NCERT Solutions for Class 9 Hindi - A : Sparsh Chapter 4 - Vaigyaanik Chetna ke Vaahak Chandrashekhar Venkat Raman

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    प्रश्‍न. रामन भावुक प्रकृति-प्रेमी के अलावा और क्या थे ?

    उत्तर— रामन् भावुक प्रकृति-प्रेमी के अलावा एक वैज्ञानिक थे और वैज्ञानिक जिज्ञासा भी रखते थे।

    प्रश्‍न. समुद्र को देखकर रामन के मन मेें कौन-सी दो जिज्ञासाएँ उठी ?

    उत्तर— समुद्र को देखकर रामन् के मन मेें दो जिज्ञासाएँ उठी–ं

    (i) समुद्र का रंग नीला ही क्यों होता है?

    (ii) नीले के अलावा और कोई रंग क्यों नही होता।

    प्रश्‍न. रामन के पिता ने उनमेें किन विषयों की सशक्त नीवं डाली ?

    उत्तर— रामन् के पिता भौतिकी और गणित के शिक्षक थे। इन्ही दोनो विषयों मेें उन्होंने रामन् की नीवं को पुख्ता बना दिया।

    प्रश्‍न. वाद्य यंत्रो की ध्वनियो के अध्ययन के द्वारा रामन क्या करना चाहते थे ?

    उत्तर— वाद्य - यंत्रो की ध्वनियो के अध्ययन के द्वारा रामन उनमें छिपे रहस्यों को उजागर करना चाहते थे। वाद्य यंत्रो के कम्पन के पीछे छिपे गणित पर उन्होंने अनेक शोच - पत्र प्रकाशित किए। देशी-विदेशी वाद्य यंत्रो के कम्पन अध्ययन द्वारा वे पश्चिमी देशो की इस भाति को भी तोड़ना चाहते थे कि पश्चिमी वाद्य - यंत्रो के मुकाबले भारतीय यन्त्र बेकार हैैं।

    प्रश्‍न. सरकारी नौकरी छोड़ने के पीछे रामन की  क्या भावना थी ?

    उत्तर— रामन् सरकारी नौकरी की अपेक्षा सरस्वती की साधना को अधिक महत्व देना चाहते थे। वे विज्ञान के अनेक रहस्योंको सुलझाना चाहते थे जो गहन प्रयोगों व अध्ययन द्वारा हो सकता था। अतएव उन्होंने सुख- सुविधा भी सरकारी नौकरी छोड़ दी।

    प्रश्‍न. ‘रामन प्र्भाव’ की खोज के पीछे कौन-सा सवाल हिलोरेें ले रहा था?

    उत्तर— ‘रामन् प्रभाव’ की खोज के पीछे यह सवाल हिलोरेें ले रहा था कि–‘समुद्र का रंग नीला ही क्यों होता है’?

    प्रश्‍न. प्रकाश तरंगो के बारे  मेें आइंस्टाइन ने क्या बताया था ?

    उत्तर—  पूर्ववर्ती वैज्ञानिक प्रकाश को तरंग के रूप मेें मानते थे किन्तु आइंस्टाइन ने बताया कि प्रकाश अति सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान है।

    प्रश्‍न. रामन की खोज ने किन अध्ययनों को सहज बनाया?

    उत्तर— रामन् की खोज ने अणुओ-परमाणुओ की आन्तरिक  संरचना के अध्ययन को सहज बनाया।

    निम्नलिखित प्रश्‍नोंके उत्तर (25-30) शब्दों मेें लिखिए–

    प्रश्‍न. कॉलेज के दिनों मेें रामन की दिली इच्छा क्या थी ?

    उत्तर— कॉलेज के दिनों मेें रामन की दिली इच्छा थी कि वे अपना सारा जीवन शोधकार्यों को समर्पित कर देें किन्तु उन दिनों शोधकार्य को केरियर के रूप मेें अपनाने की सुविधा नही थी। 

    प्रश्‍न. वाद्य - यंत्रो पर की गई खोजो से रामन ने कौन-सी भाति तोड़ने की कोशिश की ?

    उत्तर— पश्चिमी देशों वाले समझते थे कि उनके वाद्य-यंत्र भारतीय वाद्य-  यंत्रो की तुलना मेें अधिक अच्छे हैैं। रामन् ने अपने अध्ययन खोज के बल पर उनकी इस भ्रमपूर्ण धारणा को तोड़ने की कोशिश की।

    प्रश्‍न. रामन के लिए नौकरी सम्बन्धी कौन-सा निरय कठिन था ?

