NCERT Solutions for Class 10 Hindi - B: Sanchayan Chapter - 2 Sapno Ke Se Din
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प्रश्न. कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नही बनती पाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है ?
उत्तर– कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नही बनती, पाठ के इस अंश से यह सिद्ध होता है कि हमारे आधे से अधिक साथी राजस्थान तथा हरियाना से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करते थे। जब वे छोटे तो उनकी बोली हमें बहुत कम समझ आती थी, इसलिए उनके कुछ शब्द सुनकर हमें हँसी आती थी, लेकिन खेलते समय सभी एक- दुसरे की बात समझ लेते थे। इससे सिद्ध हो जाता है कि कोई भाषा आपसी व्यवहार में बाधक नही होती।
प्रश्न. पीटी साहब की ‘शाबाश’ फ़ोज के तमगो-सी क्यों लगती थी ? सपष्ट कीजिए।
उत्तर– पीटी साहब प्रीतमचंद बहुत कड़क इंसान थे। उनेह किसी ने न हँसते देखा, न किसी की प्रशंसा करते। सभी छात्र उनसे भयभीत रहते थे'। वे मार - मारकर बच्चो की चमड़ी तक उधेड़ देते थे। छोटे - छोटे बच्चे यदि थोडा - सा भी अनुशासन भंग करते तो वे उनेह कठोर सजा देते थे। ऐसे कठोर स्वभाव वाले पीटी मास्टर साहब बच्चो के द्वारा गलती न करने पर अपनी चमकीली आँखें हलके से झपकाते हुए उनेह शाबाश करते थे। इसलिए पीटी मास्टर से मिली गुड उन्हें अन्य अध्यापको से मिली गुड से मूल्यवान प्रतीत होती थी। उनकी यह शाबाश बच्चो को फोज के सारे तमगो को जीतने के समान लगती थी।
प्रश्न. नई श्रेणी में जाने और नई कापियों और पुरानी किताबो से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन क्यों उदास हो उठता था ?
उत्तर– नयी श्रेणी में जाकर लेखक का बालमन इसलिए उदास हो जाता था, क्योंकि उसे किताबे अन्य लड़को द्वारा पढ़ी हुई ही पढ़नी पड़ती थी। उसके लिए पुरानी किताबो का प्रबंध हेडमास्टर साहब कर देते थे, क्योकि लेखक के परिवार की आथिक स्थिति अच्छी नही थी,जबकि अन्य बच्चे नई कक्षा में नई किताबे खरीदते थे। इसलिए लेखक का बालमन नई कॉपियो तथा पुरानी किताबो से आती विशेष गंध से उदास हो उठता था। साथ ही आगे की श्रेणी की मुस्किल पदई तथा नये मास्टरों की मारपीट के भय के कारण भी लेखक उदास हो जाता।
प्रश्न. स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्वपूर्ण ‘आदमी’ फ़ोजी जवान क्यों समझने लगता था ?
उत्तर– लेखक गुरदयाल सिह फोजी बनना चाहता था। उसने फुटबुट ओर शानदार वर्दी पहने लेफ्ट - राइट करते फोजी जवानो की परेड को देखा था। इसी कारण स्काउट परेड के समय धोबी की धुली वर्दी, पोलिश किए बूट तथा जुराबो को पहन वह स्वयं को फोजी जवान ही समझता था। स्काउट परेड में जब पीटी मास्टर लेफ्ट - राइट की आवाज या मुह की सिटी बजाकर माच करवाया करते थे तथा उनके राइट टर्न या लेफ्ट टर्न या अबाउट टर्न कहने पर लेखक अपने छोटे - छोटे बुटो की एडीयो पर दाए बाएँ या एक कदम पीछे मुड़कर बुटो की ठक-ठक की आवाज करते हुए स्वयं को विद्यार्थी न समझकर एक महत्वपूर्ण फोजी समझने लगता था।
प्रश्न. हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुआतल कर दिया ?
उत्तर– पी.टी. साहब चौथी कक्षा को फारसी भी पदाते थे। एक दिन बच्चे उनके द्वारा दिया गया शब्द-रूप रट कर नही आये। इस पर उन्होंने बच्चो को पीठ ऊँची करके कुर्तापूर्ण ढंग से मुर्गा बनने का आदेश दिया, तो उस समय वहा हेडमास्टर साहब आ गए। यह दृश्य देखकर हेडमास्टर उत्तेजित हो उठे इसी कारण उन्होंने पी.टी. साहब को मुअत्तल कर दिया।
प्रश्न. लेखक के अनुसार उन्हे स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कि और क्यों उंनेह स्कूल जाना अच्छा लगने लगा ?
