NCERT Solutions for Class 10 Hindi - B: Sparsh Chapter - 3 Maithali Sharan Gupt

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    (क) निमंलिखित प्रश्नो के उत्तर दीजिए -

    प्रश्न. कवि ने कैसी मत्यु को समत्यु कहा है ? 

    उत्तर – कवि के अनुसार परोपकार करते हुए, सच्चाई के मार्ग पर चलते हुए और निडर भाव से जो मत्यु प्राप्त हो जाए वह सुमत्यु होती है। प्रत्येक मनुष्य समयानुसार अवशय मत्यु को प्राप्त होता है क्यों कि जीवन नश्वर है इसलिए मत्यु से डरना नही चाहिए बल्कि जीवन मेें ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे उसे बाद मेें भी याद रखा जाए। उसकी मत्यु व्यथ न जाए। जो मनुष्य किसी महान कार्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन समपित कर देते हैं, उनकी मत्यु सुमत्यु कहलाती है।

    प्रश्न. उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है ?

    उत्तर– उदार व्यक्ति की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह इस संसार के सभी प्राणियों को अपने समान ही समझता है।वह सवर्दा परोपकार के कायो मेें लगा रहता है। उसके हृदय मेें हमेेशा दूसरो के प्रति सहानुभूति और करुणा का भाव भरा होता है। उदार व्यक्ति दूसरो की सहायता के लिए अपने तन-मन -धन अथार्त अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तत्पर रहता है।
    वह जाति, देश, रंग-रूप आदि का भेद किए बिना सभी के प्रति अपनत्व का भाव भरता है। सबसे समान भाव से प्रेम, भाईचारा, त्याग और उदारता ही उसकी पहचान है।

    प्रश्न. कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियो का उदाहरण देकर मनुष्यता के लिए क्या संदेश दिया है ?

    उत्तर– कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियो का उदाहरण देकर भारत की उदारतामयी गोरवशाली परंपरा मेें अपना अमूल्य योगदान देने की प्रेरणा दी है। राजा रंतिदेव ने भूख से व्याकुल होने पर भी भोजन का थाल दान कर दिया। अपने प्राणो की रक्षा के विषय मेें सोचे बिना कर्ण ने अपने कवच-कुडल दान कर दिए। दधीचि ऋषि ने अपनी हड्डिया दान करने के लिए प्राण त्याग दिए, क्युकि दूसरो के काम आना ही मनुष्य मात्र का धर्म है इसलिए इस नश्वर शरीर का मोह त्यागकर मनुष्य को समाज और देशहित के लिये सर्वदा परोपकार मेें संलग्न रहना चाहिए।

    प्रश्न. कवि ने किन पंक्तियो में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व-रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए ?

    उत्तर– रहो न भूल के कभी म्तदाछ तुच्छ वित्त मेें, सनाथ जान आपको करो न गर्व चित मेें। अनाथ कौन है यहाँ ? त्रिलोकनाथ साथ हैं, दयाल दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।

    प्रश्न. ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ से आप क्या समझते हैं? स्पस्ट कीजिए।

    उत्तर– ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ इस पंक्ति के द्वारा कवि ने मनुष्य को मानवता का बहुत बड़ा संदेश दिया है। मनुषय में यदि बंधुत्व का भाव नही है तो वह मानव कहलाने का अथिकारी नही हो सकता है। मनुष्य को सदा विवेकशील व्यवहार करना चाहिए। उसे कभी भी नही भूलना चाहिए कि वह एक सामाजिक प्राणी है। उसे संसार मेें सदा एक-दूसरे के काम आना चाहिए। यदि बंधु ही बंधु की पीड़ा दूर नही करेगा तो इससे बुरा कुछ अन्य नही हो सकता। प्रत्येक मनुष्य को एक- दूसरे के काम आना चाहिए क्योंकि वह मनुष्य मात्र का बंधु है और उसमेें बधुत्व का बहुत बड़ा गुण है।

    प्रश्न . कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा दी है ?

    उत्तर– कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा इसलिए दी है ताकि सब एकत्व और मेत्री भाव से आपस मेें मिलकर रहें क्योंकि एक होने से सभी कार्य सफल होते हैं ऊँच-नीच,वर्ग-भेद नही रहता। मानव जीवन की सफलता तभी है जब सब एक साथ विकास की ओर अग्रसर हो तथा सब एक-दूसरे के सहयोग के लिए अपना योगदान दे सकें। सामूहिक सहयोग और परस्पर विकास करते हुए ही राष्ट का विकास हो सकता है क्योंकि पूरी मानवता एक ही है।

    प्रश्न. व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए ? इस कविता के आधार पर लिखिए।

    उत्तर– प्रत्येक व्यक्ति को परोपकार करते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए। यही इस कविता का मूल कथ्य है। कवि कहना चाहता है कि व्यक्ति को ऐसा जीवन व्यतीत करना चाहिए जो दूसरो के काम आए। मनुष्य अपने स्वाथ का त्याग करके परहित के लिए जीना चाहिए। जो मनुष्य सेवा, त्याग और बलिदान का जीवन जीता है और किसी महान कार्य की पूति के लिए अपना जीवन समपित कर देता है उसका जीवन तो सफल होता ही है लोग उसकी कीर्त का गान करते हैं तथा उसकी मत्यु भी सुमत्यु बन जाती है।

    प्रश्न. ‘मनुष्यता’ कविता के माद्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?

