प्रश्न झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंगटोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था ?
उत्तर – झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंगटोक का रहस्रमयी सोन्दर्य लेखिका को जादुई रूप से सम्मोहित कर रहा था। उनेह सब कुछ ठहरा हुआ एवं अर्थहीन सा महसूस होरहा था। उनेह अपने भीतर-बाहर शून्य सा अनुभव हो रहा था।
प्रश्न गंगटोक को ‘मेहनतकश बादशाहो का शहर’ क्यों कहा गया?
उत्तर– ‘मेहनतकश’ का अर्थ है—कड़ी मेहनत करने वाले। ‘बादशाह’ का अर्थ है—मन की मर्जी के मालिक। गंगटोक एक पहाड़ी क्षेत्र है। यहाँ स्त्री, पुरुष, बच्चे व युवतिया सभी कठिन परिस्थियों में पूरी मेहनत से परिश्रम में लगे रहते हैं। स्त्रीया अपने शिशु को पीठ पर लादकर काम करती हैं। बच्चे स्कूल के लौटने के मवेशी चराते हैं, पानी भरते हैं तथा लडकियों के भारी - भारी गट्टर ते हैं। गंगटोक में सभी लोग मेहनतकश होते हैं। इसलिए गंगटोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर ’ कहा गया है।
प्रश्न कभी श्वेत तो कभी रगीन पताकाओ का फहराना किन अलग - अलग अवसरो की और संकेत करता है?
उत्तर श्वेत पताकाएँ ‘शोक’ से युक्त अवसर की और सकेत करती हैं।जब किसी बुदिस्त की मृत्यु हो जाती है तो उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी पवित्र स्थान पर 108 श्वेत पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। इन्नेह उतारा नही जाता। ये धीरे - धीरे अपने आप ही नस्ट जाती हैं। रगीन पताकाएँ नये कार्य के शुरुआत की ओर सकेत करती हैं।ये मागलिक कार्यो का प्रतीक हैं। शुभ कार्यो के प्रारम्भ में ही ये पताकाएँ लगा दी जाती हैं।
प्रश्न जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्पूर्ण जानकारियाँ दी? लिखिए।
उत्तर जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियाँ देते हुए बताया कि हिमालय की गहनतम घाटीयो एवं सोंदर्यशाली जन्नत के दर्सन होते हैं। सिक्किम चीन की सीमा से सटा है। यहाँ बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। नार्गे के कुटीया के भीति घमते धम्थ-चक्र के विषय में भी बताया। पहाड़ी इलाके तथा वहाँ के स्कूल लौटते बच्च्चो के विषय में बताया। हिंदुस्तान के स्विज़ेरलैंड–कटाओ के विषय में बताते समय नार्गे अत्यन्त उत्साहित था। उसने लेखिका को पहाड़ो पर गन्दगी न करने तथा सिक्किन टूरिस्ट स्पॉट बनने के विषय में जानकारी दी।
प्रश्न. इस यात्रा वर्तान्त में लेखिका ने हिमालय के जिन- जिन रूपो का चित्र खीचा है, उनेह अपने शब्दो में चलखिए।
उत्तर इस यात्रा वर्तान्त में लेखिका ने हिमालय के पल-पल बदलते विराट रूप, ऊँचाई पर चढ़ते समय विशाल से विशालकाय होते हिमालय के विचित्र रूप, पर्वत की गहराती घटिया एवं सोन्दर्य की पराकाषट से युक्त फलो से लदी सुन्दर रूपो का चित्र खीचा है। सफेद फेन उगलते निरंतर प्रवाहित झरने, बलखाती तीस्ता नदी, चारो ओर बिखरा प्राकृतिक सोन्दर्य लेखिका के मन को मोह लेता है। लेखिका को हिमालय कहीं चटक हरा, कहीं पीलापन लिये तो कहीं पथरीला नजर आता है। बदलो एवं हिमालय का पल-पल बदलता रूप लेखिका को रोमांच से भर रहा था।
प्रश्न . इस यात्रा वर्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपो का चित्र खीचा है, उनेह अपने शब्दो में लिखिए।
उत्तर इस यात्रा वर्तान्त में लेखिका ने हिमालय के पल-पल बदलते विराट रूप, ऊँचाई पर चढ़ते समय विशाल से विशालकाय होते हिमालय के विचित्र रूप, पर्वत की गहराती घाटीयाँ एवं सोन्दर्य की पराकाषठा से युक्त फूलो से लदी सुन्दर वादियों के रूपो का चित्र खीचा है। सफेद दूधिया फेन उगलते निरंतर प्रवाहित झरने, बलखाती तीस्ता नदी, चारो ओर बिखरा प्राकृतिक
सोन्दर्य लेखिका के मन को मोह लेता है। लेखिका को हिमालय कहीं चटक हरा, कहीं पीलापन लिये तो कहीं पथरीला नजर आता है। बादलो एवं हिमालय का पल-पल बदलता रूप लेखिका को रोमांच से भर रहा था।
प्रश्न . प्रकृति के उस अनन्त ओर विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?