उत्तर– ‘सपनो के-से दिन’ पाठ के लेखक गुरदयाल सिह के अनुसार उनेह तथा उनके साथियों को बचपन में स्कूल जाना अच्छा नही लगता था। चौथी कक्षा तक कुछ लड़को को छोड़कर अन्य सभी साथी रोते-चिल्लाते हुए स्कूल जाया करते थे। स्कूल में धोबी पिटाई तथा मास्टरों की डाट फटकार के कारण स्कूल उनेह एक नीरस व भयानक स्थान प्रतीत होता था, जिसके प्रति उनके मन में एक भय-सा बैठ गया था।
इसके बाबजूद कई बार ऐसी स्थिवतियाँ आती थी जब उनेह स्कूल जाना अच्छा भी लगता था। वह मौका तब आता था जब उनके पी.टी. सर की स्काउटिंग काअभ्यास करवाते थे। वे पढ़ाई - लिखाई के स्थान पर लड़को के हाथो में नीली-पीली झंडयाँ पकरा देते थे, हवा में लहराती बड़ी अच्छी लगती थी| अच्छा काम करने पर पीटी सर की शाबाशी भी मिलती थी, तब यही कठोर पीटी सर बच्चो को बड़े अच्छे व सुखद प्रतीत होता था|
प्रश्न. लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टिया में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनयाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भाति ‘बहादुर’ बिनने की कल्पना किया करता था ?
उत्तर– लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुटियो में मिले काम को पूरा करने के लिए तरह- तरह की योजनाय बनाया करता था। जेसे— हिसाब के मास्टर जी द्वारा दिए गए 200 सवालों को पूरा करने के लिए लेखक योजना बनाता। रोज दस सवाल निकाले जाने पर 20 दिन में पुरे हो जायगे, लेकिन खेल-कूद में छुट्टिया भागने लगती, तो मास्टर जी की पिटाई कर डर सताने लगा। फिर लेखक रोज के 15 सवाल पुरे करने की योजना बनाता, तब उसे छुट्टिया भी बहुत कम लगने लगती ओर दिन बहुत छोटे लगने लगते तथा स्कूल का भय भी बढ़ने लगता। ऐसे में लेखक पिटाई से डरने के बावजूद भी उन लोगो की भातित बहादुर बनने की कल्पना करने लगता, जो छुट्टियो में काम पूरा करने की बजाय मास्टर जी से पिटना भी अधिक बेहतर समझते थे।
प्रश्न . पाठ में वर्ति घटनाओं के आधार पर पी.टी. सर की चारित्रिक विशेषताओ पर प्रकाश डालिए।
उत्तर– पाठ के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि पी. टी. सर प्रीतमचंद बहुत सरल अध्यापक थे। उनके व्यक्तित्व की विशेषताय निम्न प्रकार है—
(क) बाह्य व्यक्तित्व – पी.टी. सर अथात प्रीतमचंद ठीगने कद के थे, उनका शरीर दुबला-पतला पर गठीला था। उनका चेहरा चेचक के दागो से भरा था। उनकी आँखें बाज की तरह एडियो के नीचे खुरिया लगती रहती थी । बुटो की उची एडीयो के नीचे खुरिया लगती रहती थी| बुटो के अगले हिस्से में पंजो के नीचे मोटी सिरों वाले किल ठुके रहते थे|
(ख) आंतरिक व्यक्तित्व —
(i) कुशल अध्यापक— प्रीतमचंद एक कुशल अध्यापक थे। वे चौथी श्रेणी के बच्चे को फारसी पढ़या करते थे। वे मौखिक अभिव्यक्ति एवं याद करने पर बल दिया करते थे। वे छात्रो को दिन - रात एक करके पढ़ई करने की शिक्षा दिया करते थे।
(ii) कुशल प्रशिछक - वे कुशल प्रशिचक थे। वे छात्रों को स्काउट ओर गाइड की टेनिग दिया करते थे। वे छात्रों को विभिन्न रग की झंडीयाँ पकराकर हाथ ऊपर -नीचे करके अच्छी टेनिग दिया करते थे। उनके इस प्रशिछण कार्य से छात्र सदा प्रसन्न रहा करते थे। वे उस पर छात्रों द्वारा सही कम करने पर शाबाशी भी देते थे।
(iii) कठोर अनुशासन प्रिय—प्रीतमचंद अनुशासन प्रिय होने के कारण कठोर अनुशासन बनाए रखते थे।यदि कोई लड़का अपना सर इधर - उधर हिला लेता था तो वे उस पर बाध की तरह झपट पड़ते थे। प्राथना करते समय भी वह अनुशासनहीन छात्रो को दंडीत करते थे। अगर कोई छात्र कतार से बाहर या टेरा-मेरा हो जाता था तो भी समझाने के बजाय कठोर दण्ड देते थे।
(iv) कोमल हृदयी—प्रीतम चंद बाहर से कठोर किन्तु अन्दर से कोमल थे। उन्होंने अपने घर में तोते पाल रखे थे, वे उनसे बात करते थे ओर उनेह भीगे हुए बादाम भी खिलाया करते थे। इसके आलावा वे छात्रो द्वारा सही काम किए जाने पर उनेह शाबाशी भी देते थे।
