Oswal Practice Papers CBSE Class 10 Hindi-B Solutions (Practice Paper - 7)

खण्ड-(अ)

1.  (1) (ग) जर्जर

(2) (ग) कथन (A) सही है लेकिन कारण (R) उसकी गलत व्याख्या करता है।

(3) (ग) मनु ने

(4) (क) मानवीयता

(5) (क) अर्थशास्त्र

2. (1) (घ) सभी

(2) (ग) सत्संगति

(3) (ख) रामायण

(4) (घ) महात्मा बुद्ध ने

(5) (ख) कथन (A) गलत है, लेकिन कारण (R) सही है।

3. (1) (ख) विशेषण पदबंध

(2) (घ) मेरे परिचित लोगों में से कोई

(3) (ख) विशेषण पदबंध

(4) (ग) क्रिया विशेषण पदबंध

(5) (घ) क्रिया-विशेषण पदबंध

4. (1) (क) जो धनी है वो सब कुछ खरीद सकते हैं।

(2) (ख) मैंने उसे बुलाया पर वह नहीं आई।

(3) (घ) 1-iii, 2-i, 3-ii

(4) (ख) परिश्रमी व्यक्ति के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं होता।

(5) (क) आशा बाजार गई और उसने कपड़े लिये।

5. (1) (क) मूषकवाहन

(2) (घ) द्विगु समास

(3) (क) (iii)  और (iv)

(4) (ख) अन्न-जल/द्वंद्व समास

(5) (ग) कंठ तक

6. (1) (घ) एक लाठी से हाँकना-अच्छे-बुरे का अंतर न करना

(2) (ग) बहुत प्रसन्न होना

(3) (घ) बाधा डालना

(4) (क) भयभीत होना

(5) (घ) आपे से बाहर

(6) (ग) तरह-तरह के अनुभव प्राप्त करना

7. (1) (क) बंधुत्व मे

(2) (ग) परमात्मा का

(3) (ख) आत्मा की एकता

(4) (ख) अर्थ

(5) (ख) (i), (ii) और (iii)

8. (1) (घ) सभी

(2) (ग) आत्मत्राण

9. (1) (ग) सिंधी

(2) (ख) केवल (iv)

(3) (घ) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या करता है।

(4) (क) पिता की बाजू पर 

(5) (ग) च्योटे को बेघर करने के कारण

10. (1) (क) (i), (ii) और (iv)

(2) (क) सक्रिय नागरिक बनने की

खण्ड-(ब)

(वर्णनात्मक प्रश्न)

11. (1) रूढ़ियाँ और बंधन समाज को अनुशासित करने के लिए बनते हैं, किंतु ये तभी तक सही हैं जब तक वे इन उत्तरदायित्वों को पूरा करते हैं परन्तु जब इन्हीं के कारण मनुष्यों की भावनाओं को ठेस पहुँचने लगे और ये सब बोझ लगने लगें तो उनका टूट जाना ही अच्छा होता है। रूढ़ियाँ जब हमारी सोच को सीमित कर प्रगति के मार्ग को अवरुद्ध कर देतीं हैं तब इसमें आधुनिकता का समावेश करना आवश्यक हो जाता है। पाठ तताँरा वामीरो कथा में रूढ़ियों के कारण तताँरा और वामीरो का विवाह नहीं हो सकता था, जिसके कारण दोनों को अपनी जान गँवानी पड़ी। इस प्रकार जहाँ रूढ़ियाँ किसी का भला करने की जगह नुकसान करें और रूढ़ियाँ आडंबर लगने लगें तो वहाँ इनका टूट जाना ही बेहतर होता है।

(2) मनुष्य ने पृथ्वी, उसके जीवों तथा स्वयं को बाँट दिया है। भगवान इस धरती को सबके लिए बनाया है। इसमें हर प्राणी का समान अधिकार है। कोई एक इसे अपनी जागीर नहीं समझ सकता। अतः कोई एक इस पर अपना अधिकार दिखाने का प्रयास करे, यह उचित नहीं है। यह पृथ्वी किसी एक की नहीं बल्कि सभी की है। मनुष्य ने अपनी शक्ति के मद में अँधे होकर केवल जीव-जंतुओं को ही अलग नहीं किया है बल्कि आज मनुष्य का मन इतना संकुचित हो गया है कि परिवार को भी टुकड़ों में बाँट दिया गया है, इस कारण एक-दूसरे से दूर होने के कारण आपसी मतभेद हो गए हैं। पहले सभी मिल-जुलकर एक परिवार में रहते थे। आज छोटे-छोटे डिब्बों जैसे घरों में रहने को बाध्य हैं। आज का मानव सिर्फ स्वार्थ के लिए जीता है।

