Oswal Practice Papers CBSE Class 10 Hindi-A Solutions (Practice Paper - 7)
खण्ड-(अ)
1. (1) (घ) सांस्कृतिक संस्कारों का अभाव होने के कारण।
(2) (ख) केवल प्रतिद्वंद्विता बढ़ा रही है।
(3) (ग) कथन (A) सही है और कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या है।
(4) (ख) कथन (iii) सही है।
(5) (ग) नैतिक सिद्धांत भूलकर कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं।
2. (1) कथन (ii) सही है।
(2) (ख) झींगुर की आवाज के मधुर संगीत से वन गूँज रहा है
(3) (क) नल को मिले श्राप के कारण
(4) (घ) कथन (A) व (R) सही हैं, किंतु कथन (A), (R) की सही व्याख्या नहीं है।
(5) (घ) उपर्युक्त सभी को
3. (1) (ग) वर्षा रुकी और बादल छँट गए।
(2) (क) सरल वाक्य
(3) (क) जब शिक्षक सामने होते हैं, तब छात्र शांत रहते हैं।
(4) (ग ) कथन (i), (iii) व (iv) सही हैं।
(5) (क) 1-iii, 2-i, 3-ii
4. (1) (क) कर्तृवाच्य
(2) (क) कृष्णा के द्वारा सितार बजाया जाता है।
(3) (ग) सुनीता विलियम्स ने उद्घाटन किया।
(4) (ख) केवल 4 सही है।
(5) (ग) 1-ii, 2-iii, 3-i
5. (1) (घ) व्यक्तिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्ताकारक
(2) (ख) अकर्मक क्रिया, एकवचन, पुल्लिंग, अपूर्ण वर्तमानकाल
(3) (क) अनिश्चयवाचक सर्वनाम, पुल्लिंग, एकवचन
(4) (घ) विशेषण, संख्यावाचक, क्रमसूचक, स्त्रीलिंग, एकवचन, कक्षा ‘विशेष्य’
(5) (क) क्रिया, अकर्मक, पूर्ण भूतकाल, बहुवचन, कर्तृवाच्य
6. (1) (घ) अतिशयोक्ति।
(2) (ख) मानवीकरण
(3) (ख) उत्प्रेक्षा
(4) (क) जिसकी तुलना की जाए
(5) (ग) श्लेष
7. (1) (ग) कुछ लोग देश की खातिर अपना सर्वस्व बलिदान कर देने वालों पर हँसते थे।
(2) (क) स्वार्थी और मतलबी लोग
(3) (ग) पंद्रह दिन बाद
(4) (ग) कि आज वह मूर्ति की तरफ नहीं देखेंगे।
(5) (क) चैराहा
8. (1) (घ) उपर्युक्त सभी कारण थे।
(2) (क) कबीर पंथ मनुष्य को सांसारिक आकर्षणों से दूर रहने की प्रेरणा देता है।
9. (1) (क) इस धनुष को तोड़ने वाला आपका ही कोई दास होगा।
(2) (घ) इन सभी गुणों का
(3) (ग) परशुराम के
(4) (ख) मृत्यु के
(5) (क) त्रिपुर + अरि
10. (1) (घ) ये सभी
(2) (ग) देश के लिए बलिदान देने की
खण्ड-(ब)
11. (क) अन्तिम दिनों में मन्नू भंडारी के पिता का स्वभाव शक्की हो गया था। लेखिका ने इसके कई कारण बताए हैं - उन्हें अपनों के हाथों विश्वासघात मिला, आर्थिक विषम परिस्थितियों के कारण तथा अधूरी महत्वाकांक्षाओं के कारण वे स्वभाव से शक्की हो गए।
(ख) भीड़ से बचकर यात्रा करने के उद्देश्य से जब लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़ा तो देखा उसमें एक नवाब साहब पहले से बैठे थे लेखक को देखकर नवाब साहब के चिंतन में व्यवधान पड़ा। नवाब साहब की आँखों में असंतोष का भाव उभर आया। उन्होंने लेखक से बातचीत करने की पहल नहीं की, कुछ देर बाद वे डिब्बे की स्थिति को देखने लगे। इन हाव-भावों को देखकर लेखक ने जान लिया कि नवाब साहब उनसे बातचीत करने के इच्छुक नहीं हैं।