प्रश्न. विद्यार्थियो को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियो और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर– विद्यार्थियो को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई युक्तियाँ इस प्रकार से है—पी.टी. साहब बल्ला मार-मारकर बच्चो की चमड़ी तक उधेड़ देते थे। तीसरी - चौथी कक्षाओ के बच्चो से थोढ़ा-सा भी अनुशासन भंग हो जाता, तो उनेह कठोर सजा मिलती थी ताकि वे विद्यार्थी के जीवन में अनुशासन की नीव दृढ़ बना सकें। इसके साथ-साथ विद्याथियो को प्रोत्सहित तथा उत्साहित करने के लिए उनहे ‘शाबाशी’ भी दी जाती थी लेकिन वर्तमान में स्वीकृत मान्यताएँ इसके विपरित हैं। शिछको को आज विधाथियो को पीटने का अधिकार नही है इसलिए विद्यार्थी निडर होकर अनुशासनहीनता की ओर बढ़ रहे हैं, क्यों कि आज पहले की भाति विद्यार्थी शिछको से डरते नही हैं। इसके लिए विद्यालय ओर माता-पिता दोनो जिम्मेदार। बच्चो में अनुशासन का विकास करने के लिए उनेह शारीरिक व मानसिक यातना देना उचित नही। उनेह प्रेमपूर्वक नैतिक मूल्य सिखाय जाने चाहिए, जिनसे उनमें स्वानुशासन का विकास हो सके।
प्रश्न. बचपन की यादें मन को गुदगुदाने वाली होती हैं विशेषकर स्कूली जीवन की खट्टी - मीठी यादो को लिखिए।
उत्तर– बचपन की ओर विशेषकर स्कूली जीवन की खट्टी-मीठी यादें मन को गुदगुदाती रहती हैं। ये यादें सभी की निजी होती हैं। मेरा भी कुछ ऐसी यादें मेरे साथ हैं। मैं जब नवी कक्षा में पढ़ती थी मेरी मा किसी कारणवश बाहर गई थी। इसलिए मैं बिना गृहकार्य किए ओर बिना लिए स्कूल पहुची। पहले तो अध्यापिका से खूब डाट पड़ी, फिर आधी छुट्टी में मुझे अध्यापिका ने खिड़की के पास खरा पाया तो डाट लगा दी। अगले पीरियड में मुझे बहुत बेचैनी हुई कि अध्यापिका मेरे बारे में क्या सोच रही होगी, मैं अध्यापिका की कक्षा में उनसे मिलने गई। उंनेह देखते ही मेरा रोना छुट गया। उन्होने रोने का कारण पूछा तो मैंने रोते - रोते उनेह कारण बताया कि मेरी माताजी घर पर नही हैं उन्होने मुझे सात्वना दी फिर मुझे अपने डिब्बे से खाना खिलाया। आज भी मैं इस घटना को याद करती हू तो अध्यापिका के प्रति भाव - विभोर हो उठती हू।
प्रश्न. अभिभावक बच्चो को खेलकूद में ज्यादा रुचि लेने पर रोकते हैं और समय बर्बाद न करने की नसीहत देते हैं। बताइए—
(क) खेल आपके लिए क्यों जरूरी है ?
(ख) आप कौन-से ऐसे नियम-कायदो को अपनयाएँगे जिससे अभिभावको को आपके खेल पर आपति न हो ?
उत्तर– (क) खेल प्रत्येक उम्र के बच्चे के लिए जरूरी हैं। खेल की बच्चे के शारीरिक- मानसिक विकास में अहम् भूमिका होती है। खेल, बच्चे की सोच को विस्तृत तथा विकसित करते हैं। इससे बच्चे में सामूहिक रूप से काम करने की भावना का संचार होता है। बच्चे में प्रतिस्पधा तथा प्रतियोगता हेतु आगे बढ़ने की होड़ ओर दौड़- भाग की इच्छा पैदा होती है। खेलो में भाग लेने से बच्चे को अपना तथा अपने देश का नाम रोशन करने का सुअवसर प्राप्त होता है। अतः खेल मानसिक तथा शारीरिक विकास दोनो के लिए अत्यन्त जरूरी है।
(ख) मैं अपने अभिभावको के लिए यही नियम ओर कायदों को अपनयाऊँगा, जिनसे उनकी भावनाओं को ठेस न पहुचे इसलिए मैं समय पर खेलूगा ओर समय पर खेलकर वापस आऊँगा। खेलने के साथ पद्दाई पर भी पूरा ध्यान दूगा। मैं खेलने में उतना ही समय खच करूगा, जितना आवश्यक होगा अथात मैं केबल वही नियम ओर कायदे अपनाऊँगा, जिनसे मेरे अभिभावकों को सुख - शांति मिलेगी।
प्रश्न . ‘सपनो के से दिन’ पाठ में पी.टी . सर की किन चारित्रिक विशेषताओ का उल्लेख किया गया है? वर्तमान शिचा व्यवस्था में स्वीक्रत मान्यताओं और पाठ में वर्रित युक्तियो के सम्बन्ध में अपने विचार जीवन मूल्यों की द्रस्थी से व्यक्त कीजिए।
