निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियो में दीजिए -
प्रश्न. ‘तीसरी कसम’ फिल्म को कौन-कौन से पुरस्सकारों से सम्मानित किया गया है ?
उत्तर– ‘तीसरी कसम’ फिल्म को राष्टपति स्वण पदक, बंगाल फिल्म जन्लिस्ट एसोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फिल्म पुरस्कार और मोस्को फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कर्त किया गया था।
प्रश्न शैलेंद्र ने कितनी फिल् बनाईं ?
उत्तर शैलेेंद्र ने केर्ले एक ही फिल्में बनाई थी जिसका नाम ‘तीसरी कसम’ था।
प्रश्न. राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फिल्मो के नाम बताइए।
उत्तर– राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फिल्मो के नाम इस प्रकार से हैं मेरा नाम जोकर, सत्यम् शिवम सुन्दरम , अंजता, मैं और मेरा दोस्त इत्यादि।
प्रश्न. ‘तीसरी कसम’ फिल्म के नायक व नायिकाओ के नाम बताइए और फिल्म में इन्होने किन पात्रो का अभिनय किया है ?
उत्तर– ‘तीसरी कसम’ फिल्म का नायक राजकपूर और नायिका वहीदा रहमान थी। राजकपूर ने हीरामन और वहीदा रहमान थी। राजकपूर ने हीरामन ओर वहीदा रहमान ने हीराबाई की भूमिका निभाई थी|
प्रश्न. फिल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण किया था ?
उत्तर– ‘तीसरी कसम ’ फिल्म का निर्माण गीतकार शेलेन्द्र ने किया इनकी अंतिम ओर पहली फिल्म थी|
प्रश्न. राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय किस बात की कल्पनया भी नही की थी ?
उत्तर– राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय इस बात की कल्पना भी नही की थी कि इसके एक भाग को ही बनाने में छः साल लग जाएँगे।
प्रश्न. राजकपूर की किस बात पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया ?
उत्तर– जब राजकपूर ने शैलेेंद्र से एडवास में अपना परिचमिक माँगा तो शैलेेंद्र का चेहरा मुरझा गया। शैलेेंद्र उनकी याराना मस्ती को समझ नही पाए थे।
प्रश्न. फिल्म समीक्षक राजकपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे ?
उत्तर– फिल्म समीक्षक राजकपूर को आखो से बात करने वाला भावप्रवण कुशल कलाकार मनाते थे।
(क) निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर (30-40) शब्दो में लिखिए—
प्रश्न. ‘तीसरी कसम’ फिल्म को ‘ सैल्लयूलाईद पर लिखी कवितया’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर– तीसरी कसम फिल्म की पटकथा 'फणीश्वरनाथ रेणु’ की लिखी साहियिक रचना है। सेल्युलईद का अर्थ है–‘कैमरे की रील’। कविता में भावुकता, मामिकता एवं स्वेदंशिलता जैसे गुर्नो का होना अनिवार्य माना गया है। ‘तीसरी कसम’ फिल्म भी कविता के समान भावुकता सवेदना, मामिकता से भरी हुई कैमरे की रील पर उतरी हुई फिल्म है। इसलिए इसे सेल्युलाएड पर लिखी कविता (रील पर उतरी हुई फिल्म) कहा गया है।
प्रश्न. ‘तीसरी कसम’ फिल्म को खरीददयार क्यों नही मिल रहे थे ?
उत्तर– ‘तीसरी कसम’ फिल्म एक सामान्य कोटि की मनोरजन फिल्म न होकर एक उच्च कोटि की भाव प्रधान साहितियक फिल्म थी। इसमें अनावस्यक मनोरंजन के सस्ते मसालेे नही डालेे गए थे साथ ही फिल्म वितरक इस फिल्म की करुणा को पैसे के तराजू में तौल रहे थे और कोई जोखिम उठाने को तैयार नही थे। वितरको को यह डर था कि अगर यह फिल्म चली, तो उनेह भारी नुकसान उठाना पड़ेगा इसीलिए ‘तीसरी कसम’ फिल्म को खरीरदार नही मिल रहे थे।
प्रश्न. शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य क्या है ?
उत्तर– शैलेेंद्र के अनुसार सच्चे कलाकार का यह कर्तव्य है कि रुचियों की आड़ लेेकर उन पर उथलापन न थोपे, बल्कि उनकी रुचियों का परिष्रकार करने का प्रयास करे। दर्शको की रुचियों के अनुसार चीजो को प्रस्तुत न कर उनकी रुचियों को ही और अधिक विकसित तथा उच्च स्तर तक लाना चाहिए ।
प्रश्न. फिल्मो में त्यासद स्थितियों का चित्राकन ग्लोरिफाई क्यों कर दिया जाता है ?
