक मनाने का समय  कहा ? उन्हें तो अपने लिए रोटी के लिए काम तो करना ही पड़ेगा। यदि वे शोक मनाते रहेेंगे तो उनका परिवार कैसे चलेगा ? गरीब बुढ़िया माँ भगवाना (पुत्र) का यदि शोक मनाती तो उसकी पुत्र वधू और भूखे बच्चो का क्या होता ? अपनी जिम्कमेदारी के कारण ही उसे बाजार खरबूजे  बेचने के लिए आना पड़ा।

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