उत्तर– पी .टी. सर का नाम प्रीतमचंद था। उनका चेहरा दागो से भरा था। उनकी आँखें बाज-सी तेज थी। वे बड़े कठोर स्वभाव के थे। उनेह किसी ने स्कूल के समय में मुस्कराते नही देखा था।
बाह्य विशेषताएँ—
(क) उनका कद ठीगना ओर बदन गठीला था। वे खाकी वर्दी पहने रहते थे। उनके पेरो में चमड़े के चौड़े वाले बूट होते थे।
(ख) प्रीतमचंद पराने के प्रति बहुत सचेत रहते थे। पाठ याद न करने पर बर्बता की हद तक सजा देते थे। उनके इसी रूप ने उनेह नौकरी से मुअत्तल किया दिया।
(ग) स्काउटीग की परेड कराते समय उनका रूप लड़को को बहुत अच्छा लगता था। तब वे सामान्य व्यवहार से हटकर, लड़को को उत्साहित करते हुए शाबासी देते थे।
(घ) अंत में उनेह एक नरमदिल व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया है जो नौकरी से निकाले जाने पर दुखी नही थे ओर प्रेमपूर्वक अपने तोतो को बादाम की गिरिया खिलाते थे। पाठ में बताया गया कि स्कूल में अनुशासन बनाए रखने के लिए छात्रो को भयभीत अवस्था में रखा जाता था। पाठ याद न करने पर उनेह मुर्गा बना दिया जाता था। इस तरह की सजा देना अत्यन्त बर्बरतापूर्ण है। वर्तमान समय में शारीरिक दण्ड ओर भयपूर्ण वातावरण में छात्रो को पराने पर पूर्ण प्रतिबंद लगाया गया है। ऐसी शारीरिक सजाओ पर प्रतिबंध लगाना बिलकुल उचित है।
प्रश्न. ‘सपनो के से दिन’ कहानी के आधार पर पी.टी. साहब के व्यक्तित्व की दो विशेषताएँ बताते हुए लिखिए कि स्काउट परेड करते समय लेखक सवय को महत्वपूर्ण आदमी, एक फ़ोजी जवान क्यों समझता था ?
उत्तर– ‘सपनो के से दिन’ कहानी के आधार पर पी.टी. साहब के व्यक्तित्व की दो विशेषताए है— प्रथम पी.टी. सर बहुत ही अनुशासनप्रिय ओर कठोर स्वभाव के थे। उनेह स्कूल में कभी भी किसी ने मुस्कराते हुए नही देखा था। सुबह की प्राथना सभा में किसी लड़के द्वारा सिर इधर-उधर हिलाने पर वे शेर की तरह झपट पड़ते थे ओर खाल खीचने के मुहवरो को भी चरिताथ कि देते थे। दितीय—पी . टी. साहब पछियो से बहुत प्रेम करते थे। उन्होंने अपने घर में दो तोतो को पाल रखा था। अवकाश के समय पिंजरे में रखे उन दो तोतो को बादाम आदि खिलाते थे| इससे पछियो के प्रति उनका अनुराग झलकता है| पी. टी. साहब जेसे कठोर और अनुशासित अध्यापक के निर्देशन में स्काउट परेड करते समय लेखक साफ- सुधरे धोबी के धुले कपड़े, पॉलिश किए हुए बूट, जुराबो को पहन कर जब ठक ठक करके चलता था तो वह अपने आपको महत्त्वपूर्ण आदमी और फोजी से कम नही समझते थे। उनके मन में इस प्रकार फोजी बनने की इच्छा होती थी।
प्रश्न . बच्चो की यह स्वाभाविक विशेषता होती है कि खेल ही उनेह सबसे अच्छा लगता है। ‘सपनो के-से-दिन’ नामक पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– ‘सपनो के-से दिन’ नामक पाठ से ज्ञात होता है कि लेखक ओर उसके बचपन के साथी मिल - जुलकर खेलते था। खेल-खेल में जब उनेह चोट लग जाती थी और धूल एवं रक्त जमे कई जगह से छीले पाँव लेकिर घर जाते थे तो सभी की माँ-बहनें और बाप उन पर तरस खाने की जगह बुरी तरह से पिटाई करते थे, फिर भी वे अगले दिन खेलने चले जाते थे। इससे स्पष्ट होता है कि बच्चो को खेलना सबसे अधिक अच्छा लगता है।
प्रश्न. लेखक के बचपन के समय बच्चे पराई में रुचि नही लेते थे— सपष्ट कीजिए।
उत्तर– अपने बचपन के दिनो में लेखक जिन बच्चो के स्कूल खेलता था, उनमें अधिकाश तो स्कूल जाते ही नही थे ओर जो कभी गए भी वे पराई में अरुचि होने के कारण किसी दिन अपना बसता तालाब में फेंककर आ गए ओर स्कूल गए ही नही। उनका सारा ध्यान खेलने में रहता था। इससे स्पष्ट है कि लेखक के बचपन के दिनो में बच्चे पदाई में रुचि नही लेते थे।
प्रश्न. लेखक के बचपन में बच्चो के न पढ़ पाने के लिए अभिभाविक अधिक जिम्मेदार थे। इससे आप कितना सहमत हैं ?
