NCERT Solutions for Class 10 Hindi - B: Sparsh Chapter - 8 Premchand

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    निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर एक-दो पंक्तियो में दीजिए - 

    प्रश्न. कथा नायक की रूचि किन कार्यो में थी ?

    उत्तर– कथा नायक खेल प्रेमी था। उसकी रूचि कंकरियाँ उछालने, कागज की तितलिया उड़ान, चारदीवारी पर चढ़कर नीच कूदने,  फाटक पर सवार होकर उसे आगे-पीछे चलाते हुए मोटरकार का आनन्द उठाने में थी। सबसे अधिक आनद तो उसे कनकौआ (पतंग) लूटन में आता था। 

    प्रश्न. बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे ?

    उत्तर– बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल यह पूछते—‘कहाँ थे’ ?

    प्रश्न. दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया ?

    उत्तर– दूसरी बार पास होन पर छोटे भाई के व्यवहार में नकारात्मक परिवर्तन आया और वह घमंडी हो गया। वह सोचने लगा कि पढू या न पढू पास तो हो ही जाऊँगा।

    प्रश्न. बड़े भाई साहब लेखक से उम्र में कितने बड़े थे और वे कौन-सी कक्षा में पढ़ते थे ?

    उत्तर– बड़े भाई साहब लेखक से उम्र में पाँच साल बड़े थे और नोवी कक्षा में पढ़ते थे।

    प्रश्न. बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए क्या करते थे ?

    उत्तर– बड़े भाई साहब अपने दिमाग को आराम देने के लिए कॉपी पर चिरियो, कुत्तो, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे।वे कभी कभी एक ही वाक्य को दस-बीस बार लिखा करते थे। कभी एक शेर को बार-बार सुन्र अक्षरो में नकल करते रहते थे। कभी ऐसी शब्द रचना करते, जिनका न कोई अर्थ होता न कोई सामंजस्य।

    (क) निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर (30-40) शब्दों में लिखिए—

    प्रश्न. छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम - टेबल बनाते समय क्या - क्या सोचा और फिर उसका पालन क्यों नही कर पाया ?

    उत्तर– बड़े भाई ने जो पढ़ाई का भय दिखाया था उससे भयभीत होकर छोट भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाने का निरण किया। उसने सोचा कि वह खेलकूद बंद कर देगा और वह प्रात: काल छह बजे मुह-हाथ धो, नाश्ता कर पढ़ने बैठ जायेगा। छह से साढ़ नौ तक अनेक विषयो का अध्यन फिर भोजन कर स्कूल जायगा। वापस आने पर आधा घंटा आराम, फिर शाम को चार बजे स ग्यारह बजे तक अलग-अलग विषयो की पढ़ाई कर फिर रात्रि विश्राम करेगा। इस टाइम-टेबिल का पालन नही कर पाने में सबसे बड़ी समस्या उसका खेल-कूद में मस्त हो जाना था। सुरम्य प्राकर्तिक वातावरण में वह सब कुछ भूल जाता था इसलिए वह इसका पालन नही कर पाया।

    प्रश्न. एक दिन जब गुल्ली - डंडा खेलने के बाद छोटा भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुचा, तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई ?

    उत्तर– एक दिन जब गुल्ली- डंडा खेलने के बाद छोटा भाई बड़े भाई क सामने पहुचा तो बड़े भाई ने स्नेह और रोष भर शब्दो में उसका स्वागत किया। उन्होने डाँटते हुए कहा कि अंग्रेजी की पढ़ाई बहुत कठीन है। उन्होने लखक को अपन समान हर समय पढ़त रहन की नसीहत दी नही तो उसे एक ही कक्षा में सड़ते रहना पड़ सकता है। उन्होन व्यर्थ उम्र गवाने से घर जाकर मजे से गुल्ली-डंडा खेलने की सलाह दे डाली। दादा की गाढ़ी कमाई के रुपय नही बरबाद करने की बात कही।

    प्रश्न. बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाए क्यों दबानी पड़ती थी ?

    उत्तर– बड़े भाई साहब को अपन मन की इच्छाए इसलिए दबानी पड़ती थी क्योंकि वह अपने छोटे भाई को सही राह पर चलाना अपना कर्तव्य समझते थे। बड़े भाई साहब न कहा था, “मेरा जी भी ललचाता है परक्या करू खुद बेराह चलू तो तुम्हारी रक्षा कैस करू? यह कर्तव्य भी तो मेरे सिर है।” उनकी यही सोच उनेह अपने मन की इच्छाए दबाकर रखने के लिए विवश कर देती थी।वे खेल-तमाशो स दूर रहते और खेल-कूद पर भी ध्यान नही देते थे। दिन-रात बैठकर पढ़ते रहना उनका स्वभाव था। उनेह अपने बड़े होने का भी अहसास हमेंशा बना रहता था।

    प्रश्न. बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और क्यों ?

