प्रश्न. ‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?
अथवा
कवयित्री कच्चे धागे की रस्सी किसे कह रही है?
उत्तर– ‘रस्सी’ शब्द जीवन जीने के साधनो और निरन्तर चलने वाली साँसो के लिए प्रयुक्त हुआ है। यह कच्चे धागे के समान है अर्थात नश्वर है।
प्रश्न. कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यथ क्यों हो रहे हैैं?
अथवा
कवयित्री का दिन व्यथ ही किस प्रकार बीत गया ?
उत्तर– कवयित्री कमज़ोर सासो रूपी रस्सी से जीवनरूपी नाव को भवसागर से पार ले जाना चाहती है पर शरीररूपी कच्चे बर्तन से जीवनरूपी जल टपकता जा रहा है, जिससे उनके प्रयास विफल होते जा रहे हैैं। अन्य शब्दों मेें कवयित्री ने भक्तिमार्ग को न अपनाकर हठयोग के माध्यम से ईश्वर को पाने का प्रयास किया, परन्तु वह ईश्वर को न पा सकी। इसलिए कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यथ रहे हैैं और दिन व्यथ ही बीतते जा रहे हैैं।
प्रश्न. कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर– कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से तात्पर्य है–परमात्मा के घर जाना, परमात्मा से मिलना क्यों कि आत्मा परमात्मा का स्वरूप है और अंत मेें उसे उसी मेें विलीन हो जाना है।
प्रश्न. भाव स्पष्ट कीजिए–
(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई।
(ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,हीं
न खाकर बनेगा अहंकारी।
उत्तर– (क) जब कवयित्री की मृत्यु का समय निकट आया तो, उसने अपने जीवन का लेखा-जोखा ध्यान किया तो उसे पुण्य कर्म नहीं मिले अर्थात उसने अपने जीवन मेें कोई पुण्य कार्य नहीं किया। वह हठयोग मेें लगी रही और अब उसकी जेब खाली ही है।
(ख) कवयित्री कहती है कि भोग-विलास मेें लिप्त रहने से कुछ प्राप्त नहीं होगा और वैरागी बनने से अहंकार की भावना उत्पन्न होगी। इसलिए मनुष्य को सहज जीवन जीना चाहिए।
प्रश्न. बन्द द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है ?
अथवा
कवयित्री के अनुसार बन्द द्वार की साँकल कैसे खुलती है?
उत्तर– बन्द द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने सुझाव दिया है–भोग और त्याग के मध्य सामंजस्य स्थापित करना। न तो भोगों मेें लिप्त रहना चाहिए और न ही त्याग का कठोर जीवन जीना चाहिए। मध्यम मार्ग का अनुसरण करना चाहिए तभी प्रभु से मिलने का बन्द द्वार खुलेगा।
प्रश्न . ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों मेें व्यक्त हुआ है ?
उत्तर– उपयुक्त भाव निम्न पंक्तियों मेें व्यक्त हुआ है–
आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दू , क्या उतराई ?
प्रश्न. ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
उत्तर– ज्ञानी से तात्पर्य उस मानव से है जो बिना आडंबर रचाए सच्चे मन से परमात्मा को अपने भीतर खोजने की चेष्टा करता है। ऐसा मनुष्य जिसने आत्मज्ञान प्राप्त कर लिया हो तथा परमात्मा को जान लिया हो, उसे कवयित्री ने ज्ञानी कहा है।