उत्तर– लेखक के बचपन में अधिकाश अभिभाविक अपने बच्चो को स्कूल भेजने का प्रयास नही करते थे। परचूनीये ओर आढ़तिये जेसे करोबारी भी अध्यापक से कहते थे कि मास्टर जी, हमने इसे कौन- सा तहसीलदार लगवाना है थोरा बड़ा हो जाए तो पंडित घनश्ययाम दास से मुनीमी का काम सिखा देंगे। स्कूल में अभी तक यह कुछ भी नही सीख पाया है। इससे स्पष्ट है कि बच्चो की पदाई न हो पाने के लिए अभिभाविक अधिक जिम्मेदार थे।
प्रश्न. गर्मी की छुट्टियों के पहले और आखरी दिनो में लेखक ने क्या अंतर बताया है ?
उत्तर– लेखक ने बताया है कि तब गर्मी की छुट्टिया डेढ़-दो महीने की हुआ करती थी। छुट्टियों के शुरू के दो-तीन सप्ताह तक बच्चे खूब खेल-कूद करते थे। वे सारा समय खेलने में बिताया करते थे। छुट्टियों के आखीरी पन्द्रह-बीस दिनो में अध्यापको द्वारा दिए गए कार्य को पूरा करने का हिसाब लगाते थे ओर कार्य पूरा करने की योजना बनाते हुए उन छुट्टियों को भी खेलकूद में बिता देते थे। यह योजना बनाते हुए बच्चे अपना कार्य पूरा नही करते थे।
प्रश्न . लेखक ने ‘सस्ता सौदा’ किसे कहा है और क्यों ?
उत्तर– लेखक ने ‘सस्ता सौदा’ उस समय के मास्टरों या की जाने वाली पिटाई को कहा है। इसका कारण यह है कि उस समय के अध्यापक गर्मी की छुट्टियों के लिए दो सौ सवाल दिया करते थे। बच्चे इसके बारे में तब सोचते जब उनकी छुट्टिया पन्द्रह-बीस बचती। वे सोचते थे कि एक दिन में दस सवाल करने पर भी बीस दिन में पूरा हो जायगा। दस दिन छुट्टिया ओर बीतने पर वे बीस सवाल प्रतिदिन पूरा करने की बात सोचते, पर काम न करते। अंत में मास्टरों कि पिटाई को सस्ता सौदा समझकर उसे ही स्वीकार कर लेते थे।
प्रश्न. लेखक ने सातवी कक्षा तक की जो पराई की उसमें स्कूल के हैडमास्टर शर्मा जी का योगदान अधिक था। स्पष्ट कीजिए।
अथवा
लेखक की पदाई में हैडमास्टर शर्मा जी का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– लेखक को याद है कि उस समय पूरे साल की किताबे एक या दो रुपये में आ जाती थी फिर भी अभिभाविक पैसो की कमी के कारण नही दिला पाते थे। ऐसी स्थिति में उसकी पराई भी तीसरी - चौथी में छुट जाती, परन्तु स्कूल के हैडमास्टर जो किसी अमीर परिवार के बच्चे को पदाने जाते थे , उसकी पुरानी किताबें प्रतिवर्ष लेखक को दे दिया करते थे। इससे लेखक ने सातवी तक की पदाई कर ली। इस तरह उसकी पराई में हैडमास्टर शर्मा जी का विशेष योगदान था।
प्रश्न. पी.टी. मास्टर प्रीतमचंद को देखकर बच्चे क्यों डरते थे ?
उत्तर– पी. टी. मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में कभी भी हमने मुस्कराते या हँसते न देखा था। उनका ठीगना कद, दुबला पतला परन्तु गठीला शरीर, माता के दागो से भरा चेहरा ओर बाज-सी तेज आँखें, खाकी वर्दी, चमड़े के चौड़े पंजो वाले बूट सभी कुछ ही भयभीत करने वाला हुआ करता। उनका ऐसा व व्यक्तित्व बच्चो के मन में भय पैदा करता ओर वे डरते थे। पी.टी. मास्टर बच्चो को मुर्गा भी बना देते थे।
प्रश्न. लेखक और उसके साथी प्रीतमचंद की दी गई सजा वाला कौन - सा दिन आजीवन नही भूल सके ?
अथवा
फारसी की कक्षा में मास्टर प्रीतमचंद ने किस तरह शारीरिक दण्ड दिया जो बच्चो को आजीवन याद रहा ?
