NCERT Solutions for Class 10 Hindi - B: Sparsh Chapter - 4 Sumitranandan Pant
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प्रश्न. पावस ऋतु में प्रक्रति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– पावस ऋतु मेें प्रकृति मेें अनेक मनभावन परिवर्तन आते हैं। पहाड़, तालाब , झरने आदि भी मानवीय भावनाओ के सम्मान अपने व्यवहार को करते हुए दिखाई पड़ते हैं और भावनाओ से ओत - प्रोत दिखाई देते हैं। पर्वत ताल के दर्पण समान स्वच्छ जल मेें अपने विशाल आकार को देखकर चकित हैं। पर्वतों से बहते हुए झरने मोतियों की लडियो सदृश प्रतीत होते हैं। अचानक बादलो की ओट मेें छीपे हुए पर्वत मानो पंख लगाकर कही उड़ गए हो तथा तालाबो मेें से उठता भाप गहरे धुएँ-सा प्रतीत होता है। इस प्रकार पावस ऋतु मेें प्रकृति नये-नये रूप मेें प्रकट होती है।
प्रश्न. ‘मेखलाकार’ शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहा क्यों किया है?
उत्तर– ‘मेेखलाकार’ शब्द का अर्थ है – करधनी के आकार की पहाड़ की ढाल। यह एक आभूषण है और यह कदि भाग मेें पहनी जाती है। कवि ने इस शब्द का प्रयोग पर्वतों की श्र्न्नख्ला के लिए किया है जो दूर-दूर तक फैली हैं तथा करधनी की भाति ही धरती पर सुशोभित हैं। कवि ने इस प्रयोग से पर्वत की विशालता और प्रकति का सौदय परिलक्षित किया है।
प्रश्न . ‘सहस्र दृग-सुमन’ से क्या तात्पर्य है ? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा ?
उत्तर– ‘सहस्र दृग - सुमन’ से कवि का तात्पर्य पावस ऋतु मेें पर्वतों पर खिले हुए हजारो पुष्पो से है। कवि इन पुष्पो को पर्वतों की आँखो के समान कह रहे हैं। पावस ऋतु मेें पर्वतों पर हजारो रंग-विरंगे फूल खिले हुए हैं। कवि को ये हजारो फूल पहाड़ की आँखो के समान लगते हैं। कवि ने इस पद का प्रयोग सजीव चित्रण करने के लिए किया है। कवि को लगता है मानो पर्वत अपने सु दर पुष्प रूपी नेत्रो से चकित होकर अपने विशाल आकार को निहार रहा है इसलिए कवि ने सुमनो को पहाड़ के नेत्र कहा है।
प्रश्न . कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों ?
उत्तर – कवि ने तालाब की समानता दर्पण के साथ दिखाई है। तालाब के जल मेें स्वछता है और पारदशिता है तथा दर्पण मेें भी स्वछता और पारदशिता होती है। कवि कल्पना करता है कि महाकाय पर्वत अपने पुष्प रूपी नेत्रो से अपने महाकार को चकित भाव से तालाब रूपी दर्पण मेें देख रहा है। इस प्रकार दर्पण तथा तालाब दोनों ने अपना प्रतिबिब देखने के गुण होने के कारण कवि ने तालाब से दर्पण की समानता दिखाई है। यहाँ मानवीयकरण अलंकार को दिखाना भी कवि का उदेशय है।
प्रश्न. पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वरच आकाश की ओर क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिधित करते हैं ?
उत्तर– पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वरच आकाश की ओर अपनी महत्व्कंचाओ को प्रकट करने के लिए देख रहे हैं। ये वृष इस बात को प्रतिबिबित करते हैं कि मानो ये बादलो की घनघोर वषा को देखकर गंभीर और सभी चितन मेें लीन हो गए हो। आकाश की ओर एकटक देखते हुए अपनी कामनाओ को पूर्ण करने के लिए अपेक्षित हो।वे मानव की महत्काछा को प्रतिविवित करते हैं।
प्रश्न. शाल के वर्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए ?
उत्तर– पर्वत पर बादल चार्दो ओर फैलने लगे तथा मुसलाधार वषा होने लगी। घनघोर वर्षा के कारण चारो तरफ धुआँ-सा उठता प्रतीत हो रहा था। उस धुंध में शाल के वर्ष अदृश्य हो गए थे। इसे देखकर कवि कल्पना करता है कि मानो शाल के वर्च भयभीत होकर धरती मेें धस गए हैं।
प्रश्न. झरने किसके गोरव का गान कर रहे हैं ? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है ?
उत्तर– ऊँचे पर्वतों से झर-झर के स्वर मेें बहते हुए झरने पर्वत की विशालता और महानता का गुणगान कर रहे हैं। यह कवि की कल्पना है कि उसे झरनो की ध्वनि से मधुर स्वर सुनाई पड़ रहा है। कवि के द्वारा बहते हुए झरने की तुलना मोती की लरियो से की गई है।
(ख) निमंलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -
प्रश्न. है टूट पड़ा भू पर अंबर!
उत्तर– उपयुक्त पंक्ति का भाव यह है कि पर्वतीय प्रदेश मेें कभी-कभी अकसमात इतनी अधिक वर्षा होने लगती है कि मानो धरती पर आकाश टूट पड़ा हो। आकाश मेें चारो तरफ घनघोरबादल छा जाते हैं जिससे वातावरण धुधमय हो जाता है। केबल झरनो और वर्षा की झर-झर ध्वनि ही सुनाई देती है, तब ऐसा प्रतीत होता है कि भू पर अबर टूट पड़ा हो तथा चारो ओर आनन्दमय तथा सुखद वातावरण हो जाता है। शीतल मंद हवा भी मन को मुग्ध कर देती है।
प्रश्न. यो जलद-यान में विचर-विचर
था इन्द्र खेलता इंद्रजयाल।
उत्तर– उपयुक्त पंक्तियों का भाव यह है कि पर्वतीय प्रदेश मेें बादलो के स्वरूप मेें अचानक इतने बदलाव आ रहे हैं कि मानो बादल रूपी यान पर आरूढ़ हो इन्द्र अपना करतब दिखा रहा हो। बादल कभी पर्वतों को ढक लेता है, वह कभी मुसलाधार बरस जाता है तो छँटकर इधर - उधर बिखर जाता है। कभी सूरज के प्रकट होने से आकाश मेें बड़ा-सा इन्द्रधनुष दिखाई देता है। ये सभी क्रियाय इन्द्र की माया के समान प्रतीत हो रही हैं अर्थात प्रकति मेें पल-पल परिवर्तन आ रहे हैं।
प्रश्न. गिरिवर के उर से उठ-उठकर
उच्चाकंचाओ से तरुवर
हैं झाक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
उत्तर– उपयुक्त पंक्तियों मेें कवि सुमित्रानंदन पंत ने पर्वतों पर स्थित ऊँचे वर्चों की तुलना मानव के हृदय से निकलने वाली ऊँची महत्कंचाओ से की है। कवि कल्पना करता है कि पर्वतों पर खड़े ऊँचे-ऊँचे पेड़ पर्वतों के हृदय से निकलने वाली बड़ी - बड़ी म्हात्काचाओ हैं। ये सभी अपेक्षित भाि से अपलक, अटल पर चितातुर हो आकाश की ओर निहार रहे हैं। इनके मन मेें आशंकाएँ हैं कि भविष्य क्या होगा।