उत्तर– फिल्मो में त्रासरद स्थितियों का चित्राकन ग्लोरिफाई इसलिए कर दिया जाता है जिससे कि दर्शको का भावनातमक शोषण किया जा सके। फिल्म निर्माता का उद्श्य केवल टिकट- विडो पर ज्यादा-से-ज्यादा टिकटे बिकवाना और अधिक-से-अधिक पैसा कमाना है। इसलिए दुःख को बहुत बड़ा - चढ़ा कर बताते हैं जो वास्तव में सत्य नही होता है। दर्शक उस दुःख के जादू में सम्मोहित होते चलेे जाते हैं और कथानक को बहुत दिनों तक भूल नहो पाते है| भूले नही पाते हैं।
प्रश्न. “शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं।”–इस कथन से आप क्या समझते हैं? स्ष्ट कीजिए।
उत्तर– ‘तीसरी कसम’ फिल्म को देखते समय यह नही लगता कि राजकपूर अभिनय कर रहे हैं, बल्कि लगता है कि जैसे हीरामन ही पर्दे पर उतर आया हो। वास्तव में, यहाँ राजकपूर की अभिनय कला का शब्दों के माद्यम से परदे पर उतरने में पूरी सफलता पाई है तभी यह फिल्म अदितीय बन पाई|
प्रश्न. लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बडा शोमैन कहा है।
शोमैन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर– फिल्म ‘तीसरी कसम’ के निमार्ण के समय राजकपूर एशिया के सबसे बड़े शोमैन थे। शोमैन का अर्थ है– ऐसा व्यक्ति जो अपनी अभिनय कला के प्रदशन से ज्यादा-से-ज्यादा जन समुदाय इकट्ठा कर सके और लोगो के बीच चर्चा का विषय बना रहे। अपने अभिनय के जादू से दर्शको को शो के प्रारमभ से लेेकर अंत तक बाँधे रखे। राजकपूर जिस पात्र की भूमिका निभाते थे्े उसी में समाहित हो जाते थे। राजकपूर पूरे एशिया में प्रशिदध हो चुके थे। उनकी फिल्मे भारत में ही नही, बल्कि पूरे एशिया में धूम मचा रही थी। इसी कारण उनेह एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है।
प्रश्न. फिल्म ‘श्री 420’ के गीत ‘रातो दसो दिशाओ से कहेंगी अपनी कहानिया’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपति क्यों की ?
उत्तर– फिल्म ‘श्री 420’ के गीत ‘रातें दसो दिशाओ से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन को आपति थी। उनका मानना था कि सामान्यतः दिर्शाएँ चार होती हैं और सभी दर्शक दस दिशाओ को समझ नही पाएँगे। अतः जयकिशन चार दिशा शब्द का प्रयोग करना चाहते थे। पर, शैलेेंद्र इसके लिए तैयार नही हुए। वे दर्शको के सामने उथलेेपन और सस्तेपन को परोसना नही चाहते थे। वे दर्शको की रुचि को परिरष्कृत कर उनके ज्ञान को परिमाजित करना चाहते थे।
(ख) निम्नलिखत प्रश्नो के उत्तर (80-100) शब्दो में लिखिए—
प्रश्न . राजकपूर द्वारा फिल्म की असफलता के खतरो से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फिल्म क्यों बनयाई ?
उत्तर– राजकपूर द्वारा फिल्म की असफलता के खतरो से आगाह करने पर भी शैलेेंद्र ने यह फिल्म इसलिए बनाई क्योंकि वे अपनी साहितिक रूचि को संतुष्ट करना चाहते थे। शैलेेंद्र फिल्म इंडस्टट्री में काफी अरसे से थे, फिर भी उनेह यश या धन की लालसा नही थी। वे तो अपनी कृति से आत्मसुख प्राप्त करना चािाहते थे। वह अपने अन्दर के कलाकार का गलेा घोटकर काम करना नही चाहते थे। फिल्म बनाने का उनका उद्श्य व्यापार करना नही, साहित्य सेवा था।
प्रश्न. ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आतमा में उतर गया है? स्पस्ट कीजिए।
उत्तर– ‘तीसरी कसम’ फिल्म राजकपूर के फिल्मी जीवन में अभीनय का वह पड़ाव था, जब राजकपूर एशिया के सबसे बड़े शोमैन के रूप में स्थापित हो चुके थे। ‘तीसरी कसम’ फिल्म में राजकपूर ने अपने उस महान् व्यक्क्तत्व को पूरी तरह से हीरामन बना दिया था। पूरी फिल्म में राजकपूर कही पर भी हीरामन का अभीनय करते हुए नही दिखे, बल्कि वे तो खुद ही हीरामन बन गए थे। ऐसा हीरामन जो हीराबाई की ‘मनुआ-नटुआ’ जैसे भोली सूरत पर अपना सब कुछ हारने को तैयार है और हीराबाई के थोड़ा सा भी गुससा हो जाने पर अपने आपको ही दोषी ठहराता हुआ सच्चा हीरामन बन जाता है।
