Oswal Practice Papers CBSE Class 10 Hindi-B Solutions (Practice Paper - 9)

खण्ड-(अ)

1. (1) (घ) संघर्ष और प्रतिकूल परिस्थितियों का

(2) (घ) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या करता है।

(3) (क) कर्म और विचारों से

(4) (क) विवेकशील व्यक्ति

(5) (घ) उपरोक्त सभी

2. (1) (घ) सादगी व ईमानदारी

(2) (घ) संपादक के पास अन्य लोग बैठे थे।

(3) (ख) चपरासी की कर्तव्यनिष्ठा से प्रभावित हुए

(4) (ग) राजेंद्र बाबू की सादगी

 (5) (ग) कथन (A) सही है लेकिन कारण (R) उसकी गलत व्याख्या करता है।  

3. (1) (ख) विशेषण पदबंध

(2) (घ) योग-ध्यान करने वाले आप

(3) (घ) संज्ञा पदबंध

(4) (ग) क्रिया-विशेषण पदबंध

(5) (ख) विशेषण पदबंध

4. (1) (क) जो मेहनती हैं वो सब कुछ कर सकते हैं।

(2) (ख) मैंने उसे आने के लिए कहा फिर भी वह नहीं आई।

(3) (घ) 1-iii, 2-i, 3-ii

(4) (ग) मैंने एक दिव्यांग को साइकिल चलाते देखा।

(5) (क) आशा बाजार गई और उसने जूते लिए।

5. (1) (घ) मातृभक्ति

(2) (क) तत्पुरुष समास

(3) (ग) (iii) और (iv)

(4) (क) द्विग

(5) (क) प्रधान है जो मंत्र

6. (1) (ख) आटे-दाल का भाव मालूम होना - कठिनाई का अनुभव होना

(2) (ख) दोषी व्यक्ति शंकित रहता ह

(3) (ग) खुशी का ठिकाना न रहना

(4) (क) मारा-मारा फिरना

(5) (क) सफाई से चोरी करना

(6) (ख) कंगाली में आटा गीला

7. (1) (ख) मन का अहंकार नष्ट होना

(2) (क) मधुर वाणी की

(3) (क) समीप

(4) (क) दोषों को दूर करना

(5) (ग) (i) (iii) और (iv)

8. (1) (क) जब शरीर में किसी से बिछुड़ने का दुःख हो तो कोई दवा या मन्त्र काम नहीं करता

(2) (घ) श्रीकृष्ण के माथे पर मोर पंखों से बना मुकुट सुशोभित है।

9. (1) (क) लेखक का

(2) (क) केवल (i)

(3) (घ) कथन (A)  तथा कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या करता है।

(4) (ख) बड़े भाई से

(5) (ग) कागज की

10. (1) (ग) (i), (iii)  और (iv)

(2) (क) अपने छोटे भाई के अव्वल नंबर आने से नाराज होने के सन्दर्भ मे

खण्ड-(ब)

11. (1) साहित्य समाज का दर्पण होता है। एक सच्चे साहित्यकार का यह कर्तव्य होता है कि वह समाज का परिष्कार करे। ‘तीसरी कसम’ के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ के माध्यम से इस कथन को स्पष्ट किया गया है। फिल्म निर्माता ने फिल्म की सफलता, असफलता और व्यावसायिक लाभ से अधिक महत्व अपने आदर्श को दिया। हमारी फिल्मों में लोक तत्त्व का अभाव होता है। वे वास्तविकता से दूर हैं। शैलेंद्र ने अपने गीतों में दुःख को ग्लोरिफाई न कर उसका वास्तविक रूप ही हमारे समक्ष रखा है। फिल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र संवेदनशील निर्माता थे। धन कमाना व यश प्राप्ति उनका उद्देश्य नहीं था। वे भाव प्रवण गीत व जिंदगी की वास्तविकता को दर्शाने के पक्षधर थे। जीवन की वास्तविकता से समाज को रूबरू करवाना ही उनका उद्देश्य था।

