NCERT Solutions for Class 10 Hindi - B: Sparsh Chapter - 13 Ravindra Kalekar
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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियो में दीजिए -
प्रश्न. शुद्ध सोना और गिनी का सोना अलग क्यों होता है ?
उत्तर– शुद्ध सोना गिन्नी का सोना अलग इसलिए होता है क्योंकि शुद्ध सोना बिना किसी मिलावट के पूरी तरह शुद्ध होता है। इसमेें चमक कम होती है तथा यह मजबूत होता है बल्कि गिन्नी के सोने मेें थोड़ा-सा ताँबा मिलाया होता है, इसलिए वह ज्यादा चमकता है ओर शुद्ध सोने से मजबूत भी होता है। आभूषण आदि बनवाने के लिए इसी सोने का उपयोग होता है।
प्रश्न. प्रेक्टिकल आइडीयॉलिस्ट किसे कहते है ?
उत्तर– प्रैक्टिकल आइडीयॉलिस्ट उन्हें कहते हैं जो आदशों को व्यावहारिकता के साथ प्रस्तुत करते हैं ओर सफल जीवन जीते हैं। ऐसे लोग अपने हानि-लाभ के अनुसार आदशो मेें व्यवहार को मिलाकर प्रयोग करते हैं। समाज ऐसे लोगो का अनुकरण करता है।
प्रश्न. पाठ के संदभ में शुद्ध आद क्या है ?
उत्तर– पाठ के सन्दर्भ मेें शुद्ध आदश शुद्ध सोने की तरह हैं जिस प्रकार शुद्ध सोने मेें मिलावट की संम्भावना नही होती उसी प्रकार शुद्ध आदश मेें व्यावहारिकता की मिलावट नही होती है। शुद्ध आदश वाला व्यक्ति अपने सिद्धान्त पर स्थिर रहता है। शुद्ध आदशों पर व्यावहारिकता कभी हावी नही होती। शुद्ध आदश समाज के शाश्वत मूल्यो को बनाये रखने मेें सक्षम होते हैं।
प्रश्न. लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात क्यों कही है ?
उत्तर– लेखक ने जापानियो के दिमाग मेें ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात इसलिए कही है क्यों कि अमेेरिका से आगे निकलने की होड़ मेें तीव्र गति से प्रगति करना चाहते हैं। महीने के काम को एक दिन मेें पूरा करना चाहते हैं इसलिए उनका दिमाग भी तेज़ रफ्तार से स्पीड इंजन की भाँति सोचता है।
प्रश्न. जापान में चाय पीने की विधि को क्या कहते है ?
उत्तर– जापान मेें चाय पीने की विधि को 'चा-नो-यू’ कहते हैं। इसे ‘टी- सेरेमनी’ भी कहा जाता है ओर इसमेें केवल तीन ही सम्मिलित होते हैं। चाय पिलाने वाले को 'चाजीन’ कहा जाता है।
प्रश्न. जापान में जहा चाय पिलाई जाती है, उस स्थान क्या विशेषता है ?
उत्तर – जापान मेें जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की विशेषता है कि वह एक पणचाकुटी होती है। वह पारम्रूपरिक रूप से सजाई गई होती है। उस छोटे-से स्थान मेें केवल तीन लोग ही बैठकर चाय पी सकते हैं। वहाँ अत्यन्त शांति ओर गरिमा के साथ चाय बनाई ओर पिलाई जाती है। उस स्थान की मुख्य विशेषता शांति होती है।
(क) निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर (30-40) शब्दो में लिखीए—
प्रश्न. शद्ध आदश की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताबे से क्यों की गई है ?
उत्तर– जिस प्रकार शुद्ध सोने मेें किसी प्रकार की मिलावट करने से उसका महत्व कम हो जाता है उसी प्रकार शुद्ध आदश मेें किसी प्रकार की मिलावट करने से उसका महत्त्व कम हो जाता है। सोने मेें ताँबे को मिलाने से ताँबे का महत्त्व बढ़ जाता है ओर आदश मेें व्यावहारिकता को मिला देने से व्यावहारिकता का महत्त्व बढ़ जाता है इसलिए शुद्ध आदश की तुलना सोने से ओर व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से की गई है।
प्रश्न. चाजीन ने कौन-सी क्रीयाय गरिमापूर्ण ढंग से पूरी की ?
