NCERT Solutions for Class 9 Hindi - B: Sanchayan Chapter 4 - Mera Chota sa Niji Pustakalya
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प्रश्न. लेखक का ऑपरेशन करने से सर्जन क्यों हिचक रहे थे ?
उत्तर— लेखक का ओपन हार्ट ऑपरेशन करने से सर्जन हिचक रहे थे, क्यों की नौ सौ वाल्टस के शॉक्स दिए जाने के कारण उनके प्राण तो बच गए परन्तु हृदय का साठ प्रतिशत भाग सदा के लिए नष्ट हो गया था। इसके अतिरिक्त हृदय मेें तीन अवरोध भी थे। ऑपरेशन के हृदय की स्थिति सामान्य न होने की दशा मेें उनकी जीवन हानि हो सकती थी। ऐसा विचार करते हुए डॉक्टरों ने विशेषज्ञो की राय लेनी जरूरी समझा और ऑपरेशन को कुछ दिनो के लिए स्थगित कर दिया।
प्रश्न. ‘किताबो वाले कमरे’ मेें रहने के पीछे लेखक के मन मेें क्या भावना थी ?
उत्तर— डॉक्टरो के सुझाव पर घर जाकर बिना हिले-डुले विश्राम के लिए लेखक को उनके पुस्तकालय वाले कमरे मेें ही लिटाया गया। वे यहाँ अकेलापन महसूस नहीं करते थे नहीं । दिनभर बिस्तर पर पड़े-पड़े वे खिड़की से सुपारी के झालदार पत्ते वाले पेड़ ओर फ़र्श लेकर छत तक ऊँची किताबो से भरी अलमारियाँ देखा करते थे। बचपन से ही उनके प्राण इन किताबों मेें बसते थे जिस कारण 40-50 वर्षो मेें उनके पास कई किताबेें जमा हो गईं।
प्रश्न . लेखक के घर मेें कौन-कौन सी पत्रिकाएँ आती थी?
उत्तर— लेखक के घर मेें ‘आर्य मित्र साप्ताहिक’, ‘वेदोदम’, ‘सरस्वती’, ‘गृहिणी’ ओर दो बाल पत्रिकाएँ ‘बालसखा’ और ‘चमचम’ आती थीं। थीं। इन बाल-पत्रिकाओंमेें राजकुमारो, परियो और दानवो की कहानियाँ होती थीं, जिससे लेखक को पढ़ने का शौक हुआ। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के पाखंडो वाले अध्यायों ने भी उनमेें पढ़ने की रुचि जगाई। पाँचवीं कच्छा मेें अंग्रेजी मेें सबसे अधिक अंक लाने के कारण उन्हें इनाम स्वरूप विद्यालय से पुस्तकेें मिली, उन पुस्तको को उन्होंने अपने पिताजी की अलमारी मेें रखने की जगह बनाई। धीरे-धीरे लेखक ने किताबो को सहेजना सीखा और अपना अच्छा खासा पुस्तकालय बना लिया। उनका मन अतिरिक्त पुस्तको को पढ़ने मेें अधिक लगता था।
प्रश्न. स्कूल से इनाम से मिली अंग्रेजी अग्रेंजी की दोनो पुस्तको ने किस प्रकार लेखक के लिए नई दुनिया के द्वार खोल दिए ?
उत्तर— पाँचवी कक्षा मेें अंग्रेजी मेें अधिक अंक लाने के कारण उन्हें पुरस्कार स्वरूप दो अंग्रेजी की किताबेें मिलीं। इन पुस्तको से उनका ज्ञान पक्षियो व समुड्री जीवो के प्रति बढ़ा। दूसरी पुस्तक ‘ट्रस्टी द रग’ जहाजो के प्रकार, माल लाना, ले जाना, नाविकों का जीवन, समुद्री जीव आदि के विषय मेें उन्हें जानकारी मिली। इस प्रकार उपहार मेें मिली पुस्तको से उनका ज्ञान बढ़ा इन चीजो को जानने की इच्छा बढ़ी व पुस्तको को सहेजकर एक अपना निजी पुस्तकालय बनाने की इच्छा तीव्र हुई। जिस पुस्तक मेें जहाजो की कहानियाँ थीं उससे उन्हें नाविको, दीपों तथा मछलियो के बारे मेें भी जानकारी प्राप्त हुई। इस प्रकार स्कूल से मिली पुस्तकों ने लेखक के लिए नई दुनिया के द्वारा खोल दिए।
प्रश्न. ‘लेखक से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का। यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है।’ पिता के इस कथन से लेखक को क्या प्रेरणा मिली?
