प्रश्न. गोपियो द्वारा उद्दव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
अथवा
क्या वास्तव में गोपियों उद्दव को भाग्यवान कहना चाहती है|
अथवा
गोपियो ने उद्दव को भाग्यशाली क्यों कहा है? क्या वे वास्तव में उनेह भाग्यवान मान रही है?
उत्तर– उद्दव को 'भाग्यवान’ कहकर गोपियाँ उन पर कटाक्ष कर रही हैं।वास्तव में उनेह ‘अभागा’ कहना चाहती हैं क्यों कि गोपियों के प्रेम ही सर्वोपरि है| उद्द्दव में प्रेम के प्रति आकर्सन का सर्वर्था अभाव है| वे कभी किसी के प्रेम में नही पड़े | प्रेम के अनुभव से वंचित होने के कारण वे प्रेम की गहरैयो को नही समझते| इसे गोपिया उद्दव का दुर्भग्य मानती है|
प्रश्न. उद्दव के व्यवहार की तुलना किस-किससे की गयी है?
उत्तर – उद्दव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते तथा तेल की गागर से की गयी है| कमल का पत्ता सदेव पानी में दूवा रहता है, फिर भी उस पर पानी का कोई दाग या धब्बा नही लगता | इसी प्रकार तेल की मटकी को जल में डुबोने पर भी उस पर पानी की एक भी बूद नही ठहरती।
उद्दव भी प्रेम के प्रति पूरी तरह अनासक्त हैं। श्रीकृष्ण के करीब रहकर भी वे उनके प्रभाव से मुक्त हैं। उनकी प्रेममयी संगति का उद्दव पर कोई असर नही पड़ा है।
प्रश्न. गोपियो ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने एकनिष्ठ प्रेम को किन उदाहरणो के द्वारा स्पस्ट किया है?
उत्तर– श्रीकृष्ण के प्रति अपने एकनिष्ठ प्रेम को प्रकट करने के लिए गोपियों ने स्वयं को हारिल पक्षी और श्रीकृष्ण को उसकी लकड़ी की भाँति बताया है। गोपियो श्रीकृष्ण के प्रति मन, वचन और कर्म से पूर्णतथा समर्पत हैं। वे हरिल के समान श्रीकृष्ण के प्रति मन, वचन ओर कर्म से से पकड़े हुए हैं। श्रीकृष्ण के बिना उनका कोई आस्तित्व नही है।वे गुड़ पर चिपकी हुई चीटिया के समान श्रीकृष्ण को कभी भी अपने आप से अगल नही होने देना चाहती हैं।
प्रश्न - उद्दव द्वारा दिये गये योग के सन्देश ने गोपियो की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया ?
अथवा
गोपियो की विरहाग्नि को भड़काने में योग-सन्देश का क्या हाथ है? स्पषट कीजिए।
उत्तर– गोपियो कृष्ण की अनुरागी थी। उनेह कृष्ण से अटूट प्रेम था्ा। उनका मन कृष्ण से जुड़ा हुआ था। कृष्ण के मथुरा चले जाने पर वे उनकी प्रतीक्षा में पिकें बिछाकर बैठी थी। उन्हे उनके लोटकर आने का अटूट विश्वास था। कृष्ण के स्थान पर उनके द्वारा भेजे गये, योग- सन्देश को देखकर वे भड़क गयी। वे कृष्ण-मिलन को तड़पने लगी,वे विरहाग्री की लपटों में खुद को घिरा हुआ महसूस कर रही थी। उद्दव द्वारा दिये गये योग के सन्देश ने गोपियों की विरहागनि में घी का काम किया। उनेह लगने लगा कि कृष्ण उनके पास कभी नही आयेंगे।
प्रश्न. ‘मरजादा न लही’ के माद्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
अथवा
‘मरजादा न लही’ के माद्यम से गोपियाँ क्या कहना चाहती हैं?