(ग) सेनानी न होते हुए भी लोग चश्मे वाले को कैप्टन इसलिए कहते थे क्योंकि कैप्टन चश्मे वाले में नेताजी के प्रति अगाध लगाव एवं श्रध्दा भाव था। वह शहीदों एवं देशभक्तों के अलावा अपने देश से उसी तरह लगाव रखता था जैसे कि फौजी व्यक्ति रखते हैं। उसमें देश-प्रेम कूट-कूटकर भरा था। कैप्टन नेताजी को बिना चश्मे के देखकर दुखी होता था।
(घ) बालगोबिन भगत का जीवन कबीर को समर्पित था। वे अपनी अन्तिम साँस तक भक्ति-संगीत में लीन रहे। जीवन-पर्यन्त कठिन नियमों का पालन करते हुए सद्कर्मों में लगे रहे। उनके अन्दर छल-कपट, ईष्र्या-द्वेष आदि भावनाएँ लेशमात्र भी नहीं थीं। उन्होंने आजीवन न किसी की वस्तु को छुआ और न ही उसको बिना पूछे व्यवहार में लाये। पूरा जीवन गाते-गाते जिया। अन्त समय में भी गंगा-स्नान करने के बाद गीत गाते हुए ही मृत्यु हुई। जाते-जाते भी वे अपना संगीत बाँटकर गए। इन सभी बातों से सि( होता है कि बालगोबिन भगत की मृत्यु गौरवशाली मृत्यु है।
12. (क) सूरदास द्वारा रचित इन पदों में गोपियाँ योग साधना को अपने लिए निरर्थक मानती हैं। वे कहती हैं कि हमने तो मन, क्रम और वचन से श्री कृष्ण को दृढ़तापूर्वक पकड़ लिया है जिस प्रकार हारिल पक्षी लकड़ी को पकड़े रहता है। हम हर समय श्री कृष्ण का ही ध्यान करती हैं। हमारे लिए ये योग किसी कड़वी ककड़ी की भाँति हैं। योग उनके लिए उपयुक्त है जिनका मन चंचल है। हमारा मन श्री कृष्ण में ही रमा हुआ हैं। हमारे लिए यह व्यर्थ है।
(ख) कवि का मानना है कि उसके जीवन में ऐसी कोई उपलब्धि नहीं है जिससे लोगों को प्रेरणा प्राप्त हो सके। उसे लगता है कि अभी आत्मकथा लिखने का उचित समय भी नहीं है क्योंकि अभी उसकी सारी व्यथाएँ सोई हुई हैं। उसका चित्त शांत है। वह आत्मकथा लिखकर अपने मन को व्यथित और व्याकुल नहीं करना चाहता।
(ग) अट नहीं रही है’ कविता में प्रकृति का सौन्दर्य सब जगह व्याप्त है। कोई भी स्थान प्राड्डतिक सौन्दर्य से अछूता नहीं है। फाल्गुन की सुन्दरता फूटी पड़ रही है। पेड़ हरे और लाल पत्तों से लदे हुए हैं। सुगन्धित पवन चल रही है। रंग-बिरंगे फूल खिल रहे हैं। पक्षी पंख फड़फड़ाकर उड़ने को आतुर हैं। चारों ओर सौन्दर्य-राशि बिखरी हुई है। यह दृश्य इतना मोहक है कवि की आँख हट नहीं रही है।
(घ) संगतकार प्रभावशाली स्वर में नहीं गाता है, क्योंकि वह नहीं चाहता है कि मुख्य गायक से उसका स्वर तेज़ हो जाए। संगतकार सोचता है कि अगर उसका स्वर तेज़ हो गया, तो मुख्य गायक का स्वर एवं प्रभाव क्षीण हो सकता है। वह मुख्य गायक के प्रति श्रध्दा रखता है, जिसके परिणामस्वरूप संगतकार की आवाज़ में हिचक-सी प्रतीत होती है।
13. (क) नोटः यह उत्तर हर विद्यार्थी की समझ व भावनाओं के आधार पर अलग होगा।
