Oswal Practice Papers CBSE Class 10 Hindi-A Solutions (Practice Paper - 9)
खण्ड-(अ)
1. (1) (घ) ये तीनो
(2) (क) मीडिया
(3) (ग) कथन (A) सही है और कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या है।
(4) (ख) कथन (ii) व (iii) सही हैं।
(5) (ग) मीडिया का
2. (1) (ग) कथन (ii) व (iii) सही हैं।
(2) (ग) विवाह के समय सब लोग जिस प्रकार दूल्हे की प्रतीक्षा करते हैं, उसी तरह लोग जीवन में सुख की प्रतीक्षा करते हैं।
(3) (ग) इच्छा
(4) (ख) कथन (A) गलत है, किंतु कारण (R) सही है।
(5) (ख) सुख की तलाश में भागने के कारण
3. (1) (क) वह घर जाते ही काम में लग गया।
(2) (ख) जो व्यक्ति सड़क पार कर रहा था, वह बस से टकराकर मर गया।
(3) (ग) छात्र परिश्रम करते हैं इसलिए वे जीवन में सफल होते हैं।
(4) (ग) कथन (ii), (iii) व (iv) सही हैं।
(5) (घ) 1-i, 2-iii, 3-ii
4. (1) (ग) कर्तृवाच्य
(2) (क) मजदूरों के द्वारा पेड़ काटे जाएँगे।
(3) (ग) तुमसे पढ़ा नहीं जाता
(4) (ग) केवल 2 सही है।
(5) (ग) 1-ii, 2-iii, 3-i
5. (1) (घ) सार्वनामिक विशेषण, एकवचन, अन्यपुरुष्
(2) (घ) पुरुषवाचक सर्वनाम, उत्तम (प्रथम) पुरुष, स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्ताकारक
(3) (ग) गुणवाचक विशेषण, एकवचन, पुल्लिंग, गुलाब विशेष्य का विशेषण
(4) (क) सकर्मक क्रिया, पुल्लिंग, एकवचन, कर्तृवाच्य, वर्तमान काल
(5) (ख) अकर्मक क्रिया, कर्तृवाच्य, वर्तमान काल, एकवचन, पुल्लिंग
6. (1) (क) मानवीकरण अलंकार
(2) (घ) अतिशयोक्ति
(3) (क) श्लेष
(4) (क) श्लेष
(5) (क) उत्प्रेक्षा अलंकार
7. (1) (क) प्राचीन वैभव के
(2) (ख) आर्थिक चोट के कारण
(3) (घ) उपर्युक्त सभी
(4) (ग) फैला हुआ
(5) (ग) अंग्रेजी-हिन्दी
8. (1) (घ) उपर्युक्त सभी प्रसंग सही हैं।
(2) (क) अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए।
9. (1) (ग) श्रीकृष्ण को
(2) (क) वे परोपकारी होते थे।
(3) (ग) प्रजा को सताया न जाना
(4) (घ) श्रीकृष्ण ने
(5) (घ) उपर्युक्त सभी
10. (1) (क) राम स्वभाव से नम्र और लक्ष्मण उग्र हैं।
(2) (घ) ये सभी परिवर्तन दिखाई देते हैं।
खण्ड-(ब)
11. (क) सेनानी न होते हुए भी लोग चश्मेवाले को कैप्टन इसलिए कहते थे क्योंकि कैप्टन चश्मेवाले में नेताजी के प्रति अगाध श्रद्धा भाव था। वह एक सच्चा देशभक्त था और अन्य देशभक्तों को सम्मान देता था।
(ख) बालगोबिन भगत, बेटा पतोहू से युक्त परिवार, खेतीबारी और साफ-सुथरा मकान रखने वाले गृहस्थ थे। फिर भी उनका आचरण साधुओं जैसा था, ये सदैव खरी बातें कहते। वे असत्य नहीं बोलते थे, वे व्यर्थ में किसी से झगड़ा नहीं करते थे, वे अत्यंत साधारण वेशभूषा में रहते थे और अपनी उपज को कबीर पंथी मठ पर चढ़ावे के रूप में देते थे। वहाँ से जो कुछ प्रसाद रूप में मिलता था, उसी में परिवार का निर्वाह करते थे। इस प्रकार के व्यवहार के कारण लोग उन्हें साधु कहते थे।
