Oswal 61 Sample Question Papers ICSE Class 10 Hindi Solutions

Section-A

Answer 1.

(i)

कम्प्यूटर-आज की आवश्यकता

कंप्यूटर- आज की आवश्यकता

आधुनिक युग विज्ञान का युग है इसमें संदेह नहीं की हमें विज्ञान ने हमें चमत्कारी वस्तुएँ प्रदान की है | आज सर्वत्र कंप्यूटर का बोल- बाला है | यदि भारत मै औधोगिक क्रांति लानी है, तो उसके लिए कंप्यूटरकी आवश्यकता है | वर्तमान मै अर्थ, वाणिज्य एबं व्यापार के क्षेत्र मै अति तीव्र गति से परिवर्तन होता जा रहा है जिसमे विज्ञान एवं तकनीकी के कारण विश्व के सभी देशों में प्रतिद्व्निद्वता आ गई है | कोई भी देश इस दौड़ मै पीछे नहीं रहना चाहता | यदि भारत को भी इस क्षेणी मै आना है, तो यहाँ पर कंप्यूटर क्रांति लानी ही पड़ेगी |
निसंदेह कंप्यूटर नै औद्योगो मै क्रांतिकारी मोड़ ला दिया है | यहाँ तक की कारखानों मै निर्मित सामग्री की संख्या ओर उनके स्तर का निर्धारण भी कंप्यूटर दुआरा ही होता है | हानि-लाभ के आँकड़ो की गणना कंप्यूटर स्वयं करता है | औधोगो मै रोबोट (यन्त्र मानव) का उपयोग कंप्यूटर की ही देन है |
बैंकों को कंप्यूटर का योगदान अभूतपूर्व है | विदेशो मै तो कंप्यूटर बैंक मै प्रतेय्क ग्राहक के लिए एक गुप्त 'पिन' रखता है जिसमे दुआरा ग्राहक बैंकों से भुगतान स्वत: प्राप्त कर सकता है | अब तो बड़े- बड़े खातो के रख- रखाव और पैसे के लेन-देन की मथापच्ची से बैंक कर्मचारियो को भी फुर्सत मिलती है | इसमें कोई हेरा - फेरी नहीं हो सकती | आजकल प्रया: सभी संसाधनों, प्रतिष्ठानों मै बिल भी कंप्यूटर दुआरा ही तैयार किये जाते है |रिज़र्व बैंक तथा व्यापारियों बैं को
बैंकों में कम्प्यूटरों का प्रयोग अधिकाधिक होने लगा है, अभी अनुपात में कम्प्यूटरों की अपेक्षा है, का भारतीय बैंकों के लिए पर्याप्त नहीं है। वन बीमा निगम के जटिल कार्यों से निबटने में कम्प्यूटर को अहम् भूमिका है। हमारी अंतरिक्ष यात्राये कम्प्यूटर पर ही आश्रित है। कम्प्यूटर की सहायता के बिना रॉकेट या उपग्रह अन्तरषित नहीं किये जा सकते उनका निधन हो सकता है। परिवहन और दूरसंचार में भी कम्प्यूटरों का विशेष योगदान है। रेलयात्रा या वायुयात्रा मै आरक्षका कार्य कम्प्यूटर के द्वारा आसान हुआ है। सभी राष्ट्रों के शिक्षण कार्य में कम्प्यूटर को अधिकाधिक मदद ली जा रही है जटिल से जटिल समस्याओं का निराकरण कम्प्यूटर द्वारा पलक झपकते हो कर सकते हैं।
अपराध निवारण में भी कम्प्यूटर बहुत उपयोगी है। पश्चिम के कई देशों में सभी को अधिक्रत वाहन मालिकों और कार रिकॉर्ड पुलिस के एक विशाल कम्प्यूटर मै होता है और कम्प्यूटर क्षण मात्र मै सुचना देता की वास्तविक मालिक कोन है? कम्प्यूटर शोध कायों में भी बहुत सहायक है। सोवियत रूस मै 'कीव'स्थित कृषिविज्ञान प्रयोगशाला में एक ऐसा कम्प्यूटर विकसित किया गया है जो जंगलों के घटने की दर का विशलेषण प्रस्तुत करेगा | इस प्रकार के कंप्यूटर से किसानो को फसलों को बोने का ज्ञान प्राप्त सकता है।
कम्प्यूटर विवहा कराने, जन्मपत्री बनाने एवं जन्मपत्री मिलने के लिए भी आजकल उपयोग सिद्ध हो रहा है। अमरीका, जापान और रूस में ऐसे कम्प्यूटर का आविष्कार हुआ है जो होम कम्प्यूटर है। घर बैठे बाज़ार में उपलब्ध चीजो और और उनके मूल्य का पता लगाया जा सकता है|
नि:संदेह कंप्यूटर आधुनिक युग की पहचान है | उसकी कार्यक्षमता की बराबरी नहीं की जा सकती भविष्य मै उसकी बड़ने की ही सम्भावना है | इसमें भारत को एक खतरा अवश्य है , वह यह है कि इसके आधिक्य से भारत मै बेरोज़गारी की समस्या बढेगी | भारत के पास 'मेन पावर ' है परन्तु कंप्यूटर से अनेक के स्थान पर एक व्यक्ति काफी है। इसके अतिरिक्त यह महँगा कार्य है। उत्तम कोटि के कम्प्यूटर भारत को विदेशों से आयत करने पड़ते है इससे हमारी अर्थव्यवस्था चरमरा जएगी | इसके अतिरिक्त इनके रख-रखाव के लिए विशेज्ञ भी विदेशो से ही बुलाना पड़ेगा | ये ऑपरेटर भी काफी धनराशी लेकर ही एक ही काम करेंगे। इसलिए यह कार्य क्ष्रम प्रमुख न होकर पूँजी प्रमुख अधिक है। इसलिए हमें एक संतुलन बनाकर चलना चाहिए ताकि हमारी प्रगति में भी बाधा न आये बेरोज़गारी मै भी बढ़ोतरी न हो| अत: हमे कंप्यूटर का प्रयोग वहा करना चाहिए इसके बिना काम न चले और जगहों पर हमे अपनी 'मेन पावर' का प्रयोग करना चाहिए ताकि देश में बेरोजगारी भी न बढ़े।

(ii)

