NCERT Solutions for Class 9 Hindi - A : Sparsh Chapter 5 - Sukrataare ke Saamaan

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    निम्नलिखित प्रश्‍नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों मेें दीजिए–

    प्रश्‍न. महादेव भाई अपना परिचय किस रूप मेें देते थे?

    उत्तर— महादेव भाई बेबाक और विनोदप्रिय व्यक्ति थे। वे अपना परिचय अपने मित्रो के सामने गाँधीजी के ‘हम्माल’ के रूप मेें देते थे। कभी-कभी वे अपना परिचय गाँधी जी के ‘पीर-बावर्ची- भिश्ती-खर’ जिसका अर्थ है –सभी कार्यों मेें सक्षम होना, के रूप मेें देते थे।

    प्रश्‍न. ‘यंग इण्डिया’ साप्ताहिक मेें लेखो की कमी क्यों रहने लगी थी ?

    उत्तर— ‘यंग इण्डिया’ साप्ताहिक मेें लेख लिखने वाले निडर पत्रकार एवं सम्पादक ‘हार्नीमैन’ को ब्रिटिश सरकार ने देश निकाला की सजा देकर इंगलेंड भेज लै दिया जिस कारण यंग इण्डिया साप्ताहिक मेें लेखो की कमी रहने लगी।

    प्रश्‍न. गाँधीजी ने ‘यंग इण्डिया’ प्रकाशित करने के विषय मेें क्या निश्चय किया ?

    उत्तर— गाँधी जी ने यंग इण्डिया प्रकाशित करने के विषय मेें यह निश्चय किया कि यह पत्र, अब सप्ताह मेें दो बार प्रकाशित किया जाएगा क्येांकि एक बार मेें एक पूरे सप्ताह के लेख नही आ सकते।

    प्रश्‍न. गाँधीजी से मिलने से पहले महादेव भाई कहाँ नौकरी करते थे ?

    उत्तर— गाँधीजी से मिलने से पहले महादेव भाई सरकार के अनुवाद विभाग मेें नौकरी करते थे।

    प्रश्‍न. महादेव भाई के झोलों मेें क्या भरा रहता था?

    उत्तर— महादेव भाई के झोलों मेें पत्र-पत्रिकाएँ एवं समाचार-पत्र आदि भरे होते थे।

    प्रश्‍न. महादेव भाई ने गाँधी जी की कौन-सी प्रसिद्ध पुस्तक का अनवुाद किया था ?

    उत्तर— महादेव भाई ने गाँधी जी की प्रसिद्ध पुस्तक ‘सत्य के प्रयोग’ का अँग्रेजी मेें अनुवाद किया था।

    प्रश्‍न. अहमदाबाद से कौन-से दो साप्ताहिक निकलते थे ?

    उत्तर— अहमदाबाद से ‘नवजीवन’ और ‘यंग इण्डिया’ नामक साप्ताहिक निकलते थे।

    प्रश्‍न. महादेव भाई दिन मेें कितनी देर काम करते थे ?

    उत्तर— महादेव भाई काम मेें इतना व्यस्त रहते थे कि उन्हें दिन और रात का पता नही चलता था। 

    प्रश्‍न. महादेव भाई से गाँधी जी की निकटता किस वाक्य से सिद्ध होती है ?

    उत्तर— महादेव भाई की मृत्यु का घाव गाँधीजी के दिल पर काफी गहरा पड़ा। वे हमेशा भरतहरि के भजन की यह पंक्ति दोहराते रहे–‘ऐ रे, जख्म जोगे नहिं जशे’ (यह घाव, कभी योग से भरेगा नही) कभी-कभी तो अपने दूसरे सहयोगी प्यारेलाल जी को बुलाते समय भी अचानक से उनके मुँह से ‘महादेव’ ही निकलता।

    निम्नलिखित प्रश्‍नोंके उत्तर (25-30) शब्दों मेें लिखिए–

    प्रश्‍न. गाँधीजी ने महादेव को अपना वारिस कब कहा था ?

    उत्तर— गाँधीजी महादेव को अपने पुत्र से भी ज्यादा मानते थे। जब सन् 1917 मेें वे गाँधीजी के पास गए तब उन्होंने उनेह  अपने उत्तराधिकारी का पद सौपा। सन् 1919 जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के दिनों मेें पंजाब जाते हुए गाँधीजी को पलवल स्टेशन पर गिरफ्तार किया गया था, उसी उस उन्होंने महादेव को अपना वारिस कहा था।

    प्रश्‍न. गाँधीजी से मिलने आने वालों के लिए महादेव भाई क्या करते थे ?