    उत्तर– ‘मनुष्यता’ कविता के माद्यम से कवि परोपकार, मानवता, प्रेम, एकता, दया, करुणा, सहानुभूति, सदभावना और उदारता का संदेश देना चाहता है। कवि ने संदेश दिया है कि मनुष्य को सभी प्रकार से आपसी भेदभाव त्यागकर सहयोगात्मक भाव से उन्नति पथ पर चलते रहना चाहिए। कवि ने लिखा है ‘तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे।’ इस कविता मेें कवि का स्पष्ट संदेश है कि मनुषय को कभी घमंडी नही होना चाहिए। एकत्व और समत्व के भाव के साथ परस्पर विकास के अवलंब बनते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए।

     (ख) निमंलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए - 

    प्रश्न. सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही; वशीकृता सदेव है बनी हुई स्वयं मही। विरुद्धिवाद बुद्ध का दया- प्रवाह में बहा, विनीत लोकवर्ग क्या सामने झुका रहा ?

    उत्तर– उपयुक्त पक्तियों मेें कवि ‘श्री मेैथिलीशरण गुप्त’ ने एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति की भावना को बनाए रखने के लिए प्रेरित किया है। कवि का मानना है कि इससे बढ़कर कोई पूजी नही है क्योंकि यही गुण मनुष्य को महान, उदार और विनम्र बनाता है। प्रेम, सहानुभूति, करुणा की भावनाओं से मनुष्य जग को जीत सकता है। महात्मा बुद्ध के विचारो का भी विरोध हुआ था परन्तु जब बुद्ध ने अपनी करुणा, प्रेम व दिया का प्रवाह किया तो उनके सामने सब नतमस्तक हो गए। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि दया, करुणा और सहानुभूति ही मानवता की सच्ची सेवा है और सभी ईश्वर के प्रतिरूप हैं।

    प्रश्न. रहो न भूल के कभी मदाध तुच्छ वित में, सनाथ जान आपको करो न गर्व चित में। अनाथ कौन है यहा? त्रिलोकनाथ साथ हैं, दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।

    उत्तर– उपयुक्त पंक्तियों मेें कवि ने कहा है कि समद्धशाली और संप्रभू होने पर भी कभी अहंकार नही करना चाहिए। यहाँ कोई भी अनाथ नही है क्योंकि ईश्वर ही परमपिता हैं और वे सबके साथ हैं। कवि कहता है कि सच्चा मनुष्य वही है जो सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए मरता और जीता है। वह आवश्यकता पड़ने पर दूसरो के लिए अपना शरीर भी बलिदान कर देता है। भगवान सारी सर्ष्टि के स्वामी हैं, संरक्षक हैं, उनकी शक्ति असीम है।वे अपने अपार साधनों से सबकी रक्षा और पालन करने मेें समर्थ हैं इसलिए मनुषय को एक परमपिता पर विश्वास रख हमेेशा परोपकार मेें संलग्न रहना चाहिए। सांसारिक धन  - सम्पति पर विश्वास नही करना चाहिए।

    प्रश्न. चलो अभीष्ट मार्ग में सहष खेलते हुए, विपत्ति, विघ्न जो पड़ें उनेह ढकेलते हुए। घटे न हेलमेल हा, बढ़े न भिनत कभी, अतर्क एक पथ के सतर्क पथ हो सभी।

    उत्तर– कवि ‘श्री मेैथिलीशरण गुप्त’ द्रारा रचित उपयुक्त  पंक्तियों का भाव यह है कि मानव को अपने इच्छित मार्ग पर प्रसन्नतापूर्वक हँसते-खेलते चलते रहना चाहिए और रास्ते मेें जो कठीनाई या बाधा पड़े, उनेह ढकेलते हुए आगे बढ़ते जाना चाहिए परन्तु इस विकास के क्रम मेें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारा आपसी सामजस्य न घटे और हमारे बीच भेदभाव न बढ़े। हम तर्कराहित होकर एक मार्ग पर सावधानीपूर्वक चलें। एक-दूसरे की भलाई करते हुए एक-दूसरे को सहयोग करते हुए आगे बढ़ें।

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