(3) सवार के जाने के बाद कर्नल हक्का-बक्का इसलिए रह गया, क्योंकि जिस वज़ीर अली को पकड़ने के लिए वह जंगल में हफ़्तों से खेमा डाले हुआ था वही सवार के रूप में बड़ी चतुराई और निडरता से कारतूस लेने कर्नल के खेमे में आ जाता है। वज़ीर अली बहुत हिम्मत वाला व्यक्ति था जाते समय कर्नल के द्वारा नाम पूछे जाने पर बड़ी सहज़ता से अपना नाम वज़ीर अली बताकर नौ दो ग्यारह हो जाता है।

12. (1) जिस प्रकार दीपक के जलने पर दीपक का प्रकाश फैल जाता है और अंधकार पूरी तरह नष्ट हो जाता है उसी प्रकार ईश्वर का ज्ञान रूपी दीपक जब मन में जल जाता है तब अज्ञानता रूपी मन का अंधकार दूर हो जाता है। कबीर ने यहाँ दीपक को ईश्वरीय ज्ञान और अँधकार को अज्ञान रूपी अनेक बुराइयों के लिए प्रयोग किया है। कबीर के अनुसार ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति ही मन के अज्ञान को दूर कर सकती है।

(2)

रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।

अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं, दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।

इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने कहा है कि धन-सम्पत्ति आदि का गर्व त्यागकर जीवन व्यतीत करना चाहिए। परमपिता परमेश्वर सबके साथ हैं। वे सबकी सहायता करते हैं।

(3) वर्षा की तीव्रता के कारण कवि को लग रहा है कि मानो धरा पर आकाश टूट पड़ा हो। मूसलाधार वर्षा के उपरांत चारों ओर केवल पानी-ही-पानी दिखाई दे रहा है। पर्वत के चारों ओर फैला विशाल जल, ताल के समान प्रतीत हो रहा है। आकाश में बादलों और धरा पर धुँध के कारण विशाल शाल के पेड़ अदृश्य हो गए हैं। चतुर्दिक विचित्र शांति है और केवल झरने की आवाज सुनाई पड़ रही है अर्थात् चारों ओर से रहस्यमयी वातावरण बना हुआ है।

13. (1) अनपढ़ होते हुए भी हरिहर काका को उनके अनुभव ने व्यावहारिक ज्ञान सिखा दिया था। उन्हें अपनी मृत्यु का इतना डर नहीं था जितना धोखे और अविश्वास का था। इसलिए वे अपनी जमीन-जायदाद किसी के नाम करके अपना भविष्य खतरे में नहीं डालना चाहते थे। भाइयों तथा ठाकुरबारी के महंत की नज़र उनकी ज़मीन पर थी। भाइयों और महन्त के जोर-जबरदस्ती करने पर भी उन्होंने ज़मीन उनके नाम नहीं की क्योंकि उन्हें पता था कि इससे उनका भविष्य खतरे में पड़ जाएगा और उनकी दुर्दशा हो जाएगी। जायदाद नाम कराने के बाद उन्हें कोई पूछेगा भी नहीं। ये सब घटनाएँ दुनियादारी के प्रति उनकी जागरूकता का बोध कराती हैं। उन्होंने गाँव के कई ऐसे लोगों को देखा था जिनकी ज़मीन लिखवाने के बाद कोई उन्हें पूछता भी नहीं था। यह सब देखकर हरिहर काका ने भी इससे वह सबक सीखा जो कोई भी पुस्तक नहीं सिखा सकती।