(2) ‘गिन्नी का सोना’ पाठ में लेखक ने शुद्ध आदर्श की बात कही है। शुद्ध आदर्श से लेखक का तात्पर्य वह आदर्श है जो अपने लाभ-हानि से अधिक समाज की उन्नति को महत्व देता है। आदर्शवादी लोगों ने बताया कि जीने की कौन-सी राह ठीक है जो समाज को आदर्श रूप में रख सकती है। इसलिए लोगों ने उनके नेतृत्व को स्वीकार भी कर लिया। हमारे इतिहास में कई ऐसे महापुरुष हैं जिन्होंने समाज की उन्नति के लिए अपने जीवन के सुखों को त्याग दिया। महर्षि दधीचि ने लोक कल्याण के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। श्रीराम ने राजा का धर्म निभाने के
लिए; प्रजा की सुख-शांति के लिए अपने व्यक्तिगत जीवन का भी बलिदान कर दिया। महात्मा गाँधी, सरदार भगत सिंह तथा चंद्रशेखर आज़ाद ने भी देश की आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। ये सभी महापुरुष मनुष्य को आदर्शपूर्ण जीवन जीने की सीख देते हैं।

(3) यदि मैं ‘बड़े भाई साहब’ पाठ में बड़े भाई साहब की भूमिका अदा करता तो वही करता जो उन्होंने किया है। बड़े भाई होने के नाते अपने छोटे भाई के लिए, उसके भविष्य के लिए जितना बन पड़े करता। अपनी इच्छाओं , आकांक्षाओं को न्यून कर उसे दुनिया की खुशी देता, उसे बेराह न होने देता, उसका पथ-प्रदर्शन करता जैसा बड़े भाई साहब ने किया था।

12. (1) पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को प्रकट करने के लिए देख रहे थे। ये वृक्ष प्रतिबिंबित करते हैं कि मानो ये बादलों की घनघोर वर्षा को देखकर गंभीर और चिंतन में लीन हो गए हों। आकाश की ओर एकटक देखते हुए अपनी कामनाओं को पूर्ण करने के लिए अपेक्षित हों। वे मानव की महत्त्वाकांक्षा को प्रतिबिंबित करते हैं।

(2) कवि ने इस कविता में देश के लिए अपने प्राणों के बलिदान करने के लिए तैयार रहने वाले काफिले को आगे बढ़ाते रहने की बात कही है। कवि चाहता है कि यदि सैनिकों की एक टोली देश के लिए शहीद हो जाए, तो सैनिकों की दूसरी टोली युद्ध की राह पर आगे बढ़ जाए। इस प्रकार यहाँ कवि द्वारा देश की रक्षा करने वाले सैनिकों के समूह के लिए ‘काफिले’ शब्द का प्रयोग किया गया है।

(3) आत्मत्राण कविता के आधार पर हम कह सकते हैं कि व्यक्ति को दुःखों और मुसीबतों में ईश्वर को याद रखना चाहिए लेकिन दूसरी तरफ यह भी कहना है कि यदि हमारे पास सुख है तो भी हमें ईश्वर को भूलना नहीं चाहिए। परमात्मा को याद करना, धन्यवाद देना तथा उनके प्रति विनय प्रकट करना न भूलें।

13. (1) गाँव के लोगों के लिए ठाकुरबारी किसी वरदान से कम नहीं थी। कोई भी सुख-दुःख, विवाह, जन्म, मृत्यु, कोई उत्सव, त्योहार कुछ भी हो सबसे पहले ठाकुरबारी की मनौती आती है। यह सब उन्हीं की कृपा से हुआ ऐसा माना जाता है। अतः ठाकुरबारी के प्रति लोगों के मन में अपार भक्ति भावना भरी थी। इन्हीं लोगों के चंदे से ठाकुरबारी का विस्तार हुआ। महंत तथा ठाकुरबारी के पुजारियों ने गाँव वालों की इस भक्ति भावना तथा विश्वास का फायदा अपने स्वार्थ के लिए उठाना शुरू किया तथा उनके मन में अंधविश्वास का बीज़ बो दिया। ‘हरिहर काका’ की जमीन हथियाने के लिए भी महंत ने उन्हें तरह-तरह के धार्मिक लालच दिए। लेखक महंत तथा ठाकुरबारी के पुजारियों के स्वार्थ को पहचानते थे। इसीलिए वे उन्हें पसंद नहीं करते थे। वे लोग ठाकुरजी के नाम पर स्वयं आरामपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते थे। उन्होंने ठाकुरबारी का प्रयोग एक व्यापार के रूप में किया।