उत्तर— ‘पिता के इस कथन से लेखक को अपना निजी पुस्तकालय बनाने की इच्छा तीव्र हुई। पिता के प्रोत्साहन भरे शब्दों ने उन्हें किताबेें पढ़ने व उसे संभालकर रखने के गुण दिए। अपनी पूरी शिक्षा-दीक्षा काल मेें उन्होंने अपने विद्यालय के समय से प्रारम्भ किया हुआ कार्य (पस्तक पढ़ना, संभाल कर रखना) किया, जिससे उनके अपने निजी पुस्तकालय का विस्तार हुआ।
देशी-विदेशी साहित्य, लेखक, अंग्रेजी व हिन्दी के भी उपन्यासो, कहानियो, जीवनियाँ, इतिहास, कला आदि व पुस्तको के संग्रह द्वारा उन्होंने अपना निजी पुस्तकालय बना लिया। पिता की छोटी-सी प्रणादायक बात रे ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। जिससे उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा तथा उन्होंने पुस्तकेें सहेजना शुरू कर कर दिया।
प्रश्न. लेखक की पहली पुस्तक खरीदने की घटना का वरण अपने शब्दों मेें कीजिए।
उत्तर— लेखक ने इंटर की परीक्षा पास कर कॉलेज मेें बी. ए. मेें प्रवेश लिया। उनकी आर्थिक दशा खराब थी जिस कारण उन्होंने इंटर की पुस्तकेें पुरानी बी. ए. की पुस्तकेें खरीदीं। इन पुस्तको को खरदीने के बाद भी उनके पास दो रुपये बचे थे। उन दिनों नई फिल्म ‘देवदास’ की काफी चर्चा थी। ‘न्यूथियेटर’ मेें ‘देवदास’ फिल्म लगी थी लेखक का काफी मन था पर माँ को फिल्म देखना पसंद न था। लेखक अक्सर उस फिल्म का गाना गुनगुनाते थे– ‘दुःख केु दिन अब बीतत नाहीं। ये सुनकर माँ उन्हें समझाया करती थीं। माँ को पता चला यह गाना ‘देवदास’ फिल्म’ का है तो माँ ने उन्हहेंफिल्म देखने को कहा पर लेखक पैसे लेकर फिल्म देखने नहीं गए ब नहीं ल्कि दस आने का ‘देवदास’ उपन्यास ले आए। यह लेखक के अपने पैसो से खरीदी हुई पहली पुस्तक थी।
प्रश्न. ‘इन कृतियो के बीच अपने को कितना भरा-भरा महसूस करता हूूँ’ आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— लेखक को स्वयं द्वारा बनाए गए पुस्तकालय से बहुत प्रेम था। अतः अस्पताल से लौटकर आने के बाद उन्होंने अपने निजी पुस्तकालय मेें ही विश्राम करने की इच्छा जाहिर की। उन्हें वहाँ महान लेखको , कंवियो व साहित्यकारो के बीच अके लापन नहीं होता था वहाँ उनके द्वारा एकत्रित अंग्रेजी-हिन्दी के विभिन्न उपन्यास, नाटक, एकाकी, कहानियाँ, संस्मरण, पुरातत्व व राजनीतिक लेख आदि की हजारो पुस्तंकेें थीं। अपने पैसो द्ंवारा खरीदी पुस्तक ‘देवदास’ की घटना को यादकर वे रामाचित हो उठते थे। रेनर मारिया, सटीफेन, हुसैन, पिकासो, टालस्टाय आदि अंग्रेजी के लेखको एव कबीर, सूर, तुलसी, पंत, महादेवी, निराला आदि हिन्दी के लेखको व कवियो के बीच मेें अके लापन महसूस नहीं करते थे। लेखक को नहीं किताबेें सुखद अनुभव देती थीं। लेखक ने हिन्दी एवं अंग्रेजी के लेखको से जिन्दगी जीने की महान कला सीख ली थी।