    उत्तर— रामन् भारत सरकार के वित्त मंत्रालय मेें अच्छे वेतन और अनेक सुविधाओं वाली सरकारी नौकरी कर रहे थे। जब उनको विश्वविद्यालय मेें प्रोफेसर पर नियुकती होने का आमं त्रण मिला तो उनके लिए यह निरय करना कठिन हो गया कि वे क्या करेें ? एक ओर अच्छे वेतन और सुख-सुविधाओं से भरपूर सरकारी नौकरी थी तो दूसरी ओर कम वेतन सुविधा वाली किन्तु अध्ययन अध्यापन और शोध - कार्य की सुविधा से भरपूर नौकरी थी।

    प्रश्‍न. सर चंद्रशेखर वेेंकट रामन को समय - समय पर किन-किन पुरस्कारो से सम्मानित किया गया ?

    उत्तर— सर चंद्रशेखर वेेंकट रामन को 1924 ई. मेें रॉयल सोसायटी की सदस्यता, 1929 ई. मेें सर की उपाधि, 1930 ई. मेें भौतिकी मेें दुनिया का सर्वोच्च ‘नोबेल पुरस्कार’, रोम का ‘मेत्यूसी पदक’, रॉयल सोसायटी का ‘ह्यूज पदक’ , फिलोडेल्फिया इंस्टीटय्ट का ‘फ्रेक्लिन पदक’, सोवियत सं घ (रूस) का ‘अंतरास्ट्रीय लेनिन पुरस्कार’ और 1954 ई. मेें देश के सर्वोच्च पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। वे नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय वैज्ञानिक थे।

    प्रश्‍न. रामन को मिलने वाले पुरस्कारों ने भारतीय चेतना को जाग्रत किया। ऐसा क्यों कहा गया है?

    उत्तर— रामन् का अधिकांश पुरस्कार तब मिले जब भारत गुलाम था। गुलाम देश के किसी नागरिक को विश्व स्तर का सर्वोच्च पुरस्कार मिले तो निश्चय ही उस देश के आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास मेें वृद्धि होगी और देश की वैज्ञानिक चेतना के विकास को बल मिलेगा।

    निम्नलिखित प्रश्‍नों के उत्तर (50-60) शब्दों मेें लिखिए–

    प्रश्‍न. रामन के  प्रारंभिक शोधकार्य को आधुनिक हठयोग क्यों कहा गया है ?

    उत्तर— ‘हठयोग’ भारतीय योग की ही एक क्रिया है जिसमेें योगी कठिन साधना कर योग का वास्तविक आनंद पाता है। अपने प्रारंभिक दिनों मेें रामन् अपनी नौकरी से समय निकालकर कलकत्ता की प्रयोगशाला मेें अभावग्रस्त कार्य करते थे। समय और साधनों की कमी ने उन्हें शोध - कार्य का हठ, कठोरता एवं श्रमसाध्य बना दिया इसलिए इनकी साधना को आधुनिक हठयोग कहा गया है।

    प्रश्‍न. रामन की खोज ‘रामन प्र्भाव’ क्या है? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर— रामन् ने अनेक ठोस रवो और तरल पदाथो पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया है। उन्होंने खोज की  कि जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण किसी ठोस रवेदार या तरल पदाथ से गुजरती है तो उसके रंग मेें बदलाव आता है। यही ‘रामन् प्रभाव’ है। आइंस्टाइन ने भी इस सिद्धान्त को प्रकट किया।

    प्रश्‍न. ‘रामन प्र्भाव’ की खोज से वैज्ञानिक क्षेत्र मेें कौन-से कार्य सम्भव हो सके ?

    उत्तर— रामन् प्रभाव की खोज ने एक तो आइंस्टाइन के प्रकाश सम्बन्धी मत की पुष्टि की कि प्रकाश तरंग के रूप मेें नही बल्कि अति सूक्ष्म कणोंकी तीव्र धारा के समान होता है। दूसरे इस खोज से अणु-परमाणुओ की आतरिक संरचना का अध्ययन सहज हो गया। इसकी सही जानकारी के लिए रामन स्पेक्टोस्कोपी का सहारा लिया गया।

    प्रश्‍न. देश को वैज्ञानिक दृष्टि और चितंन प्रदान करने मेें सर चंद्रशेखर वेेंकट रामन के महत्पूर्ण योगदान पर प्रकाश डालिए।

