NCERT Solutions for Class 10 Hindi - B: Sparsh Chapter - 7 Ravindra Nath Tagore

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    (क) निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर दीजिए -

    प्रश्न. कवि किससे और क्या प्राथना कर रहा है ?

    उत्तर– प्रस्तुत कविता मेें कवि करूणामय ईश्वर से दुखो को दूर करने के लिए नही अपितु दुखो को सवय सहने, मुश्किलो का खुद से सामना करने और विपत्ति के समय मेें भी प्रभु पर अटल विश्वास रखने के लिए आत्मशक्ति की प्राथना कर रहा है।वह प्रभु से यह भी प्राथना करता है कि विपदाओ मेें भी वह डगमगाय नही, उसे अपने बल-पौरुष पर पूरा विश्वास बना रहे। वह यह भी चाहता है कि सुख' के दिनो मेें भी ईश्वर को भूल न सके।

    प्रश्न . “विपदयाओ से मुझे बचाओ, यह मेरी प्राथना नही”–कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?

    उत्तर– “विपदाओ से मुझे बचाओ, यह मेेरी प्राथना नही ”– कवि इस पंक्ति के द्वारा यह कहना चाहता है कि हे ईश्वर! मेैं यह प्राथना नही करता कि तुम मुझे विपतियो से बचाओ या मुझ पर कोई विपति न आए। मेेरी प्राथना यह है कि मुझे इतनी शक्ति दो कि में उन विपदाओं का सामना कर सकू । याचक यह कहता है कि वह पलायनवादी नही है, वह मुसीबतों से घबरता नही है। वह तो केवल प्रभु की इतनी कृपा चाहता है कि जिससे वह सभी विपतियो का डटकर सामना कर सके।

    प्रश्न. कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्राथना करता है ?

    उत्तर– कवि सहायक के न मिलने पर यह प्राथना करता है कि उसका बल-पौरुष न डगमगाय। वह सभी प्रकार के कष्टो को साहस और धैय के साथ सहन कर सके। उसके पास इतनी आत्मशक्ति हो कि वह विपतियो मेें प्रभु पर विश्वास बनाए रखे। वह सभी प्रकार के कष्टो को सह सके।

    प्रश्न. अंत में कवि क्या अनुनय करतया है ?

    उत्तर– अंत मेें कवि यह अनुनय करता है कि दुःख के दिनो मेें सब उसे धोखा दें, सब ओर से उसे हानि हो या सब उसका साथ छोड़ दें, पर ईश्वर के प्रवत उसकरा विश्वरास कभी कमे नही हो। उसकरा अपनरा आत्मबल कभी हहल न सके। सराथ ही, िह यह भी प्रराथ्षनरा करतरा है हक सि के हदनो मेें ईश्वर को एक पल के ललए भी भूल न सके।

    प्रश्न. ‘आत्मत्याण’ शीषक की साथकता कविता के संदभ् में स्पस्ट कीजिए।

    उत्तर– ‘आत्मत्राण’ कविता का शीषक कविता के संदभ मेें पूरी तरह से सार्थक है। आत्मत्राण शब्द का अथ है–आत्मा का त्राण अर्थात अपनी रक्षा या मुक्ति। रक्षा के सभी उपाय आत्मशक्ति का प्रयोग होता है। प्रस्तुत गीत मेें भी कवि प्रभु से दुःख  देने की नही बल्कि दुखो पर विजय के लिए आत्मबल की याचना करता है। कवि याचना करता है कि हे प्रभु! मुझे इतनी छमता दो कि संसार की सभी विपदाओ पर मेैं स्यं से विजय प्राप्त कर सकू। पराजय के भाव मेें भी आप पर संशय न करू और विजयी होकर भी विनम्र भाव से आपको याद रखू।

    प्रश्न. अपनी इच्याओ की पूर्ति के लिए आप प्राथना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं? लिखिए।

    उत्तर– अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम प्राथना के अतिरिक्त कठीन मेेहनत, सतत् प्रयास, आत्मबल का प्रयोग और अपने उद्श्य के प्रति सम्र्पर्ण के भाव से लगे रहते हैं। सफलता के लिय ईश्वर की कृपा के साथ-साथ सवय का प्रवास भी आवश्यक है।

    प्रश्न. क्या कवि की यह प्राथना आपको अन्य प्राथना गीतो से अलग लगती है? यदि हा, तो कैसे ?