    उत्तर— गाँधीजी से मिलने आने वाले लोगो के लिए महादेव भाई उनकी पूरी मदद करते थे। वे अँग्रेजों के अत्याचार सहने वाले लोगो की पूरी-फरियाद सुनते और उसे संक्षिप्त रूप से लिखकर गाधँ जी के सामने प्रस्त करते थे। आवश्यकता अनुसार कभी-कभी वे उनका गाँधीजी से मिलने के समय का भी प्रबन्ध करते थे।

    प्रश्‍न. महादेव भाई की साहित्यिक देन क्या है ?

    उत्तर— महादेव भाई ने गाँधीजी से मिलने के पहले ही ‘टैगोर और शरद चन्द्र’ के साहित्य का गहन अध्ययन किया था। उन्होंने उन्हें ‘चित्रागदा’ कच देवयानी की कथा पर टैगोर द्वारा रचित ‘विदाई का अभिशाप’ शीषक नाटिका, ‘शरद बाबू की कहानियाँ’ आदि का अनुवाद किया। यह उस समय की उनकी साहित्यिक गतिविधियो की देन है।

    प्रश्‍न. महादेव भाई की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?

    उत्तर— महादेव भाई की अकाल मृत्यु का मुख्य कारण वर्धा की असहनीय गर्मी और प्रतिदिन 11 मील पैदल चलना था। वे वर्धा से प्रतिदिन सुबह पैदल चलकर सेवाग्राम पहुुँचते थे। वहाँ दिन भर काम करके शाम को वापस पैदल आते थे। उनकी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और उनकी अकाल मृत्यु हो गई।

    प्रश्‍न. महादेव भाई के लिखे नोट के विषय मेें गाँधीजी क्या कहते थे ?

    उत्तर— गाँधीजी से मिलने वाले व्यक्ति अपनी बातचीत का ब्यौरा ‘शोर्ट हैण्ड’ मेें लिखते थे और बाद मेें उसे टाइप भी कर लेते थे। इसके बाद वे इस पूरे लेख को गाँधीजी से पढ़वाते थे। इसलिए गाँधीजी कहते हैैं कि–‘महादेव के लिखे नोट के साथ मिलान कर लेना चाहिए क्यों की उनके लिखे नोट मेें कोई भी गलती नहीं होती थी।

    निम्नलिखित प्रश्‍नों के उत्तर (50-60) शब्दों मेें दीजिए–

    प्रश्‍न. पंजाब मेें फौजी शासन ने क्या कहर बरसाया ?

    उत्तर— पंजाब मेें फौजी शासन के द्वारा काफी अत्याचार हुआ था। वहाँ के अधिकांश नेताओ को  गिरफ्तार कर लिया गया था तथा कई लोगो को फौजी कानून के कारण उम्र केद तक ही सजा देकर काला पानी भेज दिया गया था। आम लोगो पर अन गिनत अत्याचार हुए थे। लाहौर के मुख्य राष्ट्रीय अँग्रेजी दैनिक-पत्र ‘ट्रीव्युन’ के सम्पादक श्री कालीनाथ राय को 10 साल की जेल की सजा मिली थी।

    प्रश्‍न. महादेव जी के किन गुणों ने उन्हहें सबका लाड़ला बना दिया था ?

    उत्तर— महादेव भाई गाँधी जी के निजी सहायक थे। उनका पूरा समय गाँधीजी के साथ देश-भ्रमण तथा गाँधीजी के प्रतिदिन के क्रियाकलाप पर अपनी पैनी नजर रखने मेें बीतता था। वे प्रतिदिन गाँधीजी से मिलने वालो से सीधी बात कर उसका ब्यौरा गाँधीजी तक पहुुँचाते थे। वे गाधी जी की यात्राओ, सभाओ और चर्चा - परिचर्चा का  विवरण लिखते थे। देश-विदेश की पत्रिकाओ, समाचारो द्वारा गाधी जी पर की गई टिप्पणियो पर  भी उनकी नजर रहती थी। कई बार ये इन टिप्पणियो पर अपने  स्वतन्त्र विचार भी रखते थे। इनकी भाषा सीधी एवं सरल थी साथ ही इनकी सुस्पष्ट लिखावट मन को मोह लेती थी। साधारण लेख से लेकर विरोधी प्रतिक्रिया तक ने उन्हें सबका लाड़ला बना दिया था।

    प्रश्‍न. महादेव जी की लिखावट की क्या विशेषताएँ थी?

