NCERT Solutions for Class 9 Hindi - B: Sanchayan Chapter 3 - Kallu Kumhaar ki Unankoti

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    प्रश्न . ‘उनाकोटी’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताएँ कि यह स्थान इस नाम से क्यों प्रसिद्ध है?

    उत्तर— ‘उनाकोटी’ शब्द का अर्थ है–एक करोड़ से एक कम। उनाकोटि मेें शिव की एक कोटि (करोड़) से कम मूर्तियाँ स्थापित हैैं। आदिवासियो का मानना है कि इन मूर्तियो का निर्माण कल्लू कुम्हार ने किया था, जो पार्वती का भक्त था और कैलाश तीर्थ जाना चाहता था। पार्वती के आग्रह पर शिव ने शर्त रख दी कि कल्लू एक रात मेें यदि एक करोड़ शिव की मूर्तियाँ बना देें तो उसे शिव-पार्वती के साथ कै लाश जाया जा सकता है। कल्लू काम मेें जुट गया। भोर होने पर मूत्र्तियाँ एक करोड़ से एक कम निकलीं। इसी बात का बहाना बनाकर शिव ने कल्लू कुम्हार को उनाकोटी मेें ही छोड़ दिया। तब से यह स्थान उनाकोटी के नाम से जाना जाने लगा।

    प्रश्न. पाठ के सन्दर्भ मेें उनाकोटी मेें स्थित गंगावतरण की कथा को अपने शब्दों मेें लिखिए।

    उत्तर— उनाकोटी मेें पहाड़ो को काटकर मूर्तियाँ बनाई हैैं जिसमेें ऋषि भागीरथ के सघर्ष मेें (गंगा के स्वर्ग से धरती पर लाने की कथा) को दर्शाया गया है को भगवान शिव ने अपनी जटाओ पर उलझा कर उसे  धरती पर बहने दिया। इसी पौराणिक कथा को दर्शाते हुए भगवान शिव का चेहरा चटटानो पर उकेरा गया  है। उनकी जटाएँ दो पहाड़ो पर फैली है। पूरे साल बहने वाला एक जल-प्रपात पहाड़ों से उतरता है और शिव की जटाओं मेें समाकर धीरे-धीरे नीचे उतरता है। इस जल-प्रपात के जल को गंगा के समान ही गंगा के समान ही पवित्र माना जाता है। भारत मेें यह शिव की सबसे बड़ी आधार मूर्ति है।

    प्रश्न . कल्लू कुम्हार का नाम उनाकोटी किस प्रकार जुड़ गया ?

    उत्तर— कल्लू  कुम्हार का नाम उनाकोटि से इसलिए जुड़ गया क्यों की माँ पार्वती के भक्त कुम्हार ने शिव भगवान की शर्तानुसार एक करोड़ मूर्तियाँ बनाना प्रारम्भ किया परन्तु सुबह होने पर वह करोड़ से एक कम ही मूर्तियाँ ही बना पाया और उन्हें कल्लू कुम्हार को वहीं छोड़ हीं ने तक बहाना मिल गया। ‘उनाकोटी’ का अर्थ है एक करोड़ से कम। इसलिए उनका नाम उनाकोटी से जुड़ गया शिव एक करोड़ से एक कम मूर्ति के कारण पार्वती के साथ कै लाश पर्वत चले गए और कल्लू कुम्हार वहीं रह गया।

    प्रश्न. ‘मेरी रीढ मेें एक झुरझुरी-सी दौड़ गई।’ लेखक के इस कथन के पीछे कौन-सी घटना जुड़ी है?

    उत्तर— लेखक इस हिसाग्रस्त इलाके मेें अपने काफिले के साथ पुलिस सी.आर.पी.एफ. की सुरक्षा के साथ आगे बढ़ रहे थे। वे अपने कार्य मेें व्यस्त थे परन्तु निचली पहाड़ी पर रखे दो पत्थरो पर उनका ध्यान आकृष्ट हुआ और उन्हें पुलिसकर्मियो द्ंवारा पता चला कि दो-तीन दिन पहले उनका एक जवान वहीं विद्रेहियो द्ंवारा मार डाला गया। तब लेखक को डर का अहसास हुआ। यह सुनकर उनकी रीढ़ की हड्डी मेें झरझु रुी सी दौड़ गई। वे सोचकर परेशान थे कि हम शांतिपूर्ण वातावरण मेें भी बंदूकधारी विद्रोही छुपे हो सकते हैैं, जो, किसी भी समय हमला कर सकते हैैं। इस विचार से ही उनकी रीढ़ की हड्डी भी काँप उठी ओर उनका साहस व विश्वास भी आहत हुआ। लेखक को भय था कि किसी भी समय विद्रोही हमला कर सकते हैैं।

    प्रश्न. त्रिपुरा ‘बहुधार्मिक’ समाज’ का उदाहरण कैसे बना ?

