प्रश्न. भाई के बुलाने पर घर लौटते समय लेखक के मन मेें किस बात का डर था?
उत्तर— भाई के बुलाने पर घर लौटते समय लेखक के मन में यह डर था कि कहीं उनका भाई उन्हें मारने के लिए तो नहीं बुला रहा। वे डरे-सहमे घर की ओर बढ़ रहे थे और सोच रहे थे कि उनसे ऐसा क्या हो गया कि उन्हें घर जल्दी बुलाया जा रहा है। उन्हें यह आशंका हुई कि कहीं लड़कों के साथ झरबेरी के बेर तोड़ने की बात घर तक तो नहीं पहुँच गई और अब बड़े भाई साहब हमारी खबर लेने के लिए तो नहीं बुला रहे हैं।
प्रश्न. मक्खनपुर पढ़ने वाले बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में ढेला क्यों फेंकती थी?
उत्तर— मक्खनपुर पढ़ने जाने वाले बच्चों की टोली अपनी शरारतों और चंचलता के लिए प्रसिद्ध थी। वह एक ऐसी वानर टोली थी जो अपने विद्यालय पहुँचने तक पूरे रास्ते में तरह-तरह के करतब दिखाती थी। रास्ते में पड़ने वाले सूखे कुएँ में एक साँप गिरा हुआ था, जिस पर वे हमेशा की तरह पत्थर फेंकते थे और उसकी क्रोधपूर्ण फुफकार सुनते थे। पहली बार पत्थर फेंकते समय उन्हें कुछ डर लगा था, पर अब यह उनकी रोजमर्रा की आदत बन गई थी। अब उनकी टोली की आदत हो गई थी कि साँप से फुफकार करवा लेना वह एक बड़ा काम समझते थे।
प्रश्न. ‘साँप ने फुफकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नहीं, यह अब तक स्मरण नहीं’—यह लेखक की किस मनोदशा को स्पष्ट करता है?
उत्तर— उपरोक्त कथन लेखक की उस समय की विचलित मनोदशा को प्रदर्शित करता है। चिट्ठियाँ कुएँ में गिर जाने के कारण लेखक बुरी तरह घबरा गया था। इसलिए उसे चिट्ठियों के गिरने के अलावा और कुछ भी याद नहीं था।
प्रश्न. किन कारणों से लेखक ने चिट्ठियों को कुएँ से निकालने का निर्णय लिया?
उत्तर— लेखक में झूठ बोलने या छल करने की प्रवृत्ति नहीं थी, पर सच बोलकर पिटना भी नहीं चाहते थे। पिटने के ख्याल मात्र से उनका शरीर काँप जाता था। दिन भी ढलने लगा था, और चिट्ठियों को कुएँ में गिरे हुए पन्द्रह से बीस मिनट हो चुके थे। लेखक एक ऐसे कशमकश में थे कि यदि वे अपने बड़े भाई से झूठ बोलते, तो दो-तीन दिनों में चिट्ठियों के न डालने का पता चल ही जाता और फिर वे पिटते। पर अगर घर जाकर सच बोलते, तो भी पिटते। इसलिए उन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर चिट्ठियों को कुएँ से निकालने का निर्णय लिया।
प्रश्न. साँप का ध्यान बँ टाने के लिए लेखक ने क्या-क्या युक्तियाँ अपनाईं?
उत्तर— लेखक का कुएँ में उतरने का निर्णय केवल चिट्ठियों को बाहर निकालने के लिए था, लेकिन कुएँ में बैठा साँप उनके इस कार्य में बाधक था। लेखक डंडा लेकर कुएँ में उतरे थे, पर कुएँ में उतरने पर उन्होंने अनुभव किया कि कच्चे कुएँ का व्यास बहुत कम है। साँप कुएँ के बीचों-बीच बैठा था, जिससे चिट्ठियाँ निकालना आसान नहीं था। इसलिए उन्होंने साँप का ध्यान बँटाने के लिए विभिन्न युक्तियाँ अपनाईं–
(1) उन्होंने साँप का ध्यान अपने ऊपर से हटाने के लिए उसके इधर-उधर मिट्टी डाली।
(2) उन्होंने डंडे को साँप की दाईं ओर बढ़ाया और चिट्ठियाँ खींचने लगे, पर साँप ने उस डंडे पर ही अपने विष का वार कर दिया।
(3) जब लेखक ने डंडे को दूसरी ओर डाला, तो साँप डंडे से चिपक गया।
(4) डंडे पर साँप के चिपकने से लेखक और साँप की स्थिति बदल गई, और झट से लेखक ने लिफाफे और चिट्ठियों को उठा लिया।
प्रश्न. कुएँ में उतरकर चिट्ठियों को निकालने संबंधी साहसिक वर्णन को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर— लेखक ने काफी सोच-विचार कर साँप को मारकर कुएँ से चिट्ठियाँ निकालने का दृढ़ निश्चय किया। इस निश्चय से उनका छोटा भाई रोने लगा क्योंकि कुएँ में उसकी साक्षात मौत नग्न रूप में खड़ी थी। उस नग्न मौत से मुठभेड़ के लिए लेखक को भी नग्न होना पड़ा, और उन्होंने अपनी धोती से रस्सी बनाई, जिसमें मजबूत गाँठें लगाईं और एक डंडा बाँधा गया। डंडे का एक सिरा कुएँ में उतारा गया और दूसरे सिर को डेम के चारों ओर चक्कर देकर गाँठ लगाई गई, जिसे छोटे भाई ने पकड़ा।
लेखक धोती के सहारे धीरे-धीरे कुएँ में उतरने लगे, लेकिन कुएँ का व्यास बहुत कम था और साँप फन उठाए खड़ा था। उन्होंने अपने दोनों पैर कुएँ की दीवार पर टिका दिए, जिससे दीवार की मिट्टी साँप पर गिरी। किसी तरह वह साँप से करीब डेढ़ गज की दूरी पर खड़े हो गए। कुएँ में साँप के फन को कुचलने की कोई जगह न थी, इसलिए लेखक ने हिम्मत करके डंडे से चिट्ठियों के लिफाफे को अपनी ओर खींचने की कोशिश की। साँप डंडे पर लिपटकर अपना विष फेंकने लगा।
डंडे के खिंचने से साँप ने अपनी जगह बदली और लेखक ने मौका पाते ही चिट्ठियों को उठाकर अपनी धोती के किनारे बाँध लिया। छोटे भाई ने तुरंत उन्हें ऊपर खींच लिया। ग्यारह वर्षीय लेखक ने अपनी बाहों के सहारे 36 फुट गहरे कुएँ से बाहर आकर चिट्ठियाँ सुरक्षित निकाल लीं और उन्हें मक्खनपुर डाकखाने में डाल दिया।
प्रश्न. इस पाठ को पढ़ने के बाद किन-किन बाल सुलभ शरारतों के विषय में पता चलता है?
