प्रश्न. पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीरा हरने की विनती किस प्रकार की है ?
उत्तर– पहले पद मेें मीरा हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती करती हुई कहती है–हे प्रभु! जिस प्रकार आपने द्रोपदी का वस्त बढ़ाकर भरी सभा मेें उसकी लाज रखी थी, नरसिह के रूप मेें अवतरित होकर हिरण्यकशिपु को मार पहलाद की रक्षा की थी और जब मगरमच्नेछ ने गजराज को अपने मुह मेें ले लिया तब आपने डूबते हुए गजराज को बचाकर और उसकी भयंकर पीड़ा दर की थी। हे प्रभु! इसी प्रकार मेैं आपकी दासी हू मेेरी भी पीड़ा दुर कर दो अथात भव- बधनो से छुटकारा दिलाओ।
प्रश्न. ‘मीराबाई’ रचित ‘दितीय पद’ के अनुसार अपने आराध्य को पाने के लिए मीरा क्या-क्या करना चाहती हैं और क्यों ?
उत्तर– दुसरे पद मेें मीरा श्री कृष्ण के दर्शन का एक भी मेौका हाथ से जाने नही देना चाहती है। वह श्रीकृष्ण को पाने के लिए अनेक कार्य करने के लिए तैयार हैं। वह श्रीकृष्ण की दासी बनने को तैयार हैं, वे कृष्ण की सेविका बन कर रहने को तैयार हैं, वे उनके विचरण अथात घूमने के लिए बाग - बगीचे लगाने के लिए तैयार हैं, गिरी मेें श्रीकृष्ण की लीलाओ का बखान भी करना चाहती हैं, ऊँचे-ऊँचे महलो मेें खिड़कियाँ बनाना चाहती हैं ताकि श्रीकृष्ण के दर्शन कर सकें और यहाँ तक की आधी रात को जमुना नदी के किनारे कुसुम्बी रंग की साडी पहन कर दर्सन करने के लिए तैयार हैं। मीराबाई अपने आराध्य श्रीकृष्ण की चाकरी इसलिए करना चाहती हैं ताकि उनेह इसी चाकरी के बहाने दिन रात कृष्ण की सेवा का अवसर मिल सके। मीरा उनके नामे का दिनरात स्मरण करना चाहती हैं | तथा अनन्य भक्तिभाव दर्शाना चाहती हैं। इस प्रकार मीरा दासी बनकर श्रीकृष्ण के दर्सन, नाम स्रमण रूपी जेब - खच और भक्ति रूपी जागीर तीनो प्राप्त कर अपना जीवन सफल बनाना चाहती हैं।
प्रश्न. मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रूप - सोन्दर्य का वरण कैसे किया है ?
उत्तर– मीराबाई ने दूसरे पद मेें कृष्ण के रूप- सोन्दर्य का वरण बड़े ही आकर्षक ढंग से किया है। वह कहती हैं कि कृष्ण के माथे पर मोर पंखो का मुकुट है, उनके गले मेें बेजंती फूलो की माला है। वे अपने शरीर पर पीत वस्त्र धारण करते हैं। अपने अधरो से मुरली को लगाकर जब वे वरदावन मेें धेनु चराते हैं तब उनका रूप-सौदय अत्यंत मोहक हो जाता है। इन पक्तियों मेें मीरा ने कृष्ण के सगुण रूप का मनोहर वरण किया है।
प्रश्न. मीराबाई की भाषा - शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर– मीराबाई की भाषा-शैली मूल रूप से राजस्थान मिश्चित्र ब्रजभाषा है। मीरा को अपने परिवार का त्यागकर इधर-उधर भटकना पड़ा था। अतः इनकी भाषा मेें गुजराती शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। मीरा ने अपनी भाषा मेें सरल, सहज और आम बोलचाल के शब्दों का अधिक प्रयोग किया है। इनकी पदावली कोमल, भावानुकूल व प्रवाहमयी है। इनके पदो मेें अनुप्रास, पुनरुक्क्तप्रकाश, रूपक, उत्पेक्षा आदि अहकारो का प्रयोग हुआ है। मीराबाई की भाषा की सबसे बड़ी विशेषता भावानुकूल शब्दों का प्रयोग है। मीरा के पदो की गेयता और मेधुरता, भाषा को शूर्ति मधुर बना देती है। मीरा की शेली को गीत शेली कहा जा सकता है।
प्रश्न. वे श्रीकृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या कार्य करने को तैयार हैं ?
