प्रश्न. परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन-से तर्क दिये?
उत्तर– परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए अनेक तर्क दिये ?
(1) बचपन में हमने अनेक धनुष तोड़े थे तब ऐसा क्रोध हम पर किसी ने नही किया।
(2) हे ऋषिवर! इस धनुष पर ऐसी ममता किसलिय है?
(3) हमारी दृष्टि में सभी धनुष एक समान होते हैं।
(4) इस पुराने धनुष को तोड़ने से कोई लाभ या हानी नही है।
(5) यह धनुष इतना पुराना है कि राम के स्पर्श - मात्र से ही टूट गया इसको तोड़ने में राम का कोई दोष नही है।
प्रश्न . परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाए हुईं उनके आधार पर दोनो के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दो में लिखिए।
उत्तर– राम स्वभाव से नम्र, विनयी और कोमल हैं। वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। उनके हृदय में बड़ो के प्रति सम्मान एवं श्रद्धा है। वे गुरु को सर्मावोपरि मानकर उनके समक्ष झूकना परम कर्तव्य और सच्चा धर्म मानते हैं। इसीलिए वे प्रचण्ड क्रोधी परशुराम के सामने स्वयं को दास बताते हैं। वे एक फलदार वृक्ष के समान हैं। राम मितभाषी हैं। इसके विपरीत लक्ष्मण स्वभाव से उग्र हैं। वे निभीक हैं। उनकी रग-रग से वीरता टपकती है। वे परशुराम के क्रोध एवं फरसे से नही डरते बल्कि डटकर उनका मुकाबला करते हैं। उनकी भाषा व्यग्पूर्ण है। उनेह किसी भी प्रकार का अन्याय सहन नही होता।
प्रश्न . लक्ष्मण और परशुराम के सवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दो में सवाद शैली में लिखीए।
उत्तर– लक्ष्मण– हे देव! सुनिये, हमारी दृष्टि में तो सभी धनुष एक समान हैं। पुराना धनुष तोड़ने से हमें कोई लाभ या हानि नही है। यह धनुष तो छूते ही टूट गया है। श्रीराम का इसमें कोई दोष नही है। हे मुनि! आप बेवजह गुस्सा मत कीजिए।
परशुराम– लक्ष्मण तुम मेरे फरसे को देखो। लगता है तुम मेरे सवभाव को नही जानते। मैं बालक समझकर तुझे मार नही रहा हू। तू मुझे साधारण मुनि मत समझ। मैं अत्यन्त क्रोधी तथा बालब्रह्मचारी है। मैं झत्रियो के कुल का संहारक हू, यह बात सारा संसार जानता है। मैंने अपनी ताकत से राजाओ को मारकर पृथ्वी को ब्राह्मणो को दान कर चुका हू। मैंने इसी फरसे से ही समस्रबाहु की भुजाओ को काट दिया था। अब तुम अपनी मौत को बुलावा मत दो।
लक्ष्मण – ओहो मुनिवर! आप तो माने हुए योद्धा हैं। पर मैं भी कमजोर नही हू| जो आपके इस फरसे और क्रोध से डर जाऊँगा। मैं भी ब्राह्मण समझकर आपसे युद्ध नही कर रहा क्यों कि हमारे कुल में देवता, ब्राह्मण, भक्त और गाय पर वीरता नही दिखायी जाती। हे मुनि! आपके शब्द ही कठोर फरसे के समान हैं आप तो बेकार में ही धनुष-बाण और फरसा धारण करते हो।
परशुराम–हे बालक! तुम मौत के वश में हो। तुम सूर्वंयश पर चन्द्रमा रूपी कलंक हो। तुम बहुत उद्ण्ड, बुद्हीहीन और निडर हो। तुम एक क्षण में काल के मुह में समा जाओगे।
लक्ष्मण–हे परशुराम! डीगें मत हाँको! युद्ध करो।जो वीर होते हैं वे युद्धभूमि में युद्ध करते हैं। अपनी वीरगाथाएँ नही गाते। हाँ, कायर जरूर ऐसे होते हैं जो सामने शत्रु को देखकर अपने मुह मियाँ मिट्टू बनकर अपने पराकर्म की कहानियाँ सुनाते हैं।
प्रश्न . धनुष को तोड़ने वाला कोई तुम्हारा दास होगा – आधार पर राम के स्वभाव पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर– ‘धनुष को तोड़ने वाला कोई तुम्हारा दास होगा’– के आधार पर राम की स्वभावगत विशेषताएँ निमंलिखित हैं– राम अत्यन्त ही विनम्र स्वभाव के व्यक्ति हैं। वे निडर, धेर्यवान तथा मृदुभाषी हैं, वे बड़ो की आज्ञा का पालन करने वाले थे। उनेह लक्ष्मण की भाँति क्रोध नही आता।
प्रश्न . परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए -
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वविदित छत्रियकुल द्रोही॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कोही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीनही॥
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अभर्क दलन परस मोर अवत घोर॥
उत्तर– परशुराम ने सभा में अपने विषय में कहा कि मैं बालब्रह्मचारी हू और अत्यन्त क्रोधी स्वभाव का हू। मैं क्षत्रियों के कुल का संहारक हू। यह बात पूरे विस्व में सभी जानते हैं कि मैंने अनेक बार सम्पूर्ण पृथ्वी को राजाओ से विहीन कर दिया है तथा पृथ्वी ब्रहार्न्नो को दान में दे दी है। मेरा फरसा बहुत भयानक है। इसी से मैंने सहसबाहु को काटकर शरीर से अलग कर दिया था। इस फरसे की भयंकरता को देखकर गभिणी स्त्रियों के बच्चे गर्भ में ही मर जाते हैं।
प्रश्न . ‘गधिसूनु’ किसे कहा गया है?वे मुनि की किस बात पर मन ही-मन मुस्कराया रहे थे ?