(2) विद्यार्थियों को अनुशासन के दायरे में रखने की युक्तियाँ जो इस पाठ में बताई गई हैं वो काफी अनुचित हैं। अनुशासन मन से स्वीकार किया जाता है। शारीरिक यातनाओं द्वारा अनुशासन मनवाया नहीं जाता है। पाठ में प्रीतमचंद बच्चों को यातनाओं द्वारा अनुशासित रखना चाहते हैं। ऐसा करना कदापि उचित नहीं है क्योंकि इससे छात्रों की मानसिक क्षति होती है, वे अवसाद का शिकार तक हो जाते हैं। सरकार की ओर से भी शारीरिक दंड देना अपराध घोषित कर दिया गया है। प्रीतम चंद का अनुशासन अति कठोर था जो छात्रों के लिए बिल्कुल अनुचित है। शिक्षकों को चाहिए कि छात्रों के मनोविज्ञान को समझते हुए रचनात्मक तरीके से छात्रों को अनुशासन में लाएँ उन पर दबाव डालकर नहीं।

(3) टोपी शुक्ला दो अलग-अलग धर्मों से जुड़े बच्चों के बीच स्नेह की कहानी है। टोपी और इफ़्फ़न की मित्रता समझाती है कि जीवन में एक सच्चा मित्र हर धर्म और सम्प्रदाय से ऊपर है। उसके साथ रहकर हमें और किसी की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने मित्रता से बने रिश्ते व प्रेम से बने रिश्ते की सार्थकता को प्रस्तुत किया है। वह समाज के आगे उदाहरण पेश करता है कि मित्रता कभी धर्म व जाति की गुलाम नहीं होती अपितु वह प्रेम, आपसी स्नेह व समझ का प्रतीक होती है। बालमन किसी स्वार्थ या हिसाब से चलायमान नहीं होता। समाज जहाँ देश और धर्मों के नाम पर बँटा है, वहाँ इनकी दोस्ती समाज को प्रेम और भाईचारे का संदेश देती है। इनकी मित्रता बताती है कि जीवन में प्रेम को महत्व दें। धर्म मनुष्य को अच्छे मार्ग पर चलाने के लिए बने हैं, उन्हें बाँटने के लिए नहीं।

14.

(1) विज्ञापन और हमारा जीवन

विज्ञापन का उद्देश्य किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा विचारों का प्रचार-प्रसार करना होता है। जो विज्ञापन श्रोता, पाठक या उपभोक्ता के मन पर जितनी गहरी छाप छोड़ पाता है, वह उतना ही प्रभावशाली विज्ञापन कहलाता है। विज्ञापनों का संसार बहुत विस्तृत और मायावी है। सर्वाधिक विज्ञापन वस्तुओं के होते हैं। साबुन, तेल, कपड़े, टी. वी. आदि के विज्ञापन व्यापारिक विज्ञापन कहलाते हैं। सामाजिक-धार्मिक विज्ञापनों में सामाजिक कार्यक्रमों, महापुरुषों, कवि-सम्मेलनों आदि के विज्ञापन और शैक्षिक विज्ञापनों में पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं, कोचिंग, विद्यालयों आदि के विज्ञापन आते हैं। हमारी सारी दिनचर्या विज्ञापनों से प्रभावित होती है। हमारे टी. वी. और समाचार-पत्र दिन में बार-बार इन्हीं की रट लगाए रहते हैं। यहाँ कुरूप से कुरूप वस्तुओं को सुन्दर और बेकार सामग्री को भी प्रभावशाली बनाया जाता है। संवादों के माध्यम से एक ऐसा भ्रम जाल फैलाया जाता है जैसे एक हफ्ते में फर्राटेदार अंग्रेजी बोलना सीखें, गंजे सिर में तेल द्वारा बाल उग आएँगे, दो महीने में कोई ताड़ के पेड़ जैसा लम्बा हो जाएगा, पन्द्रह दिनों में आपकी कमरा जैसी कमर पतली हो जाएगी आदि। ऐसे भ्रामक विज्ञापनों पर तुरन्त रोक लगनी चाहिए। इससे उपभोक्ता ठगे जाते हैं। विज्ञापनों में मसाला लाने के लिए बड़े-बडे़ अभिनेता, नेता आदि ने भी कमर कस ली है। चाहे वे उस सामान का उपयोग न ही करें पर फिर भी उसका विज्ञापन जोर-शोर से करते हैं। विज्ञापनों ने अब अभद्रता का चोला भी ओढ़ लिया है। विज्ञापनदाता सामाजिक-मर्यादा का भी ध्यान नहीं रखते। विज्ञापन द्रुत प्रचार-प्रसार के लिए काम करते हैं, इन्हें भलाई और लाभ के लिए खूब काम में लाना चाहिए, किन्तु इनके अमर्यादित उपयोग पर रोक भी लगनी चाहिए।