    उत्तर– बड़े भाई साहब छोटे भाई को मेंहनती और पढ़ाकू बनने की सलाह देते थे।वे कहते थे कि पढ़ाई करने के लिए आखें फोड़नी पड़ती हैं, खून जलाना पड़ता है, तब कही जाकर विद्या आती है। मन की इच्छाओं को दबाना पड़ता है। जो घमंड करते हैं, वे नीचे डूबते चले जाते हैं।वे अपने छोटे भाई को हमेंशा विनम्, समझदार और अच्छा आदमी बनने की सलाह देते थे वह चाहते थे कि उनका भाई जीवन में आगे बड़े।

    प्रश्न. छोटे भाई ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का क्या फायदा उठाया ?

    उत्तर– लेखक न बड़े भाई साहब क नरम व्यवहार का गलत फायदा उठाना शुरू किया।वह पहले से अधिक खेलने लगा। बड़े भाई साहब फेल होकर कुछ नरम पड़ गए थे। अब वे डाँटने का अवसर पाकर भी धेर्य से काम लेने लगे। लेखक न सोच लिया था कि वे अब उनको डाँट नही सकते हैं। उसके व्यवहार में कटुता आ गई तथा वह घमंडी होने लगा था। वह अब मानने लगा था कि बिना पड़े भी पास किया जा सकता है और वह अपना समय पतंग उड़ाने में ही व्यतीत करने लगा।

    (ख) निमंलिखित प्रश्नो के उत्तर (80-100) शब्दों में लिखिए—

    प्रश्न. बड़े भाई की डॉट- फाटकर अगर न मिलती, तो क्या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता ? अपने विचार प्रकट कीजिए।

    उत्तर– बड़े भाई की डाँट-फाटकार अगर न मिलती, तो सम्भवत: छोटा भाई कक्षा में अव्वल न आता। बड़ा भाई हमेंशा छोटा भाई क साथ अभिभाविक क रूप में रहता था। वह उसकी प्रत्येक गतिविधि पर नजर रखता था। उसकी प्रत्येक बुरी संगति, समय क दुरुप्रयोग और आलस से उसे बचाता रहता था। बड़ा भाई हमशा उसे समय पर काम करन तथा पढ़ाई में रात-दिन एक कर देने की सलाह देता रहता था। बड़े भाई के उपदेश का ही परिणाम होता था कि छोटा भाई टाइम-टेबल  बना लेता था। इस प्रकार छोटे भाई की सफलता में बड़े भाई की डाँट-फटकार का बड़ा ही महत्त्व है।

    प्रश्न. इस पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन तौर-तरीको पर वयंग्य किया है ? क्या आप उनके विचार से सहमत हैं ?

    उत्तर– बड़े भाई साहब पाठ में लेखक न समूची शिक्षा क अनेक तौर - तरीको पर व्यंग्य किया है। लेखक पर  अनुसार इस शिक्षा  प्रणाली में केबल रटंत व्यवस्था है। यह विधाथियो की प्रतिभा को कुठीत कर देती है। इसमें विषयो का विस्तार है, एक निबंध लिखने के लिए चार-चार पन्नो का प्रयोग किया जाता है। फिर भी इसे संछिप्त कहा जाता है। इस शिक्षा प्रर्णाली में विदेशी भाषा अंग्रेजी का प्रयोग किया जाता है। अन्य विषयो का अध्यन-अदयापन अंग्रेजी में ही किया जाता है। इस शिक्षा प्रणाली बड़ी कमी इसमें बच्चो को खेल-कूद के लिए समय नही दिया जाता है। पूरी शिक्षा  व्यवस्था पुस्कीय ज्ञान पर आधारित है।

    प्रश्न. बड़े भाई साहब के अनुसार  जीवन की समझ कैसे आती है ?

    उत्तर– बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ अनुभव से आती है। अपने विचारो की पुष्टि में उन्होंने दादा, हैडमास्टर साहब और उनकी बूढ़ी माँ का दृष्टान्त प्रस्तुत किया था। उनका मानना था कि जीवन में अनुभव पुस्कीय ज्ञान से भी अधिक महत्वपूर्ण है।

    ज्ञान को अनुभव में उतारे बिना वह ज्ञान अधूरा है। बड़े-बुजुगो को जीवन की समझ हमसे ज्यादा। वे अच्छी बातो को अपने जीवन में उतारते थे।वे उतने शिक्षित नही पर अनुभवी थे अतः जहाँ विपरीत परिस्थियों में हम घबरा जात हैं वही वे सभी मुश्किलो का सामना हँसते-हँसते कर लेते थे।वे  स्पष्ट रूप स कहते हैं, “समझ किताबें पढ़ने से नही आती, दुनिया देखने से आती है।”

    प्रश्न. छोटे भाई के मन में बड़े भाई के प्रति श्रध्दा क्यों उत्पन्न हुई ?

