NCERT Solutions for Class 10 Hindi - B: Sparsh Chapter - 1 Sakhi
NCERT Solutions for Class 10 Hindi - B: Sparsh Chapter - 1 Sakhi
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प्रश्न. मीठी वाणी बोलने से औरो को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है ?
उत्तर – मीठी वाणी सबके लिए कर्णप्रिय होती है। मीठी वाणी से मन तृप्त हो जाता है और कलुष मिट जाता है जो सुनता है उसे तो अच्छा लगता ही है बोलने वाले को भी अच्छा लगता है। इस संसार मेें शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे मीठी वाणी अच्छी नही लगती हो। इस प्रकार मीठी वाणी बोलने से दुसरो तथा अपने को भी सुख की अनुभूति होती है। इसे कबीर ने तन की शीतलता का प्रतीकात्मक रूप दिया है। हमेें अपने आचरण मेें मीठी वाणी को उतारना चाहिए।
प्रश्न. दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदभ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– जिस प्रकार दीपक के जलने पर दीपक का प्रकाश फेल जाता है और अंधकार पूरी तरह नष्ट हो जाता है उसी प्रकार ईश्वर का ज्ञान रूपी दीपक जब मन मेें जल जाता है तब अज्ञानता रूपी मन का अंधकार दुर हो जाता है। कबीर ने यहा दीपक को ईश्वरीय ज्ञान और अंधकार को अज्ञान रूपी अनेक बुराइयो के लिए प्रयोग किया है। साखी के संदभ मेें दीपक ज्ञान का प्रतीक तथा अँधियारा मन की बुराइयो का प्रतीक है।
प्रश्न. ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नही देख पाते ?
उत्तर– ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है। हमारा मन अज्ञानता, अहंकार, विलासिताओ मेें डूबा है। हमे मन की इस अज्ञानता के कारण ईश्वर को देख नही पाते। कबीर के अनुसार कण-कण मेें छिपे परमात्मा को पाने के लिए ज्ञान का होना अत्त आवश्यक है। मर्ग भी अपनी अज्ञानता के कारण अपनी नाभि मेें स्थित कस्तूरी को पूरे जगल मेें ढूढ़ता रहता है, उसी प्रकार हमे भी अपनी अज्ञानता के कारण अपने मन मेें छिपे ईश्वर को पहचान नही पाते और मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा आदि जगहो पर ढूढ़ने का निर्थक प्रयास करते रहते हैं।
प्रश्न. संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन ? यहा ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं ? इसका प्रयोग यहा क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– कबीर के अनुसार वह व्यक्ति दुखी है जो केवल खाने और सोने मेें लिप्त है अथात हमेेशा भोगविलास और दुनियादारी मेें उलझा रहता है। जो व्यक्ति ससरिक मोह - माया से परे होकर सावधान रहते हुए ईश्वर की आराधना करता है वही सुखी है। यहा पर ‘सोने’ का मतलब है आलस्कय करना और ईश्वर के ज्ञान से अनभिज्ञ रहना। साथ ही ‘जागने’ का मतलब है ईश्वरीय ज्ञान को प्राप्त करने के लिए तैयार रहना।
प्रश्न. अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है ?
उत्तर– अपने स्वभाव को निमल रखने के लिए कबीर ने यह उपाय सुझाया है कि अपने निदक को हमेें अपने आँगन मेें कुटी बनाकर सम्मान के साथ अपने समीप ही रखना चाहिए। उससे घृणा नही, स्नेह करना चाहिए। निंदक हमारे सबसे अच्छे शुभचितक होते हैं। उनके द्वारा बताई गई लुटियो को दुर करके हम अपने स्वभाव को बिना अधिक मेेहनत के निर्मल बना सकते हैं।