उत्तर– ‘गधिसूनु’ मुनि विसव्मित्र को कहा गया है। क्रोधित परशुराम की बातें सुनकर ववश्वात्मत मन-ही-मन मुस्कराते हुए कहते हैं कि मुनि राम तथा लक्ष्मण को साधारण क्षत्रिय बालक समझने की भूल कर रहे हैं, जबकि वे इनसे बिलकुल ही पृथक् हैं।
प्रश्न . लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषतयाएँ बतायी?
उत्तर– लक्ष्मण ने वीर योद्धा के विषय में बताया कि जो सच्चा वीर होते हैं, वे रणभूमि में वीरता दिखाते हैं केवल अपने पराक्रम का गुणगान नही करते।
“सूर समर करनी करहि कहि न जनावहि आपु।”
प्रश्न. “साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है।” इस कथिन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर– साहस और शक्ति एक-दसरे के पूरक हैं। ये मनुष्य के श्रेष्ठ गुण हैं, यदि इनके साथ विनम्रता के गुण का समावेश हो जाये तो ‘सोने पर सुहागा’ का काम करता है। साहस-शक्ति तथा
विनम्रता के मेल से मनुष्य महान् बन जाता है। विनम्रता के अभाव में मनुष्य अहंकारी होकर अपनी शक्ति और साहस का दुरुपयोग करने लगता है। विनम्रता उस पर नैतिकता का अंकुश
लगाती है। मनुष्य को सही राह पर चलना सीखाती है। अतः साहस एवं शक्ति के साथ विनम्रता का होना अत्यन्त आवश्यक है।
प्रश्न. भाव स्पष्ट कीजिए -
(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥ पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उडावन फुकी पहारू॥
उत्तर– लक्ष्मण हँसते हुए मीठी वाणी में परशुराम से बोले–अहो मुनिवर! आप तो माने हुए महायोद्धा निकले। आप मुझे अपना फरसा बार-बार ऐसे दिखा रहे हो जेसे फूक मारकर पहाड़ उड़ा दोगे अर्थात मुझे आसानी से मार दोगे। भाव यह है कि लक्ष्मण परशुराम को कोरी गर्जना करने वाला समझ रहे हैं। व्यंग्यवश उनेह महायोद्धा कह रहे हैं तथा उनेह यह समझाना चाहते हैं कि मैं कोई निबल बालक नही हू जो आपके फरसे से डर जाऊँ ।
(ख) इहा कुम्हार्र्ण कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
उत्तर– लक्ष्मण परशुराम का उपहास उड़ाते हुए कहते हैं–हे मुनीश्वर! माना कि आप वीर योद्धा हैं, किन्तु हम भी छुईमुई के समान निबर्ल नही हैं जो आपकी तर्जनी अँगुली देखकर कुम्हला जायेगे । हम युद्ध में डटकर मुकाबला करेंगे। आपके हाथ में फरसा तथा कंधे पर धनुष-बाण देखकर मुझे लगा कि मेरे सामने महायोद्धा खड़ा है। मेरे सामने युद्ध करने का अच्छा मौका है, यह
जानकर मैंने अभिमानपूर्वक आपसे कुछ शब्द कह दिये थे। यदि मुझे यह पता होता कि आप बहुत बड़े ज्ञानी मुनि हैं तो मैं आपसे कोई बहस नही करता।
(ग) गधिधसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ। अयमय खाड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ॥
उत्तर– परशुराम के अतिशयोक्ति पूर्ण वचनो को सुनकर विश्वामित्र मन-ही-मन में हँसते हुए सोचने लगे कि परशुराम को हरा-ही हरा सूझ रहा है। वे लक्ष्मण को गत्र से बनी खाँड़ के समान समझ रहे हैं जो मुह में डालते ही घुल जाएगी अर्थात वे आसानी से लक्ष्मण को मार देंगे। लेकिन आसानी, नासमझ परशुराम यह नही जानते कि लक्ष्मण ईख से नही बल्कि लोहे से बना हुआ है। उससे युद्ध करना आसान नही है।
प्रश्न. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा-सौन्दर्य पर दस पंक्तिययाँ लिखिए।
अथवा