उत्तर– चाजीन ने टी- सेरेमनी से जुड़नी सभी क्रियाय गरिमापूर्ण ढग से की। अतिथियों का उठकर स्वागत करना, आराम से अगीठी सुलगाना, चायदानी रखना, दुसरे कमरे से चाय के बतन लाना, उन् तौलिए से पोछना व चाय को बतनो मेें दालने आदि सभी क्रियाय गरिमापूर्ण ढग से पूरी की।
प्रश्न. 'टी-सेरेमनी’ में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों ?
उत्तर– ‘टी-सेरेमनी’ मेें केबल तीन आदमियो को प्रवेश दिया जाता था। इसका सबसे बड़ा कारण शांति बनाये रखना है। यदि तीन से अधिक आदमियो को प्रवेश की अनुमति दे दी जाये तो शांति भंग होने की सम्भावना बढ़ जायेगी तथा ‘टी- सेरेमनी’ का उद्श्य पूरा नही हो पायगा।
प्रश्न. चाय पीने के बाद लेखक ने स्वय में क्या परिवर्तन महसूस किया ?
उत्तर– चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं मेें बहुत बड़ा परिवर्तन महसूस किया। उसे लगने लगा कि जैसे उनके दिमाग की गति सुस्त पड़ गई हो। चाय की चुस्की के साथ धीरे - धीरे उसका दिमाग चलना भी बंद हो गया। उसे अनुभव हुआ कि वह भूत ओर भविष्य दोनो की चिन्ता छोड़ वर्तमान के अनंतकाल मेें जी रहा हो क्योंकि भूत ओर भविष्य तो मिथ्या है तो सुखद शांति का अनुभव हो रहा था।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर (80-100) शब्दो में लिखीए—
प्रश्न. गाधीजी में नेत्तव की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए।
उत्तर– वस्तुत: गाधी मेें नेतत्व की अदभुत क्षमता थी। वे अपने कायो मेें कभी भी आदशों को हावी नही होने देते थे अपितु व्यावहारिकता को आदशों पर चराकर व्यावहारिकता का मूल्य बढ़ा देते थे।वे सोने मेें ताँबा नही, बल्कि ताँबे मेें सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे। गांधी ने सत्याग्रह आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन, असहयोग आन्दोलन व दाण्ड मार्च जैसे आन्दोलनो का नेतत्व किया। सत्य ओर अहिसा जैसे महान आदश समाज के लिए स्थापित किये। उनके नेतत्व मेें सभी भारतीयों ने पूर्ण विस्वास किया ओर उनेह सर्वमान्य नेता के रूप में स्वीकार किया क्यों कि उन्होंने कभी अपना स्वाथ सिद्ध करने का कार्य नही किया ओर लोगो को भी सही मार्ग पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित किया।
प्रश्न. आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य है जो शयाश्वि है? वर्तमान में इन मूल्यो की प्रास्गीकता स्पस्ट कीजिए।
उत्तर– मेरे विचार से ईमानदारी, सत्य, अहिसा, परोपकार, सहिष्ता आदि मूल्य शाश्वत हैं। वर्तमान समय मेें भी इनकी प्रासंगिता पूरी तरह बनी हुई है क्यों कि आज भी इन मूल्यों के बिना देश, समाज ओर व्यक्ति की भलाई ओर प्रगति नही हो सकती है। एक-दुसरे से आगे भागने की अधी दौड़ मेें विकासोन्शामुख शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए इन शाश्वत
मूल्यों की प्रासंगिकता ओर महत्ता स्वयसिद्ध है। यदि आज भी समाज इन शाश्वत मूल्यों से रचित है तो वह अलगाव ओर द्ष आदि दोषो से बच सकता है।
प्रश्न. अपने जीवन की किसी घटना का उल्ल्लेख कीजिए जब-
(क) शुद्ध आद्द्श से आपको हानि-लाभ हुआ हो।