प्रश्न. ऐकै अशिर पीव का, पड़े सु पंडीत होइ’ इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर– इस पक्ति के द्वारा कबीर ने प्रेम की महता को बताया है। कबीर ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति प्रेम का पाठ पढ़ले तो वह ज्ञानी हो जायगा। ईश्वर को पाने के लिए एक अक्षर प्रेम का अथात ईश्वर को जान लेना ही पयाप्त है। प्रेम और भाईचारे के पाठ से बढ़कर भी कोई ज्ञान नही है। मोटी - मोटी किताबे पढ़कर भी वह ज्ञान नही मिल पाता जो ज्ञान प्रभु का नाम लेने और उनको जान लेने से मिलता है। इस प्रकार कवि इस पक्ति द्वारा शास्तीय ज्ञान की अपेछा, भक्ति व प्रेम की श्रेष्ठतया को प्रतिपादित करना चाहत्ता है क्यूकी ईश्वर ही सर्वस्व हैं।
प्रश्न. कबीर की उदधृत साखियो की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– कबीर का अनुभव क्षेत्र विस्तत था। उनके द्वारा रचित साखियो मेें अवधी, राजस्थानी, भोजपुरी और पंजाबी भाषाओं के शब्दो का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इसी कारण उनकी भाषा को ‘पचमेल खिचड़ी’ या ‘सधुक्कड़ी’ कहा जाता है। उनकी भाषा आम लोगो के बोलचाल की भाषा हुआ करती थी। कबीर ने अपनी साखियो मेें रोजमरा की वस्तुओं को उपमा के तौर पर इस्तेमाल किया है। उनकी भाषा मेें लोकभाषा के शब्दों या प्रयोग हुआ है; जैसे - खाये, मुवा, जाल्या, आँगणी आदि। उनकी भाषा मेें लयबद्धता, उपदेशात्मकता, प्रवाह, सहजता, सरलता आदि की विशेषता उपलब्ध होती है। इनकी भाषा मेें पूर्वी हिन्दी, ब्रज, अवधी, पंजाबी तथा राजस्थानी भाषा के शबदो का मिश्रण है।
(ख) निमंलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -
प्रश्न. बिरह भुवगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
उत्तर– प्रस्तुत पक्ति मेें कवि कहता है कि राम का भक्त सदा राम (प्रभु) की शरण मेें ही रहना चाहता है। वह कभी राम से अलगाव (वियोग) नही चाहता । विरह की स्थिति उसके लिए बहुत कष्टकारक होती है। यह विरह साप के समान होता है। यह जिसके तन मेें बसता है उस पर कोई भी मंत्र काम नही करता। इस विरह रूपी साप के काटने पर मत्यु निश्चित है अगर किसी कारणवश मत्यु न भी हो तो राम वियोगी पागल अवश्य हो जाता है।
प्रश्न. कस्तूरी कुंडली बसै, मृग धुर्रे बन माहि।
उत्तर– कवि कहते हैं कि म्रग की नाभि मेें कस्तूरी रहती है जिसकी सुगंध चारो ओर फेलती है। म्रग इससे अनजान होकर पूरे वन में कस्तूरी की खोज मेें मारा - मारा फिरता है। इस साखी मेें कबीर ने हिरण को उस मनुष्य के समान माना है जो ईश्वर की खोज मेें दर-दर भटकता है। कवि कहते हैं कि ईश्वर तो हमे सबके मन में निवास करते हैं लेकिन हम उस बात से अनजान होकर ईश्वर की खोज मेें व्यथ ही तीथ स्यानो के चक्कर लगाते रहते हैं।
प्रश्न. जब मैं था तब हर नही, अब हरि हैं मैं नाहि।
उत्तर– प्रस्तुत पक्ति के द्वारा कवि का कहना है कि जब तक मनुष्य मेें ‘मेैं’ (अहंकार) है वह ईश्वर को प्राप्त नही कर सकता अर्थात अहंकार रूपी अज्ञान और ज्ञान रूपी ईश्वर का साथ-साथ रहना असंभव है। ‘मेैं’ रूपी अहंकार की भावना दूर होते ही मनुष्य ईश्वर को प्राप्त कर लेता है। वह परमज्ञानी और विनम्र हो जाता है और ईश्वर की साधना मेें लीन हो जाता है। अतः ईश्वर को पाने के लिए ‘मेैं’ का भाव मिटाना आवश्यक है।
प्रश्न. पोथी परि-परि जग मुआ, पंडित भया न कोइ।
उत्तर– कवि के अनुसार बड़े-बड़े ग्रथ पढ़ लेने से कोई ज्ञानी (पंडित) नही होता। पंडित अथात ज्ञानी बनने के लिए प्रेम का एक अक्षर पढ़ना आवश्यक है। कवि के अनुसार प्रेम ही ईश्वर का पर्याप्त है। अगर किसी ने प्रेम का एक अक्षर भी पढ़ लिया तो वो बडा ज्ञानी बन जाता है। प्रेम मेें बहुत सक्ति होती है। जो अपने प्रिय परमात्मा के नाम का एक ही अक्षर जपता है (प्रेम का एक अक्षर पढ़ता है) वही सच्चा ज्ञानी (पंडित) होता है। वही परमात्मा का सच्चा भक्त होता है। अतः ज्ञानी बनने के लिए भहादबर की आवश्यकता नहीं है।
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