(2) पी.टी. साहब चैथी कक्षा को फारसी भी पढ़ाते थे। एक दिन बच्चे उनके द्वारा दिया गया शब्द-रूप रट कर नहीं आए। इस पर उन्होंने बड़ी क्रूरता से बच्चों को पीठ ऊँची करके मुर्गा बनने का आदेश दिया, तो उसी समय वहाँ हेडमास्टर साहब आ गए। यह दृश्य देखकर हेडमास्टर साहब उत्तेजित हो उठे। वह छात्रों वेळ प्रति हो रही इस क्रूरता को बर्दाश्त ना कर सवेळ इसी कारण उन्होंने पी.टी. साहब को मुअत्तल कर दिया।

(3) टोपी शुक्ला दो अलग-अलग धर्मों से जुड़े बच्चों के बीच स्नेह की कहानी है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने मित्रता से बने रिश्ते व प्रेम से बने रिश्ते की सार्थकता को प्रस्तुत किया है। वह समाज के आगे उदाहरण पेश करता है कि मित्रता कभी धर्म व जाति की गुलाम नहीं होती अपितु वह प्रेम, आपसी स्नेह व समझ का प्रतीक होती है। बालमन किसी स्वार्थ या हिसाब से चलायमान नहीं होता। समाज जहाँ देश और धर्मों के नाम पर बँटा है, वहाँ इनकी दोस्ती समाज को प्रेम और भाईचारे का संदेश देती है। इनकी मित्रता बताती है कि जीवन में प्रेम को महत्व दें। धर्म मनुष्य को अच्छे मार्ग पर चलाने के लिए बने हैं, उन्हें बाँटने के लिए नहीं। टोपी और इफ़्फ़न की मित्रता समझाती है कि जीवन में एक सच्चा मित्र हर धर्म और सम्प्रदाय से ऊपर है। उसके साथ रहकर हमें और किसी की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इनकी दोस्ती आज के समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

14.

(1) हमारे समाज में नारी का स्थान

प्राचीन काल में हमारे समाज में नारी का महत्त्व नर से कहीं बढ़कर होता था। धर्म-दृष्टा मनु ने नारी को श्रद्धामयी और पूजनीय मानते हुए कहा है

”यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः।“

अर्थात् जहाँ नारी की पूजा-प्रतिष्ठा होती है, वहाँ देवता रमण करते हैं, अर्थात् निवास करते हैं। धीरे-धीरे समय के पटाक्षेप के कारण नारी की स्थिति में कुछ अपूर्व परिवर्तन हुए। वह अब नर से महत्त्वपूर्ण न होकर उसके समकक्ष श्रेणी में आ गई। पुरुष के परिवार के सभी कार्यों का बोझ नारी ने उठाना शुरू कर दिया। इस प्रकार नर और नारी के कार्यों में काफी अंतर आ गया। ऐसा होने पर भी प्राचीन काल की नारी ने हीनभावना का परित्याग कर स्वतन्त्र और आत्म विश्वस्त होकर अपने व्यक्तित्व का सुन्दर और आकर्षक निर्माण किया।

समय के बदलाव के साथ-साथ नारी-दशा में अब बहुत परिवर्तन आ गया है। यों तो नारी प्राचीन काल से अब तक भार्या के रूप में रही है। इसके लिए उसे गृहस्थी के मुख्य कार्यों के लिए विवश किया गया जैसे-भोजन बनाना, बाल-बच्चों की देखभाल करना, पति की सेवा करना। पति की हर इच्छापूर्ति के लिए विवश होकर अमानवता का शिकार बनकर क्रय-विक्रय की वस्तु बन जाना अब नारी जीवन का एक विशेष अंग बन गया।

आधुनिक युग में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के फलस्वरूप अब नारी की वह दुर्दशा नहीं है, जो कुछ अंधविश्वासों, रूढ़िवादी विचारधाराओं या अज्ञानता के फलस्वरूप हो गयी थी। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तजी ने इस विषय में स्पष्ट कहा है-

”एक नहीं, दो-दो मात्राएँ, नर से बढ़कर नारी।“

नारी के प्रति श्रद्धा और विश्वास की भावना व्यक्त की जाने लगी है। कविवर जयशंकर प्रसाद ने अपनी महाकाव्य कामायनी में लिखा है