पाठ के आधार पर भोलानाथ और उसके साथियों ने टूटे घड़ों, तिनकों, दियासलाइयों और दातूनों आदि से अपने बचपन की दुनिया रची थी, लेकिन वह दुनिया हमारे बचपन की दुनिया से बिल्कुल भिन्न थी। हमारे समय में आधुनिकता का दौर है। इसलिए हमारे पास सुन्दर और बैटरी से चलने वाले खिलौने हैं। मनोरंजन के लिए टी. वी., कम्प्यूटर एवं फिल्में हैं। तथाकथित सुख-सुविधाएँ जुटाने में माता-पिता का स्नेह है।
(ख) विज्ञान का दुरुपयोग जानलेवा है। एक संवेदनशील नागरिक होने के नाते मेरा कर्तव्य है कि मैं समाज को इसकी हानियों के प्रति जागरूक करूँ। इसके लिए हम निबन्ध प्रतियोगिता, नुक्कड़ नाटक तथा वाद-विवाद प्रतियोगिताओं व चैपालों को माध्यम बनाकर लोगों तथा किसानों को जागरूक कर सकते हैं। इसके लिए पाॅलीथिन का प्रयोग व निर्माण बन्द करने के लिए सरकार से उचित व प्रभावी कदम उठाने के लिए पत्र-व्यवहार कर सकते हैं। किसानों को रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों के प्रयोग से होने वाली हानियाँ बताकर, उन्हें इसका प्रयोग न करने के लिए आग्रह करेंगे।
(ग) कृतिकार की ईमानदारी की लेखन में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। जब कृतिकार आंतरिक अनुभूति की विवशता से मुक्ति पाने के लिए कुछ लिखता है, तो उसके लेखन मे उसकी ईमानदारी अभिव्यक्त होती है। अज्ञेय जी ने इस ईमानदारी के सम्मुख आने वाली अन्य लेखकीय विवशताओं जैसे संपादको अथवा प्रकाशक का आग्रह, आर्थिक आवश्यकता, प्रसिद्धि पाने की अभिलाषा आदि लेखकीय विवशताओं का उल्लेख किया है। साथ ही उन्होंने इस प्रकार के दवाब में किए गए लेखन को सामान्य लेखन की श्रेणी में रखा है।
14. (क) प्रदूषण - कारण और निवारण
प्रदूषण चार प्रकार का होता हैµवायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण और भूमि-प्रदूषण। वायु-प्रदूषण का कारण है बढ़ता हुआ औद्योगीकरण। कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ तथा सड़क पर चलने वाले वाहनों ने वातावरण को विषाक्त बना दिया है।
कारखानों से निकलने वाला कचरा, नदी-तालाबों को हानि पहुँचाता है, ये सभी जल-प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं। प्रदूषित जल से अनेक बीमारियाँ फैलती हैं। तेज आवाजें हमारी श्रवण-शक्ति और हृदय की बीमारियों को जन्म देती हैं। उपज बढ़ाने के लिए विभिन्न रासायनिक खादों का प्रयोग हमारे खाद्यान्न को प्रदूषित करता है। प्रदूषण से बचने के लिए वृक्षारोपण सर्वश्रेष्ठ साधन है। वृक्षों के अधिक कटाव पर भी रोक लगानी चाहिए। औद्योगिक कचरे और धुएँ को बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। लाउडस्पीकर आदि के प्रयोग को नियंत्रित किया जाना चाहिए।
(ख) मुड़ो प्रकृति की ओर