(2) जी.एस.टी. (वस्तु एवं सेवा कर) और हम

‘जी. एस. टी.’ एक अप्रत्यक्ष सेवा कर है। जो दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुओं पर लगाया जाता है। यह भारत में 1 जुलाई, 2017 से लागू हुआ। जी. एस. टी. एक उपभोग कर है जो उन राज्यों से लिया जाता है जहाँ वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग किया जाएगा न कि उस राज्य के द्वारा जहाँ यह वस्तुएँ एवं सेवाएँ निर्मित होंगी। जी.एस.टी. के अनुसार अलग-अलग वस्तुओं पर कर की दर लागू होगी। अगस्त 2009 में 13वें वित्त आयोग के अध्यक्ष श्री विजय केलकर की अध्यक्षता में वस्तु एवं सेवा कर पर विचार-विमर्श किया गया। केलकर महोदय के अनुसार वस्तु व सेवा कर लागू करने में केन्द्र व राज्य के मध्य सहयोग एवं तालमेल अनिवार्य है तथा केन्द्र सरकार को राज्यों की इस मुद्दे पर उत्पन्न चिंताओं के प्रति संवेदनशील रवैया अपनाने की भी सलाह दी। वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में बनी सरकार ने जी.एस.टी. (वस्तु एवं सेवा कर) सम्बन्धी 122वाँ संशोधन विधेयक लोकसभा के शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत किया। इस विधेयक में पूर्व में राज्यों द्वारा उठाई जाने वाली आपत्तियों के शमन का गम्भीर प्रयास किया गया। प्रस्तावित विधेयक में राज्यों में होने वाली सम्भावित नुकसान की क्षतिपूर्ति हेतु व्यापक प्रावधान करते हुए यह व्यवस्था की गई है कि वस्तु एवं सेवा कर लागू होने की दिशा में प्रत्येक राज्य को पहले 3 वर्ष तक 100% मुआवजा दिया जाएगा, जबकि चैथे वर्ष 75% एवं पाँचवे वर्ष 50% की राजस्व क्षतिपूर्ति प्रदान की जाएगी।

