NCERT Solutions for Class 10 Hindi - A: Kshitij Chapter - 11 Yatindra Mishra

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    प्रश्न. शहनाई की दुनिया में डूमराव को क्यों याद किया जाता है?

    उत्तर – प्रसिद्ध शहनाईवादक उस्ताद बिस्मिलला खाँ का जन्म डुमराँव में हुआ था। डुमराँव में ही सोन नदी के किनारे नरकट नामक घास पाई जाती है, जिसकी रीड का प्रयोग शहनाई बजाने में किया जाता है। इसी कारण शहनाई की दुनिया में डुमराँव को याद किया जाता है।

    प्रश्न. बिस्म्ल्ला खा को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?

    अथवा

    शहनाई की मंगलध्वनि का नायक किसे कहा गया है और क्यों ?

    अथवा

    बिस्म्ल्ला खा हमेशा अपनी अजेय सगीत - यात्रा के नायक रहेगे |" - इस कथन की पुष्टि कीजिए |

    उत्तर – शहनाई को मंगलध्वनि का वाद माना गया है। मांगलिक अवसरो पर इस वाद में मंगलध्वनि का परिवेश प्रतिठीष्त होता है। बिस्मिलला खाँ भारत के सवश्रेषठ शहनाईवादक हैं। वे सच्चे सुर के पुजारी रहे हैं। शहनाई के लिए ही उन्होंने अपना सम्पूण जीवन समर्पत कर दिया। इसीलिए बिस्मिलला खाँ को शहनाई की मगलद्वनी का नायक कहा गया है।

    प्रश्न. सुषिर वाधो से क्या अभिप्राय है? शहनाई को 'सुषिर- वाधो में शाह' की उपाधि क्यों दी गई होगी ?

    उत्तर– सुषिर- वाधो से अभिप्राय ऐसे छिद्र वाले वादो से है जिन्हें फूककर बजाया जाता है। अत्यंत सुरीली एवं मोहक ध्वनि उत्पन्न करने के कारण शहनाई को ‘शाहेनय’ अर्थात ‘सुषिर वादो में शाह’ की उपाधि दी गई है।

    प्रश्न . आशय स्पष्ट कीजिए - 

    (i) ‘फटा सुर न बख्शें। लुगीया का क्या है, आज फटी, तो कल सी जायगी।’

    (ii) ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखो से सच्चे मोती की तरह अनगर्ण  आसू निकल आएँ।’

    उत्तर– (i) प्रसिद्ध शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ को फटी तहमद पहनने के लिए जब उनकी शिष्या ने रोका तो वे पहले मुस्कराय फिर मालिक से विनती करते हुए बोले कि हे मालिक ! तू मुझे कभी फटा सुर न देना। ऐसी कृपा बनाए रखना कि मेरी शहनाई से मधुर सुर निकलता रहे। मेरे रियाज़ में कमी न रहे। लूगी फटी रह जाए तो कोई बात नही वह तो आज फटी है, कल सिल जाएगी, परन्तु यदि मेरे रियाज़ में कमी रह गई तो सब कुछ समाप्त हो जाएगा। हे मालिक ! मेरी शहनाई मधुर-ध्वनि से वातावरण को मगलमय करती रहे। आपसे यही दुआ है। मेरी दुआ कुबूल करना।

    (ii) शहनाई की मगलध्वनि के नायक बिस्मिलला खाँ अस्सी वर्ष से मालिक से सच्चा सुर माँग रहे हैं। इसी एक सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे लाखो सजदे करते हैं। वे नमाज़ के बाद सजदे में गिर्गिरते हुए खुदा से विनती करते हैं–हे मालिक! तू मूझे एक ऐसा सच्चा सुर प्रदान कर, जिसकी तासीर से प्रभावित होकर आँखो से स्वाभाविक रूप से खुशीयों के आँसू निकल पड़ें। उस सुर में प्रबल आकर्शषण सक्ति हो।

    प्रश्न. काशी में हो रहे कौन-से परिवतन बिस्मिल्ला खा को व्यथित करते थे ?

    उत्तर– काशी के पक्का  महाल से मलाई बरफ बेचने वालो का चले जाना, देशी घी में मिलावट होना,  जलेबी - कचोरी का स्वाद चला जाना, गायको के मन में संगतियो के लिए सम्मान का न रहना, संगीत साहित्य तथा अदब का मान-सम्मान न रहना, हिंदु - मुस्लिम एकता में कमी होना आदि परिवतन बिस्मिलला खाँ को व्यथित करते थे।

    प्रश्न. बिस्मिल्ला खा जीवन भर ईश्र से क्या मागते रहे, और क्यों ? इससे उनकी किस विशेषता का पता चलता है ?