उत्तर प्रकृति के उस अनन्त ओर विराट स्वरूप को देखकर लेखिका रोमानंचित हो जाती हैं। प्रकृति के अप्रतिम सोन्दर्य को देखकर वे ठगी - सी रह जाती हैं। उनेह लगता है कि परोपकार में ही जीवन की साथकता निहित है। झरनो की भाँति गतिशीलता तथा फूलो की भाँति मुस्कारते हुए, महक लुटाने में ही जीवन का सच्चा आंनद है। बहते झरने को देखकर उनेह सुखद अनुभूति हो रही है।
प्रश्न . प्राकर्तिक सौन्दर्य के अलौकिक आनन्द में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गये?
उत्तर प्राकर्तिक सौन्दर्य के अलौकिक आनन्द में ढूबी लेखिका को पत्थर तोड़ती अदितीय सोन्दर्यस से युक्त पहाड़ी औरत्तो का दश्य झकझोर गया। उनेह लगा कि स्वगिक सोन्दर्य, नदी, फूलो,वादियों ओर सुन्दर झरनो के बीच भूख, मौत, दीनता ओर जिन्दा रहने की यह जंग जारी है। स्त्रीया किस प्रकार मातृत एवं श्रम साधना जेसी विपरीत जिम्मेदारियों का निवर्हन साथ - साथ कर रही हैं। इसी विचार ने लेखिका को हिलाकर रख दिया।
प्रश्न . सैलानियो को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगो का योगदान होता है, उलेख करे।
उत्तर सेलानियो को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में ट्रेवल एजेंसी, ड्राइवर - कम - गाइद ज्यादा है| वह आवश्यकता पड़ने पर ड्राइवर की भूमिका बड़ी आसानी से निभा सकता है एक कुशल गाइद को अपने क्षेत्र की भोगोलिक स्थिति की जानकारी के साथ - साथ महत्पूर्ण व ऐतहासिक स्थानों तथा उससे जुड़े रोचक प्रसंगों की बारीक़ जानकारिया होनी चाहिए| कुशल गाइद में सहनशीलता होनी चाहिए| उसे गीत - सगीत में भी रूचि होनी चाहिए| जिससे वह पर्यटकों का मनोरंजन कर सके| कुशल गाइद में मानवीय संवेदनऔ को समझने कि शक्ति एवं
प्रश्न . “कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती है।” इस कथन के आधार पर स्पसठ करे कि आम जनता की देश की आथिक प्रगति में क्या' भूमिका है?
अथवा
‘साना-साना हार जोडी’ पाठ में प्रदूषण के कारन हिमपात में कमी पर चिंता व्यक्त की गई है। प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आये हैं? हमें इसकी रोकथाम के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर आम जनता देश की आथिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेखिका का यह कथन पर्वतीय श्रमिक महिलाओ के विषय में है, जो विपरीत एवं कठीन परिस्थियों में कठोर परिश्रम करती हैं।वे मातृत एवं श्रम - साधना जेसी कठीन जिम्मेदारियों को साथ- साथ निभाती हैं।ऐसा करके वे बहुत कम मजदूरी में अधिक परिश्रम करती हैं। उनका यह श्रमदान देश की प्रगति में आथिक रूप से सहायक होता है। आम जनता के अन्तगर्श्रत श्रमिक वर्ग, डॉक्टर, आदि सभी लोग आते है| ये सभी लोग समाज से अपनी सेवा के बदले जितना धन लेते हैं,सेवा के रूप में उससे अधिक लौटा देते हैं।
प्रश्न . आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है? इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए?
अथवा
प्रकति के साथ क्या-क्या खिलवाड़ हो रहे हैं ? इसे रोकने के उपाय बताइये।
अथवा
‘कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती है।’ ‘साना-साना हाथ जोडी ..... ’ पाठ के इस कथन में निहित जीवन मूलों को स्पस्ट कीजिए ओर बताइये कि देश की प्रगति में नागरिक की क्या भुमिका है?