    उत्तर– हा! कवि की यह प्राथना अन्य प्राथना गीतो से बिलकुल भिन्न है। इस प्राथना गीत मेें प्रभु से दुखो को दूर भगाने की प्राथना की जगह दुखो से जूझने की शक्ति की याचना की गई है। इस प्राथना मेें कवि दुःख के क्षण मेें भी ईश्वर पर अविश्वस न करके उन पर पूरी आस्रा के साथ भक्ति की प्राथना करता है। अन्य प्राथना गीतो मेें दासयभाव, आत्मसमेपण, समेस्त दुखो को दूर करके सुख शांति की प्राथना, कल्याण, मानवता का विकास, ईश्वर सभी कार्य पूरे करें ऐसी प्राथना होती हैं परन्तु इस कविता में कष्टो से छुटकारा नही कष्टो को सहने की शक्ति के लिए प्राथना की गई है। अन्य गीतो मेें प्राथी प्रभु से दुखो से मुक्ति की याचना करता है पर इस गीत मेें प्राथी ईश्वर से आत्मशक्ति की याचना करता है जिसके द्वारा वह सभी प्रकार के दुखो से लड़ते हुए उस पर विजय पा सके। इन्ही कारणों से यह प्राथना अन्य प्राथना से अलग है।

    (ख) निम्नलिखित का आशय/भाव स्पषट कीजिए -

    प्रश्न. नत शिर होकर सुख के दिन में

    तब मुख पहचानू  छीन-छीन में।

    उत्तर– प्रस्तुत पंक्तिया श्री रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित कविता ‘आत्मत्राण’ से उदधृत है। इन पंक्तियो मेें कवि कहना चाहता है कि वह सुख के दिनो मेें भी प्रभु को हर क्षण विनम्रता और विश्ववास के भाव से याद रखना चाहता है, वह एक पल भी ईश्वर को भुलाना नही चाहता। यहा  भाव यह है कि कवि दुःख-सुख दोनो मेें ही प्रभु को सम भाव से याद करना चाहता है। वह प्रभु से कभी विलग नही होना चाहता है। वह कभी भी ईश्वर से विश्ववास खोना नही चाहता है।

    प्रश्न. हानि उठानी पड़े जगत में लाभ वचना रही

    तो भी मन में नया मानू क्षय।

    उत्तर– प्रस्तुत पंक्तिया श्री रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित कविता ‘आत्मत्राण’ से उदधृत हैं। इन पंक्तियो मेें कवि कहना चाहता है कि उसे जीवन भर हानि ही मिलती रहे, यदि वह लाभ से सदा वचित रहे, फिर भी वह मन मेें क्षय का भाव अथात  निराशा भावो को स्रान न दे। उसके मन मेें ईश्वर के प्रति आस्रा, आशा और विश्वास का भाव बना रहे। कवि ईश्वर से अनुनय करता है कि हे ईश्वर! मुझे इतनी क्षमता दो कि मेैं हानि-लाभ को जीवन का अनिवार्य अंग मानते हुए आप पर हमेेशा अपना विश्बवास बनाय रखू। मेैं अपने मन मेें कभी निराशा या दुःख का भाव न आने दू।

    प्रश्न. तरने की हो शक्ति अनामय

    मेरा भार अगर लघु करके न दो सात्वना नही सही।

    उत्तर– प्रस्ततुत पंक्तियों श्री रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित कविता ‘आत्मत्राण’ से उदधृत हैं। इन पंक्तियो मेें कवि कहना चाहता है कि हे ईश्वर! आप मेरे भार को कम मत करो। आप मेेरे दुखो को कम करके मुझे सात्वना मत दो। मेेरी प्राथना केबल इतनी है कि मुझे उन दुखो से तरने अर्थात मुक्त होने की क्षमता अवश्य दो। मुझे सहनशील और सघर्षशील अवश्य बनाओ जिससे मेैं
    उन दुखो से स्वय लड़कर मुक्त हो सकू।

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