”नारी! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग, पगतल में।
 
पीयूष स्रोत-सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में

नारी आज समाज में प्रतिष्ठित और सम्मानित हो रही है। वह अब घर की लक्ष्मी ही नहीं रह गयी है अपितु घर से बाहर समाज का दायित्व निर्वाह करने के लिए आगे बढ़ आई है। वह घर की चहारदीवारी से अपने कदम को बढ़ाती हुई समाज की विकलांग दशा को सुधारने के लिए कार्यरत हो रही है। इसके लिए वह नर के समानान्तर पद, अधिकार को प्राप्त करती हुई नर को चुनौती दे रही है। वह नर को यह अनुभव कराने के साथ-साथ उसमें चेतना भर रही है कि नारी में किसी प्रकार की शक्ति और क्षमता की कमी नहीं है। केवल अवसर मिलने की देर होती है। इस प्रकार नारी का स्थान हमारे समाज में आज अधिक समादृत और प्रतिष्ठित है।

(2) आधुनिक संचार क्रांति

प्रगति के पथ पर मानव बहुत दूर चला आया है। जीवन के हर क्षेत्र में कई ऐसे मुकाम प्राप्त हो गये हैं जो हमें जीवन की सभी सुविधाएँ, सभी आराम प्रदान करते हैं। जीवन क क्षेत्रों में सबसे अधिक क्रांतिकारी कदम संचार क्षेत्र में उठाए गए हैं। ऐसे ही संचार साध् नों में आज एक बड़ा ही सहज नाम है इंटरनेट। यूँ तो इसकी शुरुआत 1969 में संयुक्त राज्य अमेरिका के चार विश्वविद्यालय के कम्प्यूटरों की नेटवर्किंग करके की गई थी। इसका विकास मुख्य रूप से शिक्षा, शोध एवं सरकारी संस्थाओं के लिए किया गया था। 1972 में शुरुआत हुई ई-मेल अर्थात् इलेक्ट्रोनिक मेल की जिसने संचार जगत् में क्रांति ला दी। इंटरनेट प्रणाली में प्राॅटोकाॅल एवं एफ. टी. पी. ;फाइल ट्रांसफर प्राॅटोकाॅलद्ध की सहायता से इंटरनेट यूजर ( प्रयोगकर्ता) किसी भी कम्प्यूटर से जुड़कर फाइलें डाउनलोड कर सकता है। मोन्ट्रियल के पीटर ड्यूस ने पहली बार 1989 में मैक्-गिल यूनिवर्सिटी में इंटरनेट इंडेक्स बनाने का प्रयोग किया। इंटरनेट पर सूचना के वितरण के लिए एक नई तकनीक विकसित की जिसे वल्र्ड-वाइड वेब के नाम से जाना गया। ई-काॅम की अवधारणा काफी तेजी से फैलती गई। संचार माध्यम के नए-नए रास्ते खुलते गए। नई-नई शब्दावलियाँ जैसे ई-मेल, वी-मेल, वेबसाइट, डाॅट-काॅम, वायरस, लवबग आदि इसके अध्यायों में जुड़ते रहे। कई नए वायरस समय-समय पर दुनिया के लाखों कम्प्यूटरों को प्रभावित करते रहे। इन समस्याओं से जूझते हुए संचार का क्षेत्र आगे बढ़ता रहा। भारत भी अपनी भागीदारी इन उपलब्धियों में जोड़ता रहा। आज भारत में इंटरनेट कनेक्शनों और प्रयोगकर्ताओं की संख्या लाखों में है।

(3) प्राकृतिक आपदा-भूकम्प

प्रकृति जब भी क्रोधित होती है तो कहर ढाए बिना नहीं मानती है। आकाश के तारों को छू लेने वाला विज्ञान प्राकृतिक आपदाओं के सामने घुटने टेक देता है। अनेक प्राकृतिक आपदाओं में कई आपदाएँ मनुष्य की अपनी देन हैं। प्रकृति के क्षेत्र में मनुष्य जब हस्तक्षेप करता है, तो उसका ऐसा ही परिणाम होता है, जो सुनामी के रूप में और गुजरात के भूकम्प के रूप में देखने में और सुनने में आया।