उत्तर— श्री राम शर्मा जी द्वारा लिखित 'स्मृति' पाठ को पढ़ने के बाद विभिन्न बाल सुलभ शरारतों का पता चलता है, जैसे—मित्रों के साथ फल तोड़ना, बिना अनुमति के किसी बाग में जाकर आम या अन्य फल तोड़ना, स्कूल के रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में गिरे साँप को पत्थर मारकर तंग करना और उसकी खीज भरी फुफकार सुनकर आनन्दित होना, कुएँ में जोर से चिल्लाकर अपनी ही आवाज की प्रतिध्वनि सुनना, हाथ में डंडा लिए इधर-उधर मारते हुए चलना आदि। गाँव में अक्सर बच्चे इसी तरह की शरारतें करते हैं, पर वे जानते हैं कि यदि उनकी शरारतों का पता घर में चला, तो उन्हें पिटाई भी हो सकती है। फिर भी वे ऐसी शरारतें छोड़ते नहीं।
प्रश्न. ‘मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उल्टी निकलती हैैं’ आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— प्रस्तुत कथन में लेखक यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि कई बार मनुष्य सोचने के बाद भी कुछ काम नहीं कर पाता। यद्यपि ईश्वर ने सभी प्राणियों को समान बनाया है, पर उनमें से 'मनुष्य' उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति है क्योंकि उसमें सोचने-समझने की शक्ति है। मनुष्य किसी कार्य को करने से पहले एक योजना बनाता है, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि उसकी हर योजना सफल हो। कई बार उसकी बनाई गई योजनाएँ उल्टी पड़ जाती हैं।
प्रस्तुत पाठ में, लेखक ने ग्यारह वर्ष की अवस्था में बड़े आत्मविश्वास के साथ कुएँ में उतरने और साँप को मारने की योजना बनाई थी, पर कुएँ में उतरते ही उनकी सारी योजनाओं पर पानी फिर गया क्योंकि कुएँ का व्यास नीचे से काफी छोटा था और वहाँ डंडा चलाने या घुमाने तक की जगह नहीं थी। साँप फन फैलाए हुए एक हाथ ऊपर उठाकर उनका स्वागत कर रहा था। अगर लेखक साँप का फन ठीक से दबा न पाते, तो साँप पलटकर उन्हें जरूर काट लेता। इसलिए लेखक की सारी पूर्व निर्धारित योजनाएँ व्यर्थ हो गईं, और उन्हें कुएँ में पहुँचकर नई योजना बनानी पड़ी।
प्रश्न. 'फल तो किसी दूसरी शक्ति पर निर्भर है'—पाठ के संदर्भ में इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— 'स्मृति' पाठ के संदर्भ में इस पंक्ति का आशय यह है कि किसी भी कार्य का फल उसकी समाप्ति के बाद ही पता चलता है। यदि हम फल की चिंता पहले ही कर लें, तो उस कार्य को करने का कोई फायदा नहीं। भगवान श्रीकृष्ण ने भी 'गीता' में जनमानस को उपदेश दिया था कि 'व्यक्ति को कर्म करते रहना चाहिए, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।'
प्रस्तुत पाठ में भी लेखक ने कुएँ में उतरने का कठोर निर्णय लिया। उन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए कुएँ से चिट्ठियाँ निकालने और साँप से भिड़ने का साहसिक निर्णय लिया। वह चिट्ठियों को निकालने के लिए साँप से भिड़े और इस कार्य का फल भी उन्हें अच्छा मिला, यानी उनका साँप से बचकर दूसरा जन्म हुआ।
यदि लेखक साँप को देखकर कुएँ में उतरते ही नहीं और सोचते कि साँप उन्हें डस लेगा, तो वे यह कार्य कभी नहीं कर पाते और चिट्ठियाँ वापस नहीं मिलतीं। उन्होंने भविष्य के फल की चिंता नहीं की, क्योंकि फल हमेशा कार्य की समाप्ति पर ही मिलता है।