    उत्तर – बिस्मिल्ला खा जीवन भर ईश्वर से अच्छा सुर माँगते रहे क्युकि वह जानते थे कि उनकी पहचान, उनका सम्मान, सुर शहनाई में ही है। यदि सुर एक बार फट गया तो उसे बदला नही जा सकता है। इससे उनकी मजहब के प्रति श्रद्धा व धम के प्रति  आस्था दिखाई देती है।

    प्रश्न. पाठ में आए किन प्रसगो के आधार पर आप कह सकते है कि -  

    (i) बिस्मिल्ला खा मिली - जुली संक्र्ति के प्रतीक थे।

    (ii) वे वास्तविक अथो में एक सच्चे इंसान थे।

    उत्तर – (i) बिस्मिल्ला खा सच्चे मुसलमान थे। वे मुस्लिम धर्म के प्रति पूर्णत: समपित थे। मुस्लिम त्योहारो एवं उत्सवो को वे सच्ची श्रद्धा से मनाते रे। वे पाचो वक्त की नमाज़ अदा करते थे। मुहरम की आठवी तारीख को वे खड़े होकर शहनाई बजाते थे व दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर तक पैदल चलकर, रोते हुए नौहा बजाते थे। दूसरी ओर वे काशी के मंदिरों में आयोजित होने वाले उत्सवो में उपस्थित रहते हैं। काशी विसवनाथ जी के प्रति उनकी अपार श्रद्धा है। काशी से बाहर रहने पर भी वे विसवनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुह करके बेठते हैं। उसी दिशा की ओर थोड़ी देर के लिए शहनाई का  प्याला भी घुमा दिया जाता है। इन प्रसंगो के आधार पर हम कह सकते हैं कि बिस्मिला खाँ मिली- जुली  संस्क्रति के प्रतीक थे।

    (ii) बिस्मिला खाँ सादगी पसंद साधारण किन्तु असाधारण व यक्क्तत्व के धनी रे। भारतरत्न ममि जाने पर भी उनमें अहंकार नही आया। वे धार्मक रूप से किकट्टर नही थे। वे धमषों में समानता रखते थे। उनका हृदय विशाल था। उन्होंने काशी की परम्पराओ कोबखूवी निभाया। उन्होंने सदैव मालिक से सच्चा सुर मागा| वे सरल स्वभाव के साधारण व्यक्ति थे। वे वास्तविक अथो में सच्च्चे इंसान थे।

    प्रश्न. बिस्मिल्ला खा के जीवन से जुड़ी उन घटनायो और व्यक्तियो का उल्ल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत - साधना को सम्रद् किया।

    उत्तर–  बिस्मिल्ला खा जब अपनी ननिहाल आए तब उनकी उम्र केबल छः वर्ष थी। उस समय वे राग के विषय में कुछ नही भी जानते थे। वहाँ पर उनके मामा सादिक हुसैन तथा अलिबक्स जो कि जाने-माने शहनाई वादक थे। उनकी शहनाई को सुनकर बिस्मिल्ला खा को शहनाई से प्रेम हुआ तथा उनेह सम का ज्ञान भी यही प्राप्त हुआ। 14 वर्ष की आयु में इनें रसूलनबाई एवं ब्तूलान्बाई नामक गायिका बहनो की गायिकी ने अपनी ओर आकर्षित किया। इससे उनें संगीत के प्रति आसक्ति हुई। वह उनके संगीत की प्रेरणा थी। बिस्मिल्ला खाँ के नाना भी उनके प्रेरणास्त्रो थे। वे इतनी मधुर शहनाई बजाते थे कि उनके रियाज़ करके चले जाने के बाद वह शहनाइयो की भीड़ में से नाना वाली मीठी शहनाई ढूढ़ा करते थे। अभिनेत्री सुलोचना से भी ये बहुत प्रभावित रहे। वे उसकी हर नई फिल्म अवश्य देखने जाते थे । कुलसुम हलवाइन की कल्कलाते घी में डलती  कचोरिया में छन्न से उठने वाली आवाज में भी उनेह संगीत के सारे आरोह अवरोह दिखाई दे जाते थे। संगीत उनके रक्त में प्रवाहित था। उनके दादा, नाना, मामा तथा पिता भी प्रसिद्ध शहनाईवादक थे। इन सभी ने मिलकर बिस्मिल्ला खाँ की संगीत-साधना को समृद्ध किया।

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