उत्तर– वे कृष्ण को पाने के लिए उनकी सेविका बनने के लिए तैयार हैं। सेविका बनकर कृष्ण के टहलने के लिए बाग लगाना चाहती हैं, वृदावन की गलियो मेें उनकी लीलाओ का गुणगान करना चाहती हैं, कुसुम्री रंग की साडी पहनकर आधी रात को यमुना के तट पर कृष्ण से मिलकर उनके दर्शन करना चाहती हैं। तात्पय् यह है कि मीराबाई कृष्ण की अनन्य उपासिका थी अतः वह उनका सत्रिद्यय पाने के लिए अपना सर्वस्व समर्पर्ण करना चाहती हैं।
(ख) निमंलिखित पंक्तियो का काव्य सोन्दर्य स्पष्ट कीजिए -
1. हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बरायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि, धर्यो आप सरीर।
उत्तर– काव्य सोन्दर्य– उपयुक्त पधाश मेें मीरा कहती हैं कि हे प्रभु! आप मेेरी पीड़ा को दूर कर दो। अपनी बात की प्रबलता के लिए उन्होंने दृष्टांत का सहारा लिया है। वे कहती हैं कि जिस प्रकार आपने भरी सभा मेें द्रोपदी की लाज रखी थी, प्रहलाद की रक्षा करने के लिए भगवान नरसिह का रूप धारण किया था ठीक उसी प्रकार आप हमारी पीड़ा को भी दुर कर दें।
इस गधाश की भाषा राजस्थानी मिचित्र ब्रजभाषा है। ‘नरहरि’ के ‘हरि’ शब्द मेें श्लेष अलकार का प्रयोग किया गया है। ‘र/ री’ वर्ण के बार- बार प्रयोग से अनुप्रास अलकार की सम्म्भावना है तथा यहाँ गेयता और संगरीतात्मकता प्रबल हुई है। इस पद् मेें भक्ति रस का प्रयोग किया गया है।
2. बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुञ्जर पीर।
दासी मीरा लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।
उत्तर– काव्य सोन्दर्य – उपयुक्त पदाश मेें मीरा कहती हैं कि हे प्रभु! आपने डूबते हुए गजराज को बचाकर उसके दुःख को दुर किया था। हे गिरधर! हे स्वामी! मेैं तो आपकी दासी हू। आप मेेरी पीड़ा को दुर कर दें। इसमेें दृष्टांत अलंकार का सुदर निदश्वन है। यहाँ दास्य भक्तिरस का उत्तम प्रयोग है। इसकी भाषा ब्रज मिश्चित राजस्थानी है। ‘काटी कुञ्जर पीर’ मेें आकषक अनुप्रास अलंकार है, भाषा सरल, सहज तथा गेय है।
3. चाकरी में दरसण पास्यु, सुमरण पास्यू खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यू, तीनं बाता सरसी।
उत्तर– काव्य सोन्दर्य– उपयुक्त पधाश मेें मीरा कहती हैं कि हे प्रभु! मेैं आपकी सेविका बनकर नित्यप्रति आपके दश्वनरूपी धन को पा सकूगी और आपका नाम स्मरण रूपी धन को खर्च करूगी और इस प्रकार मेैं आपकी भाव भक्ति रूपी जागीर को प्राप्त कर सकूगी। इस प्रकार भाव भक्ति मेें अनुप्रास अलकार का प्रयोग। यहाँ राजस्थानी भाषा का प्रयोग है। पद मेें गेयता, संगरीतात्मकता के साथ भक्ति और शांत रस का सुन्दर निदर्शन है।