प्रश्न. लेखिका के व्यक्तितव पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ता है?
अथवा
‘एक कहानी यह भी’ पाठ के आधार पर बताइए कि लेखिका मन्नू भंडारी के व्यक्तित्व को किन-किन लोगो ने प्रभावित किया ?
उत्तर– लेखिका के व्यक्तित्व की उसके कॉलेज की हिंदी की प्रद्यापिका शीला अग्रवाल तथा लेखिका के पिताजी का बहुत प्रभाव पड़ा। लेखिका के पिताजी ने उन्हें सकरात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही रूप से प्रभावित किया। उन्ही के कारण लेखिका हीन-भावना का शिकार हुईं जिससे उनका स्वभाव विद्रोही हो गया। पिता ने ही उन्हें देश व समाज के प्रति जागरूक किया। उनेह रसोहीघर से अलग रखकर उनेह रास्थ के प्रति सजग होने को प्रेरित किया। शीला अग्रवाल ने लेखिका को साहित्य के छेत्त्र में आगे बराने के साथ ही घर की चहारदिवारी से बाहर निकालकर देश की स्थितियों का सकिर्य भागीदार बनाकर उन् जोश से भर दिया।
प्रश्न. मन्नू भंडारी ने अपने पिताजी के बारे में इंदौर के दिनो की क्या जानकारी दी ?
उत्तर– इंदौर में वे सामजिक - राजनितिक संगठनो से जुड़े थे। उन्होंने शिक्षा का उपदेश न दिया अपितु विद्याथियो को अपने घर पर रखकर भी पदाया जिससे वे बाद में ऊँचे-ऊँचे पद पर आसीन हुए। वहा के समाज में उनकी काफी प्रतिस्था और सम्मान था।
प्रश्न. इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों सबोधित किया है|
अथवा
लेखिका के पिता द्वारा रसोई को ‘भटियारखाना’ कहने का क्या कारण है?
उत्तर– ‘भटियारखाने’ का अर्थ है–ऐसा स्थान जहा हर समय खाना पकाना चलता रहता है। लेखिका के पिता के अनुसार रसोईघर ऐसी भट्टी है, जिसमें स्त्रियों की छमता तथा प्रतिभा को झोककर नष्ट कर दिया जाता है। लेखिका के पिता महत्वयाकाछी थे।वे लेखिका की विलछन प्रतिभा को पहचानते थे।वे उन्हें चूल्हे चौके तक सीमित न रखकर एक जागरूक युवती व देशप्रेमी बनाना चाहते थे। इसीलिए रसोइघर को ‘भत्तियारखाना’ कहकर सबोधित किया है।
प्रश्न. वह कौन-सी घटना थी| जिसको सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखो पर विश्वास हो पाया और न अपने कानो पर ?
उत्तर– लेखिका के आन्दोलनपूर्ण रवेये से परेशान होकर उनके कॉलेज की प्रिसिपल ने पत्र के माद्यम से उनके पिताजी को कॉलेज बुलाया जिससे वे लेखिका के विरुद्ध अनुशास्त्मक कार्यवाई
कर सकें। उनके पिता उनके विद्रोही स्वभाव से पहले से ही परेशान थे, अतः उनेह लगा कि इस लड़की ने अवश्य ही कोई ऐसा कार्य किया होगा जिसके कारण आज उन्हें सिर झुकाना पड़ेगा। उनहे बहुत क्रोध आया।क्रोध में भनाते हुए ही वे कॉलेज चले गए। वहा पहुचकर जब उन्हें लेखिका की नेतत्व छमता के विषय में पता चलता है तो वे गर्व महसूस करने लगे तथा प्राध्यपिका को उत्तर देते हुए बोले कि ये आन्नदोलन तो वक्त की पुकार है......इस पर भला कोई कैसे रोक लगा सकता है। यही घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आखो पर विश्वास हो पाया और न ही अपने कानो पर क्युकि लेखिका को लगा था कि आज वह वितया के क्षि कया भयाजन बनेगी, क्कन्तु उसे त्ष वितया की प्रशंसया द्मली ज्ष क्क उनके ललए अविश्सनीय थी।
प्रश्न. लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दो में लिखिए।
अथवा
लेखिका और उनके पिता के मद्यय मतभेद के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर– लेखिका के पिता सीमित आधुनिकता के समथक थे।वे स्त्रियों की प्रतिभा एवं छमता समझते थे तथा उसका सम्मान भी करना चाहते थे , लेकिन उनकी यह भावना उनके दकियानूसी विचारो के तले दब जाती थी।वे लेखिका को आजादी की लड़ाई में नारे लगाते हुए तथा लड़को के साथ कदम मिलाकर चलते हुए देखना पसंद नही करते थे। इसके विपरीत लेखिका स्वतन्त्र विचारो वाली थी। उनेह पिता द्वारा दी गई आजादी की सीमा में बँधे रहना पसंद नही था। इसके अतिरिक्त टकराहट का दूसरा कारण यह भी था कि वे राजेंद्र के साथ विवाह करना चाहती थी, परन्तु पिता इसका विरोध करते थे। इन्ही कारणों से लेखिका की अपने पिता के साथ वैचारिक टकराहट थी।
प्रश्न. अंतिम दिनो में मन्नू भंडारी के पिता का स्वभाव शकी हो गया था, लेखिका ने इसके क्या कारण दिए?
उत्तर– अंतिम दिनो में मन्नू भंडारी के पिता का स्वभाव शकी हो गया था। लेखिका ने इसके कई कारण बताए हैं– उनेह अपनों के हाथो विस्वासघात मिला, आथिक विषम परिस्थियों के कारण तथा अधूरी महत्व्कचाओ के कारण वे स्वभावगत शकी हो गए।
प्रश्न. इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आन्दोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मनु जी की भूमिका को रेखाकिंत कीजिए।
अथवा
स्वतंत्रा आन्दोलन में देशभक्ति के ज्वार को स्पष्ट करते हुए उस परिप्रेक्ष्य में लेखिका मन्नु भंडारी की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर– 1946-47 में स्वाधीनता आन्दोलन अपने चरम पर था। युवाओ का जोश हिलोरे मार रहा था। आजादी के लिए ज्वार का योवन पूरे जोश में था।वातावरण देशभक्तो और उनकी देशभक्ति से लवालब नारों, भास्र्नो, जुलूसो तथा प्रभातफेरियो से झूम रहा था। हर ओर केबल जोश ही जोश था। सब आगे बढ़कर अपनी छमता से अधिक योगदान दे रहे थे। क्रांति की लहर बह रही थी। ऐसे उत्र्णसाहपूर्ण वातावरण में शीला अग्रवाल की जोशीली बातो ने लेखिका की रगो में बहते खून क्ष लयािे में बदल दिया और फिर वे पूरे जोश- खरोश एवं उन्माद के साथ आन्दोलन रूपी अखाड़े में कूद पड़ी। उन्होंने अपने पिता की इच्छा के विरुधि लड़को के साथ कदम-से-कदम मिलाकर खूब नारे लगाए, भाषण दिए, जुलूस निकाले तथा हड़तालें की। अपने कॉलेज में भी उनका इतना प्रभाव था कि उनके एक इशारे पर कॉलेज की लड़कियाँ कछाएँ छोड़कर, मैदान में इकट्ठ होकर नारे लगाने लगती थी। इस प्रकार स्वाधीनता आन्दोलन के परिदृश्य में मन्नू भंडारी की महत्नूवर्ण भूमिका रही।
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