(3) हमारे त्योहार- हमारी सांस्कृतिक

हमारे त्योहार हमारे राष्ट्र की पहचान हैं। ये राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना की धरोहर हैं। त्योहार, देश में रहने वाले नागरिकों की पहचान हैं, यह हमें संकेत देते हैं कि चाहे हमारे धर्म अलग हैं पर हम सभी एकता के एक सूत्र में बँधे हैं। त्योहार राष्ट्र के सामूहिक आनंद-भाव को उजागर करते हैं। परन्तु यह दुःखद है कि त्योहारों के हर्ष-उल्लास के माहौल में कुछ शरारती व असामाजिक तत्व खलल डालते हैं। माहौल तनावपूर्ण बना देते हैं। उसको जातिगत व राजनीतिक रंग देते हैं। इससे त्योहारों का आनंद और उत्साह फीका पड़ जाता है। इस पर रोकथाम बहुत जरूरी है और इनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। त्योहार घर-परिवार के सभी सदस्यों को, रिश्तेदारों को समीप आकर मिल-जुलकर बैठने व जाति व धर्म से ऊपर उठकर अलगाव की भावनाओं को समाप्त करने का सुअवसर प्रदान करते हैं। परस्पर एक-दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़ने का अवसर प्रदान करते हैं। हमारे त्योहार कई प्रकार के आदर्श, मान एवं मूल्य को संजोए रखते हैं। राष्ट्रीय एकता व अखण्डता के लिए त्योहार जरूरी हैं।

15. (1) 25 जुलाई 20XX

तिलक नगर,
 
नई दिल्ली
 
सेवा में,
 
थाना प्रभारी,
 
थाना तिलक नगर,
 
नई दिल्ली-18
 
विषयः पड़ोस में हुई वारदात की सूचना देने हेतु
 
माननीय महोदय,
 
सविनय निवेदन है कि गत रात हमारे पड़ोसी श्री आनंद गुलाटी के घर में चोरी हो गई है। वे किसी विवाह-समारोह में शामिल होने अमृतसर गए हैं, इस अवसर का लाभ उठाते हुए चोरों ने उनके घर को निशाना बनाया एवं घर का ताला तोड़कर कीमती सामान ले गए। प्रातः उनका दरवाजा टूटा पड़ा था एवं घर का सारा सामान बिखरा पड़ा था। उनके घर में किसी असामाजिक तत्व द्वारा और हानि न हो, इसलिए हम आपका ध्यान इस ओर आकर्षित कर रहे हैं। अतः आपसे अनुरोध है कि घटनास्थल का निरीक्षण कर उचित कार्रवाई करें।
 
धन्यवाद
 
भवदीय
 
नीरज सलूजा (अध्यक्ष)
 
मोहल्ला सुधार कमेटी

अथवा

(2) सेवा में,

प्रधानाचार्या,
 
दिल्ली पब्लिक स्कूल,
 
डागापुर, सिलीगुड़ी
 
दिनांक- 5 दिसम्बर, 20XX
 
विषयः वार्षिकोत्सव में आयोजित खेलकूद में भाग लेने हेतु पत्र।
 
माननीय महोदय,
 
सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय की दसवीं की छात्रा हूँ। आज ही कक्षाध्यापिका से वार्षिकोत्सव के आयोजन के विषय में सुना। मैं बताना चाहती हूँ कि कई खेलकूद प्रतियोगिताओं में मैंने भाग लिया है व पुरस्कार भी जीते हैं। खेलकूद प्रतियोगिताओं के प्रति मेरी अत्यधिक रुचि है तथा मैं इसमें अपना उज्ज्वल भविष्य भी देखती हूँ। मेरा आपसे यही निवेदन है कि मुझे आप विद्यालय की इन प्रतियोगिताओं में भाग लेने की अनुमति प्रदान करें। आपकी अति ड्डपा होगी।
 
धन्यवाद
 
आपकी आज्ञाकारी छात्रा
 
रीमा
 
कक्षा - दसवीं ‘अ’
 
अनुक्रमांक - 5

16. (1)

सूचना

बाल भवन, नई दिल्ली

आप सभी को सूचित किया जाता है कि ‘बाल भवन’ इस ग्रीष्मावकाश में दो विभिन्न आयुवर्ग समूहा (8 वर्ष स 12 वर्ष तथा 13 वर्ष स 15 वर्ष) लिए ‘बाल चित्रकला कार्यशाला’ का आयोजन कर रहा है। सारी आवश्यक सामग्री संस्था द्वारा ही दी जाएगी।

कार्यशाला का आयोजन - 1 जून से 15 जून (15 दिन) पंजीकरण का स्थान - बाल भवन, द्वारका, नई दिल्ली

कार्यशाला का समय - प्रातः 10 बजे स 12 बजे तक पंजीकरण का समय - प्रातः 9:30 बजे स 12:30 बजे तक