प्रश्न. लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है।
उत्तर– ‘तीसरी कसम’ फिल्म क्हो शैलेेंद्र ने साहित्य-सेवा और आत्मसंतुसटी के उद्श्य से बनाया था। इस फिल्म को बनाते समय उन्होंने साहित्य के साथ कोई समझौता नही किया था। तीसरी कसम में ग्रामीण जीवन का सटीक चित्रण हुआ है। किरदारों की पोशाको से लेेकर उनके हाव-भाव और बात करने के ढंग तक में लोक जीवन की छाप मिलती है। इस फिल्म में उस जमाने के बड़े-बड़े कलाकारों ने काम किया है, लेकिन किसी भी कलाकार का व्यक्तित्व किरदार पर हावी नही हुआ। ‘तीसरी कसम’ की कहानी का एक छोटे-से-छोटा भाग, उसकी छोटी-से-छोटी बारीकियाँ फिल्म में पूरी तरह से दिखाई देती है। इन्ही कारणों से लेेखक ने लिखा है कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है।
प्रश्न. शैलेंद्र के गीतो की क्या विशेषताएँ हैं? अपने शब्दो में लिखिए।
उत्तर– शैलेेंद्र के गीतो में उच्चकोटि के भाव होते हुए भी भाषा सरल होती है। उनके गीतों में सिर्फ करूणा ही नही, बल्कि जूझने का संकेत भी था और ऐसी प्रेरणा भी मौजूद थी, जिसके बल पर अपनी मंजिल तक पहुचा सकता है। उनके सभी गीत भावप्रवण थे, कठिन नही। इसी कारण उनके गीतो के लिए कहा गया है कि उनमें शांत नदी का प्रवाह और समुद्र की गहराई थी अथात् शैलेेंद्र के गीतो में शांत नदी जैसी सरलता होती थी और समुद्र की गहराई जैसे अर्थ छुपे हुए थे।
प्रश्न. फिल्म निर्माता के रूप में शेलेंद्र की विशेषताओ पर प्रकाश डालिए।
उत्तर– फिल्म निर्माता के रूप में शैलेेंद्र की सबसे बड़ी विशेषता उनका साहितिय्क होना था। तीसरी कसम फिल्म उन्होंने व्यावसायिक लाभ और प्रसिद्धि की कामना न करते हुए केबल अपनी आत्मसंतुटी के लिए बनाई थी। यह फिल्म निर्माता के रूप में शैलेेंद्र की पहली और अंतिम फिल्म थी। शैलेेंद्र फिल्म निर्मार्ण के खतरो से परिचित होकर भी एक शुद्ध साहित्यिक फिल्म का निर्माण कर अपने साहसी होने का परिचय देते हैं। सिद्धांतवादी होने के कारण उन्होंने अपनी फिल्म में कोई भी परिवर्तन स्वीकार नही किया। इस प्रकार शैलेेंद्र उस समय और आज के व्यवाषिक प्रवर्ती वाले निर्माताओं से काफी अलग एक साहित्यप्रेमी निर्माता थे।
प्रश्न. शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फिल्म में झलकती है कैसे? स्पस्ट कीजिए।
उत्तर– शैलेेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फिल्म ‘तीसरी कसम’ में बखूबी झलकती है। शैलेेंद्र अपने व्यक्तिगत जीवन में सीधे सरल, व्याव्स्यिकता से कोसो दूर, सिद्धांतवादी व्यक्ति थे। जिस प्रकार शांत नदी का प्रवाह और समुद्र की गहराई उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी ऐसी विशेषताएँ उनके सीधे-साधे, धन से कोसो दूर, प्रेम को ही अपना सर्वस्व समझने वाले फिल्म के किरदार हीरामन में बखूबी दिखाई देती है। इस प्रकार कभी कभी हीरामन के रूप में शैलेेंद्र का ही व्यक्तित्व दिखता है।
प्रश्न. लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था, आप कहा तक सहमत हैं? स्पस्ट कीजिए।
उत्तर– लेेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म कोई सच्चा कवि ह्रदय ही बना सकता था– से हम पूरी तरह से सहमत हैं। कवि हर्दय व्यावास्यिकता से ओतप्रोत होता है। उसके व्यक्तित्व में शांत नदी का प्रवाह तथा समुद्र की गहराई का होना जैसे गुण भरे होते हैं। ऐसे ही विचारो से भरी हुई ‘तीसरी कसम’ एक ऐसी फिल्म है, जिसमें न केवल दर्शको की रूचिया का ध्रयान रखा गया है, बल्कि उनकी गलत रचियो को परिष्कत करने का प्रयास किया गया है। इस फिल्म में साहित्य के साथ पूरा न्याय किया गया है। कथानक में व्दृयावसयिक द्रष्टि से कोई परिवर्तन नही किया गया है। ऐसा कार्य कवि हदय ही कर सकता है।