धरती हिलने या भूकम्प के बारे में अनेक किवदंतियाँ पढ़ीं और सुनीं हैं। कुछ धार्मिक व्याख्याओं के अनुसार यह धरती सप्त मुँह वाले नाग के सिर पर टिकी है जब नाग सिर हिलाता है तो धरती हिलती है। दूसरी किंवदंती है कि धरती धर्म की प्रतीक गाय के सींग पर टिकी है और जब गाय सींग हिलाती है तब धरती हिलती है। वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार पृथ्वी की बहुत गहराई में तीव्रतम आग है। जहाँ आग है, वहाँ तरल पदार्थ है। आग के कारण इस तरल पदार्थ में हलचल होती रहती है। जब यह उथल-पुथल अधिक बढ़ जाती है तब झटके के साथ पृथ्वी की सतह की ओर फूट पड़ती है। इस तरह उसकी तीव्रता के अनुसार पृथ्वी हिलने लगती है। जिससे जान-माल, हर तरह का भीषण नुकसान होता है। सम्पत्तियाँ तबाह हो जाती हैं। हजारों लोग प्रभावित होते हैं।

ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ मनुष्य को सन्देश देतीं हैं कि जब-तक जिओ, तब-तक परस्पर प्रेम से जिओ। हमें प्रकृति का दोहन न करके प्राकृतिक संसाध्नों का संरक्षण एवं संवर्धन करना चाहिए।

15. (1) सेवा में,

प्रधानाचार्य,
 
डी. ए. बी. विद्यालय
 
सेक्टर-14, रोहिणी,
 
नई दिल्ली।
 
दिनांक- 24 अक्टूबर, 20xx
 
विषय - स्थानांतरण प्रमाण-पत्र हेतु।
 
महोदय,
 
सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय में कक्षा दसवीं ‘अ’ का छात्र हूँ। मेरे पिताजी का स्थानांतरण आगरा हो गया है। हमारा समस्त परिवार अब आगरा जा रहा है। मैं वहीं से अपनी आगे की पढ़ाई करूँगा। मुझे वहाँ नए विद्यालय में प्रवेश लेने के लिए इस विद्यालय से स्थानांतरण प्रमाण-पत्र की आवश्यकता है। अतः आपसे अनुरोध है कि आप मुझे स्थानांतरण प्रमाण-पत्र शीघ्र जारी करने की कृपा करें।
 
धन्यवाद
 
आपका आज्ञाकारी छात्र
 
नीरज सलूजा
 
कक्षा- दसवीं ‘अ’
 
अनुक्रमांक-5

अथवा

(2) सेवा में,

संपादक महोदय,
 
अमर उजाला,
 
आगरा
 
दिनांकः 26 अक्टूबर, 20XX
 
महोदय,
 
मैं आपके समाचार-पत्र के माध्यम से एक सुदृढ़ कृषि व्यवस्था हेतु अपने सुझाव देना चाहती हूँ जो किसानों के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं। 
 
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत एक कृषि-प्रधान देश है। भारत की कृषि व्यवस्था तथा अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाने वाला किसान ही आज सुखी नहीं है। कभी जल-प्लावन तथा कभी सूखे की मार झेलने वाला किसान शोषण का शिकार होकर आत्महत्या करने पर उतारू हो रहा है। यह भारत के लिए बड़े दुर्भाग्य की बात है। सरकार को किसानों को ऐसे संकटों से बचाने के स्थायी उपाय करने चाहिए। उनको सस्ता न्नण दिया जाए। पुराने न्नण को माफ किया जाए तथा उनकी फसलों का बीमा कराया जाए, जिससे आपातकाल में उन्हें कुछ मदद मिल सके। किसानों से भी मेरा अनुरोध है कि वे नये संसाधनों के द्वारा खेती करके अधिक-से-अधिक अन्न उगाकर देश को समृद्ध  करने में अपना योगदान दें, जिससे वास्तव में अपना भारत महान कहलाए।
 
आपसे विनम्र अनुरोध है कि इन सुझावों को समाचार-पत्र में स्थान दें।
 
भवदीया
 
दृष्टि कुलश्रेषठ
 
आगरा

16. (1)

सूचना

दिल्ली पब्लिक स्कूल, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल

दिनांक - 8.09.20XX

विद्यालय के सभी छात्रों को सूचित किया जाता है कि आने वाले हिंदी दिवस के अवसर पर विद्यालय की कम्प्यूटर लैब में हिंदी टाइप फाॅन्ट की साप्ताहिक कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। विद्यालय की छुट्टी के बाद, आयोजित होने वाली आधे घण्टे की इस कार्यशाला में कक्षा IX एवं X के विद्यार्थी प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं। इच्छुक विद्यार्थी अपने अभिभावकों के अनुमति पत्र के साथ मैडम के पास दिनांक 10 से 13 सितम्बर तक नाम लिखवाकर रजिस्ट्रेशन फाॅर्म प्राप्त कर लें।