उत्तर आज का मानव प्रकृति का दोहन कर रहा है। प्रकृति ईशवर द्वारा प्रदत नि:शुक्ल्क उपहार है। प्रकृति का दोहन करने से प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ जाता है जिसके फलस्वरूप अनेक प्रकार की प्राकर्तिक' विपदाय हमें काल का ग्रास बनासकती हैं। आज पेड़ो को अधिक माता में काटकर वहाँ पर इमारते व कालोनियों बनाई जा रही हैं।वातावरण प्रदुषणयुक्त होता जा रहा है | पहाड़ी स्थलों को विहार-स्थल बनाकर वहाँ के प्राकृतिक सोन्दर्य के साथ छेड़छाड़ होरही है। चारो ओर गन्दगी का सामराज्य फैला हुआ है । ग्लोबल वार्मिंग से तापमान में निरंतर वर्दी होने के कारण पर्वत अपने प्राकृतिक सोन्दर्य को खोते जा रहे है| प्रकर्ति के साथ होने वाले खिलवाड़ को रोकने के लिए हमें प्रकृति की देखभाल करनी चाहिए। अधिक मात्रा में पेड़ लगायें, जिससे प्रकति का सन्तुलन न बिगड़े। कृशि-योग्य भूमि का दूरुपयोग करने से बचें तथा किसी भी प्रकार के प्रदुसन को न फैलने दे।
प्रश्न . प्रदूषण के कारण बर्फ़बारी में कमी का जिक्र किया गया है। प्रदूषण के कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आये हैं? लिखे।
अथवा
प्रदूसन से होने वाले दुष्परिणामो का उल्ल्लेख कीजिए।
उत्तर – प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। इससे प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ने के साथ - साथ मानव-जीवन भी गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है।खान-पान, आहर-विहार सभी जगह प्रदूषण का बोलबाला है। जल प्रदूषण , मर्दा प्रदूषण , ध्वनि प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण आदि सभी प्रदूषण अपने चरम पर हैं। इनसे मनुष्य में सास लेने की समस्या, फेफड़ो का सक्मर्ण, हदय रोग, शुगर,रक्तचाप सबम्न्धी बीमारियाँ तथा बहिापन आडि अनेक प्रकार के दुष्परिराम सामने आये हैं। यदि हम शीघ्र जागरूक नही हुए तो हमारे सामने विनाशकारी परिस्थितया अपना ‘फन’ उठाये खड़ी होगी।
प्रश्न . “ ‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है।” इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए।
उत्तर ‘कटाओ’ अप्रतिम सोन्दर्य से युक्त प्राकृतिक स्थान है। इसे भारत का स्विज़ेरलैंड कहा जाता है। ‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान ही कहा जायेगा। यदि वहाँ दुकानें खोल दी जायेंगी तो वहाँ की नेसगिर्क सुन्दरता प्रभावित होगी। लोगो की भीड़ बढ़ेगी तथा गन्दगी एवं प्रदूषण भी बढ़ जायेगा।
प्रश्न. प्रकृति ने जल-संचय की व्यवस्था हकस प्रकाि की है?
उत्तर प्रकृति नायाब तरीके से जल संचय की व्यवस्था करती है।सम्पूर्ण एशिया के हिमशिखर जलस्तम्भ हैं। प्रकृति सर्दियों में हिम के रूप में जल - सग्रह कर लेती है। गमियो में जब पानी के लिए त्राहि - त्राहि मचती है, तो यही बर्फ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बन कर हमारे सूखे कणो की प्यास बुझाती है। प्रकृति के पास जल - सन्ज की अद्भुत व्यस्था है।
प्रश्न. देश की सीमा पर बैठे फौजी हकस तिह की कठीनाइयो से जूझते हैं ? उनके प्रति हमारा क्या उत्तर्दयित्ब होना चाहिए?
उत्तर देश की सीमा पर बैठे फौजी अनेक तरह की कठीनाइयो से जूझते हैं। ये फौजी पूस ओर माघ की कड़कड़ाती सर्दी, जिसमे' पेट्रोल के आलावा सब कुछ जम जाता है, पूरी सतकर्ता से तैनात रहते हैं। बफ़ीली हवाओं एवं तुफानो का सामना करना पड़ता है राजस्थान में रेगिस्थान सीमायों पर तैनात फोजियो को प्रचंड लू एवं गर्म हवाओं का सामना करना पड़ता है हमारा दयित्ब है कि हम देश की सीमाओ के रक्षक फोजियो को सम्मान की दृष्टि से देखे। उनके परिवारों को किसी भी प्रकार की कमी न होने दे। उनके बच्चो को स्नेह दे तथा उनकी उचित शिक्षा - व्यवस्था पर ध्यान दे।
प्रश्न . “आप चैन की नीद सो सकें , इसीलिए तो हम यहाँ पहरा दे रहे हैं”— एक फौजी के इस कथन पर जीवन मूल्यों की दृष्टि से चर्चा कीजिए।
उत्तर “आप चैन की नीद सो सके, इसलिए तो हम यहाँ पहरा दे रहे हैं।” ........ देश की सीमा पर बैठे फौजी कड़कड़ाती ठण्ड में, जब वहाँ का तापमान –15 डिग्री सेल्सियस हो जाता है, पौष ओर माघ के महीने में पेट्रोल को छोड़कर सब कुछ जम जाता है, उस समय भी ये फौजी जी-जान से रक्षा में लगे रहते हैं। वहाँ का मोसम ओर परिस्थितिया विषम होती हैं। हमें देश की सीमाओ की रक्षा करने वाले सेनिको के प्रति क्रत्ग होना चाहिए वन को के प्रवत कृतज्ञ होना चाहिए, क्योंकि वह ऐसी उक्त परिस्थियों में रहते हैं, जिससे हम अपने घरो में चैन की नीद सों सके तथा देश की एकता एवं शान्ति को कोई भंग न कर सके। अगर ये लोग न हो, तो आपरधिक तत्वों को बढ़ावा मिल जायेगा। जिसके परिरामविरूप हमारा प्रत्येक क्षण भययुक्त होगा।
Hindi-A Most Likely Question Bank
CBSE Class 10 for 2025 Exam