प्रश्न 1. लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर– लेखक मात्र उपभोग सुख को जीवन में महत्व नहीं देता है। उसके अनुसार अन्य प्रकार के सुख जैसे – शारीरिक सुख, मानसिक सुख आदि भी जीवन में महत्वपूर्ण हैं।
प्रश्न 2. आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?
अथवा
उपभोक्तावादी संस्कृति से हमें क्या हानि हो रही है?
अथवा
उपभोक्तावादी संस्कृति के दुष्परिणामों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर– उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे जीवन को विभिन्न प्रकार से प्रभावित कर रही है, ये प्रभाव निम्नलिखित हैं:
(1) हम उत्पादों के गुलाम बनते जा रहे हैं।
(2) सामाजिक संबंध घटते जा रहे हैं और व्यक्ति स्वार्थ-केन्द्रित होता जा रहा है।
(3) व्यक्ति के मन में अशांति और आक्रोश बढ़ते जा रहे हैं।
(4) व्यक्ति बौद्धिक दासता के शिकार हो रहे हैं।
(5) लोग केवल विज्ञापनों से प्रभावित होकर वस्तुओं का क्रय और उपभोग करने में लगे हैं। वे वस्तु के गुण-अवगुण का विचार किए बिना ही उसके प्रचार मात्र से प्रभावित हो जाते हैं।
(6) मनुष्य अब भौतिक सुख को ही सच्चा सुख समझने लगा है।
प्रश्न 3. लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?
उत्तर– उपभोक्तावादी संस्कृति हमारी बुनियाद को हिला रही है, अर्थात हम अपनी संस्कृति को छोड़कर दूसरी संस्कृति को अपना रहे हैं। इससे हमारी एकता और अखंडता प्रभावित हो रही है। यह संस्कृति वर्ग भेद को भी बढ़ा रही है। इसलिए लेखक ने उपभोक्तावादी संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती कहा है।
प्रश्न 4. आशय स्पष्ट कीजिए–
(क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
(ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हों।
उत्तर –
(क) उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रभाव इतना व्यापक है कि यह हमारे चरित्र को भी प्रभावित कर रहा है। हम धीरे-धीरे उत्पादों के गुलाम होते जा रहे हैं और उत्पाद-भोग को ही सुख मानने लगे हैं।
(ख) वर्तमान में प्रतिष्ठा के अनेक रूप सामने आते हैं। कुछ रूपों को देखकर तो हंसी आती है। जैसे – अमेरिका में लोग अपनी मृत्यु से पहले ही यह व्यवस्था करते हैं कि मरने के बाद उनकी समाधि के पास हरियाली, फव्वारे, मधुर-मंद संगीत आदि होंगे।