(ग) लेखक अपनी आदत के अनुसार नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण उनके बारे में सोचने लगा। उसने सोचा कि नवाब साहब ने एकदम अकेले यात्रा करने का अनुमान लगाते हुए सेकंड क्लास का टिकट लिया होगा। अकेले यात्रा का समय काटने के लिए खीरे खरीदे होंगे, परन्तु अब लेखक जैसे भद्र व्यक्ति के सामने खीरा खाने में उन्हें संकोच हो रहा होगा।
(घ) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के लिए इस धरती पर शहनाई एवं काशी से बढ़कर कोई जन्नत नहीं है। उन्हें काशी से बहुत लगाव है। वे काशी, गंगा मैया, बाबा विश्वनाथ तथा बालाजी मंदिर को छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहते। उनका मानना है कि जिस जमीन ने उन्हें तालीम दी, जहाँ से उन्हें अदब मिला, उससे बढ़कर उनके लिए अन्य कोई स्थान नहीं है।
12. निर्धारित कविताओं के आधार पर निम्नलिखित चार प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर लगभग 25-30 शब्दों में लिखिए -
(क) कवि कहना चाहता है कि फसलों का अपना कोई अस्तित्व नहीं है। सूर्य की किरणों के रूपान्तर के फलस्वरूप ही फसल अस्तित्व में आती है। आशय यह है कि फसलें सूर्य की ऊष्मा और हवा प्राप्त करके लहलहाती हैं। जिसमें किसान की मेहनत भी छुपी रहती है।
(ख) ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम-संवाद’ के रचयिता तुलसीदास जी हैं। यह ‘रामचरितमानस’ ग्रंथ से लिया गया है। इस ग्रंथ में श्रीराम के जीवन की सुंदर आदर्श झाँकी प्रस्तुत की गई है।
(ग) ‘अट नहीं रही है’ कविता में कवि ने वसंत में प्रकृति की शोभा का मनोहारी चित्रण किया है। इस ऋतु में सुन्दरता प्रकृति के कण-कण में समा जाती है। प्रकृति के कोने-कोने में अनूठी-सी सुगंध भर जाती है जिससे कवि की कल्पना ऊँची उड़ान लेने लगती है। चाहकर भी प्रकृति की सुंदरता से आँखें हटाने की इच्छा नहीं होती। नैसर्गिक सौन्दर्य के प्रति मन आकर्षित हो जाता है। जगह-जगह रंग-बिरंगे और सुगंधित पुष्पों की शोभा प्रतीत होती है।
(घ) संगतकार वह व्यक्ति है, जो कदम-कदम पर मुख्य गायक की सहायता करता है, किन्तु वह अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से अधिक प्रभावपूर्ण नहीं होने देता है। वह गायन का सम्पूर्ण श्रेय मुख्य गायक को देता है। वह नींव की ईंट की भाँति होता है, जो अपना अस्तित्व दाँव पर लगाकर त्याग की उत्कृष्ट भावना का परिचय देता है।
13. (क) माता-पिता अपने बच्चे भोलानाथ को अत्यधिक प्रेम करते हैं। पिता सवेरे उठकर बालक भोलानाथ को उठाकर उसे नहलाकर तिलक करके पूजा पर बिठाते थे। भोलानाथ को गंगा किनारे अपने कंधे पर बिठाकर खिलाने ले जाते थे। कभी-कभी उसको रिझाने के लिए उसके साथ कुश्ती भी करते। खाना खिलाते समय माता तरह-तरह की कहानियाँ सुनाती ताकि भोलानाथ अधिक खाना खा ले।
साँप दिखने पर जब भोलानाथ बेतहाशा भागकर माँ की गोद में आ छिपता है तो माँ का चिंतित होना उसके वात्सल्य को दर्शाता है।