    उत्तर— ‘त्रिपुरा’ राज्य मेें बाहर से आने वालो की सख्या अधिक है। यहाँ एक ओर बाग्ंलादेश, म्यामार, मिजोरम, असम के लोगो का समावेश हुआ, जिस कारण त्रिपुरा को बहुधार्मिक समाज बनाने का गौरव भी प्राप्त हुआ। यहाँ 19 अनुसूचित जनजातियो और विश्व के चारो बड़े धर्मों का प्रतिनिधित्व भी मौजूद हैैं छोटा-सा राज्य त्रिपुरा हिन्दू, मुसलमान, बौद्ध व ईसाई धर्म को समान महत्व देता हुआ, भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व के लिए धार्मिक सदभावना का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करता है अर्थात यहाँ (त्रिपुरा मेें) आगमन करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। 

    प्रश्न. टीलियामुरा कस्बे मेें लेखक का परिचय किन दो प्रमुख हस्तियों से हुआ? समाज-कल्याण के कर्ममों मेें उनका क्या योगदान था ?

    उत्तर— टीलियामुरा कस्बे मेें लेखक का परिचय जिन मुख्य हस्तियो से  हुआ, उनमेें से एक थे– लोकगायक हेमंत कु मार जमातिया और दूसरी महिला मंजु ऋषिदास। हेमंत कुमार वहाँ की स्थानीय बोली कोकबारोक मेें गाते हैैं और 1996 ई. मेें वे संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कार प्राप्त कर भी चुके हैैं। जवानी मेें वे ‘पीपुल्स लिबरेशन ऑर्नागइजेशन’ के कायकर्ता थे लेकिन अब संघष का रास्ता छोड़कर जिला परिषद के सदस्य बन गए थे। मंजु ऋषिदास मोचियो के समुदाय की एक आकषक व्यक्तित्व वाली महिला थीं और रेडियो कलाकार होने के साथ-साथ नगर पंचायत मेें अपने वार्ड प्रतिनिधित्व भी करती थीं। उन्हें स्वच्छ जल के बारे मेें पूरी जानकारी थी और अपने वाड मेें स्वच्छ पानी पहुुँचाने ओर मुख्य गलियोंमेें ईंटेें बिछवाने के लिए नगर-पंचायत को राजी कर चुकी थीं। वह लोगो को सभी सुख- सुविधाएँ देने के पक्ष मेें थीं।

    प्रश्न. कैलास शहर के जिलाधिकारी ने आलू की खेती के विषय मेें क्या जानकारी दी?

    उत्तर— कैलाश शहर के जिलाधिकारी ने लेखक को बताया कि त्रिपुरा मेें आलू की खेती को विशेष सफलता मिलती है। यहाँ टरु पोटेटो सीड्स की खेती होती है उन्होंने यह भी बताया कि पारम्परिक आलू की बुवाई के लिए दो मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर आलू के बीज की जरूरत होती है जबकि टी. पी. एस. की सिर्फ 100 ग्राम मात्रा ही एक हेक्टेयर भूमि की बुवाई के लिए काफी होती है अर्थात यह कम मात्रा मेें ज्यादा उत्पादन है। टी. पी. एस. का निर्तया देश के अन्य राज्यों – मिजोरम, असम, नागालैण्ड और अरुणाचल के साथ-साथ बाग्ं लादेश, वियतनाम और मलेशिया जैसे अन्य देशो को भी किया जाता है।

    प्रश्न. त्रिपुरा के घरेलू उद्योगों पर प्रकाश डालते हुए अपनी जानकारी के कुछ अन्य उद्योगो के विषय मेें बताइए।

    उत्तर— त्रिपुरा के घरेलू उद्योगोंमेें अगरबत्तियो के लिए बाँस की पतली सीकेें तैयार करना काफी लोकप्रिय उद्योग है। इन सीको को अगरबत्ती तैयार करने वाले प्रमुख राज्यों कर्नाटक और गुजरात मेें भेजा जाता है। टीलियामुरा का ऋषिदास, जो पेशे से मोचियों का समुदाय है, जूते बनाने के अलावा थाप वाले वाधो जैसे तबला और ढोलक बनाने का काम भी करते हैैं। त्रिपुरा के अन्य उद्योग भी हैैं– अचार बनाना, पापड़ बनाना, चटनी बनना, मसाले तैयार करना इत्यादि।

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