    उत्तर– जब छोटे भाई और बड़े भाई में केवल एक दर्जे का अन्तर रह गया तो छोटे भाई के मन में कुटीलता आ गई और उसके मन में बड़ भाई के प्रति आदर का भाव कम होने लगा। उनके उदार व्यवहार का अनुचित लाभ उठाना शुरू कर दिया। वह सोचने लगा कि मैं पढू  या न पढू  पास तो हो ही जाऊँगा। बड़ा भाई भी धेर्य से काम ले रहा था। अचानक एक दिन कनकौआ लूटने के क्रम में बड़े भाई ने उसे पकड़कर अधिकारपूर्वक कर्तव्य बोध करवाया। बड़े भाई का अनुभव, तर्क्सहित और शुभेचा जानकर छोटा भाई श्रद्धा से नतमस्क हो गया और बड़े भाई का आदर करने लगा।

    प्रश्न. बड़े भाई की स्वभावगत विशेषतयाएँ बताइए।

    उत्तर– भाई साहब की स्वभागत विशेषताएँ निम्नलिखित है—

    (क) अध्ययनशील — बड़े भाई साहब स्वभाव से ही अध्यनशील थे। वे हरदम किताबो में लीन रहत थे। उनमें रटने की प्रवति थी।

    (ख) गभीर प्रवर्ती— भाई साहब गंभीर प्रावर्ति के थे वे छोटे भाई के सामने उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते थे। उनका गंभीर स्वभाव ही उनेह विशिष्टता प्रदान करता था।

    (ग) घोर परिश्रम—भाई साहब जीवन में परिश्रम करनरे में कोई कसर नही छोड़ते थे।वह एक कक्षा में तीन बार फेल होकर भी लगन स पढ़ते रहे।वे दिन रात पढ़ते थे उनकी तपस्या बड़े-बड़े तपस्वियों को भी मात करती थी। 

    (घ) वाक्पटु - भाई साहब वाक कला में निपुण थे वह उदाहरणों के जरीए बात समझाने में निपुण थे इस कला क लिए सब उनके सामने नतमस्क थे।

    (ङ) संयमी व कर्तव्यपरायण —भाई साहब अत्यन्त संयमी व कर्तव्यपरायण थे। वह भी पतंग उड़ाना चाहते थे लेकिन छोटे भाई के आगे ऐसा नही करते थे। वह अपने कर्तव्य को बखूबी निभाते थे छोटे भाई के अभीमान को उन्होंने आरे हाथो लिया जिससे उसका सिर श्रद्धा से झुक गया।

    (च) उपदेश देने की कला में निपुण -  वे उपदेश देने की कला में निपुण थे' व अपनी बात को साबित करने के लिए सूक्ति बाण चलाते थे।

    (छ) बड़ों का आदर— बड़े भाई साहब बड़ों का आदर करते थे। वह अपने माता-पिता, गुरजनो का आदर करते थे और उनके अनुभव को सम्मान देते थे।

    प्रश्न. बड़े भाई साहब ने जिदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे और क्यों महत्त्वपूण कहा है ?

    उत्तर– बड़े भाई साहब न जिदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से अनुभव को महत्त्वपूण कहा है। छोटे भाई को उपदेश देने के क्रम में उन्होने कहा था कि समझ किताबें पढ़ने से नही आती, दुनिया देखने से आती है।

    वे अपने परिवार के सदस्यों के उदाहरण देकर अपने कथन की पुष्टि करते हैं।वे अपनी माँ व दादा के उदाहरण देते हैं।वे कहते हैं कि हम चाहे कितनी भी पुस्तके पढ़ लें, पर हमारे बुजुगो को हमें सुधारने का अधिकार हमेंशा रहेगा क्यों कि उन्हे दुनिया का तजुरबा हमसे ज्यादा है।वास्तब में पुस्कीय ज्ञान के आधार पर ही केबल मानव सफल नही हो सकता अपितु सफल जीवन के लिए व्यवहारिक ज्ञान होना आवश्यक है।

    प्रश्न. बताइए पाठ के किन अंशो से पता चलता है कि—

    (क) छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।

    उत्तर– मैं उनकी इस नई युक्ति से नत-मस्तक हो गया। मुझे आज सचमुच अपनी लघुता का अनुभव हुआ और भाई साहब के प्रति मेरे मन में श्रद्धा उत्पन्न हुई। मैंने सजल आँखो स कहा— हरगिज नही। आप जो कुछ फरमा रहे हैं, वह बिलकुल सच है और आपको उसके कहने का अधिकार है।