उत्तर– मास्टर प्रीतमचंद बच्चो को चौथी कक्षा में फारसी पडाते थे। बच्चो को फारसी, अगेजी से भी कठीन लगती थी। एक सप्ताह बाद ही प्रीतमचंद ने बच्चो को शब्द रूप याद करके आने और उसे जबानी सुनाने को कहा पर कठीन होने के कारन कोई भी लड़का न सुन सका। यह देख प्रीतमचंद को गुस्सा आया और उन्होने बच्चो को मुर्गा बन दिया। उनके द्वारा लड़को को मुर्गा बनाने का ढंग बड़ा ही कष्टदायी होता था। उनके द्वारा दिया गया यह शारीरिक दण्ड बच्चे आजीवन नही भूल सके।
प्रश्न. हैडमास्टर ने प्रीतम चंद के विरुद क्या कार्यवाही की ?
उत्तर– हैडमास्टर शर्मा जी ने देखा कि प्रीतमचंद छात्रो को मुर्गा बनवाकर शारीरिक दण्ड दे रहे हैं तो वे क्रोधित हो उठे। उन्होंने इसे तुरंत रोकने का आदेश दिया। उन्होने प्रीतमचंद के निलबन का आदेश रियासत की राजधानी नाभा भेज दिया। वहा के शिक्षा विभाग के डायरेक्टर हर्जीलाल के आदेश की मंजूरी मिलना आवश्यक था तब तक प्रीतमचंद स्कूल नही आ सकते थे।
प्रश्न. प्रीतमचंद के निलबन के बाद भी बच्चो के मन में उनका डर किस तरह समाया था ?
उत्तर– विद्यालय के लड़के पी.टी. मास्टर प्रीतमचंद की पिटाई से इतने डरे हुए थे कि यह पता होते हुए भी कि पी.टी. मास्टर प्रीतमचंद को जब तक नाभा से डायरेक्टर ‘बहाल’ नही करेगे तब तक वह स्कूल में कदम नही रख सकते, तब भी जब फारसी की घंटी बजती तो बच्चो की छाती धक् -धक् करती फटने को आती। परन्तु जब तक शर्मा जी स्वयं या मास्टर नोहरिया राम में फ़ारसी पराने न आ जाते, उनके चेहरे मुरझाय रहते। इस तरह उनका डर बच्चो के मन में जमकर बैठ चुका था।
प्रश्न. लेखक ने अपने विद्यालय को हरा-भरा बनाने के लिए किए गए प्रयासो का वरन किया है इससे आपको क्या प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर– लेखक के विद्यालय में अन्दर जाने के रास्ते के दोनो और अलियार के बड़े ढंग से कटे - छते झाड़ उगे थे। उसे उनके नीम जेसे पत्तो की गंध अच्छी लगती थी। इसके अलावा उन दिनो क्यारियों में कई तरह के फूल उगाए जाते थे। इनमें गुलाब, गेंदा और मोतिया की दूध-सी कलियाँ होती थी जिनकी महक बच्चो को आकर्षत करती थी। ये फूलदार पौधे विद्यालय की सुन्दरता में वर्धि करते थे। इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी अपने विद्यालय को स्वच्छ बनाते हुए हरा-भरा बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमें तरह-तरह के पौधे लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए और विद्यालय को हरा- भरा बनाने में अपना योगदान देना चाहिए।
प्रश्न. लेखक और उसके साथियो द्वारा गर्मी की छुट्ट्ययाँ बिताने का ढंग आजकल के बच्चो द्रारा बिताई जाने वाली छुट्ट्यो से किस तरह अलग होता था ?