(ख) मैं क्यों लिखता हूँ? यह प्रश्न बड़ा सरल लगता है, लेकिन यह प्रश्न बड़ा कठिन है, क्योंकि इसका सच्चा उत्तर लेखक के आन्तरिक जीवन के स्तरों से सम्बन्ध रखता है। आन्तरिक जीवन के स्तरों को संक्षेप में कुछ वाक्यों में बाँधकर प्रस्तुत कर देना आसान नहीं है। केवल इतना संभव है कि कुछ विषयों को व्यक्त कर दिया जाए। अतः यह प्रश्न कठिन है।
(ग) जितेन नार्गे में कुशल गाइड के सभी गुण विद्यमान हैं। सबसे बड़ा गुण उसका यह है कि वह ड्राइवर-कम-गाइड ज्यादा है। वह आवश्यकता पड़ने पर ड्राइवर की भूमिका बड़ी आसानी से निभा सकता है।
एक कुशल गाइड को अपने क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति की जानकारी के साथ-साथ महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक स्थानों तथा उससे जुड़े रोचक प्रसंगों की बारीक जानकारियाँ होनी चाहिए। कुशल गाइड में सहनशीलता होनी चाहिए। उसे गीत-संगीत में भी रुचि होनी चाहिए। जिससे वह पर्यटकों का मनोरंजन कर सके। कुशल गाइड में मानवीय संवेदनाओं को समझने की शक्ति एवं वाक्चातुर्य होने का गुण भी होना चाहिए। उसमें अपनत्व की भावना होनी चाहिए। एक कुशल गाइड का मृदुभाषी होना भी अत्यन्त आवश्यक है।
14.
(क) बस्ते का बढ़ता बोझ
आज पाठ्यक्रम में कुछ तो निर्धारित पाठ्य-पुस्तकों की संख्या बढ़ रही है, तो कुछ सहायक पुस्तकों की। इससे बच्चों के बस्ते का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। पुस्तकों को आकर्षक बनाने के लिए मोटे कागजों का प्रयोग किया जाता है। इनके ऊपर यदि मोटी बाइंडिंग करा दी जाए तो पुस्तकों का वजन और भी बढ़ जाता है। इससे बच्चे बस्ते के बोझ से दबे हुए नजर आते हैं। छात्रों के बस्तों के बढ़ते बोझ पर नियंत्रण लगाना आवश्यक है, क्योंकि इस बोझ का संबंध उनके स्वास्थ्य से है। बस्ते के बोझ से छात्र सीधे नहीं चल पाते हैं जिससे उनकी कमर टेढ़ी हो जाती है। यही नहीं, इससे उनके खेलने-कूदने का समय भी छिन जाता है। एक स्वस्थ बच्चा ही भविष्य में स्वस्थ नागरिक बनेगा। इसके लिए मानसिक विकास के साथ शारीरिक विकास भी आवश्यक है। अतः आवश्यक है कि छात्रों के बस्ते का बोझ कम किया जाए जिससे छात्रों को पढ़ाई बोझ नहीं लगेगी और उन्हें खेलने-कूदने का समय भी मिलेगा।
(ख) समाज और कुप्रथाएँ
आज व्यक्ति जो कुछ भी है, वह समाज के कारण है। बिना समाज के व्यक्ति की कल्पना भी नहीं की जा सकती। सभ्यता, संस्कृति, भाषा आदि सब समाज की देन है। समाज में फैली हुई कुरीतियाँ भी समाज के विकार के कारण हैं। कुरीतियों या कुप्रथाओं को हवा देने का कार्य धर्म के पुरोधाओं ने शुरू किया। वे धर्म के नाम पर अंधविश्वास फैलाने लगे और परस्पर भेदभाव की दीवार खड़ी करके मानव को समाज विरोधी बनाने में सफल हुए। विघवाओं को उपेक्षित जीवन जीना पड़ता था। वह शृंगार नहीं कर सकती थीं, साधारण कपड़े पहनती थीं, श्राद्ध कर्म, मृत्यु-भोज, सती प्रथा, घूँघट प्रथा, स्त्रियों