    (ख) भाई साहब को जिदगी का अच्छा अनुभव है।

    उत्तर– मेंरा कहना मानिये। लाख फेल हो गया हू, लेकिन तुमसे बड़ा हू, संसार का मुझे तुमसे कही ज्यादा अनुभव है। उन्होने बताया कि समझ केबल किताबो से ही नही अनुभव से भी आती है।

     (ग) भाई साहब के भीतर भी एक बच्या है।

    उत्तर– संयोग से उस वक्त कटा हुआ कनकौआ हमारे ऊपर से गुजरा। उसकी डोर लटक रही थी। लड़को का झुण्ड पीछे-पीछे दौड़ा चला आता था। भाई साहब ने लम्बाई के कारण उछलकर उसकी डोर पकड़ ली और होस्टल की तरफ दौरे। मैं पीछ-पीछ दौड़ रहा था।

    (घ) भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।

    उत्तर–  बड़े भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते और ज्यादा खेलने के लिए डाँटते, मेरे रहते तुम बेराह न चलने पाओगे। अगर तुम यो न मानोगे तो मैं (थप्पड़ दिखाकर) इसका प्रयोग भी कर सकता हू। मैं जानता हू, तुम्हे  मेंरी बातें जहर लग रही हैं। ...........

    (ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए—

    प्रश्न. इम्तिहयान पास कर लेना कोई चीज़ नही, असल चीज़ है बुधि का विकास।

    उत्तर– प्रस्तुत  पंक्ति में पुस्कीय ज्ञान से अधिक बौद्धक ज्ञान को अधिक महत्त्व दिया गया है। यथार्थ में परीक्षा उत्तीण करना बहुत बड़ी बात नही है। महत्त्वपूर्ण है बुधि को विकसित करना। परीक्षाएँ तो किताबें पढ़कर पास कर ली जाती हैं, परन्तु बुधि का विकास तो केबल अनुभव से ही होता है। अनुभवजन्य बुधि ही श्रेष्ठ है।

    प्रश्न. फिर भी जैसे मौत और विपति के बीच भी आदमी मोह और माया के बन्धन में जकरा रहता है, मैं फटकार और घुरकिया खाकर भी खेल-कूद का तिरस्रकार न कर सकता था।

    उत्तर–  जिस प्रकार मत्यु के समीप पहुचकर भी मानव सांसरिकता में लिप्त रहता है उसी प्रकार लेखक बड़े भाई की फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी खेल-कूद का त्नयाग ही कर पाता था। वह डाँट सुनकर भी खेल-कूद में लगा रहता था और समय नष्ट करता रहता था।

    प्रश्न. बुनीयाद ही पुख़्ता न हो, तो मकान कैसे पायदार बने ?

    उत्तर–  उपयुक्त उक्ति लेखक के द्वारा बड़े भाई के सन्दर्भ में व्यग बाण है। दरअसल बड़े भाई एक ही जमात में दो-तीन साल लगाते थे।वे इसे बुनियाद को मजबूत बनाना समझते थे। मकान की मजबूती उसकी नीि पर वनभर करती है। नीि यदद मजबूत होगी तो मकान भी मजबूत होगा। इसी प्रकार ज्ञान की बुनियाद परिश्रम पर निभर करती है न कि एक ही कक्षा में दो
    तीन साल लगाना। यह बड़े भाई की मंदबुधि का परिचायक है। 

    प्रश्न. आँखें आसमान की ओर थी और मन उस आकयाशगमी पथिक की ओर, जो मंद गवत से झूमता पतन की ओर चला आ रहा था, मानो कोई आतमा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नये संस्कार ग्रहण करने जा रही हो।

    उत्तर– उपयुक्त पंक्ति में लेखक ने बड़े ही कलात्मक तरीके से आकाश से टूटकर गिरती हुई पतंग की व्याख्या की है। लेखक कनकौआ (पतंग) लूटने के लिए बेतहाशा दौड़ जा रहा था, उस समय उसकी आँखें आकाश में गड़ी थी। इसमें लखक न आकाशगामी पधथक उस पतंग को कहा है, जो धीर-धीर धरती की ओर आ रही थी। लेखक को ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कोई दिव्य आत्मा स्वर्ग से निकलकर उदार मन से इस धरती पर कुछ नए संस्कार लेने उतरती चली आ रही हो। इस पंक्ति में पतंग क प्रति लेखक के अतिशय लगाव का बोध होता है।

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