प्रकृति स्वभाव से प्राणियों की सहचरी रही है। उसने हमेशा हर रूप में मानव को लाभान्वित किया है। जब से मनुष्य ने विज्ञान की शक्ति पाकर प्रकृति से छेड़छाड़ प्रारंभ की, तभी से वह प्राकृतिक सुखों से वंचित होता गया। वनों की अंधाधुन कटाई के कारण पर्वत-स्खलन, भू-क्षरण, बाढ़, बे-मौसमी बरसात तथा पर्यावरण-प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण शहरों में रहने वाले लोगों का दम घुटता जा रहा है। आज आवश्यकता इस बात की है कि मानव पुनः प्रकृति की ओर मुड़े, प्रकृति से पुनः सामंजस्य स्थापित कर सके तथा उसे सहचरी समझकर उसका सम्मान करे। पाँच जून को समूचे विश्व में ‘पर्यावरण दिवस’ मनाया जाना इस बात का साक्षी है कि अब मानव ने प्रकृति के महत्व को स्वीकार लिया है तथा उसके संरक्षण के हर संभव प्रयास की ओर गंभीरता से विचार करने पर विवश हुआ है।
(ग) हमारे समाज में नारी का स्थान
प्राचीन काल में हमारे समाज में नारी का महत्व नर से कहीं बढ़कर होता था। समय के बदलाव के साथ नारी-दशा में भी बदलाव आया। मध्यकाल में नारी की स्थिति अत्यंत शोचनीय हो गई। वह केवल भोग्या और विलासिता की वस्तु बनकर रह गई। शिक्षा के प्रचार-प्रसार के फलस्वरूप अब नारी की स्थिति में सुधार हुआ है। नारी आज समाज में प्रतिष्ठित और सम्मानित हो रही है। वह अब घर से बाहर दायित्व निर्वाह करने के लिए आगे बढ़ गई है। वह घर की चारदीवारी से अपने कदमों को बढ़ाती हुई समाज की विकलांग दशा को सुधारने के लिए प्रयासरत हो रही है। नारी में किसी प्रकार की शक्ति और क्षमता की कमी नहीं है। केवल अवसर मिलने की देर होती है। नारी के इस रूप में समाज में प्रतिष्ठा व स्वीकार्यता मिलनी भी शुरू हो गई है। इस प्रकार नारी का स्थान हमारे समाज में आज अधिक समादृत और प्रतिष्ठित है।
15. (क) ए.47ए सेक्टर 16ए
नोएडा, उत्तर प्रदेश
दिनांकः 15-07-20XX
अथवा
(ख) मनीष कुमार
16. (क) सेवा में,
नाम | : | महेश कुमार |
पिता का नाम | : | सुरेश कुमार |
जन्म तिथि | : | 9-10-1995 |
वर्तमान पता | : | 65ए विकास नगर, पानीपत |
स्थायी पता | : | 65ए विकास नगर, पानीपत |
टेलीफोन | : | 0184-4546840 |
मोबाइल | : | 9478895XXX |
ई-मेल | : | [email protected] |
शैक्षणिक योग्यताएँः
परीक्षा | बोड | विषय | श्रेणी | प्रतिशत |
दसवी | हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोड | हिंदी, अंग्रेजी, साइंस, गणित, संस्ड्डत | प्रथम | 90% |
बारहवी | हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोड | हिंदी, अंग्रेजी, साइंस, गणित, संस्ड्डत | प्रथम | 90% |
स्नातक | कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय | हिंदी, अंग्रेजी, संस्ड्डत, गणित | प्रथम | 92% |
पत्रकारिता | कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय | पत्रकारिता | प्रथम | 96% |
अथवा
To : [email protected]
Subject — स्थानांतरण प्रमाण-पत्र हेतु
17. (क)
अथवा
(ख)
संदेश
10 अगस्त, 20XX प्रातः 8:00 बजे
आदरणीय फूफाजी
कल दिनांक 12 अगस्त को पूज्यनीय दादाजी की पुण्य तिथि के पुनीत अवसर पर उनकी स्मृति में मैं प्रातः 10 बजे वृध्दाश्रम में जाकर कुछ सामान वितरित करना चाहता हूँ ताकि उनके नाम को लोग याद रखें व जरूरतमंदों का भला भी हो सके। कृपया आप भी मेरे साथ चलें।
आयुष
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