NCERT Solutions for Class 10 Hindi - A: Kshitij Chapter - 8 Ram Vraksh Benapuri
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प्रश्न. खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोविन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओ के कारण साधु कहलाते थे ?
अथवा
गृहस्थ होकर भी बालगोबिन भगत साधु थे–स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– बालगोबिन भगत गृहस्थ थे लेकिन उनका आचरण साधुओ जैसा था। वे कबीरपंथी थे। उन्ही के आदर्शो पर चलते थे। उनका सम्पूर्ण जीवन ‘साहब’ (कबीर) के लिए ही समपित था।वे मत्यु को उत्सव मानते थे। वे कभी झूठ नही बोलते थे, झगड़ा नही करते थे, बिना पूछे किसी की वस्तु न छुते थे और न व्यवहार में लाते थे। दुसरे के खेत में शोच तक नही जाते थे। इन सभी गुणो से सिद्ध होता है कि बालगोबिन भगत गृहस्थ होकर भी साधु थे।
प्रश्न. भगत की पुत्रवधू उनेह अकेले क्यों नही छोड़ना चाहती थी ?
उत्तर– भगत की पुत्रवधू अत्यन्त संस्कारी और सुलझे हुए दिमाग की थी। वह इस बात को अच्छी तरह समझाती थी कि उम्र के इस पराव में भगत जी को सेवा की सख्त ज़रूरत है। उनकी सेवा करने वाला उसके अतिरिक्त कोई नही है। उसके बिना वे खाने पीने जैसी छोटी-छोटी जरूरतो के लिए भी लाचार हो जायेंगे। इसी सेवाभाव के कारण भगत की पुत्रवधू उनेह अकेले नही छोड़ना चाहती थी।
प्रश्न. भगत ने अपने बेटे की मत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त की?
अथवा
सिद्ध कीजिए कि कबीर निगुर्ण ब्रह्म के उपासक थे।
उत्तर– भगत कबीरपंथी थे अतः कबीर के समान वह भी निर्गुण-बहा में आस्था रखते थे। उनके अनुसार शरीर नश्र है तथा आत्मा अमर है। आत्मा का परमात्मा में मिलन ही संसार में आवागमन के चक् को पूरा करता है। अपनी इन्ही भावनाओ को व्यक्त करने के लिए वे अपने पुत्र की मत्यु पर तल्धीनता के साथ गीत गाये जा रहे थे तथा बिलाप करती हुई पतोहू को भी उत्सव मनाने के लिए कह रहे थे।
प्रश्न. भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूशा का अपने शब्दो में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर– कबीर के आदशो के अनुगामी बालगोबिन भगत गृहस्थ होकर भी साधु थे। उनका कद मँझला तथा रंग गोरा था। उनकी उम्र साठ से ऊपर थी तथा बाल सफ़ेद थे। वे कपड़े बिलकुल कम पहनते थे। शरीर पर एकमात्र लँगोटी तथा सिर पर एक कंफ़ती टोपी होती थी। सदियाँ आने पर काला कम्बल ओढ़ लेते थे।वे अपने मस्तक पर रामानंदी तिलक लगाते थे तथा गले में तुलसी की जड़ो की बेडौल माला बाँधे रहते थे।
भगत जी साधारण होते हुए भी असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे। वे कट्टर कबीरपंथी थे। झूठ न बोलना, किसी से झगड़ा न करना, किसी की वस्तु को बिना पूछे प्रयोग में न लाना आदि नियमो को वे पूरी बारीकी से निभाते थे।वे भक्ति-संगीत में सदेव तल्लीन रहते थे। साहब में उनकी अपार स्रधा थी।वे सामाजिक रूरियो एवं बाह्डबरो में विश्वास नही रखते थे।वे निर्गुण बहा के उपासक थे तथा मत्यु को उत्सव मानते थे।
प्रश्न. बालगोबिन भगत की दिनचया लोगो के अचरज का कारण क्यों थी?
अथवा
बालगोबिन की दिनचर्या पर लोगो को आश्चय क्यों होता था?
अथवा
लोगो के कौतूहल का क्या कारण था ?