तुलसी के भाषा सोन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर– भक्त शिरोमणि तुलसीदास का भाषा सोन्दर्य अदितीय है। ‘रामचरितमानस’ तुलसीदास का श्रेसथ्तम महाकाव्य है। वे रससिद्ध कवि हैं। इस पाठ में वीर रस की प्रधानता है। ब्रज एवं अवधी भाषा का प्रयोग है। भाषा पर उनका पूर्ण अधिकार है। दोहा और चौपाई शैली का कुशल प्रयोग है। मुहावरो का भी प्रशंसनीय प्रयोग है। अनुप्रास, उपमा, रूपक, पुनरुक्तिप्रकाश आदि अलंकारो की छटा देखते ही बनती है। छंद में गेयता है। संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का यत-तत प्रयोग भाषा के सोन्दर्य में चार चाँद लगा देता है। कही-कही हास्य रस का पुट भी बड़ा मनोहर बन पड़ा है। पूरा-का-पूरा पाठ व्क्रोकित अलंकार से अटा पड़ा है। पूरा प्रसंग भाषा की दृष्टी से अत्यन्त मनोरम है।
प्रश्न . कावयाश के आधार पर परशुराम के स्वभाव की दो विशेषतयाओ पर सोदाहरण टिप्पणी करिए।
उत्तर– काव्यांश के आधार पर परशुराम के स्वभाव की विशेषताएँ निमंलिखित है -
(1) वे क्षत्रियों के प्रबल विरोधी थे।
(2) वे बाल ब्रह्मचारी एवं अत्यन्त क्रोधी स्वभाव वाले थे।
प्रश्न. इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सोन्दर्य है। उदयाहरण के साथ सपष्ट कीजिए।
उत्तर– ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम’ संवाद का पूरा प्रसंग व्यंग्य के अनूठे सौन्दर्य से आच्छादित है।जो वाक्कुशल लक्ष्मण के माध्म से प्रकट हुआ है। लक्ष्मण अपने वाक्चातुर्थ द्वारा बड़बोले परशुराम की खोखली वीरता की धजियाँ उड़ाते दिखाई देते हैं। वे बात बात पर परशुराम पर व्यंग्य-बाण चलाते नजर आते है -
(1) लक्ष्मण ने शिवधनुष की तुलना साधारण धनुष से करके वयंग्य किया है जो परशुराम के क्रोध बढ़ाने का कारण है।
(2) लक्ष्मण परशुराम की वीरता व पराकर्म पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि वे फूक से पहाड़ उड़ा देना चाहते हैं।
(3) परशुराम के द्वारा अपनी प्रशंसा करने पर भी लक्ष्मण वयंग्य करते हैं–वीर युद्ध करता है, अपने पराक्म की गाथाएँ नही सुनाता। पराकर्म की कहानियाँ सुनाने का कार्य तो ‘कायर’ करते हैं।
(4) लक्ष्मण कहते हैं कि लगता है आपका सामना कभी महायोद्धा से नही हुआ, आप शायद घर के लोगो के बीच ही वीरता दिखाते रहे हैं।
(5) लक्ष्मण को मारकर गुरु ऋण से उऋण होने की बात कहने पर लक्ष्मण व्यंग्य का करारा प्रहार करते हुए कहते हैं कि माता-पिता के ऋण से तो आप उऋण हो ही चुके हैं। अब गुरु ऋण बचा है, उस पर भी व्याज बढ़ गया होगा। आप व्यवहारिया को बुला लो तो मैं तुरन्त थेली खोलकर आपका हिसाब-किताब बराबर कर दुगा। इस प्रकार यह पूरा प्रसंग व्यंग्य से भरा पड़ा है। परशुराम के शब्द ‘आग’ का तथा लक्ष्मण के शब्द ‘घी’ का काम करते हैं।
प्रश्न. निमंलिखित पंक्तियो में प्रयुक्लंत अलंकार पहचान कर लिखिए -
(क) बालकु बोलि बधौ नहि तोही।
उत्तर– ‘ब’ और ‘ह’ वर्ण की आवृति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
उत्तर– उपमा–कोटी कुलिस सम
अनुप्रास–कोटी कुलिस
(ग) तुम्ह तौ कालु हाक जनु लावा।
बार बार मोहि लागि बोलावा।।
उत्तर– उत्पेक्षया – तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
पुनरुक्तिप्रकाश – बार-बार
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।
उत्तर– उपमा–लखन उतर आहुति सरिस,जल सम बचन
रूपक– भृगुबर कोपु कृसानु
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