    उत्तर— महादेव जी अपनी अदभुत हस्तलेखन के धनी थे। भारत मेें अब उनका कोई सानी नही था। उन्हें प्रथम श्रेणी की शिष्ट संस्कार सम्पन्न भाषा और मनोहर लेखन शैली की ईश्वरीय देन मिली थी। वायसराय के नाम जाने वाले गाँधीजी के पत्र हमेशा महादेव जी की लिखावट मेें ही जाते थे। जिन पत्रों को देखकर दिल्ली और शिमला मेें बैठे वायसराय ठण्डी साँस लेते थे। बड़े - बड़े सिविलियन और नवनर्र कहा करते थे कि सारी ब्रिटिश सर्विसों मेें महादेव के समान लिखने वाला नहीं मिल सकता। उनकी लिखावट पढ़ने वालोंको मन्त्रमुग्ध कर देने वाली थी।

    प्रश्‍न. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए।

    (क) अपना परिचय उनके ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ के रूप मेें देने मेें वे गौरवान्वित महसूस करते थे।

    उत्तर— प्रस्तुत पंक्ति मेें अनुवादक श्री काशीनाथ त्रिवेदी जी स्पष्ट कर रहे हैैं–महादेव भाई अपने मित्रो के बीच अपना परिचय ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ के रूप मेें देने मेें जरा भी नहीं हिचकिचाते थे। ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ का अर्थ है ऐसा व्यक्ति जो सभी कार्ययों मेें निपुण हो। महादेव भाई केवल गाधी जी के सहायक ही नही बल्कि उनके जीवन का महत्वपूर्ण अंग थे। प्रतिभावान महादेव भाई का व्यक्तित्व निष्ठा और समपर्ण की भावना से भरा था। वे एक ऐसे सहायक थे जिन्होंने गाँधी जी के साथ कदम से कदम मिलाया। इसलिए वे स्वयं को गाँधीजी का ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ कहने मेें संकोच नही करते थे बल्कि गौरव महसूस करते थे।

    (ख) इस पेशे मेें आमतौर पर स्याह को सफेद और सफेद को स्याह करना होता था।

    उत्तर— प्रस्तुत पंक्ति मेें अनुवादक श्री काशीनाथ त्रिवेदी जी वकालत के पेशे के विषय मेें बताते हुए कहते हैैं कि विद्यार्थी जीवन मेें महादेव भाई और नरहरि भाई मित्र थे। दोनो ने अहमदाबाद मेें वकालत की पढ़ाई की, इस कारण दोनोंही कानून के दाँव- पेेंच को अच्छी तरह समझते थे। लेखक यहाँ स्पष्ट करते हैैं कि वकालत के पेशे मेें कानूनी दाँव-पेेंच द्वारा सही को गलत और गलत को सही करना आसान होता है। इसमेें किसी भी प्रकार की मानवीय भावनाओ पर ध्यान नही रखा जाता परन्तु महादेव भाई ने हमेशा से ही उचित और सही कार्य करे हैैं और इस ओर नई उपलब्धियाँ स्थापित की हैैं।

    (ग) उन पत्रो को देखकर-देखकर दिल्ली और शिमला मेें बैठे वाइसराय लम्बी-साँस लेते रहते थे।

    उत्तर— प्रस्तुत पंक्ति मेें श्री काशीनाथ त्रिवेदी जी महादेव भाई की लिखावट के विषय मेें बताते हैैं कि उनकी लिखावट ऐसी बेजोड़ थी जिसका कोई साथ नही था। उनके द्वारा लिखी टिप्पणियाँ एवं पत्र-पत्रिकाएँ अपनी अलग मिसाल कहती थी। जब कभी भी इनके पत्र दिल्ली एवं शिमला मेें बैठे वायसराय के पास जाते थे तो वह पत्र देखकर लम्बी साँस लेते। वे जानते थे कि ऐसी मनोरम लिखाई लिखने वाला गाँधीजी के अलावा और किसी के पास नहीं है। बड़े-बड़े सिविलियन और गवनर महादेव की लिखावट की तारीफ करते नही थकते थे ब्रिटिशों मेें भी ऐसी लिखावट वाला कोई नही था जो पढ़ने वाले को मन्त्रमुग्ध कर दे।

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