उत्तर– लेखक और उसके साथी गर्मी की छुट्टिया खेलकूद कर बिताते थे। वे घर से कुछ दूर तालाब पर चले जाते, कपड़े उतार पानी में कूद जाते और कुछ समय बाद, भागते हुए एक रेतीले टीले पर जाकर, रेत के ऊपर लेटने लगते। गीले शरीर को गरम रेत से खूब लथपथ कर उसी तरह भागते, किसी ऊँची जगह से तालाब में छलाग लगा देते। रेत को गंदले पानी से साफ कर फिर टीले की और भाग जाते। याद नही कि ऐसा, पाच-दस बार करते या पन्द्रह - बीस बार करते हुए आनंदित होते। आजकल के बच्चो द्वारा ग्रीष्मावकाश पूरी तरह अलग ढंग से बिताया जाता है। अब तालाब न रहने से वहा नहाने का आनंद नही लिया या सकता। बच्चे घर में रहकर लूडो, चेस, वीडियो गेम, कंप्यूटर पर गेम जेसे इडोर गेम खेलते है। वे टी .वी . पर कार्टून और फिल्मे देखकर अपना समय बिताते है। कुछ बच्चे माता - पिता के साथ ठण्डे स्थानों पर पर्वतीय स्थानों की सेर लिए जाते हैं।
प्रश्न. मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल से क्यों निलबित कर दिया गया ? निलबन के औचीत्य और उस घटना से उभरने वाले जीवन मूल्यों पर विचार कीजिए।
उत्तर– मास्टर प्रीतमचंद सख्त अध्यापक थे। वे छात्रों की जरा-सी गलती देखते ही उनकी पिटाई कि देते थे।वे छात्रो को फ़ारसी पदाते थे। छात्रो को पराते हुए अभी एक सप्ताह भी न बीता था कि प्रीतमचंद ने उनेह शब्द रूप याद करके आने को कहा। अगले दिन जब कोई भी छात्र शब्द रूप न सुना सका तो उन्होने सभी को मुर्गा बनवा दिया और पीठ ऊँची करके खड़े होने के लिए कहां। इसी समय हैडमास्टर साहब वहा आ गए। उन्होने प्रितमचंद को ऐसा करने से तुरंत रोकने के लिए कहा और उनेह निलंबित कर दिया। प्रितामचंद का निलंबन उचित ही था, क्योकि बच्चो को इस तरह फारसी क्या कोई भी विषय नही पढ़या जा सकता है। शारीरिक दण्ड देने से बच्चो को ज्ञान नही दिया जा सकता है। इससे बच्चे दब्बू हो जाते हैं। उनके मन में अध्यापको और शिछा के प्रति भय समाजाता है। इससे पदाई में उनकी रुचि समाप्त हो जाती है।
प्रश्न. ‘सपनो के-से दिन’ पाठ में हैडमास्टर शर्मा जी की, बच्चो को मारने- पीटने वाले अध्यापको के प्रति क्या धारणा थी ? जीवन - मूल्यो के सन्दर्भ में उसके औचित्य पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर– ‘सपनो के-से दिन’ पाठ में व्र्णत हैडमास्टर शर्मा जी बच्चो से प्यार करते थे। प्रेम, अपनत्व, पुरस्कार आदि के माद्यम से बच्चो को अनुशासित रखते हुए उनेह पदाने के पछधर न थे।वे गलती करने वाले छात्र की भी पिटाई करने के पछधर न थे। जो अध्यापक बच्चो को मारने - पीटने या शारीरिक दण्ड देने का तरीका अपनाते थे, उनके प्रति उनकी धारणा अच्छी न थी। ऐसे अध्यापको के स्कूल विरुद वे कठोर कदम उठाते थे। ऐसे अध्यापको को स्कूल में आने से रोकने के लिए वे उनके निलंबन तक की सिफारिश कर देते थे। हैडमास्टर शर्मा जी का ऐसा करना पूरी तरह उचित था, क्योकि बच्चो के मन से शिछा का भय निकालने के लिए मारपीट जेसे तरीके को बच्चो से कोसो दूर रखा जाना चाहिए। मारपीट के भय से अनेक बच्चे स्कूल दोड़ देते हैं तो बहुत-से डरे-सहमे कछा में बैठे रहते हैं औि पढ़याई के नयाम पि टकसी तिह टदन वबतयाते हैं। ऐसे बच्चो के मन में अध्यापको के सम्यान के नयाम पि घृणया भर जाती है।
प्रश्न. ‘सपनो के-से दिन’ पाठ के आधार पर बताइए कि बच्चो खेलकूद में अधिक रुचि लेना अभिभावकों को अप्रिय क्यों लगता था ? पदाई के साथ खेलो का छात्र जीवन में क्या महत्व है और इससे किन जीवन - मूल्यों की प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर– ‘सपनो के-से दिन’ पाठ में जिस समय का वरन हुआ है उस समय अधिकाश अभिभाविक अनपढ़ थे।वे निर्चार होने के कारण शिछा के महत्त्व को नही समझते थे। इतना ही नही वे खेलकूद को समय गवाने से अधिक कुछ नही मानते थे। अपनी इसी सोच के कारण, बच्चे खेलकूद में जब चोटिल हो जाते और कई जगह छीला पाँव लिए आते तो उन पर रहम करने की जगह वे उनकी पिटाई करते। वे शारीरिक विकास और जीवन -मूल्यो के उन्नयन में खेलो की भूमिका को नही समझते थे इसलिए बच्चो का खेलकूद में रुचि लेना उनेह अप्रीय लगता था।
छात्रो के लिए पदाई के साथ - साथ खेलो का भी विशेष महत्व है। ये खेलकूद एक और हमारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक हैं, तो दूसरी और सहयोग की भावना, पारस्परिकता, सामूहिकता, मेल जोल रखने की भावना, हार - जीत को समान समझना, त्याग, प्रेम-सदभाव जेसे जीवन मूल्यो को उभारते हैं तथा उनेह मजबूत बनाते हैं। इन्ही जीवन मूल्यो को अपनाकर व्यक्ति अच्छा इंसान बनता है।
प्रश्न. आज जब शिक्षा के साथ- साथ खेलकूद को भी महत्व दिया जाने लगा है तब भी आपको अनेक अभीभाविक ऐसे मिल जायेंगे जो अपने बच्चो पर खेलने-कूदने की पाबंदी लगाते हैं और उनेह कूदने में समय बर्बाद न करने की नसीहत देते हैं। आप विद्याथी जीवन में खेल को कितना जरूरी मानते हैं ?
