प्रश्न. बच्चे की दंत्तुरित्त मुस्कान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
अथवा
‘यह दन्तुरित मुस्कान’ कविता में बच्चे की दंत्तुरित मुस्कान' कवि के हर्दय को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर– बच्चे की दंतुरित मुस्कान का कवि के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बच्चे की मोहक मुस्कान कवि के हृदय को प्रसन्नता से भर देती है। उसे लगता है कि जैसे कमल तालाब को छोड़कर उसकी झोपड़ी में आकर खिल गया हो। कवि का हृदय बच्चे की मुस्कान को देखकर आहलादित हो जाता है।
प्रश्न . बच्चे की मुस्कान और एक बड़े व्यक्ति की मुस्कान में क्या अन्तर है?
अथवा
बच्चे की मुस्कान तथा एक बड़े व्यक्ति की मुस्ककान का तुलनात्मक वरण कीजिए।
उत्तर– बच्चे की मुस्कान निश्छल, सरल एवं मासूमियत से भरी व आकार्सक होती है। उसमें बनावटीपन नही होता। वह स्वाथरहित, सहज एवं स्वाभाविक होती है। इसके विपरीत, एक बड़े व्यक्ति की मुस्कान कुटील, स्वाथ्युक्त तथा बनावटी हो सकती है। बड़ो की मुस्कान में स्वाभाविकता नही होती।
प्रश्न . कवि ने बच्चे की मुस्कान के सौन्दय को किन-किन बिम्बो के माद्यम से व्यक्त किया है?
अथवा
‘यह दन्तुरित मुस्कान’ में प्रयुक्त बिम्ब-योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर– कवि ने बच्चे की दंतुरित मुस्कान के माद्यम से चाझुष और मानस बिंम्वो की सुन्दर छटा प्रस्तुत की है। नये उगते दाँतो से युक्त शिशु की मुस्कान मतक में भी जान डालने की छमता रखती है। बच्चे के धूल- धूसरित शरीर को देखकर ऐसा लगता है, मानो कमल के फूल तालाब छोड़कर उसकी झोपड़ी में खिल रहे हो। वह इतना मासूम और कोमल है, जिसका स्पश पाकर कठोर चट्टानों भी जलधारा में परिवर्तित हो गयी हैं। कठोर बाँस तथा काँटेयुक्त बबूल भी उसे छुकर शेफालिका के फूलो के समान कोमल हो गये हैं।
प्रश्न. भाव स्पष्ट कीजिए -
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात।
(ख) छु गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बास था कि बबूल?
उत्तर– (क) लम्बे समय के प्रवास के उपरान्त घर वापस लौटने पर कवि ने अपनी पत्नी की गोद में नन्हे बच्चे को मुस्कारते हुए देखा, जिसके मुह में नये दाँत उगे हुए थे। कवि को धुल से सने हुए शरीर वाले नन्हे शिशु को मुस्कराता हुआ देखकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई। वह शिशु उनेह बहुत सुन्दर व मन को मोहित करने वाला लगा। उसे देखकर उनेह ऐसा लगा मानो तालाब को छोड़कर कमल उसकी झोपड़ी में खिल रहे हो।वह उसके प्रति आकर्षत हो गया था।
(ख) उस नन्हे शिशु का रूप इतना मनोहर और आकषक था कि उसे देखकर सबका हृदय प्रसन्नता से भर जाता था। वह इतना मासूम और कोमल था उसे छुकर कठोर बाँस हो या काँटेदार बबूल, सभी अपना स्वभाव बदल कर शेफालिका के फूल गिराने लगते थे। आशय यह है कि उस नन्हे शिशु में कठोर-से-कठोर हृदय वाले व्यक्ति का हृदय-परिवर्तन करने की छमता थी।
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