प्रश्न 1. ‘मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है? हाज़िरी क्यों ली जाती होगी?
उत्तर–‘मानसरोवर’ से कवि का आशय मन रूपी सरोबर से है जो स्वच्छ विचार रूपी जल-से भरा है।
प्रश्न 2. कवि ने सच्चेप्रेमी की क्या कसौटी बताई है?
उत्तर–कवि ने सच्चे प्रेमी की यह कसौटी बताई है कि उससे मिलने पर सारे पाप, दुर्भावनाएँ नष्ट हो जाती हैं और पुण्य और सदभावनाओं का उदय होता है; अर्थात सच्चा प्रेमी आपकी बुराइयों को नष्ट कर उन्हें अमृत में बदलने की क्षमता रखता है।
प्रश्न 3. तीसरे दोहे मेें कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्व दिया है?
उत्तर–इस दोहे में कवि ने ईश्वरविषयक ज्ञान अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान को महत्व दिया है, जो अनुभव से प्राप्त होता है, पुस्तकों से नहीं। कवि की दृष्टि में ऐसा ज्ञान महत्व रखता है जो हाथी के समान समर्थ और शक्तिमान है। ऐसा ज्ञान मनुष्य को भक्तिमार्ग की ओर प्रवृत्त कराकर उसे परमात्मा की प्राप्ति कराता है।
प्रश्न 4. इस संसार मेें सच्चा संत कौन कहलाता है?
अथवा
कबीर ने ‘संत सुजान’ किसे कहा है?
उत्तर–जो तर्क-वितर्क, पक्ष-विपक्ष और समर्थन-मात्र विरोध से दूर रहकर भगवान की भक्ति करता है, वह सच्चा संत है। ऐसे संत को कबीर ने 'संत सुजान' कहा है। कबीर ने ‘सं त सुजान’ कहा है।
प्रश्न 5. अन्तिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर–अन्तिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने निम्नलिखित संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है–
(1) धार्मिक संकीर्णता–अपने धर्म को श्रेष्ठ मानना और दूसरे धर्म की निन्दा करना।
(2) उच्च कुल में जन्म लेने का अहंकार अर्थात ऊँच-नीच के भेदभाव की संकीर्णता।
प्रश्न 6. किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर– किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से नहीं होती है, अपितु उसके कर्मों से होती है। रैदास निम्न कुल में उत्पन्न हुए थे, फिर भी उन्होंने एक संत की उपाधि प्राप्त की और संसार में उन्हें सम्मान मिला क्योंकि उनके कर्म श्रेष्ठ थे। अतः व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होती है।
प्रश्न 7. काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए–
हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि।।
उत्तर– ज्ञान के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। ज्ञान की तुलना हाथी से और सं सार की तुलना कुत्ते से की गयी है। भाषा सधुक्कड़ी या पंचमेल खिचड़ी है। दोहा छं द है और रूपक अलंकार है। व्यंजना शैली है।
प्रश्न 8. मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढ़ता फिरता है?
उत्तर– कोई ईश्वर को मन्दिर–मस्जिद में ढूँढता है, कोई काबा में तो कोई कैलाश पर्वत पर ढूँढ़ता है। कोई कर्मकाण्ड में, कोई योग में तो कोई वैराग्य में ढूँढ़ता है। इस प्रकार, मनुष्य मन्दिर, काबा, मस्जिद, कैलाश, कर्मकाण्ड, योग, वैराग्य मार्ग पर चलकर ईश्वर को पाना चाहता है।
प्रश्न 9. कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खण्डन किया है?
उत्तर– कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के लिए जिन प्रचलित विश्वासों का खण्डन किया है, वे निम्नलिखित हैं–
(1) मन्दिर और मस्जिद जाना
(2) तीर्थयात्रा करना
(3) धार्मिक कर्मकाण्ड करना
(4) योग-साधना करना
(5) वैराग्य धारण करना।
प्रश्न 10. कबीर ने ईश्वर को 'सब साँसों में' क्यों कहा है?
उत्तर– ईश्वर सर्वव्यापी है। वह कण-कण में विद्यमान है। वह जीवों द्वारा ली जाने वाली श्वासों में भी समाया हुआ है। इसलिए कबीर ने ईश्वर को 'सब साँसों की साँस में' कहा है।
प्रश्न 10. कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की?
उत्तर– कबीर दास ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न करके आँधी से इसलिए की है क्योंकि सामान्य हवा धीरे-धीरे चलकर आसपास की वस्तुओं को प्रभावित नहीं कर पाती है, जबकि आँधी तेज गति से चलकर वस्तुओं की स्थिति में परिवर्तन कर देती है। इससे छोटी-छोटी वस्तुएँ, कूड़ा-करकट, पत्तियाँ, घास-फूस उड़कर कहीं दूर चली जाती हैं। इसी प्रकार, ज्ञान की आँधी आने से मनुष्य के मन पर पड़ा अज्ञान का पर्दा उड़ जाता है। मोह-माया, स्वार्थ आदि जैसी बुराइयाँ उड़कर कहीं दूर चली जाती हैं। शरीर से कपट रूपी कूड़ा-करकट उड़ जाता है, और मन सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर प्रभु की भक्ति में लीन हो जाता है।