पंजीकरण की तिथि - 20 स 25 मई पंजीकरण शुल्क - 500 रुपए

पहले आओ पहले पाओ के आधार पर प्रवेश।

अथवा

(2)

सूचना

मेट्रो स्टेशन, तिलक नगर

समस्त यात्रियों को सूचित किया जाता है कि दिनांक 05-08-xx को प्रातः 6 बजे से सायं 8 बजे तक द्वारका सेक्टर 21 से नोएडा सेक्टर 18 के बीच किसी तकनीकी खराबी को ठीक करने के लिए मेट्रो लाइन की मरम्मत का काम होगा। जिस कारण द्वारका से वैशाली जाने वाली मेट्रो रेल सेवा बाधित रहेगी। यात्रियों की असुविधा के लिए खेद है।

दिनांकः 03-08-xx    स्टेशन अधीक्षक

                                  दिल्ली मेट्रा

17. (1)

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अथवा

(2)

18. (1) राजन काफी मेहनती व होशियार बालक था, पर इस बार परीक्षा परिणाम को लेकर वह काफी चिंतित था, क्योंकि वह परीक्षा के समय बीमार पड़ गया था। कल परिणाम आने वाला था जिस कारण राजन के लिए आज की रात निकालनी मुश्किल हो रही थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि यदि वह अनुत्तीर्ण हो गया तो अपने परीक्षा का नतीजा पापा को कैसे बताएगा? काफी मुश्किल से वे उसे पढ़ा रहे थे। एक छोटी-सी नौकरी और पूरे परिवार का भरण-पोषण पापा के ही हाथ था। यह सोचते-सोचते अचानक उसकी नींद खुल गई। उसने देखा कि सुबह हो गई है। वह जल्दी से उठा और स्नान आदि कर विद्यालय चला गया। उसके मन में परिणाम के लिए काफी डर था। विद्यालय छात्रों से भरा पड़ा था, राजन भी कक्षा में पहुँचा। सभी को अपना-अपना परिणाम मिलने लगा, राजन की बारी भी आ ही गई, वह शिक्षक के समीप पहुँचा, शिक्षक ने उसे मुस्कुराते हुए परिणाम पत्र दिया और कहा और मेहनत करो। परिणाम पत्र लेकर वह घर पहुँचा। परिणाम पहले की अपेक्षा अच्छा नहीं था पर बुरा भी नहीं था। पापा बोले कोई बात नहीं। अगली बार और मेहनत करना।

अथवा

(2) To : [email protected]

cc: [email protected]

Subject— बस चालकों की असावधानी के कारण हो रही दुर्घटनाओं के सम्बन्ध मे

महोदय,
 
मैं आपके लोकप्रिय दैनिक समाचार-पत्र के माध्यम से सरकार और आम जनता का ध्यान बस चालकों की बढ़ती लापरवाही और असावधानी की ओर आकर्षित करना चाहती हूँ ताकि इस समस्या से छुटकारा पाने के सुदृढ़ उपाय किए जा सकें। बस चालक बसों को निधारित गति-सीमा से अधिक तेज चलाते हैं साथ ही अधिक-से-अधिक सवारियों को अपनी बस में बैठाने की होड़ में वे असावधानी बरतते हैं। इसी जल्दबाजी और सवारियों को चढ़ाने की आपा-धापी में बुजुर्ग और दिव्यांग यात्रियों को दुर्घटनाग्रस्त भी होना पड़ता है। कितनी बार तेज बस चलाने के कारण, वे लाल-बत्ती भी पार कर जाते हैं आम आदमी को इन सभी कारणों से परेशानी झेलनी पड़ रही है। जनता के सब्र का बाँध टूटने से पहले इन सभी को कड़ी से कड़ी चेतावनी दी जानी चाहिए, अन्यथा स्थिति बेकाबू हो जाएगी।
 
सधन्यवाद
 
भवदीया,
 
अंजलि गुप्ता
 
दिल्ली।

CBSE Practice Paper Hindi-B Class 10

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