उत्तर– कुछ अभिभाविक आज के समय में भी खेलने-कूदने को समय की बबादी मानते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि बच्चे खेलकूद में इतने रम जाते हैं कि पढ़ई करना ही छोड़ देते हैं। खेलने के बाद वे इतना थक जाते हैं किताब हाथ में लेते ही उनेह नीद आने लगती है। इस प्रकार वे पदाई में [पीछे रह जाते हैं। मैं शिछा के साथ- साथर् पदाई को भी महत्वपूर्मण मानती हू। शिछा का उद्श्य केबल मानसिक विकास करना ही नही बल्कि सवागीण विकास करना है। खेलकूद से शारीरिक विकास भी होता है और मानसिक विकास भी होता है। अतः खेलकूद भी परम आवशयक है।
प्रश्न. लेखक को स्कूल जाने के नाम से उदासी क्यों आती थी ? ‘सपनो के से दिन’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। आपको स्कूल जाना कैसा लगता है? और क्यों ?
उत्तर– लेखक को स्कूल जाने के नाम से उदासी इसलिए आती थी, क्योंकि वहा वह ख़ुशी से नही जाते थे। पहली कच्ची श्रेणी से चौथी श्रेणी तक लेखक के साथ केबल पाच-सात लड़को को छोरकर सभी लड़के रोते व् चिल्लाते हुए ही स्कूल जाया करते थे। इसका कारन गृहकार्य समय पर पूरा न होना, पाठ याद न होना और उनके मन में बैठा प्रीतमचंद का कड़क स्वभाव भी था। मुझे स्कूल जाना बहुत अच्छा लगता है क्योकि मेरे वहा कई मित्र व् अच्छे - अच्छे शिछक हैं, जिनके मार्गदर्शन द्वारा मैं अपने जीवन में सफलता लाऊँगा।
प्रश्न . “वर्तमान में विद्यालयो में बढ़ती हुई अनुशासनहीनता को देखते हुए मास्टर प्रीतमचंद जैसे अध्यापको की आवश्यकता है।” इस कथन से सहमति या असहमति के सबंध में अपने तर्कसम्मत विचार लिखिए।
उत्तर– विधाथियो को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में जिन तरीको का उल्ल्लेख हुआ है, वो इस प्रकार है–पीटी प्रीतमचंद नामक शिछक बिल्ला मार- मारकर बच्चो चमड़ी तक उधेड़ देते थे। विद्याथियो को अनुशासन के नाम पर कान पकड़कर पीठ के बल ऊँचा खरा रहना पड़ता था। तीसरी-चौथी कछाओ के बच्चो से थोडा- सा भी अनुशासन भंग हो जाता, तो उनेह भी कठोर सजा मिलती थी ताकि वे छात्रो के जीवन में अनुशासन की नीव दृढ़ बना सकें। उस ज़माने की शिछा पद्दति में अनुशासन के लिए डाट -फटकार की अनुमति तथा अहमियत भी थी। विद्याथियो को डंडे और थप्पर मरना, लम्बे समय तक धूप में मुर्गा बनाकर खड़े रखना आदि प्रकार के दंड से छात्र भयभीत होते थे। उनमें अनुशासन आये न आये लेकिन उनेह शारीरिक तथा मानसिक कष्ट झेलना पड़ता था। लेकिन वर्तमान में स्वीकृत मान्यताय इसके विपरीत हैं। छात्रो को पीटना कानूनी जुर्म है। शिचिको को आज विधाथियो को पीटने का अधिकार नही है इसलिए विद्यार्थी निडर होकर अनुशासनहीनता की और बढ़ रहे हैं, क्योकि आज पहले की भाती विद्यार्थी शिचिको से डरते नही हैं। लेकिन आजकल बच्चो में अनुशासन का विकास करने के लिए तथा उनमें सुधार लाने के लिए मनोवेज्ञानिक तरीके अपनाये गए हैं जिनमें उनेह शांत, तनावमुक्त तथा सौहद्र्पूर्ण वातावरण में शिछा दी जाती है। इस प्रकार की शिछा अनुशासन के साथ बच्चो के मन में रुचि और नैतिक मूल्यो का विकास करती है। विद्केयाथियो के सर्वागगीर्ण विकास के लिये यह तरीका उपयुक्त है। इसीलिए, वर्तमान में विद्यालयो में बढ़ती हुई अनुशासनहीनता को देखते हुए मास्टर प्रीतंमचंद जेसे अध्यापको की आवश्यकता है, इस विधान से मैं असहमत हू।