उत्तर– हर बात की एक मर्यादा होती है। प्रेम की भी अपनी मर्यादा है। प्रेमियों को भी अपनी मर्यादा की रक्षा करते हुए एक-दुसरे की भावनाओ की कद्र करनी चाहिए।
गोपियों को लगता है कि श्रीकृष्ण ने उनके साथ प्रेम तो' किया, मगर उसे निभाया नही। प्रेम को भली-भाँति निभाने की जगह उन्होंने उद्दव द्वारा योग- सन्देश भिजवाकर उनके साथ छल किया है। कृष्ण द्वारा किये गये इस व्यवहार को गोपियाँ अपने साथ धोका समझ रही हैं तथा उन्होंने इसे प्रेम की मर्यादा का उल्घन माना है।
प्रश्न कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियो ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
अथवा
गोपियो की कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम की अभिव्यक्ति को स्पषट कीजिए।
उत्तर– वास्तव में गोपिया श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थी। उनेह कृष्ण से अगाध प्रेम था। कृष्ण के बिना उनका कोई अस्तित्व नही था। वे गुड़ पर चिपकर प्राण देने वाली चीटिया के समान स्वयं भी कृष्ण प्रेम पर बलिदान होना चाहती हैं।वे हारिल की लकड़ी के समान कृष्ण को दृढ़ता से पकड़े हुए हैं। मन,वचन एवं कर्म से दिन और रात कृष्ण का नाम रटने वाली गोपिया योग-सन्देश सुनकर व्यथित हो जाती हैं तथा उसे ‘कर्वी ककड़ी’ कहकर उद्दव पर अपनी करवाहत को निकालती हैं। गोपियों के इसी व्यवहार से उनकी कृष्ण के प्रति अथाह प्रेम की अभिव्यक्ति देखने को मिलती है।
प्रश्न गोपियों ने उद्दव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर– गोपियों ने उद्दव से योग की शिक्षा ऐसे लोगो को देने की बात कही है, जिनका मन स्थिर नही है, चक्र के समान घूमते रहते हैं, जो भ्रामक हृदय वाले हैं तथा जिनके मन में भटकाव है।
प्रश्न. प्रस्तुत पदो के आधार पर गोपियो का योग- साधना के प्रति द्रष्टिकोण स्पषट करें।
अथवा
गोपियाँ योग-साधना को किस द्रष्टि से देखती हैं?
उत्तर– प्रस्तुत पदो के आधार पर स्पस्ट है कि गोपियाँ योग-साधना को अनावश्यक, नीरस तथा व्यथ समझती हैं। उनका मानना है कि श्रीकृष्ण- को पाने का माद्यम केबल प्रेम है, योग-साधना नही। योग - साधना नही| योग तो उंनेह कर्वी ककरी के समान प्रतीत होता है| योग - सन्देश भिजवाने के कारण ही वे कृष्ण को कुशल राजनीतिज्ञ मानती है| व्यग्य करते हुए कहती भी है कि हरि है राजनीति पड़ी आए |
प्रश्न. गोपियो के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
अथवा
गोपियो ने राजधर्म की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर– गोपियों के अनुसार राजा को प्रजा के सुख-चैन एवं शांति का ध्यान रखना चाहिए। प्रजा के साथ न्याय होना चाहिए। अन्याय नही|किसी भी दशा में प्रजा का अहित नही होना चाहिए। राजा को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी हालत में प्रजा को सताया न जाये।
प्रश्न. गोपियो को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिये जिनके कारणवे अपनया मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?
उत्तर– कृष्ण जब गोपियों के साथ ब्रज में रहते थे तब वे गोपियों से अथाह प्रेम करते थे। मथुरा जाकर राजा बन जाने के बाद उनके व्यवहार में परिबतन आ गया था। जब से उन्होने उद्दव द्वारा योग साधना का सन्देश भिजवाया था तब से गोपियों को अन्यायी एवं अत्याचारी से लगने लगे थे। उन्हे ऐसा अंदेशा हो गया था | कि कृष्ण अब उनसे प्रेम नही करते बल्कि उनसे पीछा छुड़ाना चाहते हैं।वे उंनेह कुशल राजनीतिज्ञ मानकर योग - सन्देश को उनकी कूटनीतिक चाल समझ रही थी। इन्ही कारणों से गोपिया अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं।
प्रश्न. गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्दव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषतयाएँ लिखिए।
उत्तर– गोपियों का वाक्चातुर्य अदिद्तीय है। यह सूर के ‘भ्रमरगीत’ पूर्णता प्रदान करता है।
उद्दव को अपने उच्चकोटि के निगुर्ण ज्ञान पर बहुत अभिमान था, परन्तु वह गोपियों वाककोशल के समक्ष परास्त हो गया। गोपियों केवाक् चातुय् में निर्कभीकता, स्पस्टवादिता तथा व्यंगत्मकता के साथ-साथ भावुकता एवं सहृदता का समावेश दिखाई देता है|
प्रश्न. संकलित पदो को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषतयाएँ बताइए।
उत्तर - सूरदास द्वारा रचित ‘भ्रमरगीत’ हिंदी साहित्य की अनुपम देन है। इसमें शृगार रस के वियोग पक्ष के माद्यम से मानव हृदय की सरस एवं मार्मिक अभिव्यक्ति दशनीय है। सूर के भ्रमरगीत में व्यंग्यात्मकता, स्पस्टता, वियोग शृ गार रस की प्रधानता, संगीतात्मकता, भावुकता एवं सहृदता आदि विशेषताएँ हैं। इसमें भाषा की कोमलता एवं अलंकारो का सटीक प्रयोग हुआ है। कृष्ण एवं गोपियों का निश्छल एवं अलकारो प्रेम प्रकट हुआ है। गोपियो के तको को सुनकर योग का समाट उद्दव भी निरंतर एवं भौचका-सा रह जाता है। भ्ररमगीत में निराशा, कटाक्ष, गुहार आदि अनेक मनोभावों का तीखे अंदाज में चित्र्र्ण हुआ है। इसमें प्रेम तथा योग का आपसी द्ंद् दिखाकर प्रेम को विजयी दिखाया गया है।
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