हस्ताक्षर

अ.ब.स (प्रधानाचार्य)

अथवा

(2)

सूचना

इंदिरा गाँधी छात्रावास, विकासपुरी, नई दिल्ली

छात्रावास के सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि कल दिनांक 25.09.20XX से छात्रावास के भोजन करने का स्थान परिवर्तित किया जा रहा है। पुराने कमरे में कोई मरम्मत का कार्य होना है जिसके कारण कल से भोजन (सुबह, दोपहर व रात) पास वाली लाइब्रेरी (R-32) के पास होगा। यह व्यवस्था केवल एक सप्ताह के लिए है। छात्रों की असुविधा के लिए खेद है।

दिनांक - 24.09.20XX

छात्रावास प्रबंधक

नीरज धनोआ

17. (1)

7HINDIb_DS17(1)

(2)

7HINDIb_DS17(2)

18. (1) एक समय की बात है, नीरज नामक बालक का पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगता था। वह दिन के हर पहर खेलता, यहाँ तक कि विद्यालय न जाने के कई बहाने बनाता था। उसकी इन आदतों से उसके माता-पिता भी परेशान हो गए, पर वह किसी की न सुनता। पिताजी के डर से अगर वह पढ़ने बैठ भी जाता तो उसका मन ही नहीं लगता। एक दिन वह अपनी माँ के साथ सब्जी लेने गया वहाँ उसने देखा एक लड़का अपनी माँ के साथ सब्जी बेच रहा है साथ-ही-साथ वह पढ़ भी रहा है। उस पूरे दिन नीरज उस लड़के के विषय में ही सोचता रहा, शाम को वह खेलने भी नहीं गया। शाम को किसी काम से उसकी माँ ने उसे बाजार भेजा, वहाँ उसने देखा कि वही लड़का रास्ते की लाइट में सड़क के किनारे पढ़ रहा था। नीरज से रहा नहीं गया तो उसने उस लड़के से पूछा तुम सब्जी बेचते हो ना? लड़के ने उत्तर दिया- हाँ, सुबह माताजी की सब्जी बेचने में मदद करता हूँ, दोपहर को विद्यालय जाता हूँ। घर पर बिजली न होने के कारण रात में यहाँ पढ़ता हूँ। जीवन में शिक्षा का बहुत महत्व है। यह सब सुनकर नीरज बहुत प्रेरित हुआ। वह शिक्षा के महत्व को समझ गया। अब वह अच्छी तरह पढ़ने लगा एवं उसके विद्यालय में अच्छे अंक भी आने लगे। 

अथवा

(2) To : [email protected]

cc: [email protected]

Subject — अस्पताल कर्मचारियों की प्रशंसा हेतु पत्र

माननीय महोदय,
 
मैं इस ई-मेल के माध्यम से आपका ध्यान अ ब स नगर क्षेत्र के सरकारी अस्पताल के कर्मचारियों के कर्त्तव्यनिष्ठता एवं सद्भावपूर्ण व्यवहार की ओर आकर्षित करना चाहती हूँ साथ ही उनकी प्रशंसा करना चाहती हूँ एवं आशा रखती हूँ कि इसी तरह जनता की सेवा करते रहें। मैं दिनांक 25 जनवरी की सड़क दुर्घटना में घायल हो गई थी, जिस कारण कुछ लोगों ने मुझे तिलक नगर सरकारी अस्पताल में दाखिल किया। मेरे माता-पिता को भी सूचना दी गई। माता-पिता के आने तक अस्पताल के कर्मचारियों व डाॅक्टरों ने मेरा पूरा ध्यान रखा। उन्होंने मेरे सभी दस्तावेजों को भलीभाँति सँभाल कर रखा और माता-पिता के आने के पश्चात् उन्हें दे दिया। मेरा सही व सुचारु रूप से इलाज चला। जिसके लिए मैं उनका धन्यवाद करती हूँ।
 
धन्यवाद
 
भवदीया
 
अंजलि शर्मा

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