उत्तर– शुद्ध आदशों का पालन करना बहुत ही कठीन है पर इसके पालन से कभी-कभी बहुत बड़ा लाभ हो जाता है। एक बार मेरा एक मित्र कक्षा- परीक्षा मेें नकल कर रहा था। मेैंने शिक्षक को बताकर उसे नकल करने के लिए दण्ड दिलवा दिया। इसका उस पर अच्छा प्रभाव पड़ा ओर वह बाद मेें पढ़ाई करने लगा तथा कक्षा का पढ़ाकू छात्र बन गया। वह मेरे द्वारा किए गए उपकार से उपकर्त रहता है।
(ख) शुद्ध आदश में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ ही।
उत्तर– शुद्ध आदशो मेें व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ होता है। एक बार माता जी ने कुछ फल खरीदने के लिए बाजार भेजा था। रास्ते मेें एक भूखा आदमी मिल गया। मेैंने फल की मात्रा कम कि कुछ पैसे उस भूखे आदमी को भी दे दिये। घर आने पर मेाँ ने मुझे इसके लिए पुरूस्कार भी दिया ओर मुझसे एक परोपकार भी हो गया।
प्रश्न. ‘शुद्ध सोने में ताबे की मिलावट या ताबे में सोना’, गाधीजी के आदश और व्यवहार के सन्दर्भ में यह बात किस तरह झलकती है ? स्पस्ट कीजिए।
उत्तर– ‘शुद्ध सोने मेें ताँबे की मिलावट या ताँबे मेें सोना’, गांधीजी के आदश ओर व्यवहार के संदभ मेें यह बात इस तरह झलकती है कि गांधीजी शुद्ध सोने को ताँबे मेें मिलाकर चलाने मेें विस्वास करते थे। वे सोने मेें ताँबा नही बल्कि ताँबे मेें सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे। यहाँ शुद्ध सोना आदर्श का ओर ताँबा व्यवहार का प्रतीक है। वे सोने को गिराने मेें नही अपितु ताँबे को उठाने मेें विस्वास करते थे। गांधी जी व्यावहारिकता की कीमत जानते थे। वे व्यवहार को आदश के स्तर पर उच्चा करके चलाते थे। आदशो को गिरने नही देते थे इसिलिय वे अपना विलक्षण आदश चला सके जिस कारण कई लोगो ने उनेह ‘ प्रेक्टिकल’ आईदियालिस्ट भी कहा। उनकी गति नीचे से ऊपर उठने की थी न कि ऊपर से नीचे गिरने की।
प्रश्न. ‘गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिनी का सोना’ के संदर्भ में स्पस्ट कीजिए कि ‘आद्श्वदिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्व है ?
उत्तर– ‘गिरगिट’ कहानी का नायक अवसर के अनुसार आदशों को पल-पल बदलता रहता है। जीवन मेें आद्श्वदिता ओर व्यावहारिकता दोनो का महत्व है। ‘गिन्नी का सोना’ कहानी मेें ‘प्रैक्टिकल आइकियॉलिस्ट’ की तरह हमेें व्यवहार मेें आदश को मिलाकर व्यवहार को ऊपर उठाना चाहिए। परन्तु आदशों का परित्नयाग नही करना चाहिए। आदश शुद्ध सोने के समान हैं। आज भी समाज के पास जो भी मूल्य हैं वे सब आदर्शवादियो द्वारा ही दिये गये हैं। आदश ओर व्यवहार के समतल धरातल पर ही जीवन का सुन्दर न भवन तैयार हो सकता है।
प्रश्न. लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताये? आप इन कारणो से कहा से कहा तक सहमत है ?
उत्तर– लेखक के मित्र ने मानसिक रोग का कारण जापानियो द्वारा चमता से अधिक तेजी से काम करना बताया है। अमेेरिका से आथिक प्रतिस्प्धा के चलते उस देश के लोग एक महीने का काम एक दिन मेें करने का प्रयास किते हैं। वे लोग चलते नही भागते हैं, बोलते नही बक-बक करते हैं। इस कारण वे शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार रहने लगे हैं। मेैं इन कारणों से पूरी तरह सहमत हू। शरीर ओर मन को यदि आवश्यकता से अधिक भगाया ओर उपयोग किया जाये तो रोगग्रस्त स्वाभाविक है।
प्रश्न. लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों किया होगा ?