    उत्तर— ‘रामन् प्रभाव’ की खोज ने देश की वैज्ञानिक दृष्टि को जाग्रत कर दिया। रामन् ने स्वयं प्रयोगशाला मेें साधनो का अभाव झेला था। इसी विचार से उन्होंने बेेंगलुरू मेें अत्यंत साधन-सम्पन्न प्रयोगशाला और शोध संस्थान की स्थापना की, जिसे ‘रामन् रिसच इंस्टीटयूट’ के नाम से जाना गया। अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने ‘ इंडियन जनरल ऑफ फिजिक्स’ नामक शोध-पत्रिका का प्रकाशन तथा विज्ञान के प्रसार-प्रचार के लिए उन्होंने ‘करेंट साइंस’ पत्रिका का संपादन भी किया। इसके अतिरित्त उन्होंने  वैज्ञानिक दुष्टि एवं चितन के विकास मेें कई छात्र-छात्राओ का मार्गदसन किया एवं उनके मार्गदशन द्वारा कई उच्च पदो पर प्रतिष्ठित भी हुए। उन्होंने पूर्ण रूप से अपना जीवन ही वैज्ञानिक दृष्टि और चितन के विकास का समर्पित किया।

    प्रश्‍न. सर चंद्रशेखर वेेंकट रामन के जीवन से प्राप्त होने वाले संदेश को अपने शब्दों मेें लिखिए।

    उत्तर— रामन् के जीवन से हमेें यह संदेश मिलता है कि साधनों का अभाव भी बाधा नही बन पाता, यदि व्यक्ति मेें कार्य करने की प्रबल इच्छा और लगन हो। बड़ा कार्य करने के लिए छोटे-मोटे प्रलोभनो का त्याग जरूरी है। रामन् ने सरकारी नौकरी का त्याग किया किन्तु विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक बनकर अपना और देश का नाम रोशन किया। उनसे हमेें यह भी सं देश मिलता है कि हम आस-पास की प्राकृतिक घटनाओ की वैज्ञानिक छानबीन करेें एवं रहस्यों को खोजे।

    निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए–

    प्रश्‍न. उनके लिए सरस्वती की साधना संस्कृति सुख-सुविधाओ से कही मंहत्वपूर्ण थी।

    उत्तर— प्रस्तुत कथन का आशय है कि रामन सरकारी  वित्त विभाग मेें उच्च पद पर नियुत्त थे। उन्हें सरकारी सारी सुविधाएँ व अच्छा वेतन भी मिलता था पर वे मन से संतुष्ट नही थे। उनका मन तो प्राकृतिक गूढ़ रहस्यों को सुलझाना चाहता था। वे धन-संपदा की देवी लक्ष्मी को नही ज्ञान की देवी सरस्वती को पाना चाहते थे इसलिए ये सब आराम उनके लिए मायने नही रखता था।

    प्रश्‍न. हमारे पास ऐसी न जाने कितनी की चीजेें बिखरी पड़ी हैैं, जो अपने पात्र की तलाश मेें हैैं।

    उत्तर— प्रस्तुत कथन का आशय यह है कि विज्ञान ने बहुत-सी खोजेें की हैैं किन्तु अभी भी खोजने के लिए बहुत सारा छेत्र अनछुआ और अनदेखा पड़ा है। यह अनछुआ और अनदेखा एक योग्य पात्र की तलाश मेें है, जो सचमुच वैज्ञानिक दृष्टि से इन क्षेत्रो की गहरी छानबीन कर बहुमूल्य जानकारियो को खोज निकलेगा, जिससे विज्ञान के छेत्र मेें और भी अधिक प्रगति होगी।

    प्रश्‍न. यह अपने आप मेें एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था।

    उत्तर— प्रस्तुत कथन का आश्य तु है कि रामन शोध - कार्य के लिए बहुत कम समय और बहुत ही सीमित साधनों के बल पर वैज्ञानिक रहस्यों को सुलझाने का प्रयत्न कर  रहे थे। यह उनका दूराग्रह-सा प्रतीत होता था। भारतीय योग-साधना मेें हठयोग की साधना बड़ी कठोर होती है। ऐसी ही साधना रामन् भी कर रहे थे। अतएव उनका यह प्रयत्न आधुनिक हठयोग का उदाहरण कहा जा सकता है।

    प्रश्‍न. उपयुत्त शब्द का चयन करते हुए रिक्त स्थानो की पूर्ति कीजिए–

    उत्तर— इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी, इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस, फिलॉसॉफिकल मैगजीन, भौतिकी, रामन रिसर्च इंस्टीटयूट।

    1. रामन् का पहला शोध-पत्र फिलॉसॉफिलक मैगजीन मेें प्रकाशित हुआ था।
    2. रामन् की खोज भौतिकी के छेत्र मेें एक क्रांति के समान थी।
    3. कलकत्ता की मामूली प्रयोगशाला का नाम इण्डियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस था।
    4. रामन द्वारा स्थापित शोध-संस्थान रामन् रिसर्च इंस्टीटय्ट के नाम से जाना जाता है।
    5. पहले पदार्थों के अणुओ ओर परमाणुओ की आतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था।
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