स्वस्थ जीवन के लिए मनोरंजन

कंप्यूटर- आज की आवश्यकता

स्वस्थ जीवन के लिए मनोरंजन अपरिहार्य है। प्राचीनकाल से ही मनुष्य मनोरंजन को आवश्यक अनुभव को है। मनुष्य अपने प्राप्त साधनों से मनोरंजन करता आया है, लेकिन उन साधनों से मनोरंजन करता आया है, लेकिन उन साधनों के मनोरंजन से उसे सन्तोष नहीं हुआ | अत: वह मनोरंजन के साधनों में निरन्तर विकास करता आया है। प्राचीनकाल में मनोरंजन के साधन सीमित थे जैसे- नाटक, स्वांग, महफ़िल, नट, रीछ व बंदर का तमाशा, सर्कस नृत्य और खेलकूद आदि। इसके अतिरिक्त कठपुतली का खेल शतरंज, ताश के खेल, चोपड,चित्रकला,गाना, बजाना आदि भीमनोरंजन के प्रमुख साधन थे|जो आज प्रचलित है
मनोरंजन के आधुनिक साधनों में विज्ञान ने आधिक सहयता पहुचाई है|मानव की मनोरंजन की समस्या का प्रमुख समाधान नै बड़ी आसानी से कर दिया है | विज्ञान ने मानव को रेडियो, सिनेमा, टेलीविजन आदि साधन प्रदान किये | मनोरंजन से आधिक साधनों मै सिनेमा सबसे अधिक लोकप्रिय है। आज हम देखते हैं कि कस्बों से लेकर शहरों तक में सिनेमा का प्रचलन हो गया है। सिनेमा नाटक का विज्ञान दुआरा परिष्कृत रूप है प्राचीन या आधुनिक नाटकों में जिन घटनाओं को असंभव मानकर नहीं दिखाया जाता था, उन्हीं घटनाओं को सिनेमा माँ सफलतापूर्वक दिखाया जाता है | सिनेमा में नाटक की तरह कोई अभिनेता सामने नहीं आता अपितु उसका बोलता और चलता-फिरता चित्र दिखाई देता है। वेघटनाएँ वास्तविक- सी प्रतीत होती है | सिनेमा अत्यंत सस्ता, सरल और सुलभ साधन है। सिनेमा के माध्यम से अपने शहर में उच्कोती के अभिनेताओ, संगीतकारों,औरों को कलाकारों की कला का दर्शन सुलभ हो जाता है | आज सिनेमा बालक से लेकर वर्द्ध तक सभी में लोकप्रिय है |
दूसरा साधन है रेडियो जो सामूहिक मनोरंजन का साधन न होकर पारिवारिक मनोरंजन का साधन है| इस्सके दुआरा अपने घर पर ही बेठकर देश-विदेश के समाचार सुने जा सकते है ओर गीत-संगीत के दुआरा अपना मनोरंजन करते हैं। इसके गीत कंप्रिय होते है |और संगीत भी सुनने में सरस होता है| संसार में अनेक रेडीयों-स्टेशन है जो भांति-भांति के प्रोग्राम प्रसारित कर क्श्रोताओ का मनोरंजन करते है |
आज तो मोबाइल में भी संगीत और गाने सुनाई देते है। जन भी समय हो तो गानों के दुआरा अपना मनोरंजन कर सकते है। आधुनिक समय में टेलीविजन मनोरंजन का प्रमुख साधन है। टेलोविजन पर सिनेमा को तरह फिल्म,धारावाहिक, हस्य व्यंग्य, कविता आदि के सुनने और देखने का आनन्द प्राप्त होता है। आज हर घर में टेलीविजन प्रत्येक अमीर-गरीब के लिए टेलीविजन मान लो विज्ञानक का वरदान है। टेलीविजन ने अन्य साधनों को जैसे असफल बना दिया है। बाहर से तखा-हारा मनुष्य टेलीविजन देखकर फिर से तरोताजा हो जाता है अर्थात उसककी थकान मिट जाती है। वह पर बैठकर विश्व के सभी समाचारों की जानकारी कर सकता है। इस प्रकार मनोरंजन के साथ-साथ यह ज्ञान भी प्रदान करता है। आजकल तो टेलीविजन पर प्रत्येक समय कुछ कुछ आता रहता है। हर दिन कई फिल्में दिखाई जाती है। लोक के प्रचलन ने सिनेमा को भी पीछे कर दिया है।
मनोरंजन के साधन पद्यपि अधिक है, पर मनुष्य को चिंता अधिक देते है। टेलीविजन पर अधिक क्र्कुर और भ्ध्हे धारावाहिक दिखाए जाते है जो भावी पीड़ी के लिए अत्यन्त हानिकारक है। छात्रों के लिए टेलीविजन अत्यंत हानिकारक साबित हो रहा है | इससे पढाई मै हानि होती है और गलत मार्गदर्शन भी होता है। किसी हद तक टेलीविजन देखना मनोरंजन देखने के लिए अच्छा है, पर अधिक देखना हानिकारक है। टेलीविजन मनुष्य को समाज दूर कर देता है | अति हर चीज़ की बुरी होती है अत: इन साधन को सिमित समय मै ही उपयोग करना चाहिए |