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पस्ट कीजिए—
प्रश्न. वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार सम्पति और यश तक की इतनी कामना नही थी जितनी आत्म-संतुस्ति के सुख की अभिलाषा थी।
उत्तर– प्रस्तुत पंक्ति ‘तीसरी कसम’ पाठ से उदधृत है। शैलेेंद्र एक आदर्शवादी और भावुक कवि थे, उन्हें अपार सम्पति और यश की इतनी कामना नही थी जितनी कि आत्म-सन्तुतष्ट के सुख की अभिलाषा थी। तीसरी कसम के निमार्न में निर्माता का व्यावसयिक उद्श्य कतई नही था। राजकपूर ने सच्चे मित्र के नाते शैलेेंद्र को फिल्म की असफलता के खतरो से भी परिचित करवाया। पर, शैलेेंद्र ने उनकी बात नही मानी क्योंकि वह एक भावनात्मक कवि थे, उनको न तो अधिक धन-सम्पति का लालच था न ही नाम कमाने की इच्छा। तीसरी कसम के निर्माण के पीछे उनका उद्देश्य साहित्य के साथ न्याय और आत्मसंतोष था।
प्रश्न. उनका यह दृढ़ मंतव्य था कि दशको की रूचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नही थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे।
उत्तर– प्रस्तुत पंक्ति प्रहलाद अग्रवाल द्वारा लिखित ‘तीसरी कसम’ पाठ से उदधृत है। इस पंक्ति का आशय यह है कि कवि शैलेेंद्र का यह मानना था कि हर कलाकार का यह कर्तव्य है कि वह दर्शको की रुचियों को ऊपर उठाने का प्रयास करें। इसके लिए कलाकारों को चाहिए कि वे अपने मनोरंजन के माद्य्मो का स्तर उचा करें न कि दर्शको का नाम लेेकर ससता और उथला मनोरंजन उन पर थोपने का प्रयास करें। वे अपनी कला को व्यवसाय के नाम बेचने के लिए परोसे नही अपितु दर्शको का इस प्रकार से मनोरंजन करें कि वे जीवन की गम्भीर समसयाओ से जूझने के लिए प्रेरित हो जाएँ।
प्रश्न. व्यथा आदमी को पराजित नही करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश देती है।
उत्तर– प्रस्तुत पंक्ति प्रहलाद अगवाल द्वारा लिखित ‘तीसरी कसम’ पाठ से उदधृत है। इस पंक्ति का आशय यह है कि व्यथा, पीड़ा, दुःख आदि व्यक्ति को कमजोर या ह्तोत्शहित अवश्य कर देते हैं, लेकिन उसे पराजित नही करते बल्कि उसे मजबूत बनाकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। हर व्यथा आदमी को जीवन की एक नई सीख देती है। व्यथा की जड़ से मीठे फल का पेड़ पल्ल्लवित, पुष्पित और फलित होता है। व्यथा से मानव को परेशान होकर हारना नही चाहिए अपितु उससे लड़ने के लिए कृतसंकल्प होकर उस पर जीत प्राप्त आगे बढ़ना चाहिए।
प्रश्न. दरअसल इस फिल्म की सवेदना किसी दो से चार बनाने वाली की समझ से परे है।
उत्तर– प्रस्तुत पंक्ति प्रहलाद अग्रवाल द्वारा लिखित 'तीसरी कसम’ पाठ से उदधृत है। इस पंक्ति का आशय यह है कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म की सवेदना किसी ऐसे आदमी जिसके जीवन का उद्श्य केवल धनोपाजन करना हो, के समझ से परे थी। यह फिल्म अन्य फिल्मो की तरह केवल लाभ कमाने के लिए नही बनाई गई थी। इसमें सस्ते लोक - लुभावन मसालो को नही डाला गया था। तीसरी कसम फिल्म आत्मसंतुति, साहित्य के साथ न्याय और दशको की रुचियों का परिसकार करने के लिए बनाई गई थी।
प्रश्न. उनके गीत भाव- प्रवण थे– दुरूह नही।
उत्तर– प्रस्तुत पंक्ति प्रहलाद अगवाल द्वारा लिखित‘ तीसरी कसम’ पाठ से उदधृत है। इस पंक्ति का आशय यह है कि शैलेेंद्र के गीत सरले और भावमय थे। ये गीत कठिन नही बल्कि इनमें भावो और विचारो की गहराई समाई हुई थी। भाषा की सरलता होते हुए भी उनके गीतो में अर्थ और भाव की गंभीरता होती थी।