उत्तर– बालगोबिन भगत की दिनचर्या पूरी तरह व्यवस्थित थी।वे सभी नियमो का दृढ़ता से पालन करते थे। चाहे हाड़ कँपा देने वाली ठण्ड हो या भीषण गमी, उनकी दिनचर्या में लेशमात्र भी परिवर्तन नही होता था। कातिक के महीने में भी वे पूरे जोश व तल्धीनता के साथ प्रभातिया गाते रहते थे। प्रात: जल्दी उठकर गाव से दो मील दूर पैदल जाकर नदी में स्नान करना तथा लोटकर खँजरि बजाते हुए लगातार गाते रहना लोगो को हैरान कर देता था। उनका सुरूर और उत्तेजना देखकर लोग ठगे से रह जाते थे। इसलिए बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगो के अचरज का कारण थी।
प्रश्न. कैसे कहा जा सकता है कि बालगोबिन भगत जीवन के अन्तिम क्णो में भी अपने नियम-व्रत का निरंतर पालन करते रहे ? उदहारण के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– बालगोबिन भगत साधुओ जैसा सीधा-सादा सरल जीवन बिताते थे।वे ईश्र और गुरु की प्रंशा के गीत गुनगुनाते रहते थे।वे हर वर्ष गंगा-स्नान करने पैदल जाते था। इसमें सन्त-समागम और लोक-दशन हो जाता था।वे घर से खाकर चलते थे और घर आकर ही खाते थे, कही भिक्षा नही माँगते थे। आने-जाने में चार - पाच दिन लग जाते थे।वे जीवन के अन्न्तम क्षणो तक अपने नियम-व्रत का निरन्तर पालन करते रहे। एक बार जब वे लोटे तो उनकी तबियत सुस्त थी, थोड़ा बुखार था। लोगो ने नहाने से मना किया, परन्तु नही माने। उस दिन भी सन्धा के समय गीत गाए। सुबह जब लोगो ने उनका गीत नही सुना, तब पता चला कि बालगोबिन नही रहे।
प्रश्न. पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
बालगोबिन भगत कया गायन मधुर था–सिद्ध कीजिए।
अथवा
बालगोबिन भगत के गीतो का खेतो में काम करते हुए और आते-जाते नर-नारियो पर क्या प्रभाव पड़ता था ?
उत्तर– बालगोबिन भगत बड़ी तल्लीनता एवं जोश में प्रभु-भक्ति के गीत गाते थे। उनका मधुर गायन लोगो को आकषित कर लेता था। उनके गायन में मिठास के साथ-साथ निश्चित ताल एवं गति थी। उनके स्वर में आरोह एवं अवरोह का गुण था। उनका मधुर गायन सुनकर बच्चे खेलते हुए झूम उठते थे, मेंड़ पर बैठी औरतें गुनगुनाने लगती थी। हलवाहो के पैर तले के साथ एक निछित क्रम में उठने लगते थे। यहाँ तक कि धान रोपने वालो की अँगुलियाँ भी एक अजीब क्रम से चलने लगती थी। समूचा वातावरण सगीतमय हो जाता था। भगत जी का सगीत इतना मधुर व आकषक था कि उसका जादू लोगो के सिर चढ़कर बोलने लगता था।
प्रश्न. कुछ मार्मिक प्रसंगो के आधार पर यह दिखायी देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नही मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगो का उल्लेख कीजिए।
उत्तर– बालगोबिन भगत निर्गुर्ण बहा के उपासक थे।वे कबीरपंथी थे अतः कबीर के समान वे भी समाज में प्रचलित मान्यताओं का खण्डन करते थे।वे केबल अपने अन्तमन की आवाज सुनते थे। वे पुरानी परम्पराओ एवं रूरियो के कत्त्टर विरोधी थे। पुत्र की मत्यु के उपरान्त उसकी चिता को पुत्र वधू को द्वारा अगि दिलवाना सामाजिक मान्यताओं एवं रूरियो के मूक बिरोध का जीता जागता उदाहरण है। अपनी पुत्र वधू को पुर्नविवाह हेतु आदेश देकर उन्होने विधवा विवाह को बरावा दिया। उन्होने पुत्र-शोक भी नही मनाया बल्कि मत्यु को आत्मा का परमात्मा से मिलन के रूप में उत्सव मानकर अपनी पुत्रवधू को आनन्दपूर्वक उत्सव मनाने की सलाह दी।
प्रश्न. धान की रोपाई के समय समूचे माहोल को भगत की स्वर - लहरिया किस तरह चमत्कृत कर देती थी ? उस माहोल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर– आषाढ़ मास की रिमझीम में खेतो में धान की रोपाई चल रही है। आसमान में बादल छाये हुए हैं। ठंडी पुरवाई चल रही है। ऐसे मनोहर वातावरण में अचानक बालगोबिन भगत की स्वर लहरियाँ गूजने लगती हैं। स्वर में आरोह एवं अवरोह के साथ निस्छित ताल एवं गति है। उसी गति के अनुसार उनकी अंगुलियाँ एक निश्चित क्रम में, एक-एक धान के पौधे को खेत में पक्तिबद्ध बिठा रही हैं। कलेवा लेकर मेंड़ो पर बैठी स्त्रियो के ओठ गाने को बैचेन होकर थरथराने लगे। किसानो के पैर भी संगीत की ध्वनी के अनुसार चलने लगे। चारो ओर मदमदाता हुआ संगीत का जादु छा गया।
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