(iii) अपने से बड़े लोगों के प्रति हमारे कुछ कर्तव्य होते हैं। हम उन कर्तव्यो का पालन करते हैं। इसी प्रकार हमारे अधिकार भी होते हैं। इने अधिकारों का हम उपयोग करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का जीवन कर्तव्यों और की और अधिकरों से युक्त होता है। हमारे गुरुजन माता-पिता भाई-बहन जिस प्रकार वे हमसे आशा रखते है उसी प्रकार हम भी उनसे आशाएँ रखते ह हमारे बड़ो में माता-फिया, बड़े भाई-बहन अन्य बड़े रिश्तेदार, गुरु-अध्यापक, नेता लोग सम्मिलित है। हमे विचार करना है कि हमको इनसे क्या आशाएँ रखनी चाहिए |
माता-पिता से आशा करते है कि हमारा अच्छी तरह पालन-पोषण करे| हमारी लिखाई-पढाई का प्रबंधन | हमारी हर सुविधा ध्यान रखे| अपने बड़े भाई या बहन से हमें आशा है कि वेहमारे साथ सहानुभूति रखे, हमें प्रेम करें| हमारे सुख दुःख में हमको सहरा दे | हमारे गुरुजानो अथवा अध्यापकों से हमारी बड़ी आशाएँ होती है वास्तव मै गुरु ही हमारे जीवन को बनाने वाले होते है | उनको हम आदर्श मानकर चलते है | उनकी प्रतेयक गतिविधि, उनका प्रतेयक व्यवहार अनुकरणीय हो ऐसा हमको उनसे आशा है |जब हम आपने किसी आध्यापक मै कोई दोष पाते है तो हमे दुःख होता है | मन कहता है कि वे हमारे अध्यापक होने योग्य नहीं है | अध्यापकों को तो हम अपना आदर्श समझते है |
हम चाहते है कि हमारे अधयापक कक्षा मै हमें इतनी तरह से पढाई की हमको कक्षा मै ही सारी बाते याद हो जाये | घर पर याद करने आवश्यकता न रहे। खेल के मैदान में जब जाते है हम चाहते है कि हमारे कीड़ा अध्यापक हमें खेल खिला रहे जिससे हमारा मनोरंजन होता रहे | स्कूल हमारे लिए आदर्श बना रहे। इसलिए हम अपने प्र्धन्याध्यापक से आशा रखते हैं कि वे हर तरह से हमारी उनका प्रबंध करें।
राजनेताओ से हमे बड़ी-बड़ी आशाएँ होती हैं। हम चाहते है कि वे देश को उचा उठाएं | हमारी समस्याओं का समाधान करे | ऐसे नियम बनाये जिससे नागरिक जीवन अच्छा बने | अधिकरीयों से हमे आशा है की वे अपने-अपने कार्य को मुस्तेदी से करे | उदाहररण के लिए पुलिस कर्मचारी यदि सावधानी से कार्य करे देश में शान्ति रह सकती है | दिन-दहरे लूट, होती है, गुंडे-बदमाश साधरण लोगो के जीवन को दूभर बना देते है पुलिस कर्मचारी का कर्तव्य है कि वे जनता की सुरक्षा प्रबन्ध करें। इसी प्रकार न्यायालय से हमे आशा है कि वे जनता को न्याय दें। न्यायाधीश यदि मुस्तेदी से कार्य करें तो होने वाली भीड़-भाड़ कम हो सकती है। अस्पतालों मैं यदि डॉक्टर लोग मरीजो की देखभाल करे तो अस्पताल स्वर्ग बा सकते है। कार्यालयों में यदि सारे कार्य तेजी से हो तो जन-जीवन सुखी हो सकता है | सुख हो सकता है। इस प्रकार हमे अपने लोगो से अनेक आशायें होती है |
(iv)मुर्ख से समझदार अच्छा होता है। हमें शत्रु के मुकाबले मित्र से अधिक सावधान रहना चाहिए | समझदार शत्रु कभी भी धोखे से अहित नहीं करेगा वह आमने-सामने ही लड़ेगा, पोछे से या पीछे से या धोखे से हमला नहीं करेगा | यह शत्रु की बाद हो रही है जो समझदार व नीतिवान है जो शत्रु समझदार नहीं है और अनीति पर चल रहा है. वह तो कभी भी धोखा कर सकता है इसलिए उससे तो विशेष सावधान रहना चाहिए। अब आती है बात मित्र की को मित्र को सुदय भी कहते हैं। मित्र मुसीबत में करता है और सपने में भी अहित की बात नहीं सोच सकता |मित्र पर बड़ा भरोसा होता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है-

"जो न मित्र दुःख होई दुखारी तिनहिं बिलोकत पातक भारी॥"

