प्रश्न. लेखक को नवाब साहब के किन हाव - भावो से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नही थे ?
उत्तर– लेखक को सामने रेखकर नवाब साहब की आखे में असंतोष दिखाई दिया। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे लेखक के अचानक आ जाने से उनके एकांत-चिंतन में विघ्न पड़ गया हो। उन्होंने लेखक की सगति के लिए उत्साह भी नही दिखाया, बल्कि उपेक्षा प्रकट करने के लिए गाड़ी से बाहर देखने लगे।
प्रश्न. नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक - मिर्च बुरका, अन्तत सूघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया गया ? उनका ऐसा करना उनके कैसे सवभाव को इंगित करता है?
उत्तर– नवाब साहब द्वारा स्वदिस्त खीरो को केवल सूघकर ही खिड़की से बाहर फेक देने का कारण उनका दिखावा मात्र था। अपनी नजा़कत व नफासत दिखाने व अपनी अमीरी प्रकट करने के लिए ही उन्होंने ऐसा किया होगा।
प्रश्न. बिना विचार, घटना और पात्रो के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है? यशपाल के इस विचार से आप कहा तक सहमत हैं?
उत्तर– यशपाल के इस विचार से हम पूणतः सहमत नही हैं। लखनवी अंदाज कहानी में लेखक ने सामन्ती वर्ग पर कटाक्ष करते हुए अपने विचारो को प्रस्तुत किया है। पात्र तथा घटना के स्थान पर नवाब साहब एव रेलयात्रा को दर्शा दिया गया है। ‘कहानी’ को पूणरूप से चरिताथ करने के लिए उसमें कहानी के सभी तत्वों का समावेश अत्यन्त आवश्यक है तभी कहानी को पूणता प्रदान की जा सकती है। बिना विचार, घटना और पात्रो के कहानी लिखना असम्भव-सा है।
प्रश्न. आप इस निबन्ध को और क्या नाम देना चाहेंगे?
उत्तर– ‘दिखावे के मारे – नवाब बेचारे’ या ‘झूठी शान और नवाब साहब’ हम इस निबन्ध को ऐसा ही नाम देना चाहेंगे, क्यूकी अपनी झूठी शान दिखाने के कारण वे खीरो को खा भी नही पाते।
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