उत्तर– लेखक के अनुसार सत्य केबल वर्तमान है, उसी मेें जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा इसलिए कहा होगा क्यों कि लेखक ‘टी सेरेमनी’ के क्रम मेें चाय की चुस्की लेते समय स्वयं वर्तमान के अनंतकाल में चला गया था। अक्सर हमे भूत या भविष्य मेें जीते हैं।वास्तब मेें दोनो काल मिथ्या हैं जो समय बीत गया उसे हमे संभाल नही सकते ओर जो समय आने वाला है वह भी हमारे देश मेें नही है। इस प्रकार भूत ओर भविष्य दोनो हमारे वश मेें नही है। सत्य केवल वर्तमान है। यदि वर्तमान अच्छा हो जायेगा तो भूत के दुख स्वतः मिट जायेगे तथा भविष्य की चिन्ताएँ खुद-ब-खुद मिट जायेगी इसलिए मानव को सर्वदा वर्तमान मेें जीना चाहिए ओर उसे ही सुन्दर बनाने का प्रयास करना चाहिए।
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पस्ट कीजिए—
प्रश्न . समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यो जेसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगो का ही दिया हुआ है।
उत्तर– उपयुक्त पंक्ति का आशय यह है कि समाज का निर्माण आदशों के सहारे होता है। आदशवादी लोग ही समाज मेें मूल्यो की स्थापना करते हैं। इन आदशों की स्थापना मेें उनका स्वाथ ओर व्यवहार कही हावी नही होता है। आज समाज ईमानदारी, सत्यता, सदभाव आदि शाश्वत मूल्यो पर टीका हुआ है। ये सभी शाश्वत मूल्य आदशवादी लोगो के द्वारा ही दिये हुए हैं। इन लोगो ने समाज को ऊपर उठाने का ही काम किया है। अतः यह पूणतः सत्य है कि समाज के पास शाश्वत मूल्यो जैसा कुछ है तो वह आदशवादी लोगो का ही दिया हुआ है, व्यवहारवादियों का योगदान न के बराबर है। व्य्व्हार्वदियो ने तो समाज को गिराने का ही काम किया है।
प्रश्न . जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रेक्टिकल आइडडयॉलिस्टो’ के जीवन से आद्द्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते है और उनकी व्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।
उत्तर– प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि ‘प्रेक्टिकल आइडीयॉलिस्ट’ एक ऐसा व्यक्तित्व है जिसमेें आदश एवं व्यवहार का संतुलन होता है परन्तु आज के समाज मेें व्यावहारिकता को इतना महत्व दे दिया जाता है कि शाश्वत मूल्य जैसी आद्शवादी विचारधारा अदृश्य होकर केवल व्यावहारिकता ही बची रह जाती है। लोग आदशों की चर्चा न कर व्यावहारिकता का ही बखान करते रहते हैं ओर आदर्श कही गायब हो जाते हैं परिणामतः व्यक्ति ओर समाज पतन की ओर अग्रसर हो जाता है।
प्रश्न. हमारे जीवन की रफ्तार बढ़ गई है। यहा कोई चलता नही बल्कि दोरता है। कोई बोलिता नही, बकता है।हम जब अकेले परते है तब अपने आपसे लगातार बड़बराते रहते है।
उत्तर – उपयुक्त पंक्ति का आशय यह है कि अमेेरिका से आगे निकलने की सपर्धा मेें जापान के लोगो के जीवन की गति इतनी तेज़ हो गई है कि वहाँ के लोग समान्य्य जीवन जीने की बज़ाय असामेान्य-से होते जा रहे हैं उनका व्यवहार असामान्य होते जा रहे है।वे चलते नही दौड़ते हैं, बोलते नही बकते हैं। आगे निकलने की होड़ ने लोगो का चेन छीन लिया है ओर धीरे - धीरे वे मानसिक रोग के शिकार होते जा रहे हैं।
प्रश्न. सभी क्रियाए इतनी गरिमापूर्ण ढंग से की कि उसकी हर भागिमा से लगता था मानो जयजयवती के सुर गूज रहे हो।
उत्तर– उपयुक्त पंक्ति उस समय की है जब लेखक ‘टी सेरेमनी’ मेें भाग लेने गया था। इसका आशय यह है कि वहाँ उपस्थित चाजिन ने चाय बनाने से लेकर परोसने तक सभी काम बहुत ही सलीके से किये मानो कोई कलाकर बड़ी ही तन्मयता से सुर मेें गीत गा रहा हो।वहाँ की परम शांति तथा चाजीन द्वारा िगरिमापूर्ण ढंग से काम करने का तरीका देखकर लेखक को लग रहा था जैसे उसके कानो मेें जयजयंती के सुर गूज रहे हो।