को शिक्षित न होने देना, जादू-टोना, शकुन-अपशकुन विचार आदि अनेक ऐसी कुप्रथाएँ हैं जो समाज को निरंतर तोड़ रही हैं। यह सब हमारी भयत्रस्त मनोवृत्ति का परिणाम है। ऐसी कुप्रथाएँ जो जीवन को आगे बढ़ने से रोकती हैं, हमें त्याग देनी चाहिए। कुप्रथाओं के विरोध में जो संस्थाएँ काम कर रही हैं उनके साथ मिलकर इस दिशा में सबको एकजुट प्रयास करना चाहिए और कुप्रथाओं का डटकर विरोध करना चाहिए।
(ग) मुसीबत में ही मित्र की परख होती है
यह सभी जानते हैं, कि जीवन एक संग्राम है। इसमें समय-समय पर तरह-तरह की विपत्तियाँ आती हैं। उन विपत्तियों में हमें परम सहायक मित्र की आवश्यकता होती है। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं
मित्रों का चयन बाहरी चमक-दमक या धन-दौलत अथवा वाक्पटुता से नहीं करना चाहिए। मित्र स्वार्थ सिद्ध करने वाला न होकर हमारी भावनाओं को समझने वाला, सच्चरित्र, विनम्र और परोपकारी होना चाहिए। विश्वासपात्र मित्र को पा लेना बहुत बड़ी सफलता है। सच्चा मित्र हमारा हितैषी होता है, हमें सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है, दोषों से हमारी रक्षा करता है और निराशा में उत्साह देता है। मित्र के सुख और सौभाग्य की चिंता करने वाला सच्चा मित्र बड़े भाग्य से मिलता है। किसी ने ठीक ही कहा है-‘‘सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता उससे भी दुर्लभ।’’
15. (क)परीक्षा भवन
अथवा
(ख) परीक्षा भवन
16. (क) सेवा में,
नाम | : | सुरेश ठाकुर |
पिता का नाम | : | राम प्रकाश ठाकुर |
माँ का नाम | : | श्रीमती सुनीता ठाकुर |
जन्म तिथि | : | 30 जुलाई, 1992 |
वर्तमान पता | : | 302,गोल मार्केट, दिल्लील्ल 110001 |
दूरभाष | : | 011-2254XXX |
मोबाइल | : | 0000546 |
ई-मेल | : | [email protected] |
शैक्षणिक योग्यताएँः
क्रम संख्या | कक्षा | वर्ष | विषय | उत्तीर्ण/प्रतिशत |
1. | दसवी | 2006 | हिंदी, अंग्रेजी, साइंस, गणित, संस्कृत, संगीत | 72% |
2. | बारहवी | 2008 | हिंदी, अंग्रेजी, साइंस, गणित, संस्कृत, संगीत | 86% |
3. | स्नातक | 2011 | हिंदी | 69% |
4. | बी.एड. | 2012 | हिंदी | 93% |
5. | परास्नातक | 2014 | हिंदी | 79% |
अन्य योग्यताएँः
- कम्प्यूटर में 1 वर्ष का डिप्लोमा
- हिंदी, अंग्रेजी, जर्मनी, स्पेनिश भाषा की जानकारी।
- योगा के क्षेत्र में 6 माह का प्रशिक्षण।
अथवा
(ख) To : [email protected]
Subject— मोहल्ले की सफाई के सम्बन्ध में पत्र।
17. (क)
अथवा
(ख)
बधाई संदेश
16-8-20XX प्रातः 11:30 बजे
प्रिय तनिष्क,
जन्मदिन की ढेर सारी बधाई। ‘तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हों पचास हजार।’ ईश्वर तुम्हें स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि, यश, बुद्धि और प्रतिष्ठा प्रदान करें। तुम दीर्घायु हो और जीवन में चरम उन्नति प्राप्त करो।
सोमिल
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