मित्र के दो बड़े-बड़े गुण है। यहाँ बात सच्चे मित्र की है, मुर्ख की नहीं मित्र से विशेष सावधानी को आवश्यकता है। जिसमे समझ नहीं है. वह न जाने कब अहित कर दे, कुछ कह नहीं सकते | इसी प्रकार एक कहानी है मूर्ख सेवक की एक राज्य में बड़े प्रतापी राजा उदयभानु सिंह राज्य करते थे। वे बड़े दयावान, न्यायी और प्रज्ञा मै उनकी प्रशंसा आस-पास के राज्यों मै फैली हुई थी | लोग उनके न्याय की मिसाल देते थे उनके राज्य की प्रजा सुखी थी | वे विद्वानों का आदर करते थे। एक दिन उनके दरबार में एक बन्दर का तमाशा दिखाने का आया उस राजा और दरबारी लोगों को बन्दर का तमाशा दिखाया उस बन्दर को मदारी ने काफी काम सिखा दिये थे| सिबय बोलने के यह सब काम कर देता आदमियों को बातें समझ लेता | राजा ने प्रसन होकर उस बन्दर को मदारी से से अच्छा मूल्य देकर खरीद लिया और महल में रख लिया | राजा जो कार्य करने को कहता, वहा उस कार्य को कर देता | थोड़े ही दिनों मै उसने राजा दिल जीत लिया अत:राजा ने उसे अपनी सेवा में रख लिया | जब राजा शयन करता वह बन्दर राजा को पंखे से हवा करता इस प्रकार उसने अपने काम को समझ लिया था | राजा शीतल हवा के सुख का अनुभव करता था। हर दिन राजा बन्दर की प्रशसा करता था और उसे अपने साथ दरबार में भी ले जाता था लोग उसे देखकर अपना मनोरंजन करते | कभी वह दरबारियों से जाकर हाथ भी मिला लेता था |
एक दिन दरबार में आकर खाना खाकर अपने शयन कक्ष में चला गया लगा | राजा विश्राम करने लगा और करने लगा और बन्दर ने पंखा लेकर हवा करना शुरू कर दिया। थोड़ी देर में शीतल पवन के स्पर्श से राजा को नींद गहरी नींद आ गई। कुछ देर बाद एक मक्खी आकर राजा को नाक पर बैठ गई। बन्दर ने उसे पंखे से उड़ा दिया | वह मक्खी पुन: वही पर आ रही थी बन्दर राजा को बहुत बहा था। मक्खी हरकत से उसे बहुत क्रोध आया। उसने इधर-उधर देखा तो पाया कि एक कोने में राजा की खुली तलवार रखी थी बन्दर उठा और दोनों हाथों से तलवार को उठा लाया और बड़े जोर से उसे राजा की नाक पर बेठी हुई मक्खी पर दे मारा। मक्खी तो उड़ गई लेकिन तलवार के वार ने राजा को बुरी तरह घायल कर दिया और राजा तदपने लगा| वह मुर्ख बन्दर भी आश्चर्य में राजा को देखकर दुःखी हुआ, लेकिन अब क्या हो सकता था, थोड़ी देर मै राजा म्रत्यु को प्राप्त हुआ जब लेगों ने मरे हुए राजा को देखा तो बोले- "मुर्ख मित्र से समझदार शत्रु अच्छा होता है |" इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि मुर्ख मित्र (सेवक) कभी भी हमारा अहित कर सकता है | अत: मुर्ख मित्र (सेवक) आपने पास नहीं रखना चाहिए |
(v)यह चित्र किसी विद्यालय के मैदान का है। इसमें फ़ुटबाल के खेल को प्रतियोगिताभर रही है। खिलाड़ी पूरे ध्यान और शक्ति के साथ इस प्रतियोगिता को जितने का प्रयास कर रहे हैं। पीछे बैठे लोग और विद्यालय के छात्र इन खेलते हुए बच्चों को प्रोत्साहित कर रहे है। उनके नाम लेकर बेहतर प्रदर्शन के लिए उत्सहित कर रहे है | फुटबाल खेलने के लिए शरीर में शक्ति, स्फूर्ति और खेल के प्रति लगन एवं रूचि आवश्यक है। इन बच्चो के खेलने से ढंग से पता चलता है कि खेल मै प्रशिक्षित है। यधपि इनकी आयु अधिक नहीं है फिर भी इनमे जोश की कमी नहीं है। इस खेल में दोनों टीमों यूनिफार्म अलग-अलग होती है ताकि अपनी टीम की पहचान रहे। लगता है कि विद्यलय की फुटबाल टीम इस खेल का अभ्यास आपस मै ही कर रही है | ये बच्चे बड़े होकर इस खेल से देश के लिए कोर्तिमान स्थापित करेंगे।
पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश में खेल-कूद के क्षेत्र में काफी काम हुआ है। ओलम्पिक प्रतियोगिताएँ, एशियन क्रीड़ाएँ आदि अन्तर्राष्ट्री य स्तर की प्रतियोगिताओं में भारत के खिलाड़ियों ने कई ‘मैडल्स’ और ‘कप’ जीते हैं और भारत का सम्मान बढ़ाया है। इस क्षेत्र में एक बड़ी विशेषता है–महिलाओं का आगे आना। आज भारत में क्रिकेट, हॉकी, टेनिस, बैडमिण्टन, टेबि लटेनिस, बॉली-बाल, बास्केटबाल आदि खेलों की महिला टीमें बनी हैं। हाई जम्प, डिस्कथ्रो, दौड़ जैसे खेलों में भी महिलाएँ विजयी हुई हैं। कुछ वर्ष पूर्व हमारे देश के अनेक खिलाड़ियों ने विश्व-स्तर पर कीर्तिमान स्थापित किया है। हमारे लिए यह गर्व की बात है। हमारे विद्यालयों में भी खेलकूद पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है। खेलों से बच्चों में खेल भावना के साथ-साथ आपस में प्रेम, कष्ट सहने की क्षमता, अनुशासन आदि गुण विकसित होते हैं। हमारे विद्यालयों में भी खेल-कूद पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है। खेलों से स्वस्थ स्पर्धा विकसित होती है।

Answer 2.

(i)
छात्रावास
दयालबाग शिक्षण संस्थान।
दिनांक:12-7-20xx
प्रिय पिंकी
सस्नेह आशीर्वाद।
तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ। सर्वप्रथम तुम्हें बहुत-बहुत बधाई, तुम्हें विदेश जाने का अवसर प्राप्त हुआ है। तुम्हें परेशान या दुःखी होने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम अपने लक्ष्य के पथ पर आगे बढ़ रही हो। केव ल दो वर्ष के लिए ही तो परिवार से दूर जा रही हो। कुछ बनने के लिए थोड़ा त्याग तो करना ही पड़ता है। मुझे भी पढ़ाई पूरी कर कुछ बनने के लिए छात्रावास में रहना पड़ रहा है। हमें अपने माँ-बाप का नाम रोशन करने के लिए कुछ दिन का उनसे अलगाव सहना ही पड़ेगा। तुम खुशी-खुशी जाओ और अपनी शिक्षा पूर्ण कर नाम कमाओ तथा हम सबका नाम रोशन करो। हम सबकी खुशी इसी में है कि तुम अपने लक्ष्य तक पहुँचो।
माताजी व पिताजी को मेरा चरण-स्पर्श कहना।
तुम्हारा अग्रज,
अजय
(ii)
सेवा में,
श्रीमान प्रसार प्रबन्धक जी,
‘इण्डिया टुडे’ कार्यालय,
नई दिल्ली।

विषय–पत्रिका का नियमित ग्राहक बनने हेतु पत्र।


महोदय,
मैंने आपकी पत्रिका ‘इण्डिया टुडे’ अपने कॉलेज के पुस्तकालय में पढ़ी। जब मैं कोई रोचक पत्रिका तलाश कर रहा था तो मेरी दृष्टि इस पत्रिका के आकर्षक रंगीन कवर पर पड़ी। मैंने पत्रिका को लेकर पढ़ा। यह पत्रिका मुझे बड़ी रोचक और ज्ञानवर्धक लगी। इसमें प्रधान लेख, राजनीति सम्बन्धी सामग्री, रंगीन चित्रों का संयोजन, फिल्मी लेख एवं नेतागणों की समालोचना बड़े उत्तम ढंग से पढ़ने को मिलती है। पठनीय सामग्री सुरुचिपूर्ण है। मुझे यह बहुत पसन्द आई। विद्यार्थियों को भी इस प्रकार की पत्रिकाएँ पढ़नी चाहिए। इसमें प्रकाशित लेखों को पढ़कर उन्हें राजनीति व अन्य विषय सम्बन्धी जानकारी होती है। यह जानकारी आगे चलकर उनके काम आयेगी। मैंने तो पत्रिका को पढ़कर मन बना लिया था कि इसका नियमित ग्राहक बन जाऊँ ताकि यह पत्रिका मेरे घर पर उपलब्ध रहे और मेरे साथ-साथ घर के अन्य सदस्य भी इसे पढ़कर ज्ञानार्जन करें। राजनीति की स्पष्ट आलोचना मुझे बहुत पसन्द आई। कुछ लेख समयानुसार बदलती हुई राजनीति के सम्बन्ध में होते हैं। युवकों के लिए भी सुरुचिपूर्ण लेख, खेलों के बारे में और फिल्मों के बारे में सामग्री होती है। छवि चित्रों को संयोजन उत्तम स्तर का होता है। छपाई और कागज की दृष्टि से भी यह पत्रिका उच्च कोटि की है। कृपया इस पत्रिका का वार्षिक मूल्य लिखकर भेज दें ताकि हम उसी हिसाब से धनादेश के द्वारा इसका मूल्य भेज दें। पत्र का उत्तर शीघ्र देने का कष्ट करें और कोई विशेष जानकारी या सूचना देन ी हो तो कृपया अपने पत्र में लिख दें।
धन्यवाद सहित!
भवदीय,
रवि प्रकाश
111-बी, गाँधी नगर,
आगरा-282005.
दिनांक:11-2-20XX

Answer 3.

(i)  ग्रामों में नगरों की तरह न बिजली के पंखे हैं, न नल का पानी, न मोटर व रेल के पथ, ना फलों, मेवों की मंडियाँ व मिठाइयों की दुकान।
(ii)  ग्राम में समय धूप और चाँदनी से ही जाना जाता है। तारे भी उसमें सहायता करते हैं।
(iii)  ग्रामीणों के मुख पर तेज का कारण वहाँ का प्राकृतिक वातावरण, कुओं से निकले ताजा शुद्ध पानी से स्नान, नीम की दातुन, शुद्ध घी व शुद्ध दूध और नगरवासियों के चेहरे नीरस इसलिए होते हैं, क्योंकि नगर में न शुहै।
     वायु है और न शुद्ध भोजन चारों तरफ गंदगी ही गंदगी होती है।
(iv)  ग्रामवासियों का भोजन गाय का शुद्ध घी; शुद्ध दूध और दही, छाछ आदि होता है। नगरवासियों का भोजन दुकानों पर बने हुए पकवान होते हैं।
(v)  गाँववासी शाम को खेतों से घर लौटते हैं। गाय की सेवा करना, बैलों को चारा डालना, चौपाल पर लोगों से बातचीत करना, जो मिला सो खा लेना , समय रहा तो रामायण आदि पढ़ना। बच्चों से बातें करना
     और सो जाना। प्रातः काल फिर से उठ वही कार्य दोहराना। ग्रामीण की दिनचर्याः प्राकृतिक वातावरण से प्रारम्भ हो, गाय की सेवा, बैलों को चारा आदि से पूर्ण होती है।
     ग्रामीण की दिनचर्याः प्राकृतिक वातावरण से प्रारम्भ हो, गाय की सेवा, बैलों को चारा आदि से पूर्ण होती है।

Answer 4.

(i)  (a) बहिरंग
(ii)  (d) नेह-प्रेम।
(iii)  (b) उड़ान
(iv  (c) आर्थिक
(iv)  (a) रामायण
(vi)  (b) बहुत प्रिय
(vii)  (a) मुसाफिरों ने धर्मशाला में विश्राम किया
(viii) (c) मितभाषी

Section-B

Answer 5.

(i)  लेखक रेल से हरिद्वार जा रहा था क्योंकि उसे वहाँ अपने मित्र श्यामलाकांत की बड़ी पुत्री के विवाह में भाग लेना था। श्यामलाकांत लेखक के घनिष्ठ मित्र थे।
(ii)  लेखक ने अपने मित्र का प्रारम्भिक परिचय देते हुए बताया है कि हरिद्वार निवासी उनके यह मित्र सीधे-सादे, परिश्रमी, ईमानदार, किन्तु व्यक्तिगत जीवन में लापरवाह थे। वे उम्र में लेखक से छोटे थे,
     किन्तु उनके सात बच्चों का बड़ा परिवार था।
(iii) स्टेशन पर लेखक का रेल में आरक्षण न हो सका, क्योंकि वहाँ पहले से बहुत अधिक व्यक्तियों की लम्बी लाइन थी।
(iv) यात्रा के दिन स्टेशन पर यात्रियों की भीड़ देखकर लेखक घबरा गया। कुली की सहायता से किसी प्रकार खिड़की के मार्ग से डिब्बे में पहुँचा। ‘लक्सर’ स्टेशन पर भी वह किसी प्रकार गाड़ी के बाहर आया।

Answer 6.

(i)  यहाँ पर यह कथन चित्रा अपनी सहेली अरुणा से कह रही है। चित्रा पेंटिंग बनाती है तो अरुणा उसमें कुछ न कुछ कमी निकालती रहती है। वह कहती है कि दुनिया में कितनी भी बड़ी घटना घट जाय
    पर यदि उसमें चित्रा के चित्र के लिए आइडिया नहीं तो उसके लिए वह घटना कोई महत्व नहीं रखती।
(iii)  चित्रा अपनी पढ़ाई का कोर्स समाप्त करके विदेश जाना चाहती है। उसके पिताजी ने भी उसे पत्र लिखकर जाने की आज्ञा दे दी है।
(iv)  तीन दिन से मूसलाधार वर्षा हो रही थी। रोज अखबारों में बाढ़ की खबरें आ रही थीं। अरुणा बाढ़ पीड़ितों के लिए चन्दा इकट्ठा करने में जुट गई और फिर वह बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए चली गई और ।
     पन्द्रह दिन बाद लौटकर आई।
(vi)  चित्रा के विदेश जाने की बात सुनकर अरुणा भावुक हो उठी। उसने कहा कि छह साल से साथ-साथ रहते हुए वह यह तो भूल ही गई थी कि अलग भी होना पड़ सकता है। दोनों में इतना स्नेह था कि हॉस्टले थे।
      वाले उनकी मित्रता देखकर ईर्ष्या करते थे।

Answer 7.

(i)  उपर्युक्त अवतरण में ‘भेड़ियों’ शब्द का प्रयोग शोषक वर्ग, साधन-सम्पन्न व्यक्तियों और सत्ताधारी लोगों के लिए किया गया है, जो जनता का शोषण करते हैैं।
    ये लोग लोकतन्त्र की धज्जियाँ उड़ाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। भोली-भाली जनता उनके बहकावे में आ जाती है और शोषित बनी रहती है।
(iii)  भेड़िये, भेड़ें और सियार क्रमशः शोषक वर्ग, भोली-भाली जनता तथा अवसरवादी, स्वार्थी और चापलूस व्यक्तियों के प्रतीक हैं। यह हास्य- व्यंग्य प्रधान रचना है।
     ना है। लेखक ने बड़े रोचक ढंग से शासक वर्ग पर करारा व्यंग्य किया
(vi)  चुनाव में भेड़िये का प्रचारक सियार वर्ग था। तीन सियारों ने उनका नेतृत्व किया। भेड़िये को सन्त का रूप दे दिया और उसका झूठा प्रचार किया कि भेड़िये ने माँस खाना छोड़ दिया है
      और वह सन्त हो गया है। भेड़िये को सब प्रकार से भेड़ों का रक्षक और हितैषी बताया।
(vi)  सियार अवसरवादी और स्वार्थी लोगों के प्रतीक हैं। उनका अस्तित्व शोषक वर्ग की कृपा पर ही निर्भर है। उनका सुख-सुविधापूर्ण जीवन भी उन्हीं की कृपा से चलता है।
      इसलिए ऐसे लोग शोषक वर्ग की चापलूसी और उनके लिए कार्य करने में लगे रहते हैं। बिना शोषक वर्ग की कृपा के उनका जीवन मुश्किल से चलेगा।

साहित्य सागर (पद्य)

Answer 8.

(i)   कृष्ण को सोता हुआ जानकर यशोदा जी चुप हो जाती हैं और इशारों से बात करने लगती हैं। इसी बीच कृष्ण अकुलाकर उठ बैठे तो यशोदा जी मधुर गीत गाकर उन्हें फिर से सुलाने लगती हैं।
(ii)  यशोदा बालकृष्ण को पालने में झुलाकर सुलाने का प्रयत्न कर रही हैं। वे उसे हिलाती हैं, प्यार करती हैं और मल्हार जैसा गीत गाने लगती है। कभी कुछ और गाने लगती हैं ताकि कृष्ण सो जाये।
(iii)  जब कृष्ण सो नहीं रहे हैं तो यशोदा नींद से कहती हैं कि हे नींद! तुझे कान्हा बार-बार बुला रहा है तू क्यों नहीं आती? जब तू आयेगी तभी कृष्ण सो पायेगा। तू शीघ्रता से आ ताकि कृष्ण चैन से सो सके।
(iv)  यशोदा ऐसा सुख प्राप्त कर रही हैं, जो सुख देव ताओं और ऋषि-मुनियों को भी दुर्लभ है। अर्थात् साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन का और उनके साथ क्रीड़ा करने का सुख वे सहज रूप में ही प्राप्त कर रही हैं।
      भगवान के दर्शन देव ताओं और निरन्तर जप करने वाले मुनियों को भी दुर्लभ हैं।

Answer 9.

(i)   तुलसीदास जी का मत है कि जो राम से नाता रखता है अर्थात् प्रभु श्रीराम की भक्ति करता है वही व्यक्ति हमारा प्रिय और सुहृदय होना चाहिए। उस अंजन
    (आँखों पर लगाने वाला मरहम) का क्या फायदा जो आँख ही फोड़ दे।ये।
(ii)  जो हमें राम के चरणों में स्थान दिलाये, जो हमें राम की शरण में ले जाये तथा जो उनकी भक्ति हमारे हृदय में जगाये वही हमें परम पूज्य और प्राण से भी प्यारा होना चाहिए। उसी की संगति हमारा हित है।
(iii)  भरत की माता कैकेई ने अपने पति अयोध्या के राजा दशरथ से दो वरदान माँगे थे–एक तो मेरे पुत्र भरत को राजगद्दी और दूसरा राम को चौदह वर्ष का वनवास। भरत और शत्रुघ्न अपनी ननिहाल में थे।
      सीता, राम और लक्ष्मण वन को चले गये। राम की याद में दशरथ ने प्राण त्याग दिये। जब भरत अपने भाई के साथ वापस अयोध्या आये तब पता चला कि उनकी माता ने राम जी को वनवास दिलवाया है
(iv)  लंका के राजा रावण को छोड़कर विभीषण राम की शरण में आ गया। रामजी शरणागत को सहर्ष अपना लेते हैं। उन्होंने यह जाना कि राक्षसों के बीच में रहकर भी मेरी भक्ति इसके अन्दर हैं।
      उन्होंने समुद्र का जल मँगाकर विभीषण का राजतिलक कर दिया मानो वही लंका का होने वाला राजा है। रावण शिवजी का भक्त था और शिवजी उसके आराध्य हैं इसलिए उन्हें विभीषण को
      रावण का राज्य देने में संकोच हुआ।

Answer 10.

(i)   ईश्वर ने हमारे लिए धरती पर सभी सुख-सुविधाएँ प्रदान की हैं। अन्न, जल, धन, वायु सभी को प्राप्त हो ऐसी व्यवस्था प्रभु ने कर दी है। कोई अपने परिश्रम से अधिक धन प्राप्त कर लेता है,
     कोई कम परिश्रम से कम धन प्राप्त कर पाता है। ईश्वर ने इसमें कोई भेदभाव नहीं किया है। मनुष्य को भाग्यवादी न बनकर कर्मवा दी बनना चाहिए। जल और वायु सभी को बराबर-बराबर हिस्से में मिलती है।
(ii)  मनुष्य को सुख-शान्ति तभी मिलेगी जब उसको समान अधिकार, समान सुख-भोग और परस्पर सहयोग मिले। मनुष्य अपने अधिकार के साथ कर्त्तव्य का भी ध्यान रखे।
      परस्पर सहयोग से मनुष्य विकास की राह पर चल सकता है।
(iii)  मनुष्य सभी के कल्याण के लिए दया, प्रेम, सहयोग, सहिष्णुता और दयाभाव अपने अन्दर सँजोकर रखें। विकास पथ पर बढ़ते हुए परस्पर सहयोग करें और स्वार्थ से दूर रहें। जो लोग असहाय और असमर्थ हैं
      उनकी सहायता करें। देश-प्रेम की भावना सबके अन्दर होनी चाहिए।
(iv)  कवि कहता है कि ईश्वर ने हमारे जीवन के लिए सभी सुख-सुविधाएँ धरती पर दी हैं। मनुष्य के भोगने के लिए धरती पर अनेक चीजें दी हैं जो सभी मनुष्यों को सन्तुष्ट कर सकती हैं
      पृथ्वी पर जितने भी नर-नारियाँ हैं उन सबके लिए अमित वस्तुएँ पृथ्वी में छिपी पड़ी हैं। मनुष्य कर्म करके उन्हें प्राप्त करे।े।

नया रास्ता (सुषमा अग्रवाल)

Answer 11.

(i)   मीनू अपने कॉलेज के हॉस्टल में थी तो उसके पास एक टेलीग्राम आया जिसमें लिखा था कि पिता बीमार हैं जल्दी आओ। यह खबर पढ़कर वह बेचैन हो गई और मीरापुर जाने के लिए तैयार होने लगी। उसे लग रहा था
     कि कैसे जल्दी-से-जल्दी अपने घर पहुँचकर अपने पिताजी को देख ले। इस समय रात हो चुकी थी और रात में जाना ठीक नहीं था, इसलिए उसे कल सुबह का इन्तजार करना पड़ा। रात बड़ी बेचैनी से कटी।
     अगले दिन वह सुबह ही चल दी और कुछ समय में घर पहुँच गई।
(ii)   पिताजी के पास बारी-बारी से घर का ही कोई-न-कोई व्यक्ति बैठा ही रहता। अगले दिन पिताजी को देखने बुआजी और फूफाजी आये। वे सीधे पिताजी के कमरे में ही गये। पहले बुआजी ने कुशलक्षेम पूछी और
      फिर इधर-उधर की बातें शुरू कर दीं। पास बैठी मीनू को लगा कि पिताजी से इतनी बातें करना उचित नहीं। क्योंकि उनके साथ पिताजी को भी बोलना पड़ रहा था।
(iii)  पिताजी को दिल का दौरा पड़ा था और डॉक्टरों ने पूर्ण-आराम की सलाह दी थी। इसलिए मीनू नहीं चाहती थी कि बुआजी पिताजी से अधिकबात करें। उनके बात करने पर पिताजी को बोलना पड़ता था।
      मीनू ने बआु जी को अधिक थकान का बहाना ढँूढ़ कर वहा ँ स ेहटाया। बआु जी मान गईं और वहाँ से उठ गईं।
(iv)  जाते समय बुआजी ने पिताजी को सलाह दी कि उसकी दो-दो जवान बेटि याँ हैं। उन्हें पढ़ाने के चक्कर में न पड़कर उनकी शादी कर दे। फिर रह गया रोहित तो उसकी कोई बात नहीं वह तो लड़का है।
      शादी के बाद उसकी जिम्मेदारी कम हो जाएगी। फिर उसकी तबियत भी तो ऐसी ही रहती है।

Answer 12.

(i)   उन दिनों हॉस्टल का वातावरण कुछ शान्त-सा हो गया था। चहल-कदमी करती हुई लड़कियों के झुण्ड अब बाहर नहीं दिखाई दे रहे थे। सब अपने-अपने कमरों में बैठी अपनी पढ़ाई में व्यस्ते थीं
     उसकी परीक्षा शुरू होने में सिर्फ पन्द्रह दिन शेष रह गये थे।
(ii)   मीनू बचपन से ही पढ़ाई में विशेष रुचि रखती थी। परीक्षा के दिनों में तो उसे खाने की भी सुधि नहीं रहती थी। वह आजकल कॉलेज में नहीं जा रही थी। परीक्षा के पूर्व अवकाश चल रहा था।
      वह हर समय अपने कमरे में अपनी पुस्तकों के साथ रहती थी। जब पढ़ते-पढ़ते थक जाती थी तो अपनी सहेली माया के साथ बैठकर पाँच मिनट बातें कर लेती।
(iii)  माया जब मीनू के लिए दवाई लेने गई तो मीनू अतीत की स्मृति यों में खो गई। एक बार जब वह आठवीं कक्षा में पढ़ती थी तो उसे तेज ज्वर हुआ था। उसकी हालत देखकर माँ की आँखों में आँसू आ गये थे।
      माँ सारी रात उसके सिर पर बर्फ की पटि् टयाँ रखती रही थी। माँ ने उसका कितना ध्यान रखा था?
(iv)  माया मीनू की सहेली थी। मीनू का बुखार देखकर वह बाजार गई और दवा लेकर आई। जैसे ही मीनू ने करवट लेने की कोशिश की वैसे ही माया ने कमरे में प्रव वह डॉक्टर से मीनू के लिए दवाई लेकर आई थी।
      उसके लिए एक कप चाय बनाकर माया ने उसे दवाई दी और उसके बाद सिर दबाने बैठ गई। मीनू को माया के व्यवहार में अपनापन देखकर बड़ा अच्छा लग रहा था। मीनू का मन माया के प्रति स्नेह से भर गया।

Answer 13.

(i)   मीनू हॉस्टल से अपने घर इसलिए आई है, क्योंकि उसकी घनिष्ठ सहेली नीलिमा की शादी है और उसमें जाना आवश्यक था। नीलिमा तो उसे शादी से पहले ही आने के लिए बुला रही थी।
(ii)   हॉस्टल में और घर में यह फर्क है कि वहाँ तो चाय भी अपने आप बनानी पड़ती है और घर में सुबह होते ही माँ उसे चाय लाकर बिस्तर पर ही दे देती है तथा नाश्ता भी अपनी पसन्द का मिल जाता है।
      घर तो घर है इसमें अपनापन होता है।
(iii)  आज मीनू के हृदय में विशेष उत्साह इसलिए था क्योंकि आज उसकी सहेली नीलिमा की बारात आनी थी। तभी उसके हृदय में एक पीड़ा-सी अनुभव हुई कि काश वह भी नीलिमा जैसी सुन्दर होती।
      तभी किसी ने उसे पुकारा कि नीलिमा ने उसे बुलाया है। नीलिमा का भाई अशोक उसे लेने आया था।
(iv)  माँ ने उसे साड़ी पहनने को कहा तो उसने माँ से कह दिया कि रात तक साड़ी सँभालना मुश्किल होगा, बरात आने से पहले वह साड़ी पहन लेगी। शीशे के सामने खड़े होकर मीनू ने सुन्दर ढंग से अपने केश सँभाले|
      इससे रूप और सलोना हो उठा। गेहुँआ रंग होने पर भी उसके तीखे नाक-नक्शे उसकी सुन्दरता में चार-चाँद लगा रहे थे। परन्तु मीनू के हृदय में हीन-भावना घर कर गई थी, जिसके कारण वह अपने को सुन्दर
      नहीं समझती थी। फिर उसने दर्पण के सामने खड़े होकर अपने को गौर से देखा। उसे आभास हुआ कि वह बदसूरत तो नहीं है।

Answer 14.

(i)   माँ अपने बड़े बेटे अविनाश से नाराज थी, क्योंकि उसने एक विजातीय लड़की से शादी कर ली थी। माँ को यह स्वीकार नहीं था इसलिए अविनाश उनसे अलग रहता था। माँ को पता चला था
      कि अविनाश बीमार हो गया थाऔर उसकी बहू ने लगन और मेहनत से उसे बचा लिया था। अब अविनाश की बहू बीमार पड़ी है और अविनाश उसे बचा नहीं पाएगा। यह बात जानकर माँ का हृदय परिवर्तन हुआ
      और उसका मातृत्व तड़प उठा अपने बड़े बेटे और बहू के लिए और कहने लगी कि वह अविनाश की बहू को अपने घर ले आएगी और उसे बचा लेगी।
(ii)   अतुल ने अपने बड़े भाई के पास चलने से पहले अपनी माँ से कहा कि यदि वह उस नीच कुल की विजातीय भाभी को इस घर में नहीं ला सकी तो वहाँ जाने से कोई लाभ नहीं होगा।
      माँ के स्वीकारात्मक संकेत से अतुल को प्रसन्नता हुई और उसने तुरन्त ताँगा लाने को रामसिंह से कहा।
(iii)  माँ द्वारा मन से अविनाश को और उसकी बहू को अपनाने की बात जानकर अतुल प्रसन्न हो गया। अतुल और उसकी बहू उमा तो पहले से ही चाहते थे कि अविनाश और माँ के बिगड़े हुए सम्बन्ध फिर से ठीक हो
      जायें और माँ अविनाश को अपने घर में बुलाकर और मनमुटाव भुलाकर अपना लें।
(iv)  इस समय वातावरण में शान्ति और स्निग्धता है। सहसा उमा को पुस्तक के वाक्य याद आते हैं और धीरे-धीरे फुसफुसाती है “जिन बातों का हम प्राण देकर भी विरोध करने को तैयार रहते हैं एक समय आता है,
      जब चाहे किसी कारण से भी हो, हम उन्हीं बातों को स्वीकार कर लेते हैं।”

Answer 15.

(i)   इस कथन की वक्ता मँझली बहू है। वह छोटी बहू के बारे में बात कर रही है। वह ऊपर कुछ सामान रखने गई तब उसने छोटी बहू बेला को अंग्रेजी में कुछ गिटपिट कहते हुए सुना। समझ में आया कुछ नहीं,
      लेकिन इतना समझा कि छोटी बहू बेला का पारा चढ़ा हुआ था।
(ii)   वक्ता मँझली बहू ने बताया कि बहू रानी ने सारा फर्नीचर बाहर निकालकर रख दिया है। वह उन टूटी-फूटी कुर्सियों को और सड़े-गले फर्नीचर को अपने कमरे में न रहने देगी। परेश ने कहा कि ये तो बुजुर्गों कीै
      निशानी है तो उसने तपाक से जवाब दिया कि हमारे बुजुर्ग तो जंगलों में नंगे-बुच्चे घूमा करते थे तो क्या हम भी ऐसा ही करें।
(iii)  इस उत्तर के जवाब में परेश ने कहा कि इस फर्नीचर पर उसके दादा बैठते थे, पिता बैठते थे। उन लोगों को कभी शर्म नहीं आई, उन्होंने कभी फर्नीचर के सड़े-गले होने की शिकायत नहीं की।
      अब यदि वह इसे रखने पर आपत्ति करेगा तो दादाजी कहेंगे कि तहसीलदार होते ही लड़के का सिर फिर गया है।
(iv)  परेश की बात सुनकर उसकी बहू ने जवाब दिया कि वह (बेला) तो इस गले-सड़े सामान को कमरे के पास तक न फटकने देगी। इस बेडौल फर्नीचर से तो नीचे धरती पर चटाई बिछाकर बैठे रहना अच्छा है।
      उसके बाद उसने अपने मायके के बड़े-बड़े कमरों और बहुमूल्य फर्नीचर का बखान किया और परेश की एक न चलने दी।

Answer 16.

(i)   जब पन्ना धाय ने कुँवर को यह कहा कि उन्हें तो ना च देखना अच्छा नही लगता, तब कुँवर ने कहा कि क्यों अच्छा नही लगता। वह तो बड़ी देर तक नाच देखते रहे |वे भी उसे बड़ी देर तक देखती रही
      धाय माँ वह कितना अच्छा है यह सनु कर ही धाय माँ ने यह कथन कहा।
(ii)   जब धाय माँ ने उदयसिंह को कुलदीपक कहा तो उदयसिंह ने कहा कि वह कुलदीपक है तो कहीं उसे दान न कर देना , वे नाचने वाली लड़कियाँ तुलजा भवानी की पूजा में दीपदान करके ही नाच रही हैं।
      वे छोटे-छोटे दीपक कुण्ड में कैसे नाच रहे थे धाय माँ! धाय माँ चलकर उनका दीपदान देख लें। जिस तरह उनके दीपक नाचते हैं, उसी तरह वे भी नाच रही हैं।
(iii) बनवीर ने नगर भर में आज नाच-गाने का त्योहार मनवाया, जिससे नगर-निवासियों का ध्यान नाच-रंग में ही रहे। मौका देखकर वह राजमहल जाकर महाराणा की हत्या कर
      और बाद में कुँवर उदयसिहं की हत्या कर दे। यह उसका षड् यन्त्र था।
(iv)  दीपदान के उत्सव में धाय माँ नहीं गई न ही उसने कुँवर उदयसिहं को जाने दिया। कु समय नाच-रंग की बात सुनकर पन्ना धाय को बनवीर पर शक हो गया कि बनवीर कोई कु चक्र रच सकता है|
     इसलिए उसने कुँवर को वहा नही जाने दिया, सम्भव था कि कुँवर वहा जाते और बनवीर अपने सहायकों से कोई षड् यन्त्र रच देता।

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