NCERT Solutions for Class 10 Hindi - A: Kshitij Chapter - 3 Jayashankar Prasad

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    प्रश्न. कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है?

    अथवा

    वे क्या कारण हैं जिनकी वजह से कवि आत्मकथा नही लिखना चाहता ?

    उत्तर– आत्मकथा सत्य एवं ईमानदारी पर आधारित होती है। कवि को लगता है कि उसने सच लिखना शुरू कर दिया तो स्वयं उनके मित्र ही अपराधी एवं दोषी सिद्ध हो सकते हैं। कवि अपने अभावग्रस्त जीवन का उपहास नही उडवाना  चाहता। वह अपनी भूलो तथा सरल स्वभाव के कारण मित्रो द्वारा दिए गए धोखो को व्यक्त नही करना चाहता तथा वह अपनी पत्नी या प्रेयसी के साथ बिताए गए सुखद-पलो को भी  सार्वजनिक नही करना चाहता। इसीलिए कवि आत्मकथा लिखने से बचना चाहता है।

    प्रश्न. आत्मकथा सुनाने के सन्दर्भ में ‘अभी समय भी नही’ कवि ऐसा क्यों कहता है?

    उत्तर– कवि ऐसा इसलिए कहता, क्योंकि उसे लगता है कि उसके जीवन में ऐसी उपलब्धियाँ नही हैं, जिनका वरण वह अपनी आत्मकथा में कर सके। उसे लगता है कि आत्मकथा लिखने के लिए अभी समय भी अनुकूल नही है। अभी उसका चित्त शान्त है। सारी व्यथाय मन में सोई हैं।वह आत्मकथा लिखकर अपनी व्यथाओ को जगाकर स्वयं को व्यथित एवं बेचैन नही करना चाहता। 

    प्रश्न. स्मर्ति को ‘पाशेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?

    अथवा

    ‘पाषय’ का क्या अर्थ है? स्मर्तियाँ कवि के लिए किस प्रकार पाषय बनी हैं ?

     उत्तर– ‘पाषय’ का अर्थ संबल या सहारा है। कवि के पास अपनी पत्नी या प्रेयसी के साथ बिताए गए मधुर-पलो की यादें संचित थी। उन मधुर यादो के साये में वह अपने जीवन के दु:खो को भूल गया था।वही यादें कवि के जीवन का सहारा बन गई हैं।

    प्रश्न . भाव स्पष्ट कीजिए - 

    (क) मिला कहा वह सुख जिसका मैं स्प्न देखकर जाग गया। आलिगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

    (ख) जिसके अरुण कपोलो की मतवाली सुन्दर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

    उत्तर– (क) कवि कहना चाहता है–प्रेम से भरे मधुर-मिलन के क्ण उसके स्वप्न में ही रहे, साकार न हो सके। उसकी पत्नी या प्रेयसी उनके आलिगन में आने ही वाली थी कि अचानक  वह मसकरा कर दूर चली गयी।वह उसे गले से लगाकर आत्मसुख प्राप्त न कर सका। उनका दाम्पत्य जीवन अधूरा रह गया।

    (ख) कवि की पत्नी या प्रेयसी का रूप-सौन्य्थ मनमोहक था। विह अत्यन्त सुन्दर थी। उसके कपोल उषाकालीन ललिमा के समान कोमल एवं लाल थे। उनेह देखकर ऐसा लगता थािा, मानो प्रातःकालीन बेला भी अपने सुहाग की लालिमा एवं मधुरिमा उसी से लेती हो। 

    प्रश्न . “उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ मधुर चादनी रातो की”– कथन के माद्यम से कवि क्या कहना चाहता है?

    उत्तर– कवि इस कथन के माद्यम से यह कहना चाहता है कि अपनी पत्नी या प्रेयसी के साथ बिताए गए मधुर-मिलन के पल व्यक्तिगत होते हैं। उनेह किसी के समझ व्यक्त नही किया जा सकता। दु:खो के जाल के बीच में सुखो के कुछ पल मेरे जीवन के आधार हैं। मैं आत्मकथा लिखकर अपने सुखद क्णो को सावर्जनिक नही कर सकता।

    प्रश्न . ‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदयाहरण सहित लिखिए।

    अथवा

    ‘आत्मकथ्य’ कविता के कलापक्ष पर प्रकाश डयाचलए।

    अथवा

    ‘आत्मकथ्य’ कविता की  भाषा - शैली पर प्रकाश डालिए।

     उत्तर– प्रसाद जी छायावादी कवि हैं। उनके काव्य में छायावादी काव्यशिल्प का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। उनकी काव्य-भाषा में निमंलिखित विशेषताएँ है- 

    संस्कृत्निसठ तत्सम शब्लीदावली की अधिकता है तथा शब्दों का सुन्दर समायोजन है। उदाहरण के लिए - 

    इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन - इतिहास।

    तथा

    उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पाथिक की पंथा की।

    भाषा-काव्य को अलंकत बना दिया है। उन्होने अपनी कविता में अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश तथा मानवीकरण अलंकार का अधिक प्रयोग किया है- 

    (i) मधुप गुनगुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी।

    (ii) आलिगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

    (iii) अनरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

    (3) तत्वो का अच्छा ज्ञानं था। उनकी कविता में नाद, लय, छंद एवं तुक का सटीक प्रयोग दिखाई देता है -

    यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उढ़ाऊँ मैं।
    भूलें अपनी या प्रवचना औरो की दिखलाऊँ मैं।

    (4) सकेतिकता एवं प्रतीकात्मकता –प्रसाद के काव्य में जगह - जगह प्रतीकात्मकता के दर्शन होते हैं -

    तुम सुनकर सुख पाओगे देखोगे यह गागर रीती।

    असफल जीवन का प्रतीक है–रीती गागर। कवि ने रीती गागर के माद्यम से अपने जीवन की रिक्तता को दशाया है। ‘आत्मकथ्य’ में कवि ने अनेक प्रतीको का प्रयोग किया है–मधुप, मुरझाकर गिरी पतियाँ, अनन्त नीलिमा, उज्ज्वल गाथा आदि।

    (5) चमत्कार पूर्ण भाषा-शैली –कवि ने ‘आत्मकथ्य’ में प्रश् न-शैली, मानवीकरण भाषा-शैली तथा आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग करके भाषा-काव्य में चमत्कार भर दिया है।

    (i) सिवन को उधेड़कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?

    (ii) अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।

    (iii) क्या यह अच्छा नही कि औरो की सुनता मैं मौन रहू।

    (6) प्राक्रतिक उपमानो का प्रयोग–प्रसाद जी ने अपनी कविता में प्राकर्तिक उपमानो का भरपूर प्रयोग किया है। जिससे उनकी कविता यथार्थ के धरातल पर खरी उतरती है- 

    (i) इस गंम्भीर अनन्त-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास।

    (ii) उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ मधुर चादनी रातो की।

    (iii) अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

    प्रश्न . कवि ने जो सुख का स्प्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?

    उत्तर– कवि ने सुख के स्वप्न को निराशाजन्य मधुर स्मृति के रूप में अभिव्यक्त किया है। उन्होने स्वप्न में सोन्दर्य की प्रतिमूति बनी अपनी प्रेयसी को देखा था जो उनके आलिगन में आने ही वाली थी कि अचानक किसी कारणवंश मुस्कराकर उनकी पहुँच से दुर चली गई। इससे कवि का सपना टूट गया तथा उनेह अत्यन्त निराशा का अनुभव हुआ। उसकी मधुर स